दस लाख से लेकर बीस लाख वर्ष के बीच जबसे मनुष्य का उद्भव हुआ, मानव पर्यावरण के निकट सम्पर्क में रहने लगे हैं। जैसा कि आपने पाठ-3 में पहले से ही जानते हैं कि प्रारंभ में वे शिकारी तथा संग्राहक (भोजन का संग्रहण करने वाले) थे। धीरे-धीरे समय बदलने के साथ-साथ मानव ने स्थायी तथा सुव्यवस्थित जीवन बिताना शुरू किया। जैसे-जैसे मानव की संख्या में वृद्धि हुई तथा उन्होंने सांस्कृतिक प्रगति की, उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का अधिक से अधिक प्रयोग करना शुरू किया कि आजकल पर्यावरण का अवक्रमण एक गंभीर समस्या बन चुकी है।
इस पाठ में आप गाँवों और शहरों में मानव बस्तियों, उनसे सम्बन्धित विशेषताओं, सम्बद्ध जीवन शैली और मानव जनसंख्या एवं मानव बस्तियों की विस्फोटक वृद्धि से आये हुए पर्यावरणीय बदलाव के विषय भी जानकारी प्राप्त करेंगे।
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात आपः
- शहरी बस्ती को परिभाषित कर पायेंगे, ग्रामीण समाज और शहरी समाज के बीच अंतर कर सकेंगे;
- अपनी ओर खींचने वाले तथा प्रेरित करने वाले ग्रामीण जनसंख्या के शहरों की ओर पलायन करने के मुख्य कारणों की व्याख्या कर सकेंगे;
- ग्रामीण बस्तियों को परिभाषित कर सकेंगे और ग्रामीण बस्तियों की विशेषताओं को सूचीबद्ध कर पायेंगे;
- ग्रामीण जनसंख्या (समाज) की भूमि-उपलब्धता तथा भूमि-उपयोग से सम्बन्धित विशेष समस्याओं का वर्णन कर सकेंगे;
- कृषि पर आधुनिक तकनीकी के प्रभावों की और ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की सूची बना सकेंगे;
- भारतीय संदर्भ में शहरी जीवन की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं जिसमें सुविधाओं के साथ परेशानियाँ भी शामिल हैं, का वर्णन कर सकेंगे;
- शहरी क्षेत्रों की विशेष समस्याओं, जीवन-शैली में परिवर्तन, भूमि की उपलब्धता की सूची बना सकेंगे;
- शहरी क्षेत्रों की विशेष समस्याओं जैसे संसाधन उपयोग तथा अपशिष्ट उत्पादन को सूचीबद्ध कर सकेंगे;
- झुग्गी-झोपड़ी आवास क्षेत्रों का वर्णन और शहरी नियोजन का उल्लेख कर सकेंगे।
आदिमानव ने शिकारी और संग्राहक की अवस्था से निकलकर कृषि से प्राप्त होने वाली भोजन-निर्भरता की खोज की। आने-जाने की सुविधा के लिये पहिये की खोज की और समूह में रहने से सुरक्षा महसूस की। (पाठ-2 देखें) मानव को आश्रय और स्थायी जीवन की आवश्यकता महसूस हुई।
बस्तियों का तात्पर्य आवास इकाइयों, (कच्ची झोपड़ियों या पक्के मकानों) तथा सड़कें जो यात्रा के लिये काम आती हैं, मानव की एक संगठित कॉलोनी की ओर इशारा करता है। शिकारी, पशुपालक, (उद्यमशील) साहसिक व्यक्ति कैम्प बनाकर कुछ समय के लिये अस्थाई रूप से शिविर बना लेते हैं। आबाद अथवा बसे हुए गाँव तथा शहरी समूह स्थायी बस्तियाँ होते हैं। कुछ रहने वाली इकाइयाँ गाँव (Hamlet) कहलाती हैं। जबकि कस्बों और महानगरों में बड़ी संख्या में लोग इमारतों के झुंड में रहते हैं।
कृषि युग में (पाठ-2) ग्रामीण बस्तियों की प्रधानता थी। औद्योगिक क्रान्ति के साथ शहरी व्यवस्था स्थापित हो गई हैं जो दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं।
आकार और कार्यों के आधार पर, बस्तियों का वर्गीकरण किया जा सकता हैः
1. ग्रामीण (गाँवों) बस्तियाँ
2. शहरी (शहरों और कस्बों) बस्तियाँ
लेकिन ग्रामीण और शहरी बस्तियों के बीच अंतर करने का कोई विशिष्ट मापदंड नहीं है। ग्रामीण बस्तियाँ मुख्यतः बुनियादी कार्यों जैसे कृषि, मत्स्य पालन, वन विज्ञान, खनन, शिल्पकारी तथा जुलाहागिरी इत्यादि कामों में लगी रहती हैं। शहरी बस्तियाँ गैर-कृषि कार्यों जैसे उद्योग और उत्पादन, व्यापार और वाणिज्य, परिवहन और संचार, रक्षा और प्रशासन आदि में लगी रहती हैं।
1. आदिमानव ने स्थायी जीवन बिताने की क्यों सोची?
