आज भारत में 54% से अधिक ग्रामीण परिवारों को पारिवारिक नल कनेक्शन के माध्यम से पीने योग्य पानी मिल रहा है, जो जल जीवन मिशन की शुरुआत के समय केवल 17% था। विभिन्न भौगोलिक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में नल से जल उपलब्ध कराने के लिए, राज्य और संघ राज्य क्षेत्र कई अभिनव समाधानों का उपयोग कर रहे हैं। हाल ही में, जल और स्वच्छता प्रबंधन संगठन (वासमो), गुजरात के इंजीनियरों ने नर्मदा जिले के साडा गांव के लिए एक अनूठी जल आपूर्ति परियोजना शुरू की है। आज, गुजरात में 99% से अधिक ग्रामीण परिवार नल जल आपूर्ति से जुड़े हुए हैं और 33 में से 24 ज़िले स्वयं को 'हर घर जल' घोषित कर चुके हैं।
आदिवासी बहुल नर्मदा जिले को नीति आयोग द्वारा अपने खराब सामाजिक-आर्थिक संकेतकों के कारण एक आकांक्षी जिले के रूप में अभिचिह्नित किया गया है। डेडियापाड़ा तहसील का साडा गांव कर्जन जलाशय के तट पर अवस्थित है और वहां केवल नाव द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। जलाशय के कारण बारहमासी जलमग्न गांव के रूप में पुनर्वास के बाद गांव को फिर से स्थापित किया गया है। साडा में 45 आदिवासी परिवारों के करीब 247 लोग अलग- थलग बसे हुए हैं।
साडा गांव के लोग गांव के हैंडपंप से पानी लाते थे जो बहुत अधिक मैला होता था, इसलिए पेयजल की कमी को पूरा करने के लिए स्थानीय लोग कर्जन नदी से कुछ दूरी पर छोटे-छोटे गड्ढे खोदते थे और गड्ढे में मीठा पानी रिसने का कुछ समय इंतजार करते थे। उसके बाद महिलाएं और लड़कियां अपने परिवार की पीने के पानी की मांग को पूरा करने के लिए इसे इकट्ठा किया करती थीं। दुर्गम दूरस्थ क्षेत्र होने के कारण जलापूर्ति योजना के क्रियान्वयन में काफी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।
चूंकि जल जीवान मिशन के आकांक्षी जिलों में नल से जल कनेक्शन की आवश्यकता पर जोर दिया जाता है और अंतिम स्थान तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित की जाती है ताकि 'कोई भी वंचित न रह जाए', इसलिए वासमो ने 2022- 23 की अपनी वार्षिक कार्यान्वयन योजना में साडा के परिवारों को नल जल से जोड़ने की योजना बनाई।
नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके सतह आधारित ग्राम-अवस्थित जल आपूर्ति योजना बनाई गई क्योंकि गांव नियमित बिजली आपूर्ति से भी वंचित रहा है। कर्जन नदी के बीच में सौर ऊर्जा से चलने वाला सतही फ्लोटिंग प्लेटफॉर्म स्थापित किया गया है। 110 मीटर की ऊंचाई तक पानी खींचने के लिए नदी की सतह के नीचे 3 एचपी की क्षमता वाले दो छोटे इंटरकनेक्टेड सबमर्सिबल पंप भी स्थापित किए गए हैं। चूंकि गांव में सड़क संपर्क नहीं है, इसलिए सभी निर्माण सामग्री नावों द्वारा पहुंचाई गई है। ०
भौगोलिक स्थिति और अलग- थलग बसे परिवारों को ध्यान में रखते हुए इस परियोजना के लिए गांव को दो क्षेत्रों में बांटा गया था। पंपों को संचालित करने के लिए इन क्षेत्रों के उच्चतम बिंदु पर 3 किलोवाट की क्षमता वाला एक सौर पैनल स्थापित किया गया है। इन सौर पैनलों से प्राप्त बिजली को तांबे के केबल के माध्यम से नदी में मौजूद फ्लोटिंग प्लेटफॉर्म तक ले जाया जाता है और इस प्रकार दोनों पनडुब्बी पंप संचालित होती है। निस्पंदन के लिए, नदी के पानी को रेत फिल्टर के एक सेट के माध्यम से गुजारा जाता है जो दोनों क्षेत्रों में स्थित सौर पैनलों के पास स्थापित है। ये रेत फिल्टर 2,400 लीटर प्रति घंटा प्रति फिल्टर की क्षमता के साथ नदी के पानी को शुद्ध करते हैं और फिर शुद्ध पानी को सौर पैनलों में संस्थापित किए गए 5,000 लीटर क्षमता के ओवरहेड पानी के टैंकों में स्थानांतरित करते हैं। टंकी में पानी को ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग करके क्लोरीनयुक्त किया जाता है और पीने योग्य पानी पारिवारिक नल कनेक्शन के माध्यम से बसावट के सम्पूर्ण 45 परिवारों तक पहुंचता है।
यह उल्लेखनीय है कि न्यूनीकरण कार्यनीति के तहत पानी की टंकियों के साथ 5 नल भी लगाए गए हैं अर्थात यदि किसी भी दिन किसी परिवार के नल से जल प्राप्त नहीं होता है, तो वह परिवार इन नलों से तब तक पानी ला सकता है जब तक कि विभाग द्वारा इस समस्या का समाधान नहीं किया जाता।
विभिन्न चुनौतियों के बावजूद, यह परियोजना केवल 15 दिनों में पूरी हो गई। इसके तहत कुल 16.67 लाख रुपये खर्च किए गए है। अब साडा गांव के निवासियों को 9 सितंबर 2022 से उनके दरवाजे पर नल से मिलने वाले पानी की 24 घंटे आपूर्ति हो रही है। ग्राम जल और स्वच्छता समिति (वीडब्ल्यूएससी) को डब्ल्यूएएसएमओ से तकनीकी सहायता के साथ-साथ इसके समग्र संचालन और रखरखाव के लिए योजना सौंपी गई है। वासमो और वीडब्ल्यूएससी ने मिलकर गांव में बिजली कटौती की चुनौती को हल करने के लिए पानी की आपूर्ति के लिए उपयोग करने के बाद सौर पैनलों से उत्पन्न अतिरिक्त बिजली को भंडारित करने की योजना बनाई है।