जैसा कि हम जान गये हैं, ज्यादातर भूकम्प जमीन के अन्दर होने वाली गतिविधियों के कारण ही आते हैं और हमारी पृथ्वी महाद्वीप के आकार के भूखण्डों से मिलकर बनी है जो एक दूसरे के सापेक्ष गतिमान हैं। भूखण्डों की इस गति के कारण इन भूखण्डों के छोर पर स्थित चट्टानें तनाव या दबाव की स्थिति में रहती है और यही भूकम्प का कारण है। यही वजह है कि ज्यादातर भूकम्प महाद्वीप के आकार के इन भूखण्डों के छोर पर आते हैं।
प्रशान्त महासागर में स्थित विभिन्न भूखण्डों की सीमाओं से मिलकर बने 40,000 किलोमीटर लम्बे क्षेत्र को आग का घेरा (Ring of Fire) कहा जाता है। यह क्षेत्र भूकम्पों के साथ ही ज्वालामुखी विस्फोटों के प्रति भी अत्यन्त संवेदनशील है। घोड़े की नाल के आकार के इस क्षेत्र में 452 ज्वालामुखी स्थित हैं जोकि विश्व भर में स्थित सभी ज्वालामुखियों का 75 प्रतिशत हैं। विश्व भर में आने वाले भूकम्पों में से लगभग 90 प्रतिशत का अभिकेन्द्र भी इसी क्षेत्र में स्थित होता है। |
यहाँ यह समझना जरूरी है कि पूर्व में क्षेत्र में आये भूकम्पों के साथ ही क्षेत्र की भू-वैज्ञानिक, संरचना, क्षेत्र में अवस्थित अवसंरचनाओं के प्रकार व अन्य सम्बन्धित पक्षों का अध्ययन करने के बाद भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा भूकम्प संवेदनशीलता मानचित्र तैयार किया जाता है और साथ ही भूकम्प से हो सकने वाली क्षति को कम करने के लिये विभिन्न जोनों में अवसंरचना विकास के लिये रीति संहितायें या कोड विकसित किये जाते हैं। 2001 में भुज में आये भूकम्प के बाद देश की भूकम्प संवेदनशीलता और भूकम्प सुरक्षित निर्माण सम्बन्धित रीति संहिताओं पर पुनर्विचार किया गया और 2002 में इन्हें संशोधित किया गया। इससे पहले भारतीय भारतीय भू-भाग को भूकम्प संवेदनशीलता के आधार पर पाँच भागों में बाँटा गया था (जोन ।,II,III,IV और V)। वर्ष 2002 में जारी किये गये भूकम्प मानचित्र से जोन I को हटा दिया गया। पूर्व के प्रकाशनों में आपको जोन I का भी उल्लेख मिलेगा और वह उस समय की व्यवस्था व्यवस्था के अनुसार सही है। |
कहीं धरती न हिल जाये (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम | अध्याय |
1 | |
2 | |
3 | |
4 | |
5 | |
6 | |
7 | |
8 | |
9 | |
10 | |
11 | |
12 | भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public) |
13 | |
14 | |
15 | |
16 | |
17 | |
18 | |
19 | |
20 |