2. जिन आधारों पर बस्तियों के नाम दिये गये हैं, उनके विषय में लिखियेः
(i) अस्थायी और स्थायी
(ii) ग्रामीण तथा शहरी
शहरों तथा नगरों में पाया जाने वाला जीवन शहरी जीवन होता है। पारंपरिक शहर अक्सर दीवारों से घिरे होते थे। ये दीवारें शहरों को गाँवों से अलग करती थीं, जो प्रायः देहात में होते थे। शहरों और नगरों की सामान्य विशेषताएँ जैसे बाजारों, आवास इकाइयाँ, ईंट से बने मकान या प्रशासनिक कार्यों के लिये कंक्रीट इमारतें, धार्मिक संस्थानों (मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, चर्चों, सभाओं, महलों और अदालतों) का पाया जाना है। आम आदमी जो गाँवों से शहरों की ओर रोजगार की तलाश में आते हैं, वे शहरों के किनारे की परिधि में ही रहने लगते हैं। समय और जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ शहरों के अंदर भी परिवर्तन आ गया है। आज अधिकतर भारतीय शहरों में भीड़भाड़ तथा कंक्रीट की इमारतों (ठोस ढाँचों) की बहुतायत जैसे सामान्य लक्षण दिखाई देते हैं।
ग्रामीण नौकरियों की खोज, बेहतर सुविधाएँ तथा बेहतर अवसरों की तलाश में शहरों में आते हैं।
हमारे देश में ग्रामीण जनसंख्या का शहरों तथा नगरों की ओर पलायन करना विशिष्ट अराजकता फैलाने का कारण बन गया है। जैसे-जैसे गाँव के लोग बढ़ती हुई शहर की आबादी में मिल रहे हैं, वे पानी की कमी, सफाई का प्रबन्ध, आसानी से खरीदने योग्य घर, सार्वजनिक परिवहन, सड़कें, सुरक्षित अपजल आपूर्ति और स्वच्छ वायु आदि की कमी महसूस करते हैं। इतनी परेशानियाँ झेलने के बाद भी ग्रामीण आबादी की आवाजाही शहरों में जारी है तथा दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2020 में भारत की जनंसख्या के आधे लोग शहरों में रहने लगेंगे।
कस्बों और शहरों में ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति को शहरीकरण कहा जाता है। बीसवीं सदी में शहरीकरण इतनी तेज गति से हुआ कि विश्व के सभी देशों में शहरी जनसंख्या में अभूतपर्वू वृद्धि हुई है। ग्रामीणों के शहरों की ओर पलायन के कुछ महत्त्वपूर्ण कारण नीचे सूचीबद्ध किये गये हैं: -
आप पहले से ही जानते हो कि कृषि और शिल्पकला जैसे कुटीर उद्योग के अतिरिक्त ग्रामों में अन्य किसी व्यवसाय के सुअवसर नहीं मिलते जबकि शहरों में दूसरे व्यवसायों के लिये अनेकों मार्ग खुले हुए हैं। विद्यालयों में भी उपकरण नहीं हैं और इसके अतिरिक्त उच्च शिक्षा के लिये भी संस्थान बहुत कम होते हैं।
अंधविश्वास, सामाजिक वर्जन (बहिष्कार) और आलोचना, अग्रवर्ती-प्रगतिशील गाँव वालों को बढ़िया जीवन-शैली गुजारने से रोकते हैं इसलिये वे शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं। इसके अतिरिक्त शहरों में व्यापार तथा आर्थिक विस्तार के साथ-साथ क्षेत्रीय विस्तार भी लगातार हो रहा है। पचास वर्ष पहले दिल्ली-पुरानी दिल्ली और नई दिल्ली-यमुना नदी के घेरे में सीमित थी। आज दिल्ली का चारों दिशाओं में विस्तार हुआ है और दिल्ली यमुना नदी के पूर्वी तट पर बहुत दूर तक फैल गई है।
