छत्‍तीसगढ़ में महानदी पर बैराज, एनीकट और डायवर्जन बनाए जाने को लेकर ओडिशा ने कई बार आपत्ति जताई है। इसी को लेकर दोनों राज्‍यों के बीच कई दशकों से जल विवाद चल रहा है।  स्रोत : नई दुनिया
संघर्ष और विवाद

ओडिशा-छत्‍तीसगढ़ महानदी जल विवाद : क्‍या आपसी सहमति से निकलेगी राह

ट्रिब्‍यूनल ने बातचीत से हल निकालने के लिए दोनों राज्‍यों को दिया वक्‍त, दोनों मुख्‍यमंत्री सक्रियता से कर रहे प्रस्‍तावों पर विचार

Author : कौस्‍तुभ उपाध्‍याय

कुदरत ने भारत भूमि को सैंकड़ों जीवनदायिनी नदियों की सौगात दे रखी है। पर, कभी-कभी अपसी होड़ और असहमतियों के चलते नदियों की यह नेमत देश के राज्‍यों के बीच विवाद का सबब बन जाती है। छत्‍तीसगढ़ और ओडिशा के बीच महानदी के पानी को लेकर वर्षों से चला आ रहा विवाद भी इसी की एक मिसाल है।

ओडिशा का कहना है कि छत्‍तीसगढ़ नदी पर बैराज बनाकर ज़्यादा पानी इस्‍तेमाल कर रहा है, जिसके चलते उसके सामने जल संकट पैदा हो रहा है। दूसरी ओर, छत्‍तीसगढ़ सरकार का कहना है कि वह अपने हिस्‍से का ही पानी नदी से ले रही है। हालांकि, अब दोनों ही राज्‍यों में एक ही पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकारों के गठन के बाद इस विवाद का हल आपसी सुलह-सहमति के ज़रिये होने की उम्‍मीद जगी है। हाल ही में दोनों राज्‍यों की सरकारें इस पर राज़ी भी हुई हैं। 

महानदी का भौगोलिक विस्‍तार

छत्तीसगढ़ के धमतरी ज़िले में बस्तर की पहाड़ियों में सिहावा पर्वत से निकलने वाली महानदी लंबाई के मामले में भारत की 12वीं सबसे लंबी नदी मानी जाती है। इसकी कुल लंबाई लगभग 858 किलोमीटर है। इसमें से लगभग 494 किमी छत्तीसगढ़ में और 465 किमी ओडिशा में बहती है। जल–प्रवाह (water potential) के लिहाज़ से यह भारत की बड़ी नदियों में छठे स्थान पर आती है, क्योंकि इसका जलग्रहण क्षेत्र काफ़ी बड़ा है, जो बरसात के बाद और भी बढ़ जाता है। 

इसका जलग्रहण क्षेत्र (Catchment Area) लगभग 141,589 वर्ग किलोमीटर का है, जो पांच राज्‍यों छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में फैला हुआ है। यह देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 4.28% है। महानदी के जलग्रहण क्षेत्र का 52.42% हिस्सा (73214.52 वर्ग किलोमीटर) छत्तीसगढ़ में है, वहीं 47.14% हिस्सा (65847.28 वर्ग किलोमीटर) ओडिशा, 0.23% (322.38 वर्ग किलोमीटर) महाराष्ट्र, 0.11% (151.78 वर्ग किलोमीटर) मध्य प्रदेश और 0.1% हिस्सा (145.56 वर्ग किलोमीटर) झारखंड में पड़ता है। 

ओडिशा के जगतसिंहपुर ज़िले में बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले महानदी देश का आठवां बड़ा बेसिन और विशाल डेल्टा बनाती है, जो देश के सबसे उपजाऊ डेल्टा क्षेत्रों में से एक है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार महानदी नदी घाटी इलाके में लगभग 30 लाख की आबादी रहती है, जिसकी आजीविका इसके पानी के सहारे होने वाली खेती पर निर्भर है। 

