आप जानते हैं कि शायद पृथ्वी सौर मण्डल का ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन का अस्तित्व है। पृथ्वी का वह भाग जो जीवन को बनाये रखता है जैव मण्डल कहलाता है। जैव मण्डल अति विशाल है और इसका अध्ययन एकल इकाई के रूप में नहीं किया जा सकता है। इसे अनेक स्पष्ट क्रियात्मक इकाइयों में विभाजित किया गया है जिन्हें पारितंत्र कहते हैं। इस पाठ में आप पारितंत्र की संरचना और कार्यों के बारे में अध्ययन करेंगे।
(क) अजैविक घटक (निर्जीव):
अजैविक घटकों को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया गया हैः
(I) भौतिक कारक (Physical factor):
सूर्य का प्रकाश, तापमान, वर्षा, आर्द्रता तथा दाब। यह पारितंत्र में जीवों की वृद्धि को सीमित और स्थिर बनाए रखते हैं।
(II) अकार्बनिक पदार्थः
कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फ़ास्फ़ोरस, सल्फर, जल, चट्टान, मिट्टी तथा अन्य खनिज।
(III) कार्बनिक पदार्थः
कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड तथा ह्यूमिक पदार्थ यह सजीव तंत्र के मूलभूत अंग हैं और इसीलिये ये जैविक तथा अजैविक घटकों के बीच की कड़ी हैं।
(I) उत्पादक (Producer):
हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पूरे पारितंत्र के लिये भोजन का निर्माण करते हैं। हरे पौधे स्वपोषी कहलाते हैं क्योंकि यह इस प्रक्रम के लिये मिट्टी से जल एवं पोषक तत्व, वायु से कार्बनडाइऑक्साइड प्राप्त करते हैं, तथा सूर्य से सौर ऊर्जा अवशोषित करते हैं।
(II) उपभोक्ता (Consumer):
यह विषमपोषी कहलाते हैं और स्वपोषियों द्वारा संश्लेषित किए गए भोजन को खाते हैं। भोजन की पसंद के आधार पर इन्हें तीन वर्गों में रखा जा सकता है। शाकाहारी (गाय, हिरन और खरगोश आदि) सीधे ही पौधों को खाते हैं। मांसाहारी वे जन्तु हैं जो अन्य जन्तुओं को खाते हैं। (उदाहरण शेर, बिल्ली, कुत्ता आदि) और सर्वाहारी जीव पौधों और जन्तुओं दोनों को खाते हैं) उदाहरण-मानव, सुअर और गोरैया)।
(iii) अपघटक (Decomposer):
इन्हें मृतपोषी भी कहते हैं। यह अधिकतर बैक्टीरिया (जीवाणु) और कवक होते हैं, जो पौधों तथा जन्तुओं के मृत अपघटित और मृत कार्बनिक पदार्थ जो सड़ रहे पदार्थों पर अपने शरीर के बाहर एन्जाइमों का स्राव करके ग्रहण करते हैं। पोषकों के चक्रण में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इन्हें अपरदभोजी (Detrivores) भी कहा जाता है।
(i) प्रकाशः
सौर विकिरण ऊर्जा उपलब्ध कराता है जो सम्पूर्ण पारितंत्र को नियंत्रित करती है। प्रकाश का भेदन पानी की पारदर्शिता या जल में निलंबित कण तथा प्लवकों (Planktons) की संख्या पर निर्भर होता है। प्रकाश के भेदन की सीमा के आधार पर तालाब को सुप्रकाशित, Euphotic (eu = वास्तविक, photic = प्रकाश) मध्य प्रकाशित (Mesophotic) तथा अप्रकाशित (Aphotic) क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। सुप्रकाशित क्षेत्र में पौधों और जन्तुओं को प्रचुर मात्रा में प्रकाश उपलब्ध रहता है। अप्रकाशी क्षेत्र में प्रकाश उपलब्ध नहीं रहता।
(ii) अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic material):
इन पदार्थों में जल, कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, कैल्शियम तथा कुछ अन्य तत्व जैसे सल्फर, फास्फोरस जो तालाब की अवस्थिति पर निर्भर हैं, सम्मिलित हैं। अकार्बनिक पदार्थ जैसे O2 तथा CO2 पानी में घुलनशील अवस्था में होते हैं। सभी पौधे और जन्तु भोजन तथा गैसों के विनिमय के लिये पानी पर निर्भर होते हैं। नाइट्रोजन, फास्फोरस, सल्फर तथा अन्य अकार्बनिक लवण तली के अवसाद में तथा सजीवों के अन्दर आरक्षित अवस्था में रहते हैं। इनकी अल्प मात्र घुलनशील अवस्था में हो सकती है।