अधिकतर गाँवों में गरीबी बड़े पैमाने पर फैली होती है और ग्रामीण काम करने के लिये नौकरी की तलाश में शहरों में आते हैं क्योंकि गाँवों में गरीबी, गुलामी का प्रचलन तथा बंधुआ मजदूरी पाई जाती है, ग्रामीण युवक इन बंधनों को तोड़कर शहर में भाग आते हैं। इन तीन आकर्षित करने वाले प्रमुख कारणों के अलावा ग्रामीण युद्ध या अकाल या प्राकृतिक आपदाओं के समय भी शहरों की ओर चले आते हैं। धार्मिक और राजनीतिक अत्याचार भी गाँवाें में सामान्यतया होते हैं। जातीय भेदभाव भी ग्रामीण लोगों को अपने गाँव छोड़ने पर बाध्य करता है। जो कारण गाँव के लोगों को उनके गाँवों से बाहर खींचता है अथवा जो चीजें उनको नागरिक क्षेत्रों की ओर आकर्षित करती हैं, तालिका 8-1 में तालिकाबद्ध हैं।
कभी-कभी गाँव के युवा शहरों में अपने रिश्तेदारों तथा मित्रों से मिलने जाते हैं और वहीं बस जाते हैं। अधिकांश अप्रवासी बड़ी-बड़ी नगरीय बस्तियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
शहरी समुदायों की विशिष्टताएं निम्नलिखित गुणों द्वारा पता चलती हैं:
लोग विभिन्न पृष्ठभूमि और संस्कृति से शहरों की ओर आते हैं जहाँ उनको बेहतर सम्भावनाएँ दिखती हैं। वे पिघलते बर्तन (melting pot) की तरह मिलजुल कर शहरी समुदाय के रूप में रहते हैं। सामाजिक सुविधाएँ जैसे स्कूल, अस्पताल और मनोरंजन के साधन भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
घर से दूरी, अकेलापन और अलगाव की भावना के कारण अन्य सहायक सम्बन्ध बना लेते हैं। ऐसे सम्बन्ध घरों के नियंत्रण से दूर फलने फूलने लगते हैं।
निकटता, विविधता और सामाजिक दृष्टि से भिन्न लोगों के आपसी संपर्क (सम्बन्ध) उन्हें एक दूसरे के ज्यादा नजदीक ले आता है। क्लबों और संगठनों की स्थापना लोगों की आम ज़रूरतों की पूर्ति करती है।
अवसरों का बाहुल्य, सामाजिक विविधता, निर्णय पर पारिवारिक और सामाजिक नियंत्रणों की कमी मनुष्य के स्वहित को और बढ़ा देती है और वह अपने निर्णय स्वयं लेकर अपने कैरियर (व्यवसाय) और कार्यवाही का चयन कर लेता है।
शहरों में कोई भी जन्म के समय की स्थिति के विषय में नहीं पूछता। शहरों में प्रतिष्ठा (वैभव-प्रतीत), उपलब्धियों, क्षमता, दक्षता और नवीनता पर आधारित होता है।
शहरों में रहने वाले लोगों को नैदानिक क्लीनिक, कानूनी सेवाओं, बैंकों, वाणिज्यिक बाजारों, मॉलों (Malls) और डिपार्टमेंटल स्टोरों, होटलों तथा अतिथि गृहों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यह निःसंदेह शहरी युवाओं के लिये एक बेहतर यद्यपि तनावपूर्ण जीवन है। ऊपर लिखे अनुसार 8.3 तालिका ग्रामीण तथा शहरी बस्तियों पर प्रकाश डालती है। गाँवों से शहरों की ओर पलायन का दुख फूलों की सेज नहीं होता है जैसा कि तालिका 8.2 में दिखाया गया है।
क्या गंवाया, कुछ पाने की आशा में
घर छोड़ा, पाठशाला जाने, त्यागे खेत, खाना खाने
छोड़ी गऊएं, मोड़ी भेड़ें, समय न था, आंसू बरसाने।।
समझा आज क्यों हर रात, रो रोकर होता परेशान
क्या छोड़ा क्या पाया मैंने, अब भी तो इससे अनजान।।
शहरों की सड़कों पर पाऊँ, मोटर, बाइकों की भरमार
गरजते माइक, होटल मयखाने, ढाबे भी हैं बेशुमार।।
पर याद आए, अब तो हर दिन, नीला और खुला आसमान
जिस पर लहराती थी मेरी, रंग बिरंगी कई पतंग।।
और याद आएँ अपने ही जन, मित्र, यार और रिश्तेदार
छूट गया है सबका संग, यह बात सताए बारम्बार।।
किन्तु क्या लाभ रोकर धोकर, हर भोर लाए वही संघर्ष।
रात बीते तो सुबह लाएगी, न वह सुकून और न हर्ष।।
-भारती सरकार
1. शहरी बस्तियों को परभाषित कीजिए।
