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पारिस्थितिकी के सिद्धांत

Author : इंडिया वाटर पोर्टल


पिछले मॉड्यूल (मॉडयूल-1) में आपने पर्यावरण की उत्पत्ति और विकास का अध्ययन किया है। आपने इस बात का भी अध्ययन किया है कि मानव पर्यावरण के साथ किस प्रकार अन्योन्यक्रिया कर रहा है। इस पाठ (यह मॉड्यूल-2 का पहला पाठ है) में आप पारिस्थितिकी, जो विज्ञान की एक प्रतिष्ठित शाखा है, की कुछ मुख्य अवधारणाओं का अध्ययन करेंगे।

उद्देश्य

4.1 पारिस्थितिकी की परिभाषा

‘‘जीवों के पारस्परिक तथा वातावरण के साथ उनके सम्बन्धों के वैज्ञानिक अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं।’’



पारिस्थितिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सन 1869 में जर्मन जीव विज्ञानी अर्नेस्ट हीकेल ने किया। यह ग्रीक भाषा के दो शब्दों ओइकॉस (Icos) जिसका अर्थ है ‘घर’ और लोगोस (logos) जिसका अर्थ है, ‘अध्ययन’ से लिया गया है।

‘‘पारिस्थितिकी को जीवों के पारस्परिक तथा वातावरण के साथ उनके सम्बन्धों के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसमें जीवों और पर्यावरण के जैविक और अजैविक घटकों के बीच सम्बन्धों पर अधिक बल दिया जाता है।’’

4.2 पारिस्थितिकीय संगठन के स्तर

4.3 प्राकृतिक पर्यावास और जीव

4.4 निकेत (NICHE) और जीव

पाठगत प्रश्न 4.1

4.5 अनुकूलन

‘‘किसी जीव की बनावट या व्यवहार या फिर जीने की पद्धति, जिसकी सहायता से वह किसी विशेष पर्यावरण में जीवित रहता है’’

अनुकूलन (Adaptation) कहलाता है। मछलियों में क्लोमों और पंखों की उपस्थिति जलीय पर्यावास के प्रति अनुकूलन के उदाहरण हैं। जलीय पुष्पीय पौधों में काष्ठ की उत्पत्ति की अनुपस्थिति तथा अल्प विकसित जड़तंत्र जलीय वातावरण के प्रति अनुकूलन के उदाहरण हैं। अनुकूलन का अवलोकन किसी जीव की संरचना, व्यवहार या शरीर क्रियाविज्ञान में किया जा सकता है। अनुकूलन का एक आनुवांशिक आधार है और यह विकास के द्वारा उत्पन्न तथा पूर्ण होता है। इसका अर्थ यह है कि अनुकूलन पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित हुए हैं ताकि प्रजातियाँ अपने वातावरण में सफलता के साथ जीवित रह सकें।

पौधो और जन्तुओं को उनके विशेष वातावरण में जीवित रखने में सहायक मूल अनुकूलनों के उदाहरण हैं:

- पक्षी की चोंच की बनावट।
- फर का मोटापन अथवा पतलापन।
- पक्षियों में परों और पंखों की उपस्थिति।
- वृक्षों की सदाबहार और पर्णपाती प्रकृति।
- पत्तियों और तनों पर शूल (कांटों) की उपस्थिति और अनुपस्थिति।

- प्रजाति क्या है

‘‘जीवों के समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है जो अन्तः प्रजनन में सक्षम हैं और सफल संतति (बच्चे) पैदा करते हैं।’’

चीता, सिंह (शेर), कमल और गुलाब विभिन्न प्रजातियों के उदाहरण हैं। प्रत्येक प्रजाति का एक वैज्ञानिक नाम होता है जिसे सम्पूर्ण विश्व के लोग समझते हैं। मानव होमो सैपियंस (Homo Species) प्रजाति से सम्बन्धित है। केवल समान प्रजातियों के सदस्य अन्तःप्रजनन करके जननक्षम संतति पैदा कर सकते हैं। प्रत्येक प्रजाति के अपने आनुवांशिक अभिलक्षण होते हैं जो प्रजाति को अद्वितीय और दूसरी प्रजातियों से भिन्न बना देते हैं।