(iii) कार्बनिक यौगिक (Organic compound):
तालाब में आमतौर से पाये जाने वाले कार्बनिक पदार्थ अमीनो अम्ल और ह्यूमिक अम्ल तथा मृत पौधों और जन्तुओं के अपघटित उत्पाद हैं। यह आंशिक रूप से पानी में घुले रहते हैं तथा आंशिक रूप से ही पानी में निलंबित रहते हैं।
(i) उत्पादक या स्वपोषी (Producer/Autotrops):
तालाब के सभी विषमपोषियों के लिये भोजन का संश्लेषण करते हैं। इन्हें दो समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता हैः-
(i) निर्गत (उद्रामी) पादप क्षेत्रः
उदाहरण- टाइफा, बुलरश तथा सैजीटेरिया।
(ii) प्लावी पत्तियों वाले जड़युक्त पादपों का क्षेत्रः
उदाहरण निम्फिया।
(iii) जल में डूबे हुए पादपों का क्षेत्रः
उदाहरण- तालाब में पायी जाने वाली खरपतवार जैसे हाइड्रिला, रूपिया, मस्क घास इत्यादि।
(II) उपभोक्ता या विषमपोषी (Consumer of Heterotrophs):
वे जन्तु जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्वपोषी जीवों से भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे टैडपोल, घोंघा, सनफिश, बास इत्यादि।
(क) जंतुप्लवक (Zooplanktons)-
ये तैरने वाले जन्तु हैं जैसे साइक्लोप्स, साइप्रिस।
(ख) तरणक (Nektons) -
वे जन्तु जो अपनी इच्छा से तैर सकते हैं जैसे मछलियाँ।
(ग) नितलस्थ प्राणी (Benthic animals) -
ये तलहटी में रहने वाले जीव हैं। उदाहरण भृंग, माइटस, घोंघे तथा कुछ क्रस्टेशियन।
(iii) अपघटकः
यह पूरे तालाब में वितरित रहते हैं परन्तु अवसाद के अन्दर बड़ी मात्र में पाए जाते हैं। ये बैक्टीरिया और कवक हो सकते हैं (राइजोपस, पेनिसिलियम) जो तालाब की तली में पाये जाते हैं।
(1) स्वपोषी (Autotrophs):
ये पारितंत्र के अन्य सभी जीवों के लिये भोजन का उत्पादन करने वाले हैं। इनमें अधिकतर हरे पादप आते हैं और अकार्बनिक पदार्थ को सौर ऊर्जा की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा रासायनिक ऊर्जा (भोजन) में परिवर्तित कर देते हैं। हरे पौधों में प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा जिस दर से विकिरण ऊर्जा संचित होती है उसे
सकल प्राथमिक उत्पादन (GPP, Gross Primary Product)
कहा जाता है। इसे कुल (पूर्ण) प्रकाश संश्लेषण अथवा कुल (पूर्ण) स्वांगीकरण भी कहा जाता है। सकल प्राथमिक उत्पादकता का एक भाग पौधों के द्वारा अपने उपापचय के लिये उपयोग कर लिया जाता है। शेष भाग पौधों के द्वारा
नेट प्राथमिक उत्पादन (NPP, Net Primary Product)
के रूप में संचित कर लिया जाता है जो उपभोक्ताओं के लिये उपलब्ध रहता है।
(2) शाकाहरी (Herbivores):
ऐसे जन्तु जो प्रत्यक्ष रूप से पौधों को खाते रहते हैं, प्राथमिक उपभोक्ता या शाकाहारी कहलाते हैं। जैसे कीड़े-मकोड़े, पक्षी, कृन्तक और जुगाली करने वाले जंतु।
(3) मांसाहारी (Carnivores):
ऐसे जन्तु जो शाकाहारी जन्तुओं का भक्षण करते हैं प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं और यदि वे मांसाहारी जन्तुओं का भक्षण करते हैं तो तृतीय उपभोक्ता कहलाते हैं। जैसे मेढक, कुत्ता, बिल्ली तथा बाघ।
(4) सर्वाहारी (Omnivores):
ऐसे जन्तु जो पौधों और जन्तु दोनों का भक्षण करते हैं। उदाहरण सुअर, भालू तथा मनुष्य।
(5) अपघटक (Decomposers):
