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बैगा जनजाति में वर्षा गीत

Author : अर्जुन सिंह धुर्वे

झिरामिट झिरामिट पानी बरसय रे,

खेरो अक दूबीहरि आवय रे

भुमिया तोरे धारय इजोली रे बिजोली अहरा टूरा सीचाथय पानी।

बैसाख माह के अकती के दिन सभी ग्रामों में बीज बनाने की प्रथा है। उस दिन पानी के गिरने का बहुत महत्व होता है। प्रतीक रूप में उस दिन एक अहीर पुरुष द्वारा बैगाओं के घर सामने रखे घड़े में पानी को धनबाहर (अमलतास) की डाल से छिड़का जाता है। मान्यता है कि इससे पानी समय पर गिरेगा और जमीन की दूबी हरी-भरी होगी।

पाँच बारे होतव पूरा का नाकी जातव बिना रे

कसूरा पूरा कैसे नाको रे

तिराधार पैच वारे होतव पूरा नाली जालव बिना कसूरा पूरा ला कैसे नाकव रे।

एक युवक एवं युवती लमोठा ग्राम के धुरकुटा ग्राम के बीच एक छिपनी नाला पार करके जा रहे थे। उस समय पानी गिर रहा था। चलकर ताँतर ग्राम पहुँचते हैं। वहाँ डण्डला नदी है, जहाँ बाढ़ आई हुई थी। युवक कहता है कि डौकी तुम तैरना नहीं जानतीं। तुम्हारे पास तैरने की पैंच नहीं है। मै अकेले होता तो तैरकर पार कर लेता। परन्तु साथ में तुम हो इसलिए कैसे पार कर पायेंगे? बाढ़ समाप्त हो जाय तब चाँदा जायेंगे। बाढ़ समाप्त होते ही नदी को पार करके चाँदा जाकर देखते हैं तो वहाँ साफ पानी काफी मात्रा में रहता है। दोनों कहते हैं कि तीनों नदियों में अलग-अलग पानी देखने को मिला। जब लमोठा से धुरकुटा आये थे तो छिपनी नदी में पानी गिर रहा था। ताँतर आये तो डण्डला नदी में बाढ़ देखने को मिली और चाँदा आये तो बुढ़मेर नदी में साफ पानी दिखा। हमें लगता है कि इस साल खण्ड वर्षा होगी।

सिटापिट-सिटापिट मेंगो बरासय पथराउ

तरी नांगिन लोरेय।

सूरज देवता पानी ला बरसाये।

-बरखूलाल ओदरिया, धुरकुटा

आषाढ़ के महीने में जब पानी बरसता है तो नाग देवता पतवार के नीचे आकर छुपने लगता है, ऐसे समय सूर्य देव की कृपा से बहुत ज्यादा पानी बरसता है। लोग पानी के बरसने को सूरज देव एवं नाग देवता की कृपा ज्यादा मानते हैं।

सोन नदी रे परा मेसूर हाय,

जोहिला रे मोला नाकन दे।

बरात जोहिला रे मोला नाकन दे।

एक महिला पुरुष नदी के बीच में है। सोन नदी को भगवान मानकर पार नहीं कर रहे थे। नर्मदा नदी को पार करने जाते हैं, तो वह दुल्हन बनी हुई है। उसकी बारात सोन नदी की आने वाली हैं। ऐसे स्थिति में एक मात्र नर्मदा नदी की बहिन जोहिला ही हमें पार करने देगी, कहकर वहीं से पार होकर अपने घर को जाते हैं।

भैंसी बुढ़े नान छोकरी डोलावय कान भैंसी बढ़े।

कामन अहिरा चारा चरावय कामान पनिया पियावय,

डोलावय कान भैसी बुढ़े।

मन्नू अहीरा चारा चरावय कलमबती पानी ला पियावय डोलावय कान भैसी बढ़े।

-अमरलाल बरिया

सावन के महीने में एक तालाब में भैंस डूबी हुई है। वह उठ नहीं पा रही है। उसे मन्नूलाल नाम का अहीर चारा लाकर देता है। उसकी घरवाली कलमवती पानी लाकर पिलाती है।

घुमाड़ी रहे चारो खूट कारी बादल घुमाड़ी रहै-

कोन खूटे गरजय कोन खूटे घुमाडय कोन खूटे बूंदे

चा चुहावय, कारी बादल घुमाड़ी रहें

उतर कोती गरजय दक्षिण कोती घुमड़य

पूरब पट्टी बूंदैं ला चुहावय, कारी बादल घुमाड़ी रहै

-मन्नूलाल यादव पडरिया

बरसात आते ही बादल काला होकर गर्जना करता है। किसी तरफ पानी गिरता है तो किसी तरफ गर्जना होता है। इसी को लेकर इस करमा को गाया जाता है।

झुलानी

पानी बरासाथाय हाय, तोर लाने मोर तरासाथय रे।

तरी पेहरय आयल-पायल कनिहा म तो करधन कानें म

बाड़ी पहरके दिख थस रून झुना पानी बरासाथय......