- विविधता

जैव विकास

4.6 प्रजातियों की उत्पत्तिः प्रजाति उद्भवन

नई प्रजाति के उत्पन्न होने का उदाहरण

4.6.1 विलोपन (Extinction)

पाठगत प्रश्न 4.2

4.7 समष्टि (Population)

घनत्व (Density):

किसी दिए हुए समय में प्रति एकांक क्षेत्रफल में व्यष्टियों की समष्टि घनत्व कहलाती है। किसी प्रजाति का घनत्व समय के साथ-साथ और एक स्थान से दूसरे स्थान पर परिवर्तित होता रहता है। उदाहरण के लिये आपने मानसून के दिनों में बाग में अधिक पौधों और जन्तुओं को देखा होगा। किसी क्षेत्र में व्यष्टि जीव का घनत्व एक विशेष आयाम के आकार जिसे चतुष्कोण (quadart) कहते हैं, उस क्षेत्र के नमूनों के यादृच्छिक चयन द्वारा निर्धारित किया जाता है।

बड़े और गतिशील जन्तुओं जैसे बाघ, तेंदुए, शेर, हिरन आदि के मामले में घनत्व का निर्धारण जन्तुओं की संख्या की प्रत्यक्ष रूप से गणना करके या निर्धारित क्षेत्र में जन्तुओं द्वारा बनाए गए पग चिन्हों की गणना करके किया जा सकता है। प्रत्येक जन्तु के पग चिन्ह (Pug mark) अद्वितीय होते हैं तथा एक दूसरे से भिन्न होते हैं। पग चिन्हों के अध्ययन से निम्नलिखित जानकारी विश्वसनीय ढंग से प्राप्त की जा सकती है यदि इनका कुशलतापूर्वक विश्लेषण किया जाए।

- अध्ययन क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों की उपस्थिति।
- व्यष्टि जन्तुओं की पहचान।
- बड़ी बिल्लियों (बाघ, शेर आदि) की समष्टि।
- बड़ी बिल्लियों में लिंग अनुपात और आयु (जवान और वयस्क)।

मानव जनसंख्या की गणना जनगणना (Census) कहलाती है। यह कार्य प्रत्येक 10 वर्ष के पश्चात भारत सरकार द्वारा किया जाता है। जनगणना में यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति की भौतिक रूप से गणना की जाती है।

जन्मदर (Birth Rate):

जिस दर से नए जीव पैदा होते हैं तथा दी हुई पर्यावरिक परिस्थितियों के अन्तर्गत समष्टि में सम्मिलित होते हैं, जन्म दर कहलाती है। जन्म, अण्डे से बच्चे निकलने, अंकुरण और कायिक जनन के कारण किसी समष्टि के जीवों की संख्या में बढ़ोतरी होती है। मानवों में जन्म दर को 1000 व्यक्तियों में प्रत्येक वर्ष जन्म लेने वाले जीवित शिशु की संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है।

मृत्युदर (Death Rate):

दी हुई पर्यावरण सम्बन्धी परिस्थितियों में मृत्यु के कारण किसी जनसंख्या के व्यक्तियों (व्यष्टियों) का ह्रास मृत्युदर कहलाता है। किसी वर्ष में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या की गणना मृत्यु दर के द्वारा की जाती है। मानवों में मृत्युदर को जनसंख्या के 1000 व्यक्तियों में प्रतिवर्ष मरने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है।

परिक्षेपण (फैलाव, Dispersion):

किसी जनसंख्या के जीवों का स्थायी रूप से क्षेत्र से बाहर चले जाना प्रवास कहलाता है। जबकि अप्रवास का अर्थ है जीवों का नए क्षेत्र में चले जाना। परिक्षेपण में जीवों का प्रवास और अप्रवास दोनों सम्मिलित होता है। किसी क्षेत्र की जनसंख्या परिक्षेपण के द्वारा प्रभावित होती है। पौधों में सक्रिय प्रवसन संभव नहीं है, यद्यपि बीज का प्रकीर्णन वायु, जल और जन्तुओं द्वारा दूर-दूर तक हो जाता है।