यह प्रत्येक पोषण स्तर में जीवों के मृत अवशेषों का भक्षण करते हैं तथा पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में सहायता करते हैं। उदाहरण- जीवाणु तथा कवक।
(i) चारागाह वाली खाद्य श्रृंखलाएँ:
यह श्रृंखलाएँ उन हरे पौधों से आरम्भ होती हैं जो शाकाहारी और मांसाहारी जन्तुओं के लिये खाद्य उत्पन्न करते हैं।
(ii) अपरद खाद्य श्रृंखलाएँ:
यह श्रृंखलाएँ मृत कार्बनिक पदार्थ तथा उन मृतजीवी जीवों से आरम्भ होती हैं जो प्रोटोजोन तथा मांसाहारी जन्तुओं के लिये भोजन उत्पन्न करते हैं।
पारितंत्र में दोनों श्रृंखलाएँ परस्पर संयोजित हो जाती हैं तथा y-के आकार की खाद्य श्रृंखला बनाती हैं। ये खाद्य श्रृंखलाएँ दो प्रकार की हैं:
(i) उत्पादक → शाकाहारी → मांसाहारी
(ii) उत्पादक → अपरदहारी → मांसाहारी
(1) संख्या पिरामिड (Number Pyramid):
यह प्रत्येक पोषण स्तर में जीवों की संख्या को दर्शाता है। उदाहरण के लिये- घास के मैदान में घास की संख्या घास को खाने वाले शाकाहारी जन्तुओं की तुलना में अधिक होती है और शाकाहारी जन्तुओं की संख्या मांसाहारी जन्तुओं से अधिक होती है। कुछ मामलों में संख्या पिरामिड उल्टा भी हो सकता है अर्थात शाकाहारी, प्राथमिक उत्पादकों से अधिक होते हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं कि अनेकों इल्लियां और कीट एक ही वृक्ष से भोजन प्राप्त करते हैं।
(2) जीव द्रव्यमान पिरामिड (Biomass pyramid):
यह प्रत्येक पोषण स्तर पर खड़ी फसल के कुल जीव संहति को दर्शाता है। खड़ी फसल का जीव संहति किसी दिए हुए समय में सजीव पदार्थ की मात्र है। इसे ग्राम/यूनिट क्षेत्रफल या किलो कैलोरी/एकांक क्षेत्रफल के द्वारा व्यक्त किया जाता है। अधिकतर स्थलीय पारितंत्रों में जीव संहति का पिरामिड सीधा (upright) होता है जबकि जलीय पारितंत्रों में जीव संहति का पिरामिड उल्टा हो सकता है। उदाहरणतः तालाब में पादप प्लवक मुख्य उत्पादक है। इनका जीवन चक्र बहुत छोटा होता है। और बहुत तेजी से नए पौधे इनकी जगह ले लेते हैं। अतः किसी दिए हुए समय में इनका कुल जीव संहति इन पर आश्रित शाकाहारी जन्तुओं की तुलना में कम होता है।
(3) ऊर्जा पिरामिड (Energy Pyramid):
यह पिरामिड प्रत्येक पोषण स्तर पर ऊर्जा की कुल मात्र को दर्शाता है। ऊर्जा को किलोकैलोरी/एकांक क्षेत्र/एकांक समय (Kcal/unit area/unit time) अथवा कैलोरी/एकांक/क्षेत्र/एकांक समय (Cal/unit area/Unit time) के द्वारा व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिये किसी झील में स्वपोषी ऊर्जा 20810 किलोकैलोरी/मी/वर्ष (Kcal/m/year) है (चित्र 5-5c), ऊर्जा पिरामिड कभी भी उल्टे नहीं होते।
(1) भण्डार निकाय-
वायुमण्डल या चट्टान, जिसमें पोषक तत्वों का विपुल भंडार है।
(2) चक्रण निकाय या चक्र के उपखण्ड-
ये पौधों और जंतुओं के रूप में कार्बन के अपेक्षाकृत छोटे भंडार हैं।
अब आप कार्बन, नाइट्रोजन तथा जल जैसे भूजैवरासायनिक चक्रों के बारे में अध्ययन करेंगे।
(क) नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen fixation):
इस प्रक्रिया में गैसीय नाइट्रोजन का अमोनिया में परिवर्तन सम्मिलित है। यह अमोनिया पौधों द्वारा उपयोग में लाई जाती है। वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण निम्नलिखित तीन विधियों द्वारा सम्पन्न होता है।
(i) वायुमण्डलीय स्थिरीकरणः
बिजली का चमकना, दहन तथा ज्वालामुखीय गतिविधियाँ नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में सहायक होती है।
(ii) औद्योगिक स्थिरीकरण (Industrial fixation):
