धरती पर जीवन की उत्पत्ति समुद्र से हुई है। पृथ्वी के करीब तीन चौथाई (71%) हिस्से पर समुद्र मौजूद है और मानव के पास एक तिहाई से भी कम धरती है। इसके बावजूद, हमारे समुद्रों के पारिस्थितिक तंत्र (ईको सिस्टम) का अस्तित्व आज खतरे में है। यह बात सुनने में अजीबोगरीब लग सकती है, पर सच है। तेज़ी से बढ़ते प्रदूषण से लेकर ग्लेशियरों के पिघलने तक, कई तरह के संकट आज महासागरों को प्रभावित कर रहे हैं। इसी प्रभाव को समझाने के लिए हर साल 8 जून को विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है। इस साल महासागर दिवस की थीम "Wonder: Sustaining what sustains us" भी कुछ ऐसी ही है, जो हमारे अस्तित्व को बचाए रखने वाले समुद्रों के स्वरूप को बचाने की जरूरत आ पड़ने के आश्चर्यजनक हालात को बयां करती है।
विश्व महासागर दिवस का इतिहास, उद्देश्य और महत्व
विश्व महासागर दिवस हर साल 8 जून को मनाया जाने वाला एक अंतरराष्ट्रीय दिवस है, जिसका उद्देश्य महासागरों के महत्व को उजागर करना, उनके संरक्षण, सतत उपयोग और समुद्री पारिस्थितिकी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। कनाडा के अंतरराष्ट्रीय महासागर विकास केंद्र और ओशन इंस्टीट्यूट ऑफ कनाडा ने 1992 में ब्राज़ील के रियो डी जेनेरो में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन में विश्व महासागर दिवस का प्रस्ताव रखा। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2008 में 8 जून को "विश्व महासागर दिवस" के रूप में आधिकारिक मान्यता दी। यह निर्णय कनाडा सरकार और अमेरिकी संगठन द ओशन प्रोजेक्ट के प्रयासों के परिणामस्वरूप लिया गया।
क्या है इस साल की थीम
2025 के विश्व महासागर दिवस के लिए जहां संयुक्त राष्ट्र की थीम वंडर: सस्टेनिंग व्हाट सस्टेन्स अस है, वहीं मरीन स्टूअर्डशिप काउंसिल (MSC) ने इस साल की थीम सस्टेनेबल फ़िशिंग मीन्स मोर रखी है, जिसका तात्पर्य सतत (टिकाऊ) मत्स्य पालन के जरिये खाद्य सुरक्षा व समुद्री जीवन (Marine Life) की रक्षा से है। इसी तरह द ओशन प्रोजेक्ट की थीम कैटलाइज़िं एक्शन फ़ॉर अवर ओशन एंड क्लाइमेट, महासागरों और जलवायु के लिए कार्रवाई को गति देने की बात कहती है।
विभिन्न संगठनों द्वारा अलग-अलग थीम निर्धारित करने का मुख्य कारण उनके कार्यक्षेत्र और उद्देश्यों में भिन्नता है। हालांकि मोटे तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा घोषित थीम को आधिकारिक माना जाता है।
हमारे लिए क्यों ज़रूरी हैं महासागर
समुद्र का पानी खारा होता है। इसे न तो हम पी सकते हैं, न ही इससे खेती की जा सकती है। औद्योगिक क्षेत्र में भी इसका कोई उपयोग नहीं हो सकता। इसके बावजूद समुद्र हमारे जीवन के लिए बेहद ज़रूरी हैं। इसकी कई ठोस वजहें हैं, जिन्हें इन बिंदुओं के जरिये समझा जा सकता है—
महासागर पृथ्वी की तकरीबन 50% ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं। महासागरों में मौजूद प्लवक (फ़ायटोप्लेंक्टॉन) यह ऑक्सीजन बनाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो महासागर हमारी हर दूसरी सांस के लिए ऑक्सीजन देते हैं।
महासागर मानव द्वारा उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड के लगभग 30% हिस्से को अवशोषित कर लेते हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव कम हो जाता है।
महासागर दुनिया की 80% जैव विविधता को बनाए रखते हैं। धरती पर पाए जाने वाले से जीवों की प्रजातियों और वनस्पतियों से ज़्यादा संख्या समुद्र में पाए जाने वाले जीवों और जलीय वनस्पतियों की है। समुद्री जैव विविधता में जीवों की 2 लाख से अधिक ज्ञात प्रजातियां हैं, जबकि लाखों प्रजातियां अब तक अनजानी हैं।
