नीति आयोग के सन 2018 के अनुमान के अनुसार 60 करोड़ लोग शुद्ध पेयजल की गंभीर से अतिगंभीर कमी से ग्रसित हैं और हर साल लगभग दो लाख लोगों की अकाल मृत्यु, शुद्ध पानी की अनुपलब्धता के कारण होती है। नीति आयोग के अनुसार सन 2030 तक भारत की पानी की मांग के दो गुना होने का अनुमान है। नीति आयोग के इन अनुमानों और जमीनी हकीकत को ध्यान में रख सरकारों ने शुद्ध पानी पर अनेक योजनाओं पर काम प्रारंभ किया है। इसी कड़ी में पिछले दिनों, प्रधानमंत्री जी ने, देश से मन की बात कार्यक्रम के दौरान हर जिले में कम से कम 75 अमृत तालाबों के निर्माण का सुझाव दिया था।
सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जिलों की कुल संख्या 640 थी। अप्रैल 2022 की स्थिति में यह संख्या अब 773 है। जिलों की मौजूदा संख्या के कारण देश में बनने वाले तालाबों की संख्या कम से कम 57975 होना चाहिए। इस क्रम में उल्लेख है कि अमृत तालाबों की योजना के अंतर्गत मध्यप्रदेश सरकार ने हर जिले में कम से कम 100 तालाब बनाने का निर्णय लिया है वहीं उज्जैन जिले ने सन 2022 की गर्मी के पहले 200 तालाबों के निर्माण का फैसला लिया है। अनुमान है कि प्रदेश सरकार इस योजना के तहत कम से कम 5300 नए तालाबों के निर्माण होगा। मध्यप्रदेश सरकार को उम्मीद है कि अमृत सरोवरों के बनने से ग्रामीण क्षेत्रों को लाभ होगा, जल भंडारण होगा, भूजल स्तर ऊपर आवेगा, खेती में पानी का उपयोग होगा और पशु-पक्षियों को भी लाभ होगा। मध्यप्रदेश सरकार ने अमृत तालाबों के निर्माण पर हर जिले में चार करोड़ रुपयों की राशि व्यय करने का मन बनाया है। उम्मीद है, ऐसे ही प्रयास देश के अन्य राज्यों में किए जावेंगे।
जल संकट निराकरण के संदर्भ में प्रधानमंत्री जी का देश का संदेश स्पष्ट तथा बेहद सामयिक है। वे चाहते हैं कि बढ़ती मांग के अनुरूप हर जगह, जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो और देश से जल संकट पूरी तरह समाप्त हो। इस सन्देश के माध्यम से वे तालाबों की भूमिका को भी संजीदगी से रेखांकित कर रहे हैं। इस अनुक्रम में कुछ बिन्दु विचारणीय हैं।
भारत में तालाब निर्माण की परम्परा सनातन है। उनके निर्माण से निस्तार, आजीविका, सुरक्षात्मक सिंचाई, पानी में उत्पन्न होने वाली फसलें और खाद्य के लिए जलीय जीव-जन्तु प्राप्त होते हैं। जाहिर है, इन सेवाओं को कारगर तरीके से उपलब्ध कराने के लिए बारहमासी तालाबों की आवश्यकता है। उम्मीद की जाना चाहिए कि प्रस्तावित अमृत सरोवरों के बनने से तालाबों की पुरानी भूमिका बहाल होगी।
भारत के परम्परागत तालाब, जिन्होंने देश को पानीदार बनाया था, देश के हर हिस्से में मौजूद हैं। कहीं कम तो कहीं अधिक पर अनुपम मिश्र के शब्दों में तालाब एक बड़ा शून्य है अपने आप में। लेकिन तालाब पशुओं के खुर से बन गया कोई ऐसा गड्ढा नहीं है कि बरसात का पानी अपने आप भर जाए। इस शून्य को बहुत सोच-समझ कर, बडी बारीकी से बनाया जाता था। उम्मीद है अमृत तालाब बनाते समय इस तथ्य को ध्यान में रखा जावेगा।
मौजूदा समय में निर्मित अधिकांश तालाबों की जल उपलब्धता मौसमी और गाद जमाव अनुमान से अधिक है। अपेक्षित है कि अमृत तालाबों के निर्माण में वह परम्परागत विज्ञान अपनाया जावेगा जो उन्हें सिल्ट मुक्त रख बारहमासी और दीर्घायु बनाता है।
