जल-निकासी वाली योजना की अपनी समस्याएं हैं, उस रास्ते से जाने वाला पानी प्रदूषित ही होगा और वह इस पूरे रास्ते के भूमिगत पानी को प्रदूषित करता हुआ ही आगे बढ़ेगा। इस जहरीले पानी से जमीन भी अछूती नहीं रहेगी। इन सारी परेशानियों से बचने का एक ही रास्ता है कि रीगा की शुगर मिल पर शिकंजा कसा जाए लेकिन क्योंकि वह सरकार समेत सभी संस्थाओं से बड़ी है इसलिए उसके गले में घंटी बांधना मुश्किल है। रीगा शुगर मिल की हिमायत करने वाले लोगों की भी कमी नहीं है। उनमें से बहुत से लोगों का यह मानना है कि बिहार में वैसे भी उद्योगों का अकाल है और जो भी उद्योग यहाँ कार्यरत हैं उनको अगर किसी किस्म की परेशानी होती है तो यह राज्य और यहाँ की जनता के हित में नहीं होगा।
सीतामढ़ी से ढेंग जाने के रास्ते में सीतामढ़ी से कोई 10 किलोमीटर उत्तर में रीगा नामक स्थान पर कलकत्ता के किसी व्यवसायी द्वारा स्थापित रीगा शुगर कम्पनी लिमिटेड नाम की एक चीनी मिल पड़ती है। इस चीनी कारखाने का निर्माण 1933 में हुआ था। इस कारखाने से निकला हुआ गंदा पानी मनुस्मारा नदी में तभी से वैसे ही छोड़ दिया जाया करता था जैसा कि आजकल भी होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले यह काम साल में 4-5 बार होता था, अब इस पर कोई नियंत्रण ही नहीं है। उन दिनों जब साल में पहली बार पानी छोड़ा जाता था तो एक ही झटके में नदी की सारी मछलियाँ मर जाती थीं जिन्हें किनारे के लोग छान लिया करते थे। इस तरह जब बागमती नदी पर तटबन्ध नहीं बने थे तब भी कारखाने के इस अपशिष्ट से काफी नुकसान पहुँचता था। चीनी मिल के प्रति स्थानीय जनता का आक्रोश अपने चरम पर जिस तरह आज है उसी तरह आज से पचपन साल पहले भी था। तब स्थानीय विधायक दामोदर झा ने बिहार विधान सभा में इस विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा था, ‘‘...रीगा चीनी मिल का गन्दा पानी बागमती में जाने दिया जाता है जिसका नतीजा यह है कि 5 मील तक चारों ओर का पानी इतना खराब हो गया है कि आदमी को कौन कहे मवेशी भी वहाँ के पानी को नहीं पी सकते हैं और वहाँ मच्छर का इतना प्रकोप है कि सैकड़ों आदमियों को हर साल मलेरिया पकड़ लेता है और वे बीमार पड़ जाते हैं। यदि सरकार इस गंदे पानी को बागमती में न गिरने दे तो लोग इन चीजों से छुटकारा पा सकते हैं।’’ 1955-56 के बजट प्रस्ताव पर चल रही बहस में उन्होंने एक बार फिर दुहराया, ‘‘...पर साल इसी के चलते 1,000 मन मछली एक दिन में मर गई।
इस नदी के किनारे पर के जो गांव हैं उनमें बीमारी फैलती है। एक इंच मोटी गंदगी इस नदी के पानी पर जम जाती है और इसके चलते इस नदी के पानी में कीड़े पड़ जाते हैं... पिछले साल 15 गांवों के लोगों ने एस.डी.ओ. के यहाँ दरख्वास्त दी थी कि रीगा चीनी मिल के गंदे पानी छोड़े जोने के कारण नदी के पानी में कीड़े पड़ जाते हैं। इस वजह से ही इस मिल को हुक्म दिया जाए कि वह गंदे पानी को नदी में नहीं छोड़े। एस.डी.ओ. ने जांच कर के हुक्म दिया कि इस साल तो नहीं लेकिन अगले साल गंदा पानी नहीं छोड़े। लेकिन एस.डी.ओ. के हुक्म के बावजूद इस मिल ने इस साल भी नदी में गंदे पानी को छोड़ दिया है और उसको कोई देखने वाला नहीं है। ...सरकार चुप्पी साधे बैठी हुई है।’’ बागमती पर तटबन्ध बन जाने के बाद मनुस्मारा ने अपना रंग दिखाना शुरू किया और उसका पानी नीचे बेलसंड और रुन्नी सैदपुर के इलाकों में फैलना शुरू हुआ। चीनी कारखाने के अपशिष्ट का मनुस्मारा में मिल जाने के कारण इस पानी का रंग पहले काला हुआ और फिर उसमें धीरे-धीरे दुर्गन्ध भी समाने लगी। जहाँ-जहाँ यह पानी फैला वह जगह स्थानीय लोगों के बीच काला पानी नाम से प्रसिद्ध हुई। कारखाने के अपशिष्ट की पहली चोट पीने के पानी के स्रोतों पर पड़ी। फिर खेती रसातल को गयी, लोगों के स्वास्थ्य पर इस गन्दे पानी का बुरा असर पड़ा, पानी का स्तर बढ़ने और उसकी निकासी न होने से यातायात बाधित हुआ और फिर स्थानीय रोजगार समाप्त हो गया। इतना सब हो जाने के बाद मजाक में कहे जाने वाले काले पानी पर व्यावहारिक रूप से काला पानी होने की मुहर लग गयी। इस बीच न जाने कितनी सरकारें आईं और गईं जिनमें किसी न किसी समय वाम पंथियों से लेकर दक्षिण पंथियों तक की सभी रंगों की पार्टियाँ शामिल हैं मगर इस मसले पर उनकी चुप्पी नहीं टूटी।
चीनी मिल के इस अनाचार पर सरकार का ध्यान खींचने के लिए सीतामढ़ी के एक सामाजिक कार्यकर्ता और अध्यापक डॉ. आनन्द किशोर ने 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (रा.मा.आ.) के पास समस्या के निदान के लिए गुहार लगायी। रा.मा.आ. ने वस्तुस्थिति जानने के लिए सीतामढ़ी के जिला पदाधिकारी को सम्पर्क किया। जिला पदाधिकारी ने अपने पत्र सं. 3468 सी/दिनांक 31 अक्टूबर 2002 के माध्यम से रा.मा.आ. को जिन तथ्यों से अवगत करवाया वह चौंकाने वाले थे। इस पत्र का कुछ अंश हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं-
‘‘(1) ...रीगा डिस्टीलियरी, रीगा (सीतामढ़ी) के द्वारा अल्कोहल (स्प्रीट) का निर्माण किया जाता है। इसे बनाने के लिए रीगा चीनी मिल से उत्सर्जित अपशिष्ट मोलासेज (छोआ) तथा पानी का उपयोग होता है। डिस्टीलियरी में अल्कोहल (स्प्रीट) बनाने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अवशिष्ट के रूप से अत्यधिक बचा हुआ रासायनिक पानी उत्सर्जित होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के उपयोगी एवं घातक रासायनिक तत्व घुले रहते हैं, जिसकी अल्प मात्रा पौधों के लिए उपयोगी भी है, परन्तु जीवों के लिए घातक है।
(2) इस तरह के प्रदूषित एवं जीवों के लिए घातक जल को कारखाने के बगल में अवस्थित बागमती नदी की पुरानी धार में डाला जाता है, जिसके कारण नदी का जल प्रदूषित हो गया है। पानी का रंग काला हो गया है एवं मनुष्य तथा पशु दोनों के लिए नदी का जल उपयोग करने के लायक नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि प्रत्येक सप्ताह प्रदूषित जल नदी में छोड़े जाने से अगल-बगल के गाँवों का वातावरण दुर्गन्धमय बन रहा है। भूलवश भी यदि मानव या पशु के द्वारा नदी का पानी उपयोग में लाया जाता है तो विभिन्न प्रकार के चर्मरोग एवं पेट की बीमारी हो जाती है। नदी की मछली को खाने से डायरिया हो जाता है। डिस्टीलियरी से जब पानी छोड़ा जाता है तब नदी में काफी मछलियाँ मरी हुई मिलती हैं। पूरे इलाके में मच्छर एवं मक्खियों का प्रकोप काफी बढ़ गया है। अगल-बगल के वातावरण से ऐसा लगता है कि कभी भी किसी भयंकर बीमारी/महामारी का प्रकोप हो सकता है। विभिन्न ग्रामों के कृषकों ने बताया कि उत्सर्जित बहाव से युक्त जल का जमाव खेतों में होने से पौधा गलने लगता है एवं कुछ दिनों तक जल-जमाव रह जाने पर फसल (धान की फसल भी) बर्बाद हो जाती है। लोगों ने यह भी बताया कि मिल में जो वाटर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट है वह पर्याप्त क्षमता का नहीं है और जो है, उसे भी चलाया नहीं जाता है।
(3) प्रखण्ड कृषि पदाधिकारी, रीगा द्वारा बताया गया कि इस पानी के प्रभाव से खेतों में मिट्टी की प्राकृतिक संरचना का लगातार ”ह्रास हो रहा है। मिट्टी की संरचना, मिट्टी की जलधारण क्षमता एवं मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक जीवियों की संख्या भी प्रभावित हो रही है।