2. किन्हीं तीन कारकों के बारे में लिखिए जो ग्रामीण युवाओं को शहरों और कस्बों की ओर प्रवास करने को बाध्य करते हैं।
3. शहरी बस्तियों के किन्हीं तीन सामान्य लक्षणों की सूची बनाइये।
10,000 वर्ष पहले आदिम मनुष्य ने स्थायी जीवन जीना शुरू किया। बस्तियों में गाँव के एक विस्तृत प्राथमिक समूह को शामिल किया गया। गाँवों की ऐसी बस्तियाँ मानव समाज के दीर्घस्थायी समूह होते हैं। सादा जीवन और सुसम्बद्ध संगठन इन ग्रामीण समाजों के लक्षण हैं।
आधुनिक सभ्यता नगरीय समाजों से ग्रामीण समाजों के मुकाबले में बेहतर समझी जाती है क्योंकि पारंपरिक रूप से प्रायः ग्रामीणों को आर्थिक दृष्टि से कमजोर समझा जाता है तथा उनमें कौशल और विशेषज्ञता में कमी होती है। ग्रामीण समाजों में जनसंख्या घनत्व कम और सीमित अवसर होते हैं। भारतवर्ष में गाँव महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि हमारे गाँवों में भारतीय सभ्यता सुरक्षित पाई जाती है। हमारे देश के भिन्न-भिन्न भागों में गाँवों ने अपनी विशेष सांस्कृतिक तथा सामाजिक पहचान बना रखी है। तभी लोग भारत को ‘विविधता में एकता’ का सर्वोत्तम उदाहरण मानते हैं।
ग्रामीण समुदायों के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
1. कृषि:
मुख्य व्यवसाय होता है। जो लोग पूर्णतया खेतों में काम नहीं करते हैं, वे भी अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़े हैं। गाँव की अर्थव्यवस्था कृषि अर्थव्यवस्था से जुड़ी है।
2. संयुक्त परिवार प्रणालीः
संयुक्त परिवार प्रणाली एक सामाजिक और सांस्कृतिक संस्था है जो शहरों की अपेक्षा ग्रामीण समुदायों में सामान्य रूप से अधिक पाया जाता है।
3. जाति व्यवस्थाः
गाँवों में जाति पर आधारित स्तरीकरण अधिक पाया जाता है।
4. जजमानी प्रथाः
हर गाँव में (i) जजमान और (ii) सेवा प्रदाता समूहीकृत है जिनको नकद या वस्तु के रूप में भुगतान किया जाता है। जजमान भूमि मालिक हैं। वे ऊँची जातियों से आते हैं जबकि सेवा प्रदाता मध्यम या निम्न स्तर के होते हैं।
5. ग्रामीण कैलेन्डरः
भारतीय गाँवों में लोग भारतीय संवत कैलेंडर और हिजरी संवत को मानते हैं।
6. सादा जीवनः
गाँव वाले शहरी समाज की चमक-दमक से दूर, ईश्वर से डर कर पारम्परिक जीवन बिताते हैं।
7. गरीबी और निरक्षरता:
अलाभकर जमीन एवं खंडित और बंजर भूमि की कम उत्पादकता के कारण पायी जाती है। कॉलेज, चिकित्सा सुविधाएँ, परिवहन और नागरिक सुविधाओं, ग्रामीण विकास के लिये सरकार द्वारा चलाई गई विकास योजनाओं के बाद भी विकास हुआ है।
8. गतिशीलता और सामाजिक परिवर्तन के खिलाफः
कट्टरपंथियों, अशिक्षा, अंधविश्वास और भय के कारण, युवा बाहर जाने से, व्यवसाय बदलने से, जाति और धर्म परिवर्तन से घबराते हैं। ग्रामीण सामाजिक मापदंडों का ग्रामीण समाज के परम्परागत नियमों के उल्लंघनों को रोकने में एक बड़ा प्रभाव है। पंचायतों को दंडित करने की क्षमता भी ग्रामीण युवाओं को नये परिवर्तन या नयी पहल से आए किसी भी बदलाव को स्वीकार करने से रोकता है।
ग्रामीण जीवन की शहरी जीवन से अलग एक दुनिया है। नीचे कई प्रकार के अंतरों को तालिकाबद्ध किया गया हैः
1. ग्रामीण समाज किसे कहते हैं?
2. गाँव के लोग गरीबी से क्यों पीड़ित हैं?
3. ग्रामीण लोग सामाजिक रूप से अधिक सजातीय क्यों हैं?
