अब तक हम सभी जान चुके हैं कि भूखण्डों की सापेक्षीय गति में अन्तर के कारण इनके छोर पर निरन्तर जमा हो रही ऊर्जा ही भूकम्प का कारण है। ऐसे में यह विचार कि यदि इस ऊर्जा का सुरक्षित निस्तारण हो जाये तो भूकम्प का खतरा कम हो जायेगा औचित्यपूर्ण है। शायद आपने भी कभी इस बारे में ऐसा ही कुछ सोचा हो।
इसी तर्क को आधार बना कर कई बार छोटे भूकम्पों को क्षेत्र में जमा हो रही ऊर्जा को अवमुक्त करने में सहायक बताते हुये इनकी तुलना प्रेशर कुकर के सेफ्टी वाल्व से कर दी जाती है और छोटे भूकम्पों के आते रहने से बड़े भूकम्प के खतरे के कम होने से सम्बंधित तर्क दे दिये जाते हैं। शायद भूकम्प के परिमाण को नापने वाले लघुगणकीय पैमाने को ठीक से न समझ पाना इन तर्कों का कारण हो।
यह सच है कि बड़े भूकम्पों की ही तरह छोटे भूकम्प भी किसी क्षेत्र में भूगर्भीय हलचलों के कारण जमा हो रही ऊर्जा को अवमुक्त करते हैं, परन्तु इन छोटे भूकम्पों द्वारा अवमुक्त की गयी ऊर्जा का परिमाण हमारी सोच से कहीं ज्यादा कम होता है।
जैसा कि हम जानते हैं ‘क’ परिमाण के भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा ‘क-1’ परिमाण के भूकम्प में अवमुक्त होने वाली ऊर्जा का 31.6 गुना होती है। ऐसे में किसी भी स्थान पर आसन्न 8.0 परिमाण के भूकम्प के खतरे को कम करने के लिये 7.0 परिमाण के 32 या फिर 6.0 परिमाण के लगभग 1000 भूकम्पों की आवश्यकता होगी। अगर कम परिमाण के इतने भूकम्प आ जाते हैं तो तब शायद बड़े भूकम्प का खतरा निश्चित ही कम हो जायेगा परन्तु वास्तविकता में छोटे भूकम्प ज्यादा तो आते हैं पर इतने भी ज्यादा नहीं कि इनसे बड़े भूकम्प का खतरा कम हो पाये।
अतः छोटे भूकम्पों के आते रहने से बड़े भूकम्प का खतरा कम होने की धरणा गलत व भ्रामक है।
छोटे भूकम्पों से बड़े भूकम्प का खतरा तो निश्चित ही कम नहीं होता परन्तु यह छोटे भूकम्प हमें अवश्य ही बड़े भूकम्प की याद दिलाते हैं और तैयार रहने की चेतावनी देते हैं।
कहीं धरती न हिल जाये (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
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12 | भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public) |
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