नयन की रसधारसुरभि के संस्पर्श मेंकहती पुकार-पुकार-मैं नदी, तुम कूल-तरुनिर्मूल दूर-विचारभेद नव होना असंभवजब तुम्हीं आधारकर लो धार का उद्धार।