ग्रामों में मुख्य व्यवसाय केवल कृषि ही है। ग्रामीण समुदाय में (1) जमीन मालिक और (2) कृषि श्रमिक शामिल होते हैं। पहली श्रेणी के लोगों के पास भूमि होती है तथा दूसरी श्रेणी के लोगों की मदद से अपनी फसल उगाते हैं।
देश की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण सड़कें, बांध, रेलवे ट्रैकों, घरों तथा उद्योग का निर्माण करने की आवश्यकता बढ़ने लगी है। देश की इन विकासशील गतिविधियों के लिये गाँव वालों को कम मुआवजा देकर ग्रामीणों से आवश्यक जमीन ली गयी है। इसलिये कृषि-भूमि में भयंकर कमी हुई है तथा भूदृश्य में भी बदलाव आ गया है।
पारंपरिक अथवा आधुनिक कृषि का उद्देश्य होता है अधिक फसलों का उत्पादन करना। आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी को अपने उद्देश्य प्राप्ति में मशीनी उपकरणों से सिंचाई सुविधाओं के विस्तार से तथा कृषि रसायनों जैसे खाद और कीटनाशकों के छिड़काव आदि से काफी सहायता मिली है। सबसे अधिक फसल ग्रामीण क्षेत्रों में है जहाँ गाँवों में किसान रहते हैं, आधुनिक कृषि पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ा है।
गहन कृषि, जिसका अर्थ है कृषि उपकरणों, कृषिरसायनों (agrochemicals), अनियोजित शहरीकरण, वनों की कटाई तथा औद्योगीकरण से भूमि में फसलों का उत्पादन बढ़ाना, वनों की कटाई तथा औद्योगीकरण ने अलवणीय जल निकायों और भूमिगत जलस्रोतों को अत्यधिक प्रदूषित किया है।
1. कृषि क्षेत्रों से मिट्टी बह जाती है और अन्य रसायनों का प्रयोग खाद और कीटनाशकों और उर्वरकों को लेकर जलस्रोतों में ले जाता है। इससे सुपोषण और शैवाल वृद्धि हो जाते हैं जिनके विषय में आप पाठ-10 में पढेंगे। सुपोषण जलीय जीव, जिनमें मछली आती है, जो गाँवों में प्रमुख खाद्य-सामग्री का स्रोत होता है, उसे भी मार देता है।
2. अत्यधिक सिंचाई के कारण पानी रुक जाता है और मिट्टी में लवणन (salinazation) हो जाता है (मिट्टी में नमक का अधिक जमा होना) जिससे भूमि की उर्वर क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और मिट्टी में अत्यधिक संचित पानी हो जाता है।
3. खेतों की सिंचाई के लिये कुँओं से अत्यधिक मात्र में जल निकालने से कई क्षेत्रों में भूमिगत जल सूख जाता है जिससे पानी की भारी कमी जो जाती है। झीलों, नदियों और जल निकायों में प्रदूषण के कारण कई क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता कम हो गई है जिससे सुरक्षित पीने के पानी की अत्यधिक कमी हो जाती है, लगातार उपयोग में लाये जाने वाले उर्वरकों और पीड़कनाशकों के कारण भूमिगत जलस्रोत प्रदूषित हो गये हैं और पानी की गुणवत्ता खराब हो गई है।
4. मृदा अपरदन (soil erosion), जो तेज धार वाले आधुनिक कृषीय औजारों की चोट से होती है, नदियों में गाद (silt) जमा देती है। गाद, वह कीचड़ अथवा मृदा है जो जल निकायों में छनकर इसे ढीला (मिट्टी का कटाव) कर देता है। नदियों और झीलों में जमती गाद से उनकी पानी एकत्र रखने की क्षमता कम हो जाती है जिससे बाढ़ आ जाती है।
5. लगातार उसी भूमि पर अथवा सीमान्त भूमि पर खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के लिये मिट्टी को प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से भूमि के पुनर्उर्वरायुक्त होने के लिये समय नहीं मिलता। पहाड़ी ढलानों की खेती भी मृदा अपरदन का कारण बनती है। सब खनिज पोषक भी इस नुकसान का कारण बनते हैं।