इस प्रकार जनसंख्या घनत्व मूलरूप से चार कारकों पर निर्भर होता हैः (i) जन्म दर (ii) मृत्यु दर (iiii) प्रवास और (iv) अप्रवास

आयु विवरण (Age Distribution)

पूर्व जनन समूहः

जिसमें किशोर जीव या बच्चे सम्मिलित हैं।

जनन समूहः

ऐसी व्यष्टियां सम्मिलित हैं जिनमें प्रजनन करने की क्षमता होती है।

जननोत्तर समूहः

इसमें अधिक आयु वाली ऐसी समष्टियां सम्मिलित हैं जो प्रजनन करने में सक्षम नहीं हैं।

शीघ्रता से वृद्धि करने वाली जनसंख्या में सामान्यतः जनन आयु समूह की व्यष्टियों का एक बड़ा भाग सम्मिलित होता है, एक स्थिर जनसंख्या (जहाँ जनसंख्या में कोई बढ़ोतरी या कमी नहीं होती है) में सभी आयु वर्गों का समान वितरण सम्मिलित है और ह्रासोन्मुख जनसंख्या में अधिक आयु वाले या जननोत्तर वर्ग की व्यष्टियों का एक बड़ा भाग सम्मिलित होता है।

लिंग अनुपात (Sex Ratio)

4.8 समष्टि वृद्धि (POPULATION GROWTH)

घनत्व-स्वतंत्र जनसंख्या वृद्धि

पाठगत प्रश्न 4.3

4.9 समुदाय और उनकी विशेषताएँ

4.9.1 जैविक समुदाय के संगठन

4.9.2 स्तरीकरण (Stratification)

- समुदाय अभिलक्षण

प्रजाति विविधता

4.10 पारिस्थितिकीय अनुक्रम (ECOLOGICAL SUCCESSION)

4.10.1 प्राथमिक अनुक्रम (Primary Succession)

अग्रगामी समुदाय (Pioneer community)

कहलाते हैं जो खाली क्षेत्र को सबसे पहले अपना वास स्थान बनाते हैं। अग्रगामी समुदाय की जगह ऐसा समुदाय ले लेता है जिसमें विभिन्न प्रजातियों का सम्मिश्रण होता है। द्वितीयक समुदाय की जगह तृतीयक समुदाय ले लेता है और यह प्रक्रम क्रमानुसार चलता रहता है जिसमें एक समुदाय की जगह दूसरा समुदाय ले लेता है। प्रत्येक संक्रमण (अस्थायी) समुदाय जो अनुक्रम के दौरान अस्तित्व में आता है और दूसरे समुदाय के द्वारा विस्थापित कर दिया जाता है वह अनुक्रम का चरण या

अनुक्रमिक समुदाय (Transitional Community)

कहलाता है। अनुक्रम का अन्तिम चरण जिस समुदाय की रचना करता है वह

चरमोत्कर्ष समुदाय (Climax community)

कहलाता है। चरमोत्कर्ष समुदाय स्थायी, परिपक्व, अधिक जटिल और दीर्घकालिक होता है। एक दिए हुए क्षेत्र में समुदायों का सम्पूर्ण क्रम जिसमें अनुक्रम के दौरान एक समुदाय दूसरे का अनुवर्ती होता है, क्रमावस्था (Sere) कहलाता है।

इस प्रकार के समुदाय के जन्तु भी अनुक्रम को दर्शाते हैं जो काफी हद तक वनस्पति अनुक्रम के द्वारा निर्धारित होता है। यद्यपि इन अनुक्रमिक चरणों के जन्तु भी जन्तुओं के उन प्रकारों से प्रभावित होते हैं जो निकटवर्ती समुदायों से प्रवसन करने में सक्षम होते हैं। चरमोत्कर्ष समुदाय जब तक अबाधित रहता है, तब तक कि वह प्रचलित जलवायु और पर्यावास कारकों के साथ अपेक्षाकृत स्थायी और गतिकीय साम्य में रहता है।

