प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 30 जून 2008 को नर्इ दिल्ली में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना का शुभारम्भ किया। राष्ट्रीय कार्ययोजना में “निर्वाह योग्य विकास” (Sustainable Development) के भारत के दृष्टिकोण और उन कदमों को शामिल किया गया है जो इसे प्रभावपूर्ण ढंग से क्रियान्वित करने के लिए उठाने चाहिए।
राष्ट्रीय कार्ययोजना आठ प्राथमिकता वाले राष्ट्रीय मिशनों पर ध्यान केंद्रित करती है। जिनका विवरण निम्नवत है।
1- सौर ऊर्जा (Solar Energy)
2- ऊर्जा क्षमता बढ़ाना (Energy Efficiency)
3- टिकाऊ विकास (Sustainable Development)
4- जल संरक्षण (Water Conservation)
5- हिमालयी पारिस्थतिकीय तंत्र को टिकाऊ बनाना।
6- ग्रीन इंडिया (Green India)
7- टिकाऊ कृषि (Sustainable Agriculture)
8- जलवायु परिवर्तन के ज्ञान का रणनीतिक मंच
इसके अंतर्गत कुछ ऊर्जा प्रयोग में सूर्य ऊर्जा की भागीदारी बढ़ाना तथा परमाणु ऊर्जा, पवन ऊर्जा, एवं बायोमास ऊर्जा जैसे पुनर्नवीनीकरणीय व नान फासिल ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता को महत्व प्रदान करना है। ज्ञातव्य है कि भारत एक उष्ण कटिबंधीय राष्ट्र है जो सौर विकिरण के माध्यम से प्रतिवर्ष 5000 ट्रिलियन किलोवाट घंटा ऊर्जा प्राप्त करता है। स्पष्ट है कि सौर ऊर्जा का विकल्प देश के लिए ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति की संभावनाओं का द्वार खोल सकता है। तेरहवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत अर्थात 2022 तक 20,000 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य है। दिनांक 11 जनवरी 2010 को दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रधानमंत्री ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन का उद्घाटन करते हुए सौर ऊर्जा को ऊर्जा का अक्षय और असीम स्रोत बताने के साथ नि:शुल्क स्रोत बताया और कहा कि देश की ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए इसका भरपूर उपयोग करना चाहिए। उन्होंने सौर ऊर्जा को ऊर्जा का मुख्य स्रोत बनाने के लिए इसके इस्तेमाल को कम खर्चीला बनाने तथा लंबे समय तक इसका भण्डारण सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया। सौर ऊर्जा के दोहन में सबसे बड़ी समस्या यही है कि प्रारंभिक लागत काफी ज्यादा होती है।
ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 ऊर्जा क्षमता ब्यूरो (Bureau Of Energy Efficiency) के संस्थागत व्यवस्था के माध्यम से ऊर्जा क्षमता में संवृद्धि के लिए मानदण्डों के क्रियान्वयन हेतु विधिक आदेश प्रदान करता है। चार नए पहल जिसके अंतर्गत एक बाजार आधारित मैकेनिज्म जिससे लागत प्रभावकारिता में वृद्धि हो, का विकास शामिल है। शहरी तथा औद्योगिक कचरे से ऊर्जा उत्पन्न करने की तकनीक तथा वेस्ट मैनेजमेंट का विकास करना। ज्ञातव्य है कि इस क्षेत्र में योजनाओं एवं कार्यक्रमों के पहल से 11वीं पंचवर्षीय योजना के अन्त (2012) तक 10,000 मेगावाट ऊर्जा की बचत की जा सकेगी।
भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से यह मिशन आरम्भ किया जाएगा। इसके अंतर्गत नर्इ किस्मों की फसल जो ऊष्मा व बुरे मौसम के कुप्रभावों से स्वयं को बचा सके तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक रोधी हो विकसित करना होगा।
एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करने, जल संरक्षण में सहायता, जल क्षति को न्यूनतम करने तथा देश के अंदर जल के सम वितरण के उद्देश्य से जल संरक्षण मिशन प्रारम्भ किया गया है। नियामक मशीनरी के अंतर्गत अधिकतम जल प्रयोग का एक फ्रेमवर्क का विकास किया जाएगा ज्ञातव्य है कि भारत में जलसंकट 2050 तक गहरा जाने की आशंका है।
इसमें हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की गति कम करने के लिए तथा पर्वतीय पारिस्थितिकी को संतुलित करने के लिए सुरक्षा उपायों को विकसित किया जाएगा।
वनीकरण में वृद्धि हेतु सीधी कार्यवाही के लिए यह मिशन प्रारम्भ किया जा रहा है। इसमें पारिस्थितिकी सेवाओं (कार्बन सिंक्स सहित) का विस्तार किया जाएगा। जिससे 2012 तक 33 प्रतिशत वनीकरण का लक्ष्य प्राप्त हो सके। देश के 10 मिलियन हेक्टेयर भूमि क्षेत्र में फैले वनों की गुणवत्ता सुधारने के लिए महत्वाकांक्षी ग्रीन इंडिया मिशन की शुरूआत की गई है।
ग्रीन इंडिया मिशन के अंतर्गत 50 लाख हेक्टेयर भूमि को नए जंगलों की चादर से ढंकने का लक्ष्य रखा गया है। ग्रीन इंडिया मिशन वनों से जुड़े तीस लााख परिवारों के जीवन स्तर को सुधारने में भी सहायक होगा। अगले दशक में इस मिशन में 46 हजार करोड रुपए विभिन्न योजनाओं में व्यय होगा। केन्द्र और राज्य की साझेदारी में इस योजना का दो तिहार्इ हिस्सा केन्द्र का होगा और इस मिशन के क्रियान्वयन की निगरानी का खाका भी तैयार किया गया है।
भवनों ऊर्जा क्षमता के सुधार, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन तथा लोग यातायात के प्रकार में परिवर्तन के उद्देश्य से टिकाऊ आवास मिशन ( (Sustainable Habitat) आरम्भ किया गया है। इसके अंतर्गत एक महत्वपूर्ण अनुसंधान व विकास कार्यक्रम का संचालन, बायोकेमिकल कन्वर्जन, वेस्ट वाटर यूज, सीवेज यूटिलाइजेशन तथा रिसाइक्लिंग विकल्पों पर विचार किया जाएगा।
यह मिशन जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों की पहचान करेगा तथा समाधान भी खोजेगा। यह मिशन उच्च गुणवत्ता के तथा चुनौतियों पर केंद्रित अनुसंधान के लिए कोष की उपलब्धि सुनिश्चित करेगा।
सभी आठ मिशन संबंधित मंत्रालयों द्वारा स्थापित किए जाएंगे। संयोजन अंतरक्षेत्रीय दल द्वारा किया जाएगा जिसमें संबंधित मंत्रालय के साथ-साथ वित मंत्रालय, योजना आयोग, उद्योगों के विशषज्ञ, शिक्षाविद एवं नागरिक समाज के लोग शामिल होंगे। प्रत्येक मिशन में निर्धारित लक्ष्य को ग्यारहवीं योजना के शेष वर्षों तथा 12वीं योजना काल 2012-13 से 2016-17 के दौरान हासिल करने का प्रयास किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि मिशन क्रियान्वयन की शीर्ष संस्था जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद होगी।
एक सतर्क दीर्घ अवधि रणनीति के बिना जलवायु परिवर्तन हमारे विकास के प्रयासों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जिससे लोगों की आजीविका और जीवन के मानदण्डों पर विपरीत परिणाम होंगे यह एक ऐसी चुनौती भी है जिसने वर्तमान एवं भविष्य दोनों के हितों को घेर रखा है। मनुष्य की आर्थिक गतिविधि के माध्यम से वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के जमा होने के कारण उत्पन्न जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के लिए खतरा बन गया है। विकास के विस्तृत दृष्टिकोण के तहत जीवन की गुणवत्ता को लक्ष्य बनाकर इस कार्ययोजना के माध्यम से जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण का प्रयास किया जाएगा।