दिनांक : 12 - 14 फरवरी 2023
स्थान - मातृ सदन, जगजीतपुर, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखण्ड (भारत) 249408
जोशीमठ व हिमालय में हो रही भीषण आपदाओं को लेकर मातृ सदन में तीन दिवसीय (12 से 14 फरवरी, 2023) अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है, जिसके लिए देश-विदेश से कई गणमान्य हिस्सा लेने पहुँच रहे हैं। सम्मेलन में तीन सत्र हैं और तीनों में अलग अलग पहलुओं पर विचार किया जाएगा।
और तीसरा सत्र व्यावहारिक पहलू है - इस बात को ठीक से समझ लें कि न्याय चार तरीके का होता है - वैयक्तिक न्याय, सामाजिक न्याय, राजकीय न्याय और प्राकृतिक न्याय। जब पहली तीन न्याय प्रणाली क्षीण हो जाती है, तब प्रकृति अपना कार्य करती है और जोशीमठ में वही देखने को मिल रहा है।
सम्मेलन में श्री जयसीलन नायडू, जो दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति व महान राजनीतिज्ञ श्री नेल्सन मंडेला जी के सरकार में मंत्री रह चुके हैं, देश के विभिन्न अन्य बुद्धिजीवी व पर्यावरणविद मौजूद रहेंगे।
जनवरी 2023 के प्रथम सप्ताह से विकराल रूप ली हुई जोशीमठ आपदा से आप परिचित होंगे। यह भी परिचित होंगे कि 47 वर्ष पूर्व, 1976 में मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में जोशीमठ को अतिसंवेदनशील क्षेत्र घोषित करते हुए इस शहर में निर्माण कार्यों, खुदाई और पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए स्पष्ट संदेश दिए थे। तब से अब तक प्रत्येक सर्वेक्षण रिपोर्ट ने यही बात लिखी है। लेकिन सरकार और अदालत की मिलीभगत ने इन सब की धज्जियां उड़ाते हुए उत्तराखण्ड में हर जगह बांध परियोजनाएं, सुरंग, सड़क और भवन निर्माणों की बाढ़ लगा रखी है। परिणाम जगजाहिर है। 2013 में केदारनाथ आपदा, 2024 में ऋषिगंगा आपदा तो मुख्य हैं ही, बादल फटने, भूस्खलन इत्यादि की घटनाएं उत्तराखण्ड में बेहद आम हो गई हैं। जोशीमठ की सड़कों और दीवारों में प्रकट होती हुई दरारें अब कर्णप्रयाग, नैनीताल, मसूरी, उत्तरकाशी में भी पहुंचने लगी हैं।
यह विनाश की शुरुआत कहाँ जाकर थमेगी, यह भी हम सभी जानते है। टिहरी झील तो सबसे बड़ा टाइम बम है, जिसकी उल्टी गिनती चालू हो चुकी है।
जोशीमठ केवल उत्तराखण्ड का ही नहीं, अपितु संपूर्ण भारतवर्ष का मुकुट है। यहीं आदि शंकराचार्य जी को पाँच वर्ष की तपस्या के उपरांत ज्योति प्राप्त हुई थी, इसलिए इसका नाम ज्योतिर्मठ पड़ा। परंतु दुर्भाग्य का विषय है, खासकर सनातन हिंदू धर्म के लिए, कि जब ऐसे तीर्थों को नष्ट करने की योजना बनती है, तब सब की आँखों के सामने अंधकार की पट्टी छा जाती है, सब सोए हुए रहते है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, वाराणसी, उज्जैन इत्यादि सभी प्राचीन तीर्थों को पर्यटन स्थलों में बदला जा रहा है, और पूरा हिंदू समाज सुषुप्त है। पूजनीय गंगा नदी में विलास के लिए क्रूज चलाया जाने लगा है। जो व्यक्ति या संस्था आवाज उठाती है, वह विकास द्रोही हो जाती है। तो अब बताएं कि जोशीमठ नष्ट हुआ, तो यह विकास है या विनाश? उत्तराखण्ड में विकास के नाम पर हो रहे इस विनाश को आज जनमानस यदि चुपचाप देखता रहा तो जल्द ही पूरा उत्तराखण्ड तबाह और वीरान हो जाएगा।