वह अनुक्रम जो उस स्थल पर घटित होता है जहाँ आर्द्रता कम है जैसे खाली चट्टान, जो इसे

शुष्कतारम्भी (Xerarch)

कहते हैं। अनुक्रम जब किसी जलीय निकाय जैसे तालाब या झील में घटित होता है तो इसे

जलारम्भी (Hydrarch)

कहते हैं

4.10.2 द्वितीयक अनुक्रम (Secondary succession)

पाठगत प्रश्न 4.4

4.11 जैविक अन्योन्यक्रिया

अनतर्जातीय अन्योन्यक्रिया (Interspecific)

कहलाती है।

एक ही पोषक स्तर से सम्बन्धित जीवों के बीच अन्योन्यक्रियाओं में प्रायः स्पर्धा देखने को मिलती है। व्यष्टि सदस्य भोजन, स्थान तथा प्रजनन के लिये स्पर्धा कर सकते हैं। उदाहरण के लिये अगर एक बिल्ली किसी चूहे को खा जाती है तो अन्य बिल्लियां जो इसी संसाधन के लिये स्पर्धा करती हैं उन्हें शिकार के लिये एक चूहा कम उपलब्ध होगा। चूहे का एक और शिकारी सांप के लिये भी रात्रि के समय खाने के लिये थोड़े से ही चूहे उपलब्ध रहेंगे अगर गिद्ध इस कार्य में सफल हो जाता है। यद्यपि गिद्ध और उल्लू के बीच प्रत्यक्ष स्पर्धा बहुत अधिक नहीं होती क्योंकि यह अलग-अलग समय में शिकार करते हैं। वे भोजन भी भिन्न-भिन्न प्रकार का ग्रहण करते हैं। अतः स्पर्धा अन्तरजातीय अथवा अन्तरजातीय हो सकती है।

अन्तरजातीय सम्बन्ध प्रत्यक्ष और निकट हो सकते हैं जैसा कि एक शेर और हिरन के बीच होता है या अप्रत्यक्ष और सुदूर हो सकते हैं जैसा कि हाथी और भृंग के बीच होता है। इसका कारण यह है कि दो प्रजातियों के बीच अन्योन्यक्रियाओं के लिये प्रत्यक्ष सम्पर्क की आवश्यकता नहीं होती। पारितंत्र की संयोजन प्रकृति के कारण प्रजातियाँ मध्यवर्ती संस्थाओं जैसे सहभाजी संसाधन और उभयनिष्ठ शत्रुओं के द्वारा एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। अन्तरजातीय अन्योन्यक्रियाओं के लिये विशिष्ट शब्दावली का प्रयोग किया जाता है जो इस बात पर निर्भर है कि क्या अन्योन्यक्रिया प्रजाति के सदस्यों के लिये लाभदायक है, हानिकारक है या फिर उदासीन है। दो प्रजातियों के बीच होने वाली सम्भावित अन्योन्यक्रियायें तालिका 4.1 में दी गई हैं।

4.11.1 अन्योन्यक्रियाओं के प्रकार

1. असहभोजिता (Amensalism):

यह दो प्रजातियों के मध्य नकारात्मक साहचर्य है जिसमें एक प्रजाति दूसरी प्रजाति को सीमित कर देती है या उसे हानि पहुँचाती है परन्तु स्वयं अन्य प्रजातियों की उपस्थिति के कारण किसी भी प्रकार के प्रतिकूल प्रभाव से सुरक्षित रहती है। वह जीव जो एंटिबायोटिक्स का स्राव करते हैं और वह प्रजाति जो एंटीबायोटिक्स के कारण संदमित हो जाती है, असहभोजिता के उदाहरण हैं। उदाहरण के लिये ब्रेड मोल्ड कवक पेनिसिलियम, पेनिसिलीन नामक एंटिबायोटिक उत्पन्न करता है जो विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया की वृद्धि को रोक देती है। पेनिसिलियम को स्पष्ट रूप से लाभ पहुँचता है क्योंकि बैक्टीरिया के समाप्त होने के कारण पेनिसिलियम के लिये अधिक भोजन उपलब्ध रहता है।

