global warming 
जलवायु परिवर्तन

ग्लोबल वार्मिंग का धरती पर प्रभाव

Author : मयंक श्रीवास्तव

यदि वर्तमान गति से पर्यावरण प्रदूषण जारी रहा तो आने वाले 75 वर्षों में पृथ्वी के तापमान में 3-60C की वृद्धि हो सकती है। जिसके बर्फ के पिघलने से समुद्री जल-स्तर में 1 से 1.2 फीट तक की वृद्धि हो सकती है और मुम्बई, न्यूयार्क, पेरिस, लन्दन, मालदीव, हालैण्ड और बांग्लादेश जैसे देशों के अधिकांश भूखण्ड समुद्र में जलमग्न हो सकते हैं।पर्यावरण जैव मण्डल का आधार है, लेकिन औद्योगिक क्रान्ति के बाद से विकास की जो तीव्र प्रक्रिया अपनाई गई है उसमे पर्यावरण के आधारभूत नियमों की अवहेलना की गई जिसका परिणाम पारिस्थितिक असन्तुलन एवं पर्यावरणीय निम्नीकरण के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित है। आज विश्व के विकसित देश हो अथवा विकासशील देश, कोई भी पर्यावरण प्रदूषण के कारण उत्पन्न गम्भीर समस्या से अछूता नहीं है। 1970 के दशक में ही यह अनुभव किया गया कि वर्तमान विकास की प्रवृति असन्तुलित है एवं पर्यावरण की प्रतिक्रिया उसे विनाशकारी विकास में परिवर्तित कर सकती है। तब से लेकर वर्तमान वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय निम्नीकरण की समस्या के समाधान हेतु कई योजनाएँ प्रस्तुत की गई, समाधानमूलक उपायों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ। बावजूद इसके वास्तविक उपलब्धियाँ अति न्यून ही रही।

तो उसका तात्पर्य यह निकाला जाए कि वैश्विक स्तर पर ईमानदार प्रयास नहीं किए गए। साथ ही विभिन्न राष्ट्रों नें राष्ट्रीय आर्थिक विकास को कहीं अधिक महत्वपूर्ण माना एवं पर्यावरणीय असन्तुलन के प्रति उदासीन बने रहे। उन तथ्यों की समीक्षा से पूर्व आवश्यकता है कि संक्षेप में उन समस्याओं पर विचार किया जाए जो पर्यावरणीय प्रदूषण को उत्पन्न कर रही हैं एवं जिनके कारण सम्पूर्ण जैव जगत के समक्ष गम्भीर चुनौती उत्पन्न हो गई है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्रकृति में बदलाव आ रहा है। कहीं भारी वर्षा तो कहीं सूखा, कहीं लू तो कहीं ठंड। कहीं बर्फ की चट्टानें टूट रही हैं तो कहीं समुद्री जल-स्तर में बढ़ोत्तरी हो रही हैं। आज जिस गति से ग्लेशियर पिघल रहे हैं इससे भारत और पड़ोसी देशों को खतरा बढ़ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग से फसल चक्र भी अनियमित हो जाएगा इससे कृषि उत्पादकता भी प्रभावित होगी। मनुष्यों के साथ-साथ पक्षी भी इस प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग पक्षियों के दैनिक क्रिया-कलाप और जीवन-चक्र को प्रभावित करता है।

ग्लोबल वार्मिंग में सर्वाधिक योगदान CO2 का है। 1880 से पूर्व वायुमण्डल में CO2 की मात्रा 280 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) थी जो आज आईपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार 379 पीपीएम हो गई है। CO2 की वार्षिक वृद्धि दर गत वर्षों में (1995-2005) 1.9 पीपीएम वार्षिक है। आईपीसीसी ने भविष्यवाणी की है कि सन् 2100 आते-आते इसके तापमान में 1.1 से 6.40C तक बढ़ोत्तरी हो सकती है। सदी के अन्त तक समुद्री जल-स्तर में 18 से 58 से.मी. तक वृद्धि की सम्भावना है।