शहरी जीवन के वरदान तथा अभिशाप दोनों ही हैं। भारत में 1.2 अरब से ज्यादा की आबादी है। अवसरों की कमी, निर्धनता, रुढ़िवादी जीवन शैली तथा कट्टरपंथियों का दबाव, ग्रामीण युवाओं के ऊपर गाँवों से शहरों और शहरों से गाँवों की ओर जाने को प्रेरित करता है। आज के विकासशील भारत में यात्रा के अपेक्षाकृत आसान तरीके गाँवों से शहरों की ओर पलायन का एक और भी कारण है। गाँवों में रोजगार के अवसर सीमित हैं और युवक अपने माता-पिता और पूर्वजों के व्यवसाय को जारी नहीं रखना चाहते। रेडियो, टेलीविजन तथा मोबाइल फोन के माध्यम से बेहतर प्रदर्शन संभव हो जाता है और मिलना जुलना आसान हो जाता है। शहर पहुँचकर उनको सुविधाओं तथा कठिनाइयों दोनों का सामना करना पड़ता है। ये नीचे सूचीबद्ध की गयी हैं:
(i) बेहतर रोजगार के अवसर।
(ii) लघु व्यवसायों के बारे में शहरों में अवसर मिलना।
(iii) ऊँचे वेतनः अकुशल श्रमिक भी पैसे बचाकर घर भेज सकते हैं।
(iv) विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ और उपभोज्य वस्तुओं का आसानी से उपलब्ध होना।
(v) परिवहन तथा संचार के बेहतर साधन।
(vi) बिजली तथा पानी के नलों का आसानी से उपलब्ध हो जाना। गाँव में स्त्रियों को पानी लाने प्रभाव के लिये काफी दूरी तय करनी पड़ती है। इस प्रकार समय बच जाता है जिससे कि बच्चों की देखभाल का अधिक अवसर मिल जाता है। वयस्क छोटे मोटे काम करके पैसा कमा लेते हैं।
(vii) अस्पतालों में योग्य चिकित्सक और चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
(viii) वयस्कों और बच्चों के लिये बेहतर शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
(i) हरियाली और खुले स्थानों की कमी।
(ii) वायु की गुणवत्ता में कमी। गाँव काफी हद तक प्रदूषण से मुक्त है जबकि शहरी क्षेत्रों में उद्योगों, ऑटोमोबाइलों, तापीय संयंत्र आदि से वायु प्रदूषित होती है।
(iii) पानी की भारी कमी तथा गलत नेतृत्व के कारण झुग्गी बस्तियों के विकास में भारी कमी।
(iv) स्वच्छता और स्वास्थ्य-विज्ञान का अभाव।
(v) अधिक भीड़-भाड़ से कई प्रकार की सामाजिक समस्याएँ हो जाती हैं।
शहरी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने के कारण शहरी सीमाओं के विस्तार की आवश्यकता पड़ गयी है। आवासों, सड़कों, उद्योगों और बांधों आदि के निर्माण की आवश्यकता को पूरी करने के लिये कृषि योग्य भूमि और वनों पर अतिक्रमण किया जा रहा है। बढ़ती हुयी नगरीय आवासीय बस्तियों ने उत्पादक फसलों और खेतों की भूमि और हरे-भरे जंगलों पर कब्जा कर लिया है। कृषि क्षेत्र, चारागाहों हेतु प्रयुक्त की जाने वाली भूमि तथा वनोन्मूलित क्षेत्र पर कंक्रीट की इमारतें बनायी जा रही हैं। भूमि के उपयोग में अपरिवर्तनीय बदलाव होते हैं, भूमि अवक्रमित हो जाती है तथा कृषि योग्य भूमि भी शहरी क्षेत्रों के लाभ के कारण प्रभावित हो रहे हैं।
अधिकतर विकासशील देशों के कंडोमिनियम (बहुमंजिला फ्लैटों) के आस-पास अनधिकृत लोग और पास-पड़ोस में झुग्गी-झोपड़ियाँ बस जाती हैं जो नये आए प्रवासियों के बसने का आकर्षण होती है लेकिन अपर्याप्त रहने योग्य स्थान, पीने योग्य पानी एवं बिजली की कमी, अपर्याप्त साफ-सफाई न होने व सुरक्षित अपशिष्ट निपटान न होने के कारण अनेकों परेशानियाँ आती हैं।
गाँव से आये लोग (प्रवासी) थोड़े ही समय में शहरी जीवन के तरीकों को अपना लेते हैं जो उन लोगों के पहनावे, खान-पान तथा अन्य लोगों से बातचीत के तरीके में दिखायी पड़ती है।