उच्च तापमान (400°C) और उच्च दाब (200 atm.) पर आण्विक नाइट्रोजन परमाण्विक नाइट्रोजन में विभाजित हो जाती है जो हाइड्रोजन से संयोग करके अमोनिया बना लेती है।
(iiii) जीवाणुओं द्वारा स्थिरीकरण (Bacterial fixation):
दो प्रकार के जीवाणु हैं:
(i) सहजीवी बैक्टीरिया जैसे दलहनी पौधों की ग्रन्थिकाओं में राइजोबियम।
(ii) मुक्तरूप या सहजीवी से रहने वाले बैक्टीरिया जैसे 1. नॉस्टॉक 2. एजेटोबेक्टर 3- साएनोबैक्टीरिया वायुमण्डलीय अथवा घुलनशील नाइट्रोजन को हाइड्रोजन के साथ संयोजित करके अमोनिया का निर्माण करते हैं।
(ख) नाइट्रीकरण (Nitrification):
यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा अमोनिया नाइट्रोसोमोनास तथा नाइट्रोकोकस जीवाणुओं द्वारा क्रमशः नाइट्रेट और नाइट्राइट में परिवर्तित हो जाती है। मृदा में पाया जाने वाला एक अन्य जीवाणु नाइट्रोबेक्टर नाइट्रेट को नाइट्राइट में परिवर्तित कर सकता है।
(ग) स्वांगीकरण (Assimilation):
इस प्रक्रिया में पौधों के द्वारा स्थिर की गयी नाइट्रोजन कार्बनिक अणुओं जैसे प्रोटीन, DNA, RNA इत्यादि में परिवर्तित की जाती है। ये अणु पौधों तथा जन्तुओं के ऊतकों का निर्माण करते हैं।
(घ) अमोनीकरण (Ammonification):
सभी जीवधारी नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थ जैसे यूरिया और यूरिक अम्ल उत्पन्न करते हैं। यह अपशिष्ट पदार्थ तथा जीवों के मृत अवशेष बैक्टीरिया के द्वारा वापस अकार्बनिक अमोनिया में परिवर्तित कर दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया अमोनीकरण कहलाती है। अमोनीकारक बैक्टीरिया इस प्रक्रिया में सहायता करते हैं।
(ड़) विनाइट्रीकरण (Denitrification):
नाइट्रेट का पुनः गैसीय नाइट्रोजन में परिवर्तित होना विनाइट्रीकरण कहलाता है। विनाइट्रीकरण जीवाणु मिट्टी के अन्दर गहराई में जल तालिका (Water level) के निकट रहते हैं क्योंकि यह ऑक्सीजन मुक्त माध्यम में रहना पसंद करते हैं। विनाइट्रीकरण, नाइट्रोजन स्थिरीकरण की विपरीत प्रक्रिया है।
5.1
1. भौतिक, अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ।
2. उत्पादक, उपभोक्ता तथा अपघटक।
3. ये मृत कार्बनिक पदार्थ तथा मृत पौधों और जन्तुओं के अपघटन में सहायता करते हैं अतः ये पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
4. (i) तालाब, झील, वन (कोई भी दो)।
(ii) कृषि, जलकृषि।
5.2
1. एक जलीय पारितंत्र में सूक्ष्मदर्शीय तैरने वाले पादप।
2. तालाब की तलहटी में।
3. जन्तुप्लवक स्वतंत्र रूप से तैरने वाले जीव हैं जबकि नेक्टॉन जलीय जन्तु हैं जो अपनी इच्छा से तैर सकते हैं।
4. नितलस्थ जन्तु जैसे भृंग, माइट, घोंघे और क्रस्टेशियन मिलकर।
5.3
1- घास → चूहा → सांप → गिद्ध → वन → हिरन → बाघ
2- खाद्य जल - किसी क्षेत्र की खाद्य श्रृंखलाएँ परस्पर संयोजित होकर खाद्य-जाल बनाती हैं।
3. संख्या पिरामिड, वृक्ष के या तालाब के उदाहरण द्वारा।
4. ऊर्जा पिरामिड
5.4
1. 10% का नियम पारिस्थितिक दक्षता से सम्बन्धित है। इस नियम के अनुसार प्रत्येक पोषण स्तर पर स्थानांतरित होने वाली ऊर्जा पूर्ववर्ती पोषण स्तर का केवल 10% होती है।
2.
3. पारितंत्र के विभिन्न जीवों की अन्योन्यक्रियाओं और पोषण सम्बन्धों को समझने में सहायक होता है।
5.5
1. तलछट चक्र एक प्रकार का भूजैवरासायनिक चक्र है जहाँ मुख्य भंडार भूपर्पटी है।
2. नाइट्रोजन (N2) और कार्बन
3. वनों के वृक्षों की आयु लंबी होती है और फिर भी उनके द्वारा कार्बन स्थिरीकरण का चक्र काफी धीमा होता है।
4. राइजोबियम
5. जल वाष्प का संघनित होकर बादल बनना।