पृथ्वी पर जलवायु नियंत्रण में महासागरों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि बारिश, से लेकर तापमान, बाढ़, सूखा जैसी तमाम चीजें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समुद्रों पर ही निर्भर करती हैं।
महासागर हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए भी जरूरी हैं, क्योंकि ये मछली व अन्य जलीय जीवों व वनस्पतियों के रूप में दुनिया में लगभग 3 अरब (300 करोड़) लोगों को भोजन का प्राथमिक स्रोत प्रदान करते हैं।
महासागर हमारी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। UNCTAD की की रिपोर्ट “Advancing the Potential of Sustainable Ocean‑Based Economies” के अनुसार समुद्री अर्थव्यवस्था (Blue Economy) का सालाना टर्नओवर 2.5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है। इसी तरह OECD की “The Ocean Economy in 2030” शीर्षक से जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि 2030 तक महासागर आधारित उद्योगों में 40 मिलियन लोगों को रोजगार मिलेगा।
महासागर नदियों के ज़रिये बहकर आने वाले प्लास्टिक, माइक्रो प्लास्टिक और खेतों में इस्तेमाल किए जाने वाले उर्वरक से तो प्रदूषित हो ही रहे हैं। इसके अलावा, कच्चा तेल ले जाने वाले जहाजों से होता तेल रिसाव, समुद्रों में डाला जाने वाला अनुपचारित औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट और जलवायु परिवर्तन महासागरों के लिए खतरा बनता जा रहा है। इस खतरे को संक्षेप में इस प्रकार समझा जा सकता है—
प्लास्टिक प्रदूषण के कारण मरते समुद्री जीव: हर साल लगभग 80 लाख टन प्लास्टिक महासागरों में पहुंचता है। cleanwater.org के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 80% प्लास्टिक शहरी व औद्योगिक कचरे से आता है। प्लास्टिक टुकड़े समुद्री जीवों के पेट में जाकर उन्हें मार डालते हैं। सागरीय अध्ययन से जुड़े अंतरराष्ट्रीय पोर्टल Condor Ferries की एक रिपोर्ट के अनुसार 10 करोड़ (100 मिलियन) से अधिक समुद्री जीव (जिसमें मछलियाँ, कछुए, शार्क, समुद्री पक्षी आदि शामिल हैं) हर साल प्लास्टिक प्रदूषण के कारण मरते हैं।
WWF Australia और Earth.Org के अनुसार हर साल लगभग 100,000 समुद्री स्तनधारी (जैसे व्हेल, डॉल्फ़िन, सील) प्लास्टिक में उलझने या उसे निगलने के कारण मरते हैं, जबकि 10 लाख (1 मिलियन) से अधिक समुद्री पक्षी हर वर्ष प्लास्टिक कचरे को खाकर या उसमें उलझने से मारे जाते हैं।
तेल रिसाव: समुद्री जहाजों और तेल रिग्स से लीक होने वाला तेल समुद्री जीवन के लिए बेहद घातक होता है। houston chronicle और fisheries noaa के आंकड़ों के मुताबिक 25,900 तक समुद्री स्तनधारी (जैसे डॉल्फ़िन, व्हेल) 2010 के Deepwater Horizon तेल रिसाव से प्रभावित हुए। इनमें से कई की मृत्यु हुई या गंभीर रूप से घायल हुए। करीब 4,900 से 7,600 बड़े किशोर और वयस्क समुद्री कछुए और 56,000 से 166,000 छोटे किशोर कछुए मारे गए। इसके अतिरिक्त, लगभग 35,000 नवजात कछुओं की मृत्यु हुई।
Marine Mammal Commission के मुताबिक तेल रिसाव के कारण 88,500 वर्ग मील क्षेत्र में मत्स्य पालन बंद करना पड़ा। अमेरिकी संस्थान नेशनल ओशन सर्विस की रिपोर्ट के अनुसार तेल रिसाव से प्रभावित क्षेत्रों में समुद्री जीवों की प्रजनन क्षमता में कमी, अंगों में विकृति और मृत्यु दर में वृद्धि देखी गई है।