(4) इस संबंध में रीगा मिल के श्री ओ. पी. सिंह, वाइस प्रेसीडेन्ट, केमिकल से पूछताछ करने पर उन्होंने तो इस बात से ही इंकार किया कि रीगा डिस्टीलियरी द्वारा नदी में कोई वहिश्राव छोड़ा जाता है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उनके यहाँ दो वाटर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट लगे हुए हैं, जिसमें उत्सर्जित वहिश्राव का परिशोधन कर मिल परिसर में बनाये गए तालाब (लेक) में गिराया जाता है। किन्तु इस क्षेत्र के आम नागरिकों द्वारा जो बताया गया एवं पाया गया, उससे मिल प्रबन्धन का कथन सत्य प्रतीत नहीं होता है।
(5) रुन्नी सैदपुर प्रखण्ड क्षेत्र के भ्रमण के दौरान भी कई ग्रामों में ग्रामीणों द्वारा रीगा डिस्टीलियरी द्वारा प्रदूषित जल नदी में छोड़े जाने से नदी का पानी काला होने, इसके पीने से मनुष्य एवं पशुओं में बीमारी होने, खेतों में जल-जमाव होने से फसल (धान की फसल भी) गल कर बर्बाद होने, मछलियों के मरने की शिकायत की गई।
(6) वर्ष 1999 में जब मैं अनुमण्डल पदाधिकारी, बेलसण्ड के रूप में पदस्थापित था, तब बेलसण्ड एवं परसौनी प्रखण्ड के लोगों से भी इस तरह की शिकायत लगातार मिलती रहती थी एवं चूंकि वहाँ बरसात में जल-जमाव हो जाता है, इसलिए यहाँ के लोगों को इसकी पीड़ा अधिक झेलनी पड़ती है। मैंने भी पाया कि नदी का पानी काला हो गया है।’’
कलक्टर ने रा.मा.आ. को यह भी बताया कि उसने अपने कार्यालय के पत्र संख्या 2933/सी. दिनांक 17/9/2002 द्वारा सदस्य सचिव, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद, पटना को इस समस्या के निदान हेतु निम्नांकित निदेश रीगा मिल प्रबंधन को देने हेतु सुझाव सहित आग्रह किया है-
(1) ‘‘वाटर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट को आवश्यकता के अनुसार चलायें एवं यदि वाटर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट पर्याप्त क्षमता का नहीं हो तो उचित क्षमता का प्लान्ट लगावें।
(2) रीगा डिस्टीलियरी से निकलने वाले रसायनयुक्त पानी से होने वाले प्रभाव की जांच तकनीकी पदाधिकारियों का दल गठित कर कराई जाए और तद्नुसार प्रदूषण बोर्ड द्वारा निर्गत अनुज्ञप्ति की पुनः समीक्षा कर रीगा मिल में लगे वाटर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट की क्षमता बढ़ाने का निर्देश दिया जाए।’’
कलक्टर ने इस समस्या के निदान के लिए महाप्रबंधक, रीगा शुगर कम्पनी लि., रीगा को पत्र संख्या 2932/सी. दिनांक 17/9/2002 द्वारा निम्नांकित निर्देश भी दिया-
(1) ‘‘वाटर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट को आवश्यकतानुसार चलायें एवं यदि वाटर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट पर्याप्त क्षमता का नहीं हो तो उचित क्षमता का प्लान्ट सुनिश्चित करें।
(2) रीगा डिस्टीलियरी द्वारा अल्कोहल (स्प्रीट) के निर्माण के पश्चात निकलने वाले रसायनयुक्त पानी की सफाई हेतु वाटर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट की अधिक से अधिक क्षमता बढ़ाई जाए तथा इस प्रकार की व्यवस्था की जाए कि इस पानी से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कायम रहने के साथ ही साथ किसी प्रकार के जान-माल का नुकसान न होने पाये।’’
जिला पदाधिकारी ने रा.मा.आ. को यह आश्वासन भी दिया कि उपर्युक्त सभी बिन्दुओं पर बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद, पटना से आवश्यक निर्देश प्राप्त होने पर वह फिर की गयी कार्यवाही के बारे में रा.मा.आ. को अवगत करवायेंगे।
