The frequency of earthquakes
लम्बे समय से किसी भूकम्प के न आने के कारण 1991 के उत्तरकाशी भूकम्प से पहले हम में से ज्यादातर ने क्षेत्र में आसन्न भूकम्प के खतरे पर खास ध्यान नहीं दिया था। ठीक वैसे ही जैसे दिसम्बर, 2004 की हिन्द महासागर सूनामी से प्रभावित होने से पहले हमने यहाँ अपने देश में सूनामी से प्रभावित हो सकने के खतरे का ठीक से आकलन नहीं किया था। तब तक ज्यादातर लोगों को शायद यही लगता था कि हमारे लिये सूनामी की तैयारी का कोई मतलब नहीं है। पर दिसम्बर, 2004 के बाद परिदृश्य एकदम से बदल गया। आज हम सूनामी चेतावनी केन्द्र संचालित कर रहे हैं और साथ ही सूनामी की तैयारी भी कर रहे हैं। सितम्बर, 2016 में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित सूनामी पूर्वाभ्यास में भाग लेना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
1991 के उत्तरकाशी भूकम्प से पहले हमारी भूकम्प सुरक्षा सम्बंधित गम्भीरता का हाल कुछ-कुछ सूनामी जैसा ही था। पर उसके बाद हर चार-छः साल में देश का कोई ना कोई भाग भूकम्प से प्रभावित हो ही रहा है। चमोली, लातूर, भुज, कोयाना, मुजफ्फराबाद, सिक्किम व गोरखा भूकम्प इस अवधि में ही आये हैं।
धारणा है कि भूकम्प किसी मौसम विशेष में या फिर रात को ही ज्यादा आते हैं। पर यह सच नहीं हैं। भूकम्प कभी भी और किसी भी समय आ सकता है। |
भूकम्प का परिमाण | वार्षिक औसत |
8 या अधिक | 01 |
7-7.9 | 18 |
6-6.9 | 120 |
5-5.9 | 800 |
4-4.9 | 6,200 |
3-3.9 | 49,000 |
2-2.9 | 1,000 प्रतिदिन |
1-1.9 | 8,000 प्रतिदिन |
प्रत्येक वर्ष भूकम्पमापी उपकरणों द्वारा विश्व भर में आये लगभग 5,00,000 भूकम्पों के आँकड़े जमा किये जाते हैं। इनमें से हमारे द्वारा केवल 1,00,000 को ही महसूस किया जाता है और इनमें से 100 में ही क्षति होती है। |
कहीं धरती न हिल जाये (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
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12 | भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public) |
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