औद्योगिक कचरा और कृषि रसायन : समुद्रों में सीधे या नदियों के माध्यम से पहुंचने वाला रासायनिक कचरा समुद्री जल की गुणवत्ता को बिगाड़ता है। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला रासायनिक कचरा नदियों के माध्यम से समुद्रों में पहुंचता है। इससे समुद्री जीवों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है। इसके अलावा खेती के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले कृषि रसायन भी समुद्र को प्रदूषित कर रहे हैं, जो बारिश में मिट्टी के साथ बहकर समुद्र में चले जाते हैं ।
ओवरफिशिंग: मछली पकड़ने की अनियंत्रित और अवैध गतिविधियां समुद्री जैव विविधता को खतरे में डाल रही हैं। Marine Stewardship Council के अनुसार विश्व स्तर पर, लगभग 37.7% मछली स्टॉक्स का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जो समुद्री जैव विविधता को नष्ट कर रहा है। बायकैच यानी अवांछित जीवों के जाल में फंसने से भी समुद्री जैव विविधता को काफ़ी नुकसान होता है। हर साल 9.1 मिलियन टन अवांछित समुद्री जीवों को (वार्षिक पकड़ का लगभग 10%) फेंक दिया जाता है।
पर्यटन और तटीय विकास: अनियंत्रित पर्यटन, होटल निर्माण और रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स तटीय और प्रवाल भित्ति (coral reefs) क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। coral.org की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर साल तकरीबन 36 बिलियन डॉलर का कोरल रीफ़ टूरिज़्म हो रहा है। यह लाखों लोगों को रोजगार और आमदनी तो दे रहा है, पर इससे प्रवाल भित्तियों के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंच रहा है। earthjustice.org की रिपोर्ट के अुनसार कोस्टारिका में, 93% प्रवाल भित्तियां खतरे में हैं, जिसमें पर्यटन एक महत्वपूर्ण कारक है।
जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान के कारण जहां प्रवाल भित्तियों की ब्लीचिंग और मृत्यु हो रही है। वहीं वायुमंडल में बढ़ती कार्बन डाइ ऑक्साइड के समुद्र में ज़्यादा घुलने से समुद्र का पानी अम्लीय (ओशन एसिडिफ़िकेशन) हो रहा है। इससे, समुद्री जीवों के व्यवहार में बदलाव आने लगा है और कई प्रजातियां नष्ट होने की ओर बढ़ रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों का पानी पिघल कर समुद्रों में पहुंच रहा है, साथ ही तापमान बढ़ने के कारण समुद्रों का थर्मल एक्सपैंशन यानी पानी के अणुओं के बीच की दूरी बढ़ रही है। इससे समुद्री जीवन के लिए तो खतरा बढ़ा ही है, तटीय समुदायों के लिए भी यह खतरे की घंटी है। क्योंकि बढ़ता समुद्र बाढ़ और कृषि भूमि क्षरण का कारण बन रहा है।
महासागरों में प्रदूषण को रोकने के लिए विभिन्न स्तरों पर किए जाने वाले प्रयासों की आवश्यकता को इस प्रकार समझा जा सकता है-
सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर रोक लगे और लोग इसका बहिष्कार करें।
स्थानीय स्तर पर समुद्र तटों (बीच) की सफाई के अभियान चलाए जाएं और स्थानीय लोग इसमें भाग लें।
स्थानीय मछुआरों को टिकाऊ मत्स्य पालन (Sustainable Fisheries) के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
तटीय क्षेत्रों में निर्माण कार्यों को नियंत्रित किया जाए।
Blue Economy को बढ़ावा देने के साथ-साथ समुद्री पर्यावरण की रक्षा सुनिश्चित की जाए।
Marine Protected Areas (MPAs) यानी समुद्री संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार किया जाए।
दुनिया भर के समुद्र तटीय देशों में समुद्री कानूनों को राष्ट्रीय स्तर पर सख्ती से लागू किया जाए।
स्कूल-कॉलेजों के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में समुद्री पारिस्थितिकी को शामिल किया जाए।
पेरिस समझौते के अनुरूप समुद्र के तापमान को नियंत्रित करने की पहल।