महानदी की सहायक नदियां शिवनाथ, हसदेव, मांड, ईब, केलो, बोरई, पैरी, जोंक, सूखा, कंजी, लीलार, लात, तेल और ओंग हैं। महानदी पर 253 बांध, 14 बैराज, 13 एनिकट और 6 बिजली संयंत्र बने हुए हैं। इसपर छत्तीसगढ़ के कोरबा में 87 मीटर ऊंचा मिनीमाता हसदेव बांगो बांध बना हुआ है, वहीं ओडिशा में 4800 मीटर की लंबाई वाला हीराकुंड बांध बना हुआ है। दोनों राज्यों में तांदुला, महानदी मुख्य कैनाल, खारंग, मनियारी, हसदेव-बांगो, तैरी, कोडार, सलकी, ओंग, सुंदर डैम जैसी 24 बड़ी और 50 मध्यम सिंचाई परियोजनाएं महानदी के सहारे हैं। 

आठ दशक पुरानी हैं विवाद की जड़ें 

महानदी के जल बंटवारे को लेकर विवाद की जड़ें दशकों पुरानी हैं। मोंगाबे की एक रिपोर्ट के मुताबिक पहली बार महानदी के पानी के इस्‍तेमाल को लेकर सवाल 1950 के दशक में उठा था, जब ओडिशा में हीराकुंड बांध बनाने की बात चली। हालांकि, 1957 में एशिया और भारत के सबसे लंबे बांध हीराकुंड के चालू होने तक इस विवाद ने ज़्यादा तूल नहीं पकड़ा था।

बाद के वर्षों में तत्‍कालीन मध्‍य प्रदेश और ओडिशा (उड़ीसा) राज्‍य के बीच इसे लेकर बढ़ते विवाद को सुलझाने के लिए जून 1973 में एक समझौता हुआ। पर, यह समझौता मसौदों और फाइलों तक ही सीमित रह गया। इस समझौते के लिए दोनों राज्‍यों के बीच पचमढ़ी में 15 जून 1973 को एक बैठक हुई थी। लीगलइंस्‍ट वॉयूम-III-भाग-2 में उपलब्‍ध बैठक की जानकारी (मीटिंग मिनट्स) के मुताबिक इसमें तत्कालीन मध्यप्रदेश और उड़ीसा (ओडिशा) के सिंचाई एवं विद्युत विभागों के अधिकारी मौजूद थे।

इस बैठक में मध्य प्रदेश में आईब (Ib) नदी पर बनाए जा रहे डाइवर्ज़न को लेकर ओडिशा सरकार ने चिंता जताई थी कि इससे ओडिशा के ब्रजराज नगर स्थित ओरिएंट पेपर मिल जैसे उद्योग और सुंदरगढ़ को गर्मी के मौसम में पानी की कमी हो जाएगी। महानदी के पानी के बंटवारे को लेकर दोनों राज्‍यों के बीच यह एक महत्वपूर्ण संवाद था, पर इसका कोई औपचारिक नतीजा नहीं निकला। 

इसके बाद, 28 अप्रैल 1983 को मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और ओडिशा के मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच महानदी के जल के बंटवारे को लेकर एक समझौता हुआ। उपरोक्‍त स्रोत और टाइम्‍स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में उपलब्‍ध जानकारी के मुताबिक, 28 अप्रैल 1983 को मध्य प्रदेश के तत्‍कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और ओडिशा के मुख्यमंत्री जे. बी. पटनायक ने महानदी जल विवाद को सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

इसे संयुक्त नियंत्रण बोर्ड (जेसीबी) की स्थापना का प्रस्ताव माना जाता है। इस बोर्ड का उद्देश्य महानदी और उसकी सहायक नदियों पर बांध और बैराज जैसी परियोजनाओं के कार्यान्वयन और संचालन पर दोनों राज्यों के साथ-साथ केंद्रीय जल आयोग (सीडब्‍लूसी) के दखल की भी व्‍यवस्‍था करना था। हालांकि, यह बोर्ड सक्रिय नहीं हुआ और न ही इस समझौते में कोई अपेक्षित प्रगति हो सकी।

बस्तर के सिहावा पर्वत से निकलने वाली महानदी की कुल लंबाई लगभग 858 किलोमीटर है। इसमें से लगभग 494 किमी छत्तीसगढ़ में और 465 किमी ओडिशा में बहती है।

