अंतर्निहित है जल और जलवायु रिश्ता 
जलवायु परिवर्तन

अंतर्निहित है जल और जलवायु रिश्ता

जाने वैश्विक जलवायु परिवर्तन से जल सरक्षंण की बढ़ी चुनौतियां | Know about the increased challenges of water conservation due to global climate change.

Author : भरत शर्मा

मानव जाति सबसे खराब कोविड-19 तबाही का सामना कर रही है, जो प्रथम दृष्टया  स्वयं की मूढ़ता से तैयार हुआ और अब हर देश इससे निपटने के लिए अपने संबंधित कौशल का इस्तेमाल कर रहा है। अब तक भारत ने इससे निपटने के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है। लेकिन यहां पर लंबे समय के लिए जल की कमी और वैश्विक जलवायु परिवर्तन की ज्यादा गंभीर चुनौतियां हैं। पानी की बढ़ती मांग ने भूजल पंपिंग के उपयोग को बढ़ा दिया है। 2 करोड़ 20 लाख कुओं से हर साल 250 घन किलोमीटर पानी को पंप किया जा रहा है जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा और सबसे कम टिकाऊ है। हर साल चेन्नई, शिमला, बेंगलुरु और लातूर में जल संकट और दूसरी ओर केरल, कश्मीर, गुजरात, असम और बिहार में बाढ़ जैसी घटनाएं लगातार व्यापक और तीव्र होती जा रही हैं। भारत में बाढ़ के कारण वार्षिक करीब 51,800 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।

भारत में ताजे पानी का 80 फीसद से अधिक कृषि उपयोग में आता है। देश की कृषि योग्य भूमि का अनुमानित 70 फीसद हिस्सा सूखा, 12 फीसद बाढ़ और आठ फीसद चक्रवात से जूझ रहा है। जलवायु परिवर्तन से कृषि आय में 15 से 18 फीसद और वर्षा आधारित क्षेत्रों में 20 से 25 फीसद तक की कमी आ सकती है, जिससे उच्च मुद्रास्फीति, ग्रामीण क्षेत्रों में संकट और  यहां तक कि राजनीतिक तनाव का सबब भी बनती है। कृषि उत्पादन भी जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है, इस हिसाब से भारत में कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 18 फीसद है। जब हम कृषि में खपत होने वाली बिजली, डीजल और उर्वरकों से जुड़े उत्सर्जन को जोड़ते हैं तो यह आंकड़ा 27 फीसद तक पहुंच जाता है। राष्ट्रीय और राज्य स्तर की जलवायु नीति और योजना को जलवायु परिवर्तन और जल प्रबंधन को एकीकृत दृष्टिकोण में रखना चाहिए।

घरेलू स्तर पर नागरिकों को पानी का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करना चाहिए और कम से कम पानी का दुरूपयोग कम करना चाहिए। खेती के स्तर पर किसानों को जलवायु के लिए खेती की लिए बेहतर चीजों को अपनाना चाहिए और ज्यादा पैदावार का उत्पादन करना चाहिए। स्थानीय स्तर पर, उद्योगों को नियमित रूप से वाटर ऑडिट कराते रहना चाहिए और उत्पादन के प्रति इकाई वाटर फुट-प्रिंट को मापना चाहिए। तालाबों, गड्ढों और छतों पर जल संचयन के लिए काम करें और फसलों के चक्र को पानी की उपलब्धता के अनुसार बदलें। राज्य स्तर पर, सभी क्षेत्रों- घरेलू, उद्योगों, कृषि और पर्यावरण में जल प्रबंधन को वर्षा, सतह, जमीन और अपशिष्ट जल के सामंजस्यपूर्ण उपयोग के लिए एकीकृत किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर, सब्सिडी नीति को पुनः बनाने की आवश्यकता है, खरीद नीति को सभी क्षेत्रों में किसानों और उद्योगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। सभी क्षेत्रों में जल-उपयोग दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन की चुनौती के सामने पानी की कमी के प्रबंध के लिए निर्माण क्षमता और सभी स्तरों पर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है।

लेखक- भरत शर्मा वह एमेरिटस, अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान, नई दिल्ली में वैज्ञानिक है

स्रोत-

SCROLL FOR NEXT