2006 की जल-निकासी योजना के चार मुख्य अंग हैं-
1. मनुस्मारा-डुमरियाघाट-रामनगर-भादा-रुन्नीसैदपुर-धरहरवा- लखनदेई लिंक
2. धरहरवा-हनुमान नगर-मधुबन बेसी लिंक
3. मधौल-भनसपट्टी-हनुमान नगर लिंक
4. मधौल-कटौंझा-मधुबन बेसी लिंक
इन लिंक नालों की मदद से क्षेत्र के जल-जमाव ग्रस्त क्षेत्र के पानी की निकासी लखनदेई में दो स्थानों पर करने की योजना है। दो करोड़ तेईस लाख रुपये की अनुमानित राशि वाली इस योजना का टेण्डर नवम्बर 2008 में किया गया। यह पूरा काम नालों के निर्माण का है जिन्हें खोदने के लिए सरकार को रैयत की जमीन चाहिये और उसके लिए सरकार को जमीन का मुआवजा देना पड़ेगा। इस तरह के कामों में जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया बहुत उबाऊ और कदम-कदम पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली होती है। काम को आगे बढ़ाने के लिए परियोजना के कार्यपालक अभियंता-जल निस्सरण डिवीजन-बागमती परियोजना ने सभी सम्बद्ध पंचायतों के मुखिया को एक अपील जारी करके अनुरोध किया (पत्रांक 463, दिनांक 30 जुलाई 2009) कि वह अपनी-अपनी पंचायतों से अनापत्ति पत्र सरकार को भेज दें ताकि काम तेजी से किया जा सके। जमीन के मुआवजे का भुगतान भी सरकार साथ-साथ करती रहेगी। इस काम में तो सरकार को अपेक्षित सफलता नहीं ही मिली मगर जिन-जिन स्थानों से यह नाले निकाले जाने वाले थे वहाँ के किसानों द्वारा योजना का विरोध शुरू हो गया। इन ग्रामीणों का कहना है, ‘‘...रीगा चीनी मिल का प्रदूषित जल मनुस्मारा नदी में गिराया जाता है जिससे पानी प्रदूषित हो जाता है जिसके कारण आबादी प्रभावित होती है। ग्रामीणों की मांग है कि पहले रीगा मिल द्वारा प्रदूषित पानी को मिल में लगाये गए ट्रीटमेन्ट प्लांट से साफ करने के बाद ही मनुस्मारा नदी में गिराया जाए उसके बाद ही खुदाई कार्य करने दिया जायेगा।’’ कार्यपालक अभियंता आगे लिखते हैं, ‘‘...रीगा चीनी मिल के प्रदूषित पानी को रोकना इस प्रमण्डल के कार्यक्षेत्र से बाहर होने के कारण सम्भव नहीं है, इसके लिए प्रशासनिक सहयोग आवश्यक है। इस सम्बन्ध में अधोहस्ताक्षरी द्वारा कई बार मौखिक और लिखित रूप से तत्कालीन जिला पदाधिकारी से अनुरोध किया गया था लेकिन आज तक कोई प्रशासनिक सहयोग नहीं मिल पाया है जिसके कारण खुदाई का काम रुका हुआ है।’’
मजे की बात है कि बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के सदस्य सचिव ने अध्यक्ष, रीगा शुगर कम्पनी लिमिटेड को एक कारण बताओ नोटिस दिनांक 15 सितम्बर 2009 को लिख कर पूछा, ‘‘...आपकी इकाई से प्रदूषित बहिश्राव को बिना उपचार के सीधे मनुस्मारा नदी में गिराया जाता है जिसका कुप्रभाव बगल के गाँवों पर पड़ रहा है जिसके कारण धनकौल, गिसारा के बीच पड़ने वाले ग्रामीणों द्वारा अवरोध किया गया तथा कार्य बाधित है।... अतः कृपया स्पष्ट करें कि क्यों नहीं आपकी इकाई के विरुद्ध जल-अधिनियम 1974 के अन्तर्गत उचित कार्यवाही की जाए? 15 दिनों के अन्दर परिषद मुख्यालय को उपलब्ध करावें अन्यथा इकाई के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही की जायेगी।’’ बागमती बाढ़ पीड़ित संघर्ष समिति के संयोजक, अथरी गाँव के रामसेवक सिंह के अनुसार चीनी मिल की तरफ से यह स्पष्टीकरण आज तक (जून 2010) नहीं मिला मगर इस पत्र के लिखे जाने के तीन सप्ताह बाद 8 अक्टूबर 2009 को बागमती परियोजना के अधीक्षण अभियंता को सीतामढ़ी के जिलाधिकारी को पत्र लिख कर कहना पड़ा था कि वे चीनी मिल के खिलाफ कार्यवाही करें।