आईपीसीसी की रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गई है कि समस्त विश्व के पास ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिए मात्र 10 वर्ष का समय और है। यदि ऐसा नहीं होता है तो समस्त विश्व को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2080 तक 3.80 अरब लोगों को पानी उपलब्ध नहीं होगा। 60 करोड़ लोग भूखे मरेंगे। खासकर के इससे अल्प विकसित देशों को हानि होगी। अल्पाइन क्षेत्रों और दक्षिणी अमेरिका के आमेजन वन के समाप्त हो जाने की सम्भावना है। प्रशान्त क्षेत्र के कई द्वीप जलमग्न हो जाएँगे। वायुमण्डल के इस प्रकार के परिवर्तन को रेडिएटिव फोर्सिंग द्वारा मापा जाता है। आईपीसीसी के प्रमुख आर.के. पचौरी ने जलवायु परिवर्तन के लिए निम्न कारकों को उत्तरदायी बताया है :

1. औद्योगीकरण (1880) से पूर्व CO2 की मात्रा 280 पीपीएम थी जो अब (2005 के अन्त में) बढ़कर 379 पीपीएम हो गई है।
2. औद्योगीकरण के पूर्व मीथेन की मात्रा 715 पार्ट्स पर बिलियन (पीपीबी) थी और 2005 में बढ़कर 1734 पीपीबी हो गई है।
3. मीथेन की सान्द्रता में वृद्धि के लिए कृषि एवं जीवाश्म ईन्धन को उत्तरदायी माना गया है।
4. उपरोक्त वर्षों में नाइट्रस ऑक्साइड की सान्द्रता क्रमशः 270 पीपीबी से बढ़कर 319 पीपीबी हो गई है।
5. समुद्री तापमान में भी 3000 मि.मी. वृद्धि हुई है।
6. समुद्री जल-स्तर में वृद्धि 1961 के मुकाबले 2003 में औसत वृद्धि 1.8 मि.मी. हुई है।
7. पिछले 100 वर्षों में अण्टार्कटिका के तापमान में दोगुना वृद्धि हुई है तथा इसके बर्फीले क्षेत्रफल में भी कमी आई है।
8. मध्य एशिया, उत्तरी यूरोप, दक्षिणी अमेरिका आदि में वर्षा की मात्रा में वृद्धि हुई है तथा भूमध्य सागर, दक्षिणी एशिया और अफ्रीका में सूखा में वृद्धि दर्ज की गई है।
9. मध्य अक्षांशों में वायु प्रवाह में तीव्रता आई है।
10. उत्तरी अटलाण्टिक से उत्पन्न चक्रवातों की संख्या में वृद्धि हुई है।

आईपीसीसी की रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गई है कि समस्त विश्व के पास ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिए मात्र 10 वर्ष का समय और है। यदि ऐसा नहीं होता है तो समस्त विश्व को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।

कुछ वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि वैश्विक तापन से पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने की गति में लगातार कमी होती जा रही है। जर्मनी के वैज्ञानिकों के एक शोध के अनुसार भविष्य में पैदा होने वाली सन्तान में लड़कों की संख्या बढ़ेगी जिसका कारण लड़कों का लिंग निर्धारण करने वाले Y-गुण सूत्र में गर्मी को सहन करने की क्षमता अधिक होती है। अभी तक के इतिहास में 1990 का दशक सर्वाधिक गर्म रहा।

आइए अब हम वायुमण्डलीय प्रदूषण के कारणों की चर्चा करते है जिसमें ग्रीन हाउस प्रभाव और ओजोन क्षरण मुख्य है।

वर्ष 2004 में

CO2

की मात्रा

देश
CO2 की मात्रा (बिलियन टन प्रति वर्ष)
प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष (टन में)
अमेरिका
5.9
23.6
चीन
4.7
1.0
रूस
1.7
4.7
जापान
1.3
10
भारत
1.1
1

ग्लोबल वार्मिंग में विभिन्न देशों का योगदान (प्रति वर्ष में)

संयुक्त राज्य अमेरिका
30.3
यूरोप
27.7
सोवियत संघ
13.7
भारत, चीन और विकासशील एशिया
12.2
दक्षिण और मध्य अमेरिका
3.8
जापान
3.7
पश्चिम एशिया
2.6
अफ्रीका
2.5
ऑस्ट्रेलिया
1.1
कनाडा
2.3

ग्रीन हाउस प्रभाव

2
2
2
4
2
3
0

ग्लोबल वार्मिंग के संकेत

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव

ग्लोबल वार्मिंग कम करने के उपाय

2

ओजोन क्षरण

3
2
3

क्र.सं.