पानी बरसते समय एक युवक एक झाड़ के नीचे खड़ा था। उसी बीच एक सुन्दर युवती वहाँ पहुँच जाती है। पानी भी गिर रहा है। परन्तु उस युवक का युवती को देखकर उससे मिलने के लिए मन तरस जाता है। वह उसके गहनों तथा सुन्दरता का वर्णन करता है।

पानी गिरय आहोधार, धाता ला ओढाय काया भीगाथय रे

कोन धारय धाता खुमड़ी को धरय कमरा कोन

धरय सगय के रेंगैया। पानी गिरय.......

पानी ज्यादा गिरने से छाता या खुमरी (बाँस से बनी तथा पत्तों से छायी जाती है) जिसे छतरी भी कहते हैं, पानी से बचने के लिए लोग उपयोग में लाते हैं। कहीं भी एक गाँव से दुसने गाँव जाते समय बरसात के दिनों में इन्हें नहीं भूलना चाहिए, अपनी जोड़ी (पत्नी) को भी साथ लेकर चलते हैं।

सावन भादो बीजाली चमाकय, चिरैया नाचय डारे-2

जेठ महिना पानी आवय अषाढ़ महिना पूरा सावन भादो

बिजली चमाकय। चिरैया...........

सावन और भादों के महीना में बिजली खूब चमकती है। वन के पक्षी उस समय पानी से बचने के लिए वृक्ष की एक डाल से दूसरे डाल पर आश्रय के लिए इधर-उधर नाचने लगते हैं। जेठ के महीनों में ज्यादा पानी गिरता है। तथा आषाढ़ के महीने में खूब बाढ़ आता है। सावन-भादों में खूब बिजली चमकती है।

ददारी म गांव बसय खाले घांट कुंआना ददारी म रे

घुमुर-घुमुर पानी आवय पानी आवय पानी ऊपर गाजा,

गाजा ऊपर मांचा-मांचा ले नाचत नाचत

गिर परय दोनों मामा भांजा ददारी म रे.........

एक पुरुष एक युवक के साथ दूसरे गाँव मेहमानी के लिए गये थे। दोनों आपस में मामा-भान्जा थे। जिस गाँव में वे मेहमान थे, वह गाँव दादर पर बसा हुआ था। यह देखकर उन्हें लगा कि गाँव के लोग पानी कहाँ से पीते हैं? वे दोनो देखते हैं कि एक घर के पास थोड़ा कीचड़ दिखाई दे रहा है। वहां एक कुआं है। घर के लोगों ने मामा-भांजा का स्वागत किया, उन्हें माचा पर बैठाया, खूब शराब पिलाई। इस बीच हल्की बारिश होने लगी। वे दोनों प्रसन्न हो माचे पर नाचने लगे। कुछ देर बाद वे दोनों नीचे गिर पड़े।

आहा हाय रे कहाना नाहीं मानें बेरिच

बेरी बराजंव तोला कहाना मोर नाही मानें।

दिन निकलती झय तो जाबी नदिया बड़ा भारी

पानी पूरा रे नकके आबे तबय कहाबें नारी

कहाना मोर नाहीं माने

एक स्त्री अपने पति का कहना नहीं मानती। गाँव के पास की एक नदी में बाढ़ आ गई है। स्त्री नदी को पार करना चाहती है, उसका पति ऐसा करने से रोक रहा है। नहीं मानने पर वह कहता है कि अगर तुमने नदी पार कर ली तो ही मैं तुम्हे स्त्री रूप में स्वीकार करूँगा।

चढ़ानू

पानी गिरय अरि अवसार सबय के लाने आशाय हय रेंलोड़ा पकही कोदो पकही और पकही धान पोंहणा

आही तौने करबो मान सबय के आशा हय रे

लोग इस करमा के माध्यम से पानी का गिरना बहुत ही आदर्शवादी मानते हैं। यदि हमारे अनाज जैसे- मक्का, कोदो, कुटकी, धान आदि पानी के बरसने से अच्छा-अच्छा होगा तो भविष्य में आने वाले मेहमानों का स्वागत अच्छा करेंगे।

