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पुस्तक परिचय : 'बरगी की कहानी'

विकास संवाद समूह

प्रस्तावना

कहाँ गये चावल गेहूँ, दलहन-तिलहन के दाने ।
कागज का रुपया रोया, सुनना पड़ता है ताने।
हर सीढ़ी छोटी पड़ती है, भाव चढ़े मनमाने।
सबरी कलई उतर गई है, सभी गये पहचाने।
कहाँ गये चावल गेहूँ, दलहन-तिलहन के दाने । - बाबा नागार्जुन
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