इन सब बातों को लेकर मातृ सदन आश्रम हरिद्वार में 12 से 14 फरवरी 2023 तक तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें जितने हितधारक हैं, उन सभी की जवाबदेही तय की जाएगी। इस सेमिनार में भारत लोकतंत्र के सभी वर्गों के लोग आमंत्रित हैं : वैज्ञानिक, धार्मिक, संत, सामाजिक, आध्यात्मिक, राजनैतिक, निजी नागरिक इत्यादि। लेकिन जो भी गणमान्य इस आयोजन में आंए, वह निम्नलिखित का उत्तर लेकर आएं। यदि हम इस समाज के नागरिक हैं, तो जिस भी फील्ड से हों, चाहे न्यायालय हो, सरकार हो, नागरिक हों, साधु हो या कुछ भी हो - हमारी जवाबदेही बनती है।
तीर्थ स्थलों में बड़े होटल, आधुनिक सुविधाएं और बेतरतीब निर्माण कार्यों से हमारे पवित्र स्थल जैसे बद्रीनाथ, केदारनाथ को पर्यटन मात्र का जरिया बना दिया गया है। सरकार यह नहीं सोचती कि तीर्थों के स्थानीय लोगों की मदद से छोटी-छोटी अनेक व्यवस्थाएं भी की जाएं, जिससे तीर्थ का तीर्थत्व बना रहे। एक जैन तीर्थ स्थल, सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित करने की जो कवायद हुई, पूरा जैन समाज एक हो कर सड़कों पर आ गया, अनशन हुए और एक साधु ने अपने प्राण तक त्याग दिए। जैनियों ने तीर्थ की महिमा को समझते हुए वहाँ पर्यटन स्थल नहीं बनने दिया। क्या सनातन हिंदू समाज को अपने तीर्थ नष्ट होते देखकर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता?
चारधाम परियोजना को लेकर हाई पावर कमेटी का गठन हुआ, और कमेटी ने रिपोर्ट तैयार करी। सरकार ने कमेटी के सुझावों को नहीं माना। माननीय सुप्रीम कोर्ट पर दबाव डालकर, डिफेंस का बहाना देकर उसे चालू कर दिया। हजारों की संख्या में देवदार के वृक्ष काटे गए या कटने के कगार पर हैं। क्या इससे देवत्व का ह्रास नहीं हुआ? क्या वैज्ञानिक तौर पर इसका प्रभाव नहीं होगा? हज़ारों सालों से यह वृक्ष हिमालय की मिट्टी को रोक कर रखे हैं, क्या उनके कटने से भूस्खलन नहीं होगा? पाँचवी कक्षा में पढ़ने वाला बालक भी यह बात भली-भांति समझता है, लेकिन सरकार नहीं। पहाड़ों में छोटी योजनाएं बनाकर विकास करना चाहिए, लेकिन सब जानते बूझते भी इतनी बड़ी योजनाओं को आगे बढ़ाना भ्रष्टाचार और लालच का साफ प्रतीक है।
उत्तराखण्ड में सैकड़ों परियोजनाएं हैं, जो पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के सेक्शन 5 का उल्लंघन करती हैं। 2013 में माननीय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के एस राधाकृष्णन ने पर्यावरण मंत्रालय पर दबाव बनाकर सेक्शन 5 हटवाया और श्रीनगर परियोजना को चालू करवाया। उसके तुरंत ही बाद 2013 में केदारनाथ आपदा आई। क्या इसकी कोई जवाबदेही नहीं है? सुप्रीम कोर्ट का यह कौन सा अधिकार है कि सरकार पर दबाव बनाकर सेक्शन 5 हटवाए? क्या एक न्यायाधीश की कोई जिम्मेदारी नहीं?