जैसे ही बड़ी संख्या में लोग स्थायी रूप से छोटे इलाकों से शहरों और कस्बों में आकर रहने लगते हैं- इसके कारण प्राकृतिक संसाधनों में उपभोग में वृद्धि हो जाती है। भूमि की उपलब्धता घट जाती है क्योंकि आवासीय इमारतें बनने लगती हैं। बढ़ती हुई शहरी जनसंख्या की बढ़ती हुई जल सम्बन्धी मांग के कारण जल की उपलब्धता में तेजी से कमी होती जाती है। भूमिगत जल का अत्यधिक निष्कासन पानी की कमी का आधार बन जाता है। पानी की बढ़ती आवश्यकता की पूर्ति के लिये दूर दराज से पानी प्राप्त किया जाता है। जिसके कारण प्राकृतिक जल निकायों तथा पारितंत्र प्रभावित हो जाते हैं।
शहरीकरण और औद्योगिकीकरण भारी मात्रा में अपशिष्टों का उत्पादन है। घरेलू तथा औद्योगिक कचरे के स्रोतों जिनके कारण ठोस कचरे की मात्रा की समस्या बढ़ रही है। वे जैवनिम्नीकृत (biodegradable) हो सकते हैं, जब वे इसका प्रयोग बायो गैस उत्पादन के लिये किया जा सकता है। अजैव निम्नीकृत (Nonbiodegradable) अपशिष्ट बंजर भूमि को भरने के लिये फेंक दिया जाता है।
तरल अपशिष्ट जैसे घरों से मल और औद्योगिक वाह अपशिष्ट बिना किसी उपचार के नदियों और झीलों में फेंक दिये जाते हैं जिससे प्रदूषण बढ़ता है। मल-जल शोधन से सहायता मिल सकती है परन्तु या तो इसकी कमी है अथवा यह गंभीर रूप से अपर्याप्त है।
शहरीकरण से आर्थिक विकास होता है। सड़कों में बढ़ती हुई गाड़ियों की संख्या वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है। जिसके कारण भीड़-भाड़ और ट्रैफिक जाम के अलावा वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है।
तेजी से आगे बढ़ते शहरीकरण के साथ-साथ, आवासों की कमी बढ़ रही है। जिससे शहरों में बड़ी बड़ी झुग्गियाँ झोपड़ियाँ बन गई हैं जिनमें बुनियादी सुविधाओं की कमी होती है। वास्तव में झुग्गी बस्तियाँ पर्यावरण अवक्रमण के लिये सबसे भयानक रूप से भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये पर्यावरण प्रदूषण में केवल योगदान ही नहीं देते वरन सामाजिक अपराधों को भी बढ़ावा देते हैं। मुंबई में एक बड़ी झुग्गी बस्ती ‘धारावी’ एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती है।
- गाँवों से प्रवासी (लोगों) रोजगार की तलाश में शहरों में आते हैं। वे आमतौर पर निर्धन और भूमिहीन होते हैं। शहर में पहुँचने के बाद ये खाली भूमि पर कब्जा कर लेते हैं जो फिर बाद में गंदी बस्ती ‘झुग्गी झोपड़ियों’ में बदल जाते हैं। विकासशील देशों के शहरों में गंदी बस्तियाँ एक आम लक्षण के रूप में दिखाई देती है।
- ये स्वयं बनाये हुई झोपड़ियाँ होती हैं जिनका निर्माण स्क्रैप पदार्थों जैसे प्लास्टिक, लकड़ी के फिन, बांस, जूट, पुआल, प्लाइवुड, ईंट और मिट्टी से करते हैं। झुग्गी-झोपड़ियाँ प्रायः जल्दी और अनियोजित ढंग से उत्पन्न हो जाती हैं।
- झुग्गी झोपड़ी शहरों के कई भागों में झुंडों में पाई जाती है। ये कच्चे-पक्के मकान, एक दूसरे के पीछे और आपस में सटे हुए सूर्य की रोशनी तथा हवा से रहित होते हैं। ये सब खराब वायुसंचार (Ventilation) के कारण होता है। ऐसा लगता है कि एक कोठरी में कई साथियों ने कब्जा कर लिया हो।
- कूड़ा और ठोस-अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान की अनुपस्थिति, नलके के पानी की आपूर्ति और मल-निकासी तथा बिजली की कमी बहुत अनिश्चित स्थिति पैदा करती है। झुग्गी झोपड़ियाँ अनधिकृत बस्तियाँ बन जाती हैं।
- झुग्गी बस्तियां, आमतौर से गर्मियों के मौसम में बिजली के शार्ट-सर्किट और निवासियों की लापरवाही के कारण परेशिानियों का सामना करते हैं।
1. गहन कृषि क्या है?
2. कृषि में आधुनिक तकनीकी के प्रयोग से उभर रही दो प्रमुख समस्याओं के विषय में लिखो।
3- झुग्गी बस्तियाँ क्या हैं?
