साल 2025 को जलवायु इतिहास में एक और टर्निंग पॉइंट के रूप में देखा जाएगा। यह वह साल रहा जब दुनिया भर में मौसम घटनाएँ अपने चरम पर रहीं। जंगलों की आग, रिकॉर्डतोड़ बाढ़, विनाशकारी चक्रवात, सूखा और हीटवेव, जैसी आपदाओं ने न केवल हज़ारों जानें लीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी अरबों डॉलर का नुकसान पहुँचाया। इन नुकसान से भारत भी अछूता नहीं रहा। भारत में विनाशकारी आपदाओं का प्रभाव न केवल इंफ्रास्ट्रक्चर पर पड़ा बल्कि देश का कृषि उत्पादन भी प्रभावित हुआ।
इसी पृष्ठभूमि में वैश्विक संगठन क्रिश्चियन एड ने अपनी एक रिपोर्ट “Counting the Cost 2025: A Year of Climate Breakdown” जारी की है। इस रिपोर्ट में 2025 की दस सबसे महंगी और प्रभावशाली जलवायु आपदाओं का विश्लेषण किया गया है। यह रिपोर्ट केवल आर्थिक नुकसान की गणना नहीं करती, बल्कि यह भी दिखाती है कि जलवायु परिवर्तन से पैदा हो रही इन आपदाओं का बोझ किस तरह आम लोगों, खासकर विकासशील देशों पर पड़ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में सबसे महंगी जलवायु आपदा अमेरिका के लॉस एंजिलिस क्षेत्र में लगी जंगलों की आग रही, जिससे 60 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। इसके बाद दक्षिण और दक्षिण–पूर्व एशिया में आए चक्रवातों और बाढ़ ने लगभग 25 अरब डॉलर की क्षति पहुँचाई।
चीन में जून से अगस्त के बीच आई बाढ़, कैरेबियन क्षेत्र में श्रेणी-5 के बराबर का तूफान, फिलीपींस में लगातार आए टाइफून, ब्राज़ील का भीषण सूखा, ये सभी घटनाएँ इस बात का संकेत हैं कि जलवायु संकट अब किसी एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं है।
इस वैश्विक सूची में भारत और पाकिस्तान का मानसूनी संकट भी शामिल किया गया है, क्योंकि यहाँ नुकसान सिर्फ पैसों में नहीं, बल्कि जीवन, आजीविका और सामाजिक ढाँचे में मापा जाता है।
| अवधि / महीना | घटना | स्थान | आपदा का प्रकार | मृत्यु संख्या | अनुमानित आर्थिक नुकसान |
| जनवरी | पैलिसेड्स और ईटन आग | संयुक्त राज्य अमेरिका (लॉस एंजिलिस क्षेत्र) | जंगलों की आग (Wildfire) | 31 प्रत्यक्ष मौतें; बाद के अध्ययन में लगभग 400 अतिरिक्त मौतें | 60 अरब डॉलर से अधिक |
| नवंबर | दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशिया चक्रवात | थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, वियतनाम, मलेशिया | चक्रवात, अत्यधिक मानसूनी वर्षा, बाढ़ | 1,750 से अधिक | लगभग 25 अरब डॉलर |
| जून–अगस्त | बाढ़ | चीन | अत्यधिक वर्षा और बाढ़ | 30 से अधिक | 11.7 अरब डॉलर |
| मध्य–अंत 2025 | हरिकेन मेलिसा | जमैका, क्यूबा, बहामास | हरिकेन (श्रेणी-5 के बराबर) | अंतिम आँकड़े उपलब्ध नहीं | लगभग 8 अरब डॉलर |
| जून–सितंबर | बाढ़ | भारत और पाकिस्तान | अत्यधिक मानसूनी वर्षा, बाढ़, भूस्खलन | 1,860 से अधिक | लगभग 5.6 अरब डॉलर |
| मध्य वर्ष–नवंबर | टाइफून | फिलीपींस | टाइफून और उष्णकटिबंधीय तूफ़ान | सैकड़ों | 5 अरब डॉलर से अधिक |
| जनवरी–जून | सूखा | ब्राज़ील | सूखा | निर्दिष्ट नहीं | 4.75 अरब डॉलर |
| फरवरी | पूर्व-उष्णकटिबंधीय चक्रवात अल्फ्रेड | ऑस्ट्रेलिया | उष्णकटिबंधीय चक्रवात | 1 | 1.2 अरब डॉलर |
| फरवरी | चक्रवात गरांस | रीयूनियन द्वीप (पूर्वी अफ्रीका) | उष्णकटिबंधीय चक्रवात | 5 | 1.05 अरब डॉलर |
| जुलाई | टेक्सास बाढ़ | संयुक्त राज्य अमेरिका | अत्यधिक वर्षा और अचानक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) | 135 से अधिक | लगभग 1 अरब डॉलर |
नोट- टेबल में दी गई कीमत अमेरिकी डॉलर में है।