2. शिकार (Predation):

इस अनोन्यक्रिया में शिकारी (परभक्षी) अन्य प्रजातियों के जन्तुओं, जिन्हें शिकार कहते हैं, को पकड़ते हैं, मारते हैं और खा जाते हैं। परभक्षी को स्वभावतः इस सम्बन्ध से लाभ प्राप्त होता है जबकि शिकार को हानि पहुँचती है। तेंदुए, बाघ और चीते जैसे परभक्षी अपने शिकार को पकड़ने और उसे मारने के लिये गति, दांत और पंजों का प्रयोग करते हैं।

3. परजीविताः

इस प्रकार की अन्योन्यक्रिया में एक प्रजाति को लाभ प्राप्त होता है तथा दूसरी प्रजाति को हानि पहुँचती है। परजीवी सामान्यतः एक छोटे आकार का जीव होता है जो अन्य सजीव प्रजातियों के अन्दर या उनके ऊपर रहता है। जिस प्रजाति से परजीवी अपना भोजन और आश्रय प्राप्त करता है उसे परपोषी (Host) कहते हैं। परजीवी को लाभ प्राप्त होता है और परपोषी को हानि पहुँचती है। अनेक जीव जैसे जन्तु, बैक्टीरिया तथा वायरस पौधों तथा जन्तुओं के परजीवी हैं (चित्र 4.17 क तथा 4.17 ख) डोडर पौधा (अमर बेल) (चित्र 4.17 क) और मिस्टलेटो (लौरेन्थस) जैसे पादप परजीवी हैं जो पुष्पीय पौधों पर जीवन निर्वाह करते हैं। फीताकृमि, गोलकृमि, और मलेरिया परजीवी, अनेक बैक्टीरिया, कवक तथा वायरस मानवों में पाये जाने वाले सामान्य परजीवी हैं।

4. स्पर्धाः

यह दो समष्टियों के मध्य ऐसी अन्योन्यक्रिया है जिसमें दोनों प्रजातियों को कुछ हद तक नुकसान पहुँचता है। स्पर्धा उस समय शुरू होती है जब दोनों व्यष्टियां या प्रजातियों को ऐसे महत्त्वपूर्ण संसाधन की आवश्यकता है जिसकी उपलब्धता कम है। यह महत्त्वपूर्ण संसाधन भोजन, जल, आश्रय, घोंसला बनाने का स्थान, साथी या स्थान हो सकता है। इस प्रकार की स्पर्धा दो प्रकार की हो सकती हैः (i) अन्तर्जातीय स्पर्धा (Interspecific competition)- जो एक ही पर्यावास में रहने वाली दो विभिन्न प्रजातियों के बीच होती है (ii) आंतरजातीय स्पर्धा (Intraspecific competition)- जो एक ही प्रजाति के सदस्यों के बीच होती हैं। आंतरजातीय स्पर्धा क्योंकि एक ही प्रजाति के सदस्यों के बीच होती है अतः यह अत्यधिक प्रचण्ड होती है।

5. सहभोजिता (Commensalisms):