वायु प्रदूषण

प्राथमिक अथवा द्वितीयक

मुख्य स्रोत

1.
ओजोन (O3)
द्वितीयक पदार्थ
वायुमण्डलीय परिवर्तन से उत्पन्न जो स्वयं चालित वाहनों से उत्सर्जित नाइट्रोजन डाइऑक्साइड व हाइड्रो-कार्बन के प्रति क्रिया से उत्पन्न पदार्थ।
2.
सल्फर डाइऑक्साइड (SO2)
प्राथमिक पदार्थ
फैक्ट्रियों में ऊर्जा उत्पादक यन्त्रों/मशीनों अथवा किसी ठोस पदार्थों के पिघलाने वाले संयन्त्र से उत्पन्न।
3.
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2)
 प्राथमिक/द्वितीयक पदार्थ
उच्च तापक्रम पर उत्पन्न ज्वलन प्रक्रिया के उपरान्त सीधे उत्पन्न या वायुमण़्डलीय परिवर्तन द्वारा उत्पन्न अथवा उर्वरक के संयन्त्रों/उत्पाद द्वारा उत्सर्जित।
4.
हाइड्रोजन फ्लोराइड (HF)
प्राथमिक पदार्थ उत्पन्न
सुपर फॉस्फेट, एल्यूमिनियम गलन के दौरान।
5.
इथिलीन
प्राथमिक पदार्थ
ज्वलनशील प्रक्रिया अथवा प्राकृतिक उत्पाद।
6.
नाइट्रस ऑक्साइड (NO)
प्राथमिक पदार्थ
ज्वलनशील प्रक्रिया अथवा प्राकृतिक उत्पाद।
7.
क्लोरीन (Cl2)
प्राथमिक पदार्थ
द्रव्य बहाव/निर्माण से उत्पन्न द्रव्य।
8.
हाइड्रोजन क्लोराइड
प्राथमिक पदार्थ
प्लास्टिक पदार्थों के ज्वलन से उत्पन्न पदार्थ।
9.
विषैला पदार्थ
प्राथमिक पदार्थ
पिघलन एवं ज्वलन प्रक्रिया से उत्पन्न पदार्थ।
10.
अमोनिया
प्राथमिक पदार्थ
प्राकृतिक रूप से उत्पन्न अथवा चारे समुच्चय के सड़न से पैदा।
11.
सल्फेट
द्वितीयक पदार्थ
सल्फर डाइऑक्साइड के परिवर्तन से उत्पन्न।
12.
हाइड्रोजन फैरा ऑक्साइड
प्राथमिक पदार्थ
अखबार/पेपर उत्पाद मशीनों से उत्पन्न।
13.
नाइट्रेट
द्वितीयक पदार्थ
प्राकृतिक रूप से उत्पन्न या ज्वलनशील प्रक्रिया से उत्पन्न।
14.
कार्बन डाइऑक्साइड
प्राथमिक पदार्थ
वायुमण्डलीय परिवर्तन से उत्पन्न या स्वयं चालित वाहनों से निकले NO2 व हाइड्रो-कार्बन के प्रतिक्रिया से उत्पन्न पदार्थ।

वातावरण में तीव्र परिवर्तन की तुलना में उदासीन प्रयास

0

समस्या

“अब समय आ गया है कि हम अपनी मूर्खता से बाहर निकलें और निश्चित करें कि हमें तीव्र विकास चाहिए या पर्यावरणीय सुरक्षा।”



अभी हाल ही में पेरिस में एक सम्मेलन में ग्लोबल वार्मिंग की रोकथाम के लिए 46 राष्ट्रों का संगठन बना है। इसमें विश्व के चार अधिक प्रदूषित देश – अमेरिका, चीन, रूस, भारत शामिल नहीं हुए। आखिर हम चाहते क्या हैं। कुछ दिन बाद जब हमारे सामने से सभी विकल्प उठ जाएँगे तब हम पछताएँगे, अभी हमें यह बात हँसाने वाली लगती है।

ग्लोबल वार्मिंग कोई सैद्धांतिक शब्द नहीं है जिसे किताबों मे पढ़ लिया और फिर दिमाग से निकाल दिया। इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा जन जागरुकता फैलाई जानी जाहिए। इको-फ्रेण्डली तकनीकी का विकास किया जाना चाहिए। हमने एक ग्रामीण से कहा कि चलो ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए कुछ उपाय करें तो ग्रामीण का जवाब था- “हमें क्या मिलेगा जैसे सब जी रहे हैं वैसे हम भी।” इस कथन से जन जागरुकता की कमी झलकती है जो सरकार द्वारा अभियान चला कर दूर की जा सकती है।

पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में कुछ प्रयास

(लेखक पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के जानकार हैं)


ई-मेल : mayank_129@rediffmail.com

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