नया राज्‍य बनने पर बढ़ने लगे मतभेद

साल 2000 में मध्‍य प्रदेश से अलग हो कर छत्‍तीसगढ़ के अलग राज्‍य बनने के बाद महानदी के पानी का विवाद तेज़ी से तूल पकड़ने लगा। विवाद उस समय काफी बढ़ गया, जब 2016 में ओडिशा सरकार ने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ सरकार मनमाने ढंग से महानदी की सहायक नदियों पर बैराज (छोटे बांध) और एनीकट (जल अवरोधक संरचना) बना रही है, जिससे ओडिशा को मिलने वाला पानी कम हो गया है।

इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र ने शुरुआत में इस मुद्दे को दोनों पक्षों की आपसी सहमति से सुलझाने की कोशिश की थी। तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने सितंबर 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्रियों नवीन पटनायक और रमन सिंह की उपस्थिति में एक त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की थी, लेकिन तत्कालीन बीजद सरकार ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए एक न्यायाधिकरण के गठन पर ज़ोर दिया।

यही नहीं, ओडिशा सरकार ने नवंबर 2016 में छत्तीसगढ़ द्वारा महानदी पर बैराजों के "एकतरफ़ा निर्माण" के खिलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय का भी रुख किया। इस मामले में जनवरी 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने उसी वर्ष मार्च में तीन सदस्यीय महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया।

ओडिशा सरकार का कहना है कि गर्मियों में नदी का जलस्‍तर इतना गिर जाता है कि सिंचाई और पीने के पानी तक की समस्‍या उत्‍पन्‍न जाती है। दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ सरकार का तर्क है कि वह अपने हिस्से के पानी का उपयोग सिंचाई और अन्‍य कार्यों के लिए कर रहा है। वह अपने क्षेत्र में ही जल भंडारण कर रहा है और उसे इस पर अधिकार है।

राज्‍य सरकार का कहना है कि वह 2000 हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता वाले बांध ही बना रही है, जिसके लिए केंद्र सरकार की किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए छत्तीसगढ़ में बनाए गये बैराज पर आपत्ति नहीं की जा सकती।

दोनों राज्‍यों के बीच इस वैचारिक और नीतिगत गतिरोध के चलते 2016 में ओडिशा ने मामले को हल करने के लिए केंद्र सरकार से अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत जल विवाद निवारण ट्रिब्यूनल बनाने की मांग की। मार्च 2018 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलक की अध्यक्षता में महानदी जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन किया।

इस ट्रिब्यूनल को तीन साल के भीतर रिपोर्ट देने का निर्देश था। दोनों राज्यों ने ट्रिब्यूनल को अपनी-अपनी ओर से तकनीकी डेटा, जल प्रवाह की रिपोर्टें और प्रोजेक्ट्स की जानकारी दी। दोनों राज्यों के आंकड़ों और दलीलों का कोर्ट ने निरीक्षण किया और 2018 से 2023 तक यह कार्यवाही जारी रही, लेकिन मामला अब भी लंबित है। 

राजनीतिक रोटियां सेंकने की होड़, पारिस्थितिक तंत्र की चिंता नहीं

दोनों राज्‍यों के बीच महानदी के पानी के नाम पर चल रही तनातनी अब ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच एक राजनीतिक लड़ाई में बदल गया है। रिसर्च गेट की एक रिपोर्ट के अनुसार 'ओडिशा के जलपुरुष' के नाम से प्रसिद्ध रंजन पांडा का कहना है कि दोनों ही ओर सत्‍ता में बैठे राजनीतिक दल इसका राजनीतिकरण करने पर आमादा रहे हैं।

पांडा कहते हैं कि ऊपरी तौर पर तो यह अंतर-राज्यीय जल विवाद, नदी के ऊपरी हिस्से में बनाए गए बांधों और बैराजों के कारण हीराकुंड जलाशय में पानी के प्रवाह में कमी पर केंद्रित दिखता है, पर वास्‍तव में विवाद का कारण अलग है। ओडिशा और छत्तीसगढ़ दोनों एक-दूसरे पर दोषारोपण कर अनावश्यक तनाव और संघर्ष की स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