रिपोर्ट बताती है कि 2025 में भारत और पाकिस्तान ने असाधारण रूप से भारी मानसून का सामना किया। भारत में मानसून की शुरुआत ही असामान्य रही। मई का महीना अब तक का सबसे अधिक वर्षा वाला मई दर्ज हुआ। सितंबर तक देश में औसत से 8% अधिक वर्षा हो हुई और पूरे मानसून काल में 2,277 से अधिक बाढ़ और भारी बारिश की घटनाएँ दर्ज की गईं।
इस मानसूनी तबाही में भारत और पाकिस्तान मिलाकर 1,860 से अधिक लोगों की मौत हुई। खासकर हिमालयी और पहाड़ी राज्यों में बादल फटना, अचानक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) और भूस्खलन से भारी नुकसान हुआ। इन घटनाओं ने हालात को और भयावह बना दिया। नदियाँ उफान पर आ गईं, हज़ारों गाँव और कस्बे जलमग्न हो गए और लाखों लोग अस्थायी राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हुए।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत–पाकिस्तान में मानसून से जुड़ा कुल आर्थिक नुकसान लगभग 5.6 अरब अमेरिकी डॉलर आँका गया। इसमें:
कृषि फसलों को भारी क्षति
सड़क, पुल और अन्य बुनियादी ढाँचों का नुकसान
शहरी क्षेत्रों में जलभराव से व्यापारिक गतिविधियों का ठप होना
शामिल है। यह आंकड़ा वास्तविक नुकसान से कम भी हो सकता है, क्योंकि भारत जैसे देशों में बीमा कवरेज सीमित है और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के नुकसान अक्सर दर्ज नहीं हो पाते।
भारत के संदर्भ में इस मानसून का सबसे गंभीर प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ा। कृषि भारत की GDP का लगभग 18% योगदान देती है। यह करोड़ों किसानों और मज़दूरों की आजीविका का आधार है।
अत्यधिक और असमय वर्षा के कारण कई इलाकों में:
फसलें जलमग्न हो गईं
बुआई और कटाई चक्र प्रभावित हुआ
उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई
इसका सीधा असर ग्रामीण आय, खाद्य सुरक्षा और महँगाई पर पड़ता है—जो अंततः शहरी उपभोक्ताओं तक भी पहुँचता है।
रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है कि यह केवल “खराब मानसून” नहीं था। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार:
गर्म होते महासागर अधिक वाष्पीकरण करते हैं
गर्म वातावरण अधिक नमी धारण कर सकता है
नतीजतन, कम समय में अत्यधिक वर्षा होती है
एक अहम निष्कर्ष यह है कि हर 1°C वैश्विक तापवृद्धि पर मानसूनी वर्षा लगभग 5% तक बढ़ सकती है। यानी अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगी, तो भविष्य में ऐसे मानसून और अधिक विनाशकारी हो सकते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका जैसे देशों में आपदाओं का आर्थिक नुकसान बहुत बड़ा दिखता है, क्योंकि वहाँ:
बीमा कवरेज अधिक है
हर नुकसान को आर्थिक मूल्य में मापा जाता है
वहीं भारत में:
जान-माल का नुकसान अधिक होता है
वास्तविक आर्थिक क्षति का बड़ा हिस्सा आँकड़ों में दर्ज नहीं हो पाता है
भारत में की आपदाएं लोगों की आजीविका, सामाजिक जीवन और आर्थिक स्थिति पर दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ते हैं
इससे यह स्पष्ट होता है कि जलवायु संकट का सबसे बड़ा बोझ उन्हीं देशों पर पड़ रहा है, जिन्होंने इस संकट में सबसे कम योगदान दिया है।
रिपोर्ट काउंटिंग द कोस्ट 2025 यह स्पष्ट करती है कि जलवायु परिवर्तन की कीमत अब केवल भविष्य की चेतावनी नहीं, बल्कि वर्तमान की वास्तविकता है। भारत में 2025 का मानसून एक चेतावनी है कि यदि विकास, पर्यावरण और जलवायु नीतियों के बीच संतुलन नहीं बनाया गया, तो आने वाले वर्षों में यह कीमत और बढ़ेगी। यह प्रभाव लोगों के जीवन के साथ-साथ उनकी आजीविका और देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है। अब सवाल यह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है या नहीं, बल्कि यह है कि हम इससे निपटने के लिए कितनी जल्दी और कितनी गंभीरता से कदम उठाते हैं।