इस प्रकार के सम्बन्धों में एक प्रजाति लाभान्वित होती है जबकि दूसरी प्रजाति को न तो लाभ प्राप्त होता है और न कुछ हानि होती है। कुछ प्रजातियाँ अन्य प्रजातियों से आश्रय या परिवहन का लाभ उठाते हैं। उदाहरण के लिये सकरफिश, रिमोरा अपने सिर के सबसे ऊपर की ओर उपस्थित चूषकों की सहायता से प्रायः शार्क मछली से संलग्न हो जाती है। इससे रिमोरा को सुरक्षा हासिल करने में सहायता मिलती है। इसके साथ-साथ मुफ्त परिवहन और शार्क का बचा हुआ भोजन भी प्राप्त हो जाता है। शार्क को इस सम्बन्ध से कोई लाभ नहीं होता और न ही इस पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वृक्षों और अधिपादपों पौधों के बीच सम्बन्ध सहभोजिता का एक और उदाहरण है। अधि पादप अन्य पौधों जैसे फर्न, मॉस और आर्किड की सतह पर रहते हैं और वृक्षों की सतह का उपयोग सहारे के लिये, सूर्य का प्रकाश और नमी प्राप्त करने के लिये करते हैं। वृक्षों को इससे न तो कोई लाभ होता है और न उन्हें हानि होती है।

6. सहजीविता (Mutalism):

यह दो प्रजातियों के बीच निकट साहचर्य है जिसमें दोनों प्रजातियाँ लाभान्वित होती हैं। उदाहरण के लिये समुद्री-एनीमोन (एक निडेरियन प्राणी) हर्मिट केब के कवच से संलग्न हो जाता है तथा परिवहन और नया भोजन प्राप्त करता है जबकि एनीमोन हर्मिट क्रेब को अपनी दंश कोशिकाओं के द्वारा सुरक्षा और छदमावरण प्रदान करता है।

यद्यपि कुछ सहजीविताएं इतनी घनिष्ठ होती हैं कि अन्योन्यक्रिया करने वाली प्रजातियाँ अधिक समय तक एक दूसरे के बिना जीवित नहीं रह पाती है। क्योंकि यह अपनी उत्तरजीविता के लिये पूर्ण रूप से एक दूसरे पर निर्भर होती हैं। इस प्रकार का घनिष्ट साहचर्य सहभागिता कहलाता है। दीमक और इनकी आंत में पाए जाने वाले फ्लेजेलेट प्राणी इस प्रकार के घनिष्ठ सहजीवी साहचर्य के उदाहरण हैं। दीमक लकड़ी खा सकती है परन्तु इसे पचाने के लिये इसके पास कोई एन्जाइम नहीं होता। इनकी आंत में फ्लेजेलेट प्रोटिस्ट (प्रोटोजोआ) पाए जाते हैं। जिनमें दीमक के द्वारा खाई गई लकड़ी के ‘‘सैल्यूलोज’’ का पचाने और उसे शर्करा में परिवर्तित करने वाले एन्जाइम होते हैं। फ्लेजेलेट प्राणी इस शर्करा का कुछ भाग अपने उपापचय के लिये उपयोग में लाते हैं और दीमक के लिये प्रचुर मात्र में शर्करा बची रहती है। दीमक और फ्लेजेलेट दोनों ही एक दूसरे के बगैर जीवित नहीं रह सकते। सहभागिता का एक और परिचित उदाहरण फूलों के परागण में देखा जा सकता है। जहाँ पुष्पीय पौधों का परपरागण मधुमक्खियों के द्वारा होता है जो पौधों से रस प्राप्त करके लाभान्वित होती हैं और ये एक दूसरे के बगैर जीवित नहीं रह सकते।

7. उदासीनता (Neutralism):

ऐसी दो प्रजातियों के बीच का सम्बन्ध है जो परस्पर क्रिया तो करती हैं परन्तु एक दूसरे से प्रभावित नहीं होती हैं। वास्तविक उदासीनता अत्यंत अविश्वसनीय होती है और इसे सिद्ध कर पाना असम्भव है। पारितंत्र के द्वारा प्रदर्शित किये जाने वाली अन्योन्यक्रियाओं में जटिल नेटवर्क के सम्बन्ध में कोई भी निश्चित तौर पर सकारात्मक रूप से यह नहीं कह सकता कि प्रजातियों के बीच बिल्कुल भी स्पर्धा नहीं होती या किसी भी प्रजाति को कोई लाभ नहीं होता। क्योंकि वास्तविक उदासीनता दुर्लभ या अस्तित्वहीन है, अतः इसके उपयोग को प्रायः उन परिस्थितियों के लिये विस्तारित किया जाता है जहाँ अन्योन्यक्रियाएँ बहुत मामूली या नगण्य हैं।