मौजूदा समय में भारतीय तालाबों के पानी में गंदगी का पाया जाना आम है। लेकिन उनके पानी की स्वच्छता को लेकर जागरूकता लगातार बढ़ रही है। हमारा अपशिष्ट प्रबन्धन तंत्र बेहद लचर है। उसके लचर होने के कारण छोटी बसाहटों से लेकर नगरीय बसाहटों तक का उत्सर्जित अपशिष्ट जलाशयों में मिल रहा है। आवश्यक है कि नगरीय अपशिष्ट प्रबन्धन समुचित हो। औद्योगिक इकाईयाँ प्रदूषण फैलाने का काम बिल्कुल भी नहीं करें। यही समझदारी अमृत तालाबों के निर्माण में सुनिश्चित करना होगा ताकि प्रदूषित पानी की एक बूँद भी उनमें प्रवेश नहीं कर सके। इसी प्रकार, रासायनिक खेती में प्रयुक्त खतरनाक रसायनों के अमृत तालाबों में प्रवेश को रोकने के लिए नीतिगत प्रभावी कदम उठाना होगा।
तालाबों के निर्माण में उनकी तली के धरती से सह-सम्बन्ध पर पर्याप्त ध्यान देना होगा क्योंकि यह सम्बन्ध जल संचय तथा जल उपलब्धता को प्रभावित करता है। उल्लेखनीय है कि भारत के परम्परागत तालाब तीन किस्म के होते हैं। पहला - निस्तार तालाब, दूसरा - परकोलेशन तालाब, तीसरा - तालाबों की श्रृंखला। तालाब श्रृंखला में कुछ तालाब निस्तार तो कुछ तालाब परकोलेशन तालाब हो सकते हैं।
आम आदमी को तालाबों का उपरोक्त वर्गीकरण समझ में नहीं आता। उसको हर तालाब एक समान लगता है। उल्लेखनीय है कि निस्तार तालाब में पानी का संचय केवल उसके आयतन के अनुपात के बराबर होता है। अर्थात यदि निस्तार तालाब की औसत लम्बाई 50 मीटर, औसत चौड़ाई 40 मीटर और औसत गहराई 05 मीटर है तो उसकी सकल जल संचय क्षमता 10,000 क्यूबिक मीटर (50 x 40 x 5) होगी वहीं इसी साईज/आयतन के परकोलेशन तालाब जो रेत पर स्थित है, में 10000 क्यूबिक मीटर जल संधारण क्षमता के अतिरिक्त उसके नीचे मौजूद रेत (एक्वीफर) जिसका आयतन 5,00,000 क्यूबिक मीटर और औसत पोरोसिटी 25 प्रतिशत हो तो एक्वीफर की जल संचय क्षमता 125,000 क्यूबिक मीटर (5,00,000 x 25) होगी। यदि एक्वीफर की स्पेसिफिक ईल्ड 15 प्रतिशत हो एक्वीफर से 18750 क्यूबिक मीटर (1,25,000 x 0.15) पानी निकाला जा सकता है। अर्थात ऐसे परकोलेशन तालाब से 28750 क्यूबिक मीटर (18750 + 10,000) पानी हासिल किया जा सकता है। अर्थात जल प्राप्ति की दृष्टि से परकोलेशन तालाब अधिक कारगर होता है। यही नियम तालाबों की श्रंखला पर लागू होता है। जल संकट के दौर में अमृत परकोलेशन तालाबों के निर्माण पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। यह सिलसिला उस समय तक चलना चाहिए जब तक हम पानी के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हो जाते।
सूखे मौसम के जल संकट का सबसे बड़ा कारण भूजल दोहन है। इसी दोहन के कारण जलस्रोत सूखते हैं। उल्लेखनीय है कि सन 2020 की स्थिति में भूजल दोहन की मात्रा 245 बिलियन क्यूबिक मीटर है। जैसे जैसे दोहन बढ़ेगा जल संकट और गंभीर होगा पर अमृत सरोवरों के निर्माण की संख्या तय करते समय भूजल दोहन की श्रेणियों यथा अतिदोहित (सालाना रीचार्ज से अधिक), क्रिटिकल (सालाना रिचार्ज का 90 से 100 प्रतिशत), सेमी-क्रिटिकल (सालाना रिचार्ज का 70 से 90 प्रतिशत) और सुरक्षित का ध्यान रखना उचित होगा। इसके अलावा खारे पानी वाले 97 विकास खंडों में अमृत तालाबों की मदद से पानी के खारेपन को कम करने के बारे में विचार किया जा सकता है।
और भी बिंदु हो सकते हैं जो स्थानीय परिस्थितियों के कारण अमृत तालाबों के निर्माण की प्राथमिकता को तय करें। इसमें वन भूमि पर, वन विभाग के वर्किंग प्लान के आगे जाकर अमृत तालाबों का निर्माण आवश्यक है पर एक बात साफ है कि अमृत तालाबों के निर्माण का काम उस समय तक चलना चाहिए जब तक पानी के मामले में देश आत्मनिर्भर नहीं हो जाता।