संघर्ष और विवाद

आस्था या नदियों को मारने की साजिश

Author : आशीष सागर

‘मेरे बीते हुए कल का तमाशा न बना, मेरे आने वाले हालात को बेहतर कर दो।मैं बहती रहूं अविरल इतना सा निवेदन है, नदी से मुझको सागर कर दो।।’

बुंदेलखंड

विगत दो वर्षों से मूर्ति विसर्जन के बाद स्वयं सेवी संगठन प्रवास सोसाइटी अपने कुछ स्वयं सेवियों के साथ नदी तट पर जाकर स्वच्छता अभियान का कार्य करती रही है। मगर मूर्ति विसर्जन की संख्या के सामने प्रवास द्वारा किया गया यह काम अदना ही साबित होता रहा है। इसी उधेड़बुन में जूझते हुए कुछ अलग करने का मन बना चुके स्वयंसेवी कार्यकर्ता रूढ़िवादी परंपरा को ही बदलने की ठान चुके थे। हर वर्ष की भांति बुंदेलखंड के सातों जिलों में पानी की टूटती हुई जलधारा से मिट रही नदियां एक बार फिर नवरात्रि के बाद मूर्ति विसर्जन के कारण अपनी अस्मिता को कटघरे में खड़ा होते देखने की कशमकश में थी। लेकिन जनपद बांदा ने पिछले तीन दशक से चली आ रही नवरात्रि में नदियों में प्रवाहित की जाने वाली मूर्ति विसर्जन परंपरा से इतर कुछ अलग ही करने का मन बना लिया था। चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, महोबा, झांसी, ललितपुर, जालौन के नवरात्रि पर्व में लगने वाली मूर्तियों की गणना यदि आंकड़ों मे की जाए तो यह संख्या करीब 2000 के आसपास ठहरेगी। अकेले चित्रकूट में ही मंदाकिनी को प्रदूषित करने के लिये नौ थानों के अंतर्गत नदी के 17 घाटों में 466 मूर्तियां इस वर्ष विसर्जित करने की तैयारियाँ धार्मिक उन्माद में कर रखी थी। बांदा में ही 380 मूर्ति एक मात्र जीवनदायिनी नदी केन के तट पर प्रवाहित की जानी थी।

विगत दो वर्षों से मूर्ति विसर्जन के बाद स्वयं सेवी संगठन प्रवास सोसाइटी अपने कुछ स्वयं सेवियों के साथ नदी तट पर जाकर स्वच्छता अभियान का कार्य करती रही है। मगर मूर्ति विसर्जन की संख्या के सामने प्रवास द्वारा किया गया यह काम अदना ही साबित होता रहा है। इसी उधेड़बुन में जूझते हुए कुछ अलग करने का मन बना चुके स्वयंसेवी कार्यकर्ता रूढ़िवादी परंपरा को ही बदलने की ठान चुके थे। इसी कड़ी में जनपद बांदा की नगरपालिका अध्यक्षता विनोद जैन के समक्ष प्रवास ने अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन दिया और नगर में स्थापित की गई दुर्गा प्रतिमाओं के नदी तट पर ही भूमि विसर्जन की मांग रखी। विनोद जैन ने प्रवास के ज्ञापन पर मौखिक रूप से सहमति जताते हुए जिला प्रशासन के समक्ष भूमि विसर्जन के लिये पक्ष रखने की बात कहकर मुद्दे को जिलाधिकारी के पाले में डाल दिया।

नदी को साफ करते स्वयंसेवी कार्यकर्ता

भूमि विसर्जन के विरोध करने वालों की जमात में जनपद से प्रकाशित एक स्थानीय समाचार पत्र ‘मैं देख रहा हूं’ के धृतराष्ट्र वादी आंखो ने इस अभियान को कमजोर करने के लिए शब्दों की रामलीला में भूमि विसर्जन को भू-दफन लिखकर अपने समाचार पत्र के माध्यम से धार्मिक जेहाद का एक नया पायदान खड़ा करने की नाकाम कोशिश की। भूमि विसर्जन की पहल करने वाले प्रवास संगठन को बकवास संस्था और जल प्रहरी युवाओं की संयुक्त पहल को बख्शीस सागर का कथित कारनामा कहकर बेहिचक प्रकाशित किया गया। आरोप तो यहां तक लगाए गए कि इस मुहिम के पीछे पर्यावरण मंत्रालय से 1 करोड़ 40 लाख रुपए पानी के नाम पर हथियाये जाने का षड़यंत्र छिपा है। पत्रकारिता का यह निम्नतम चरित्र वर्तमान पत्रकारिता को ही परिभाषित करने के लिये काफी है कि किस तरह मंडी में बिकता है मीडिया।

भूमि विसर्जन के लिए गड्ढा खोदते स्वयंसेवी कार्यकर्ता

लेकिन हिंदुस्तान में कानून और अधिनियम तो महज सरकारी दफ्तरों की फाइलों में शासनादेश बनकर लगाये जाने की परंपरा देश आज़ाद होने के बाद से ही शुरू हो गयी थी जो आज भी बदस्तूर जारी है। मां दुर्गा की नौ दिन की आस्था मूर्ति विसर्जन के दिन धार्मिक उन्माद के नाम पर तार-तार करने का ठेका जनपद बांदा शहर पूरे भारत वर्ष में धर्म के कुछ ठेकेदारों ने ले रखा है। उन्हें इस बात से भी गुरेज नहीं की नदियां भी मां ही होती हैं और आस्था जिंदगी की सड़क पर तय नहीं की जा सकती है।

आस्था के बहाने नदियों को मारने की साजिश

भूमि विसर्जन भले ही हिंदू आस्था को शब्दों के जाल में फिट न करता हो परंतु यह हमारा आने वाला भविष्य है जिसे बुंदेलखंड के बांदा ने अमली जामा पहनाने का काम किया है।

मूर्ति विसर्जन से प्रदूषित होती नदियां

बड़ी बात यह है कि भूमि विसर्जन की मुहिम में कदम से कदम मिलाकर बांदा का जिला प्रशासन सकारात्मक भूमिका में था। मौके की नज़ाकत को समझते हुये उपजिलाधिकारी गिरीश कुमार शर्मा, शहर कोतवाल उमाशंकर यादव, तहसीलदार सदर ने भारी पुलिस बल और पी.ए.सी. कनवारा के आसपास गांव में लगा रखी थी। प्रशासन और फोर्स की मदद से मां अम्बे नव युवक समाज की मूर्ति का भूमि विसर्जन कराया गया। विवाद को बढ़ता देखकर उपजिलाधिकारी बांदा ने तल्ख लहज़े में उपद्रवकारियों को कहा कि आप धर्म के ठेकेदार नहीं है, यह अपनी-अपनी आस्था है कि कौन जल विसर्जन कर रहा है और कौन भूमि विसर्जन। भूमि विसर्जन एक सकारात्मक सोच है जिस पर सबको विचार करना चाहिये।

मूर्ति विसर्जन को लेकर होती राजनीति

SCROLL FOR NEXT