पहले किसी भी प्रोजेक्ट पर कार्य होने से पहले, देश में कई जगह सेमिनार होते थे, विद्वानों और विषय विशेषज्ञों द्वारा विचार किया जाता था, और उनकी दी हुई रिपोर्ट को संज्ञान में लिया जाता था। परन्तु अब यह परिपाटी चल गई है कि पहले से निर्धारित लोगों की समिति बना दी जाती है, जिनमें से कई लोगों के पास प्रासंगिक अनुभव तक नहीं होता। जो वैज्ञानिक भी हैं, वह विज्ञान और रिसर्च के आधार पर नहीं, बल्कि सरकार के इशारे पर रिपोर्ट तैयार करते हैं। इंटेलिजेंस भी तथ्यों के आधार पर नहीं, सरकार की मंशा को देखकर रिपोर्ट तैयार करती हैं।
उत्तराखण्ड देवभूमि है। यहाँ सनातन काल से ही देवत्व का प्रकाश है। यहाँ माननीय सुप्रीम कोर्ट जवाब दे कि गंगाजी और यमुनाजी के देवत्व की रक्षा के लिए जब माननीय उत्तराखण्ड हाई कोर्ट ने इन नदियों को जीवित इकाई का दर्जा दिया, तो माननीय उच्च न्यायालय द्वारा इसे स्टे करके क्यों रखा गया है? गंगाजी में खनन की विभीषिका को देखते हुए एक हाई पॉवर कमेटी का गठन किया गया, उसे भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्टे कर रखा गया है। हरिद्वार में एक भी पत्थर बहकर ऊपर से नीचे नहीं आता है और फिर भी हरिद्वार में 100 से अधिक स्टोन क्रशर चल रहे हैं। गंगा जी में अनेक द्वीप नष्ट हो गए। मछली पालन के नाम पर, तालाब निर्माण के नाम पर, जल संरक्षण के नाम पर केवल और केवल खनन किया जा रहा है। नदी किनारे 40 फीट गड्ढे कर, उनका महार नहीं बनाया और जाँच बैठने पर जाहिर सी बात है, कि रिपोर्ट यहीं आई कि यहाँ मछली पालन नहीं हो सकता है।
9 अक्टूबर 2018 को राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा गंगा में रायवाला से भोगपुर क्षेत्र में खननबंदी को लेकर आदेश पारित किया गया। आदेश स्पष्ट है कि हरिद्वार में गंगाजी में पूर्ण खनन बंद हो और सभी स्टोन क्रशर्स को यहाँ से हटाया जाए। लेकिन इस आदेश के अनुपालन के लिए भी मातृ सदन को माननीय उच्च न्यायालय जाना पड़ा, और यह केस अभी भी चल रहा है। NMCG की हरकतों से साफ है कि यह माफियाओं का केन्द्र बन चुका है। NMCG क्या सिर्फ घाट बनाने के लिए हैं? केवल हज़ारों करोड़ रुपए का बंदर बाँट करने के लिए है? यह अधर्म और भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या हैं?
हरिद्वार के तथाकथित साधु ऐसे हो गए है जो सरकार की दलाली करते हैं। सरकार का भी एक गुट ऐसा है जो महान अधार्मिक है, सांस्कृतिक धरोहरों को नष्ट करने वाला है, और इन साधुओं का भी एक गुट ऐसा है जो अपने आपको इनके साथ जोड़कर रखता है। धर्म के नाम पर प्रकृति को बेचने वाले इन साधुओं के अधार्मिक कृत्यों को क्या सजा नहीं मिलनी चाहिए?
उत्तराखण्ड में इतने अनैतिक, अधार्मिक और गैरकानूनी कार्य हो रहे हैं - पेपर लीक होना, अंकिता भंडारी हत्याकांड, खनन, नदियों पर बनते बांध, अंधाधुंध पेड़ों की कटाई इत्यादि। लेकिन सरकार की कोई जवाबदेही नहीं आती। क्यों?
मातृ सदन पिछले 25 वर्षों से हर तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार आवाज उठाती आई है। इसी कारण माफिया मातृ सदन के पीछे लगे हैं। लेकिन यहाँ पुलिस के मुखिया ही ऐसे हैं जिनका स्टोन क्रशर माफियाओं से सीधा संपर्क है। परम पूज्य श्री गुरुदेव स्वामी शिवानंद जी महाराज को विष दिया गया, स्वामी निगमानंद जी की हत्या हुई, स्वामी सानंद जी की हत्या हुई, ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद को विष दिया गया, साध्वी पद्मावती को विष दे दिया गया। फिर भी पुलिस के मुखिया ने यह रिपोर्ट तैयार करवाई कि मातृ सदन के संतों पर कोई जान का खतरा नहीं है।
आज उत्तराखण्ड के तीर्थ के तीर्थत्व को नष्ट किया जा गया है। क्रियाकलापों का वैज्ञानिक आधार नहीं है, गंगाजी में मछलियाँ नहीं है, और इसलिए गंगा का जल स्नान और आचमन योग्य नहीं रह गया है। लेकिन फिर भी NMCG के पास झूठी रिपोर्ट जाती है कि गंगाजी में मछलियाँ बढ़ गईं हैं।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए जो गणमान्य इस आयोजन में सम्मिलित नहीं होते हैं, तो उनके लिए यही माना जाएगा कि वह इस स्थिति के लिए कोई जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं हैं और अपने आप को मात्र एक सरकारी एजेंट समझते हैं।