'UN Decade of Ocean Science for Sustainable Development (2021–2030)' के तहत अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करना।
G20 और COP सम्मेलनों में समुद्री संरक्षण को मुख्य एजेंडा बनाना।
द ओशन क्लीनअप प्रोजेक्ट – यह परियोजना डच गैर-लाभकारी संगठन Ocean Cleanup द्वारा प्रशांत महासागर में फैले प्लास्टिक को साफ करने का लक्ष्य लेकर चलाई जा रही है। इसमें समुद्रों से प्लास्टिक हटाने के लिए उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य 2040 तक महासागरों में तैरते प्लास्टिक प्रदूषण को 90% तक कम करना है।
UNEP का क्लीन सी कैंपेन – संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा 2017 में शुरू किया गया यह अभियान समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारों, उद्योगों और नागरिकों को एकजुट करता है। इसमें दुनिया भर के देशों और उद्योगों को समुद्रों से प्लास्टिक हटाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। Clean Seas Campaign के तहत अब तक 69 देश इस अभियान में शामिल हो चुके हैं, जो विश्व की 76% समुद्री तटरेखा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ब्लू कार्बन इनीशिएटिव – यह वैश्विक कार्यक्रम समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी तंत्रों जैसे मैन्ग्रोव, सीग्रास, ज्वारीय दलदल (Tidal Marshes) और आद्रभूमियों (wetlands) के संरक्षण और पुनर्स्थापन (restoration) पर केंद्रित है। Blue Carbon Initiatives के तहत समुद्री और तटीय ईको सिस्टम में कार्बन संग्रहण की क्षमता को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने का प्रयास किया जा रहा है।
भारत की समुद्री संरक्षण पहलें
मिशन LiFE – भारत द्वारा COP26 में शुरू की गई यह पहल सतत जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए एक वैश्विक जन आंदोलन है। इसमें जल, भूमि और पर्यावरण के सतत उपयोग की जीवनशैली को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है। इसका उद्देश्य 2022 से 2027 तक एक अरब से अधिक लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक कार्रवाई के लिए प्रेरित करना है।
समुद्र में रह गए जाल निकालना (आंध्र प्रदेश) – इस पहल के तहत आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में Animal Warriors Conservation Society (AWCS) ने समुद्र में छूट गए मछली पकड़ने के जाल (ghost nets) और समुद्री प्लास्टिक को हटाने का अभियान चलाया गया। इससे मछुआरों की आय में वृद्धि हुई और समुद्री जैव विविधता में सुधार हुआ है।
धनुषकोडि फ़्लेमिंगो अभियारण्य – तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप पर स्थित धनुषकोडि लैगून को ग्रेटर फ्लेमिंगो अभयारण्य घोषित किया गया है। यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण है और समुद्री जीवन के लिए एक नर्सरी के रूप में कार्य करता है।
ओडिशा का ग्रीन इनीशिएटिव – ओडिशा सरकार ने एक वर्ष में 7.5 करोड़ पौधे लगाने की योजना बनाई है, साथ ही सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के खिलाफ जन आंदोलन शुरू किया है। राज्य ने One Tree, One Name अभियान के तहत 6.5 करोड़ से अधिक पेड़ लगाए हैं।
वाइल्डलाइफ़ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (WTI) के समुद्री संरक्षण प्रयास – केरल के तट पर WTI ने समुद्री कछुओं, व्हेल, और शार्क के संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाया है। यह पहल स्थानीय समुदायों और मछुआरों को समुद्री जीवन के महत्व के बारे में शिक्षित करने पर केंद्रित है।