पाठगत प्रश्न 4.5

आपने क्या सीखा

पाठांत प्रश्न

पाठगत प्रश्नों के उत्तर

4.1


1. पारिस्थितिकी का अर्थ है जीवों के पारस्परिक तथा वातावरण के साथ उनके सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन।

2. निकेत का अर्थ है किसी प्रजाति के समस्त क्रियाकलापों और सम्बन्धों का योग जिसके द्वारा वह प्रजाति अपनी उत्तरजीविता तथा जनन के लिये अपने पर्यावास के संसाधनों का उपयोग संकल्पना एवं मुद्दे करती है।

3. पर्यावास वह भौतिक पर्यावरण है जिसमें कोई जीव रहता है जबकि निकेत किसी प्रजाति के क्रियाकलापों और सम्बन्धों का कुल योग है।

4.2


1. किसी जीव का व्यवहार या जीवन-पद्धति जिसकी सहायता से वह किसी विशेष पर्यावरण में जीवित रहता है।

2- (i) प्रजाति-जीवों की समान समष्टियों का ऐसा समूह जिसके सदस्य जननक्षम संतति उत्पन्न करने के लिये परस्पर प्रजनन करने में सक्षम होते हैं (ii) विविधता- जीन संयोजनों में अन्तर के कारण संरचना में अन्तर

3. (i) जीन संयोजन (ii) उत्परिवर्तन

4. प्राकृतिकवरण

5. (i) प्रजाति उदभवन- वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा नई प्रजातियाँ अस्तित्व में आती हैं तथा (ii) विलोपन- किसी प्रजाति का मर जाना

4.3


1. परस्पर प्रजनन करने वाले ऐसे जीवों का समूह जो किसी विशेष समय में विशेष भौगोलिक क्षेत्र में पायी जाती हैं।
2. i) जनसंख्या का घनत्व
ii) जन्म दर
iii) मृत्यु दर
3. मृत्यु दर, जन्म दर, अप्रवास, प्रवास

4.4


1. i) अनुक्रम समय के साथ पर्यावरण में जीवों का क्रमिक परिवर्तन होता है।

ii) अग्रगामी प्रजाति उन पौधों का समूह है जो पहली बार उस क्षेत्र में उगते हैं जो अनुक्रम के दौरान परिवर्तनशील रहता है। यह अनुक्रमिक प्रक्रम में सबसे पहली प्रजाति है।

iii) चरमोत्कर्ष समुदाय, अनुक्रम का अन्तिम चरण है। यह अपेक्षाकृत स्थायी, दीर्घकालिक समुदाय होता है।

iv) द्वितीय अनुक्रम, ऐसे परिवर्तनों की क्रमिक श्रेणी है जो वर्तमान समुदाय में विघ्न आने के साथ आरम्भ होते हैं और चरमोत्कर्ष समुदाय की रचना करते हैं।

4.5


1. (क) वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी क्षेत्र में पायी जाने वाली वनस्पति और जन्तु प्रजातियों के समुदाय सम के साथ दूसरे समुदाय में परिवर्तित हो जाते हैं या दूसरे समुदाय उनका स्थान ले लेते हैं।

(ख) अन्योन्यक्रिया करने वाली प्रजातियाँ एक दूसरे के बगैर अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकतीं क्योंकि यह अपनी उत्तरजीविता के लिये पूर्ण रूप से एक दूसरे पर निर्भर होती हैं।

2. आन्तरजातीय स्पर्धा।

3. शिकार, क्योंकि वह शिकार करती है या फिर टिड्डे को खाती है।

4. सहजीविता, क्योंकि इस सम्बन्ध से दोनों लाभान्वित होती हैं।

5. परपोषी।

6. सहजीविता।

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