- समाज का निर्माण तब हुआ जब मानव को पता चला कि समूह में रहकर ही वह सुरक्षित रह सकता है। मानव ने शिकारी सभ्यता को त्याग दिया तथा मानव बस्तियों को बनाया।
- आकार के आधार पर बस्तियाँ ग्रामीण अथवा शहरी हो सकती हैं।
- शहर और कस्बों का जीवन ही शहरी जीवन होता है।
- ऐसे कई कारण हैं जो गाँवों से ग्रामीणों को खींच कर या शहरों की ओर आकर्षित करके उन्हें शहरों में जीवन व्यतीत करने के लिये बाध्य कर देते हैं।
- सामाजिक विषमता, व्यक्तिपरक जीवन-शैली, स्वयंसेवी समूहों के गठन, सामाजिक गतिशीलता अन्य सुविधाओं की उपलब्धता शहरी जीवन की विशेषताएँ हैं।
- लेकिन गाँवों से शहरों की ओर पलायन का सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव पड़ा है।
- ग्रामीण या गाँवों की बस्तियों की विशेषताएँ व्यवसाय के रूप में कृषि, संयुक्त परिवार व्यवस्था और जाति व्यवस्था होती है।
- गाँवों की निर्धनता और निरक्षरता ग्रामीणों को रुढ़िवादी तथा अंधविश्वासी बना देती है।
- ग्रामीण दुनिया तथा शहरी दुनिया में वातावरण, व्यवसाय, समुदाय के आकार, जनसंख्या घनत्व और सामाजिक गतिविधियों पर अन्तर निर्धारित होता है।
- आधुनिक प्रौद्योगिकी गाँवों में रहने वाले ग्रामीणों तक पहुँच गई है। यद्यपि कृषि से अधिक खाद्यान्न उतपन्न हो रहे हैं परन्तु रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से न केवल कृषि क्षेत्र वरन पर्यावरण भी अवक्रमित हुआ है।
- भारत में शहरी जीवन पर व्यवसाय सम्बन्धित अवसर, उच्च वेतन, उपभोग्य सामग्रियों की उपलब्धता तथा आराम के जीवन से लाभ हुआ है।
- शहरीकरण की कठिनाइयाँ हैं- हरियाली की कमी, वायु प्रदूषण, तथा बढ़ती हुई सामाजिक समस्याएँ।
- शहरीकरण से पर्यावरण संसाधन उपभोग और अपशिष्ट उत्पादन अत्यधिक रूप से बढ़ गया है।
- मलिन और अनधिकृत बस्तियाँ शहरों के लिये एक सच्चाई बन चुकी है। इनके कारण शहरी योजना गड़बड़ा जाती है तथा विशिष्ट पर्यावरण और सामाजिक समस्याऐं खड़ी हो जाती हैं।
1. मानव बस्तियों के कौन से प्रकार हैं?
2. उन कारणों की सूची बनाइये जिनसे मनुष्य गाँवों से शहरों की ओर जा रहे हैं।
3. ग्रामीण तथा शहरी बस्तियों के भेद लिखिये।
4. जब ग्रामीण युवा गाँवों से शहरों में आते हैं तो उनको क्या सुविधाएँ मिलती हैं?
5. जो ग्रामीण शहरों की ओर पलायन करते हैं तो उनको किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है?
6. आधुनिक तकनीकी का कृषि में प्रयोग करने के कारण पर्यावरण का किस प्रकार अवक्रमित हो गया है?
7. निम्नलिखित को सिद्ध कीजिए-
‘‘शहरीकरण के कारण बढ़ती संसाधन खपत और अपशिष्ट उत्पादन पर प्रभाव पड़ा है।’’
8. झुग्गी बस्तियों पर एक संक्षिप्त लेख लिखें।
9. प्रगतिशील शहरीकरण के साथ भूमि उपयोग में क्या कमी आई है? प्रभाव
10. शहरी जीवन की समस्याओं पर एक लेख लिखें।
8.1
1. इसने उनके जीवन को शिकारी संग्राहक जीवन के खतरों से सुरक्षा दे दी।
2- (i) बस्तियों की अवधि
(ii) आकार
8.2
1. शहरों और कस्बों में रहते हैं।
2. गरीबी/निरक्षरता/नौकरी के अवसर/बेहतर सामाजिक सुविधाएँ (कोई अन्य)।
3. सामाजिक विषमता/सामाजिक नियंत्रण के अभाव/स्वैच्छिक संगठनों/व्यक्तिवाद (कोई अन्य)।
8.3
1. गाँवों में रहना।
2. निरक्षरता/रोजगार के अवसरों की कमी। एकमात्र व्यवसाय कृषि/अंधविश्वास/बंधुआ मजदूर (कोई अन्य)।
3. भाषा के साथ बंधे (जाति व्यवस्था)/एक जैसा व्यवसाय/समान जीवन शैली (कोई अन्य)।
8.4
1. छोटे जमीन के टुकड़े पर अधिक फसल को उगाना।
2. प्राकृतिक संसाधनों की कमी/अपशिष्ट उत्पन्न होना/रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से प्रतिकूल प्रभाव/ रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग।
3. शहरों के कई भागों में झोपड़ियों अथवा घरों के समूह।