लहकी

आहा हाय रे चल जाबो गंगा आसनांदे

नरामदा मोर बांधे बहतुरा कह रावय

लय धरबे बाई धूपे कडैया मैं धरहू नारियर के भेला बांधे

बछुरा कहरावय।

बैगा युवक/युवती शिवरात्रि के अवसर पर पवित्र स्नान करने के लिए जाते हैं। बैगा महिला अगरबत्ती की काड़ी रखे हुए है। पुरुष नारियल रखा हुआ है। वे नदी किनारे पहुँचते ही एक बछड़ा बँधा देखते हैं। वो अपने माँ के याद में रंभाता है। उसे देखकर उन दोनों को दया आ जाती है। (स्व-रोवन सिंह बैगा घुरकुटा)

ददरिया

नदी भीतर के चीकट माटी बादल गरजय,

बादल गरजय रे दाऊ ना नसी टूरा नदी भीतर आरो लेकय

आये ला पूरा बहायेला कचरा मैं तो भया अहांव बिछाहू

अचरा, धीरे गायले......

नदी के चिकनी मिट्टी को लेने के लिए एक बैगा युवक गया था। उसी समय बाढ़ आ गयी। युवक बहकर झाड़ की डाली को पकड़ लिया। नदी खाही में था। चढ़ नही पा रहा था। वहीं झाड़ को पकड़े-पकड़े रो रहा था। उसी समय एक बैगा युवती मिली। केकड़ा खोजते-खोजते वहा वहाँ जा पहुँची। कहती है कि तुम नदी से निकलकर बाहर आओ। मैं तुम्हारे लिए अपने साड़ी के आँचल बिछाऊंगी, कहकर बुला रही थी।

पानी रे आवय ऊचेला धुधारी तोला देखेला,

तोला देखेला आयव महल भितरी तोरे आरों ला

सुन लऊट आयव दरवाजा को।

पानी रे आवय ओदासय के करार तोला देखेला बाई

तरासय के परान-धीरे गायले.........

एक दिन अचानक बैगा अपनी प्रेमिका से रास्ते में मुलाकात करते हुए कहता है कि मैं तुझे देखने के लिए कई दिन परेशान हुआ हूँ। एक दिन पानी खूब बरस रहा था, मैं तुम्हारे घर के भीतर गया। तुम्हारी आवाज को सुना परन्तु तुम नहीं निकली, मैं दरवाजे से लौटे घर वापस आ गया। इस शब्द को सुनकर प्रेमिका को बहुत दुख हुआ।

बिरहा

नदी बने हय तोर नकना रे कुदना, बगला बनय पटासार

संवरो के दैंहा बने हैं लय जा तंव जादूमार

एक गाँव के पास नदी बह रही थी जिसे कूदकर या छलाँग मारकर पार करना पड़ता था। वहीं पर नदी के किनारे सुन्दर विश्रामगृह बना था। उसी के बाजू में एक बैगा घर था। जहाँ पर कुँवारी लड़की थी, उसके हाथ-पैर में सुन्दर गोदना थे। बैगा युवक कहता है कि यह युवती खुशी से माँगने पर नहीं आयेगी, इसे जादू मन्तर के माध्मम से मोहनी लगाकर ले जाऊँगा। ऐसा मन में विचार करता है।

नदी भीतर के ढेड़गा रुखवा हम चोटी।

छेकेहन चोप रे डोर कुटक टूरा बिरहा गाईन अजगर के

टूरिन ला लग गय नो करे

धुरकुटा गाँव में एक सेमर का वृक्ष छिपनी नदी के किनारे है। नदी टेड़-मेड़ी है। सेमर फूल में चिड़िया खूब आते हैं। बैगा लोग पीपल वृक्ष के दूध एवं बड़ वृक्ष का दूध तथा थूहों पौधा का दूध मिलाकर गोंदा जैसे चोप बनाते हैं। उसे कई बार लकड़ियों में लपेटकर वृक्ष की डाली में रख दिया जाता है। चिड़िया बैठते ही उसमें लपट जाती हैं जिसे बैगा लोग भूनकर खाते है।

उसी चोप को डालने के लिए बैगा युवक जाते हैं, उनकी ईर्ष्या में उस वृक्ष के नीचे मछली पकड़ने के लिए अजगर ग्राम की युवतियाँ आती हैं। इनके आने पर वृक्ष से चिड़िया उड़कर भागे जाते हैं। चिड़िया के भागने से युवक लोग गुस्सा हो इस बिरहा को गाते हैं।

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