पुस्तकें

गंगा जल

Author : एस. एन. गुप्ता

जिस तट मुकुलित हुई मनुजता
चलता है जिससे जीवन
विकसित हुई सभ्यता जिससे
आलोकित होता जन-मन

निर्मल शीतल धवल चाँदनी
में कल-कल लहराती है
स्वप्न सजाती है नयनों में
पल-पल जागी बहती रहती है

आँसू बहते रहते माँ के
सागर खारा हो जाता है
तट तट मेले-उत्सव सजते
तन मैला क्यों रह जाता है

सदियों से निर्मलता देता
मुक्त किया संताप से
गदला आज हुआ गंगा जल
मनुज जाति के पाप से !!

SCROLL FOR NEXT