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जलवायु और उसके घटक

डॉ. दिनेश मणि


पृथ्वी के उद्भव से लेकर आज तक इसमें निरन्तर परिवर्तन हो रहा है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह कभी तीव्र तो कभी मन्द गति से होता है। कुछ परिवर्तन लाभकारी होते हैं, तो कुछ हानिकारक। स्मरण रहे, मानव पर प्रभाव डालने वाले तत्वों में जलवायु सर्वाधिक प्रभावशाली है, क्योंकि यह पर्यावरण के अन्य कारकों को भी नियंत्रित करता है। सभ्यता के आरम्भ और उद्भव में जहाँ तक आर्थिक विकास का सम्बन्ध रहा है, जलवायु एक शक्तिशाली तत्व है।

आज विश्वस्तरीय जलवायु परिवर्तन से सम्पूर्ण विश्व चिन्तित है, शहरों के तेज गति से फैलाव से उसका असर और गहरा हो रहा है। विशेषकर भारत के सभी महानगर एवं छोटे शहर भी शहरीकरण से प्रभावित होते दिखाई दे रहे हैं। जलवायु परिवर्तन से सागर के किनारों पर बसे महानगरों में बाढ़ का खतरा हमेशा बना रहता है, ऋतु में बदलाव के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है, जिससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं तथा महासागरीय जलस्तर मेें वृद्धि हो रही रही है।

जलवायु-मौसम के प्रमुख तत्वों-वायुदाब, तापमान, आर्द्रता, वर्षा तथा सौर प्रकाश की लम्बी अवधि के औसतीकरण (30 वर्ष या अधिक) को उस स्थान की जलवायु कहते हैं, जो उस स्थान की भौगोलिक स्थिति (अक्षांश एवं ऊँचाई), सौर प्रकाश, ऊष्मा, हवाएँ, वायुराशि, जल थल के आवंटन, पर्वत, महासागरीय धाराओं, निम्न तथा उच्च दाब पट्टियों, अवदाब एवं तूफान द्वारा नियंत्रित होती है।

करोड़ों वर्ष पूर्व जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था, तब वह एक तपता हुआ गोला थी। धीरे-धीरे उस पर तपते हुए गोले से सागर, महाद्वीपों आदि का निर्माण हुआ। साथ ही पृथ्वी पर अनुकूल जलवायु ने मानव जीवन तथा अन्य जीव सृष्टि को जीवन दिया जिसमें तरह-तरह के जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, विभिन्न वनस्पतियाँ और इन सबका जीवन-अस्तित्व कायम रखने वाली प्रकृति का निर्माण हुआ। जलवायु, पर्यावरण को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करती है। प्राकृृतिक वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु तथा मनुष्य के कार्य कलाप पूर्णतः जलवायु की अवस्था पर ही निर्भर करते हैं। जिन फसलों से मनुष्य को भोजन प्राप्त होता है वे सभी अलग-अलग प्रकार की जलवायु पर निर्भर होती है। प्रत्येक फसल के लिये उचित तापमान, पर्याप्त वर्षा, धूप, मिट्टी मेें उपलब्ध नमी आदि का पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक है। जलवायु के आधार पर ही प्राकृतिक वनस्पतियों का निर्धारण होता है और इस पर ही मानव जीवन निर्भर करता है।

सृष्टि जीवन के प्रारम्भ में जल निर्मल था, वायु स्वच्छ थी, भूमि शुद्ध थी एवं मनुष्य के विचार भी शुद्ध थे। हरी-भरी इस प्रकृति में सभी जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे बड़ी स्वच्छन्दता से पनपते थे। चारों दिशाओं मेें ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ का वातावरण था, तथा प्रकृति भली-भाँति पूर्णतः सन्तुलित थी। किन्तु जैसे-जैसे समय बीता, मानव ने विकास और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसने शुद्ध जल, शुद्ध वायु तथा अन्य नैसर्गिक संसाधनों का भरपूर उपभोग किया। मनुष्य की हर आवश्यकता का समाधान निसर्ग ने किया है, किन्तु बदले में मनुष्य ने प्रदूषण जैसी कभी भी खत्म न होने वाली समस्या पैदा कर दी है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, विकिरण प्रदूषण रूपी दैत्यों ने पृथ्वी की जलवायु को पूर्णतः बदल दिया है।

जलवायु

जलवायु की विशेषताएँ-

मौसम तथा जलवायु में अन्तर

मौसम

मौसम की विशेषताएँ

जलवायु का वर्गीकरण

1. ऊष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु-
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2. शुष्क जलवायु-
3. सम शीतोष्ण जलवायु-
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4. मध्य अक्षांशों की आर्द्र सूक्ष्म तापीय अथवा शीतोष्ण आर्द्र जलवायु-
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वैश्विक तापन और

वायुमण्डल और जलवायु

जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक:

(i) अक्षांश-
(ii) समुद्र तल से ऊँचाई-
(iii) पर्वतों की दिशा-
(iv) समुद्री प्रभाव-
(v) पवनों की दिशा-

विषुवत रेखा से दूरी तथा समुद्र से ऊँचाई का प्रभाव:

वैश्विक तापन एवं मानसून वर्षा:

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