बदलियों में पानी घट रहानदियों में प्रवाहबातें भी अब कहाँ रहींअथाह(उथलापन बार-बार दिखता चरित्र है!) घाटों पर निरापद न रही प्यासउतार पर है आँख का पानीबेआब झीलएक पूरा शहर उदास करती है!
बदलियों में पानी घट रहानदियों में प्रवाहबातें भी अब कहाँ रहींअथाह(उथलापन बार-बार दिखता चरित्र है!) घाटों पर निरापद न रही प्यासउतार पर है आँख का पानीबेआब झीलएक पूरा शहर उदास करती है!