वास्‍तव में इस विवाद का मुख्य मुद्दा महानदी को एक ऐसे संसाधन के रूप में देखना है जिससे विशेष रूप से उद्योगों को लाभ होता है, जो किसान समुदायों के हितों के बिल्कुल विरुद्ध है। वे महानदी नदी के पानी को 'कॉर्पोरेट क्षेत्र' को बेचने में व्यस्त हैं। इसीलिए वे चर्चा के लिए सामने नहीं आते। दोनों ही राज्यों ने 'विकास' के नाम पर महानदी के पानी को उद्योगों की ओर मोड़ने की प्रतिबद्धता जताई है। वे किसानों और आम लोगों को पानी की उपलब्धता के बारे में गंभीर नहीं हैं।
रंजन पांडा, पर्यावरणविद

राजनीतिक दलों के रवैये को लेकर पांडा ने एक और गंभीर सवाल उठाया कि वे नदी के मूल स्वरूप और नदी बेसिन की पारिस्थितिक इकाई के बारे में चिंतित क्यों नहीं हैं? नदी बेसिन के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में बांधों और बैराजों के सक्रिय होने से महानदी की पारिस्थितिक संपदा खतरे में है, पर इसकी बात कोई नहीं कर रहा।

महानदी पर ही भारत का सबसे लंबा बांध हीराकुंड स्थित है, जो 1957 में शुरू हुआ था।

हालिया घटनाक्रम से जगी समाधान की उम्‍मीद

हालांकि, बीते विधानसभा चुनावों में दोनों ही राज्‍यों में भाजपा की सरकार बनने के बाद वैचारिक मतभेदों को आपसी सहमति और बातचीत से “सौहार्दपूर्ण समाधान” निकाल लिए जाने की उम्‍मीद जगी है। इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी, जिन्होंने 23 जुलाई को इस मुद्दे पर एक बैठक की अध्यक्षता की थी, ने दो दिन बाद छत्तीसगढ़ के अपने समकक्ष विष्णु देव साई को एक पत्र लिखकर "पारस्परिक रूप से लाभकारी समाधान" की मांग की।

साई ने शुक्रवार को माझी को जवाब देते हुए कहा कि उनके प्रस्ताव पर "सक्रिय रूप से विचार" किया जा रहा है। अपने पत्र में माझी ने केंद्रीय जल आयोग के अधिकारियों के नेतृत्व में एक संयुक्त समिति का प्रस्ताव रखा, जिसमें दोनों राज्यों के अधिकारी शामिल होंगे, ताकि “पारस्परिक रूप से लाभकारी समाधान” तक पहुंचने के लिए बातचीत और तकनीकी वार्ता को सुविधाजनक बनाया जा सके।

ओडिशा के मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में कहा, "हमारे सामूहिक प्रयास और दोनों राज्यों व केंद्रीय जल आयोग के सक्रिय सहयोग से, हम इस ज्वलंत मुद्दे का न्यायसंगत, समतामूलक और समयबद्ध समाधान प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा समाधान न केवल शांति और स्थिरता लाएगा, बल्कि ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच बेहतर सहयोग, विश्वास और सद्भावना को भी बढ़ावा देगा, जिससे भविष्य में सहयोग का मार्ग प्रशस्त होगा।" आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों ने इस मुद्दे पर प्रारंभिक चर्चा की।

ट्रिब्‍यूनल ने बातचीत के लिए दिया समय

हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक बीते 2 अगस्‍त को हुई सुनवाई में महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण ने दोनों राज्यों के बीच हाल ही में हुए पत्राचार और बयानों पर गौर किया, जिनमें दोनों ही राज्‍यों ने आपसी बातचीत के माध्यम से समाधान निकालने पर सहमति जताई है। ओडिशा के महाधिवक्ता पीताम्बर आचार्य ने न्यायाधिकरण को सूचित किया कि दोनों राज्यों ने विवाद का सौहार्दपूर्ण समाधान तलाशना शुरू कर दिया है और मुख्य सचिव तथा राजनीतिक स्तर पर चर्चा में प्रगति हुई है।

उन्‍होंने बताया कि सीएम माझी ने छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री साई को 25 जुलाई को लिखे पत्र में प्रस्ताव दिया है कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के मार्गदर्शन में, केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के नेतृत्व में दोनों राज्यों की एक संयुक्त समिति स्थापित की जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि ओडिशा सरकार का मानना है कि यदि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री इस मामले पर "सकारात्मक सोच" के साथ विचार करें तो सफलता संभव है।

दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ सरकार के वकील ने भी ट्रिब्‍यूनल को बताया कि विवादों के निपटारे का मुद्दा उनके मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सक्रियता से विचार कर रहे हैं। उन्‍होंने मुख्यमंत्री साय द्वारा माझी को दिए गए जवाब की प्रति भी प्रस्तुत की। इसपर ट्रिब्‍यूनल ने दोनों पक्षों को बातचीत के लिए अतिरिक्त समय देने का फैसला किया है।

न्यायाधिकरण की अध्यक्ष न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी ने कहा, "हम संबंधित राज्यों के सचिवों से अनुरोध करना उचित समझते हैं कि वे अगली तारीख पर न्यायाधिकरण के समक्ष उपस्थित रहें और दोनों राज्यों के बीच समझौता वार्ता की प्रगति के बारे में उसे अवगत कराएं।" ट्रिब्‍यूनल ने सुनवाई की अगली तारीख 6 सितंबर तय की है। 

ट्रिब्यूनल के बाहर निपटारे पर ज़ोर

ट्रिब्यूनल में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब ओडिशा और छत्तीसगढ़ ने विवाद को आपस में सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने की इच्छा व्यक्त की है। ओडिशा के वकील पीताम्बर आचार्य ने पीटीआई से बात करते हुए कहा कि देश में कोई भी अंतर-राज्यीय जल विवाद कभी भी ट्रिब्यूनल की कार्यवाही से पूरी तरह से हल नहीं हुआ है।

यदि आप इतिहास देखें, तो पिछले छह वर्षों में यानी 2024 तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। केवल एक गवाह से पूछताछ की गई है, जबकि दर्ज़नों गवाहों का अब भी ट्रिब्यूनल में पेश होना बाकी है। ऐसे में यदि ट्रिब्यूनल में दस साल और सुनवाई चलने पर भी इसका  कोई अंत होने की संभावना नज़र नहीं आती। इसलिए इस तरह के विवादों को राजनीतिक स्तर पर बातचीत के जरिए सुलझाया जाना ही बेहतर है।

आचार्य ने कहा, "ताजा घटनाक्रम सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रहा है। ओडिशा और छत्तीसगढ़ में एक ही पार्टी शासन कर रही है। केंद्र भी हस्तक्षेप करके बातचीत के ज़रिए मामले को सुलझा सकता है।" उन्‍होंने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री ने इस मामले में हस्तक्षेप किया है। ओडिशा सरकार ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री से भी संपर्क किया है और दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री इस मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के पक्ष में हैं और हमें आशा है कि विवाद शीघ्र ही सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझ जाएगा।

साझा प्रबंधन और रिवर बोर्ड से हो सकता है व्‍यावहारिक समाधान 

विशेषज्ञों का मानना है कि महानदी जल विवाद का स्थायी हल के लिए दोनों राज्यों के बीच विश्वास और सहयोग पर आधारित साझा प्रबंधन व्यवस्था जरूरी है। टाइम्‍स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक महानदी बचाओ आंदोलन का नेतृत्‍व कर रहे पर्यावरणविद् सुदर्शन दास का बारे में कहना है कि सबसे पहला कदम दोनों राज्यों के बीच रीयल-टाइम हाइड्रोलॉजिकल डेटा शेयरिंग होनी चाहिए।

ट्रिब्यूनल में लंबी मुकदमेबाज़ी के बजाय पारदर्शी डेटा शेयररिंग ही समझौते की व्यावहारिक राह है। इसके साथ ही नदी में पानी के पर्यावरणीय प्रवाह (Environmental Flows) को बनाए रखने की भी ज़रूरत है। दूसरा महत्वपूर्ण उपाय है टाइम्ड रिलीज़ प्रोटोकॉल यानी मानसून और गैर-मानसूनी महीनों में पानी छोड़ने का शेड्यूल तय करना। यदि दोनों राज्यों के बीच सहमति से इसे लागू किया जाए तो, हिराकुंड बांध और महानदी पर बने अन्य बैराजों को पानी की नियमित आपूर्ति हो सकती है।

साथ ही, बेहतर तालमेल के लिए महानदी रिवर बोर्ड या बेसिन अथॉरिटी के गठन भी समस्‍या का एक टिकाऊ समाधान हो सकता है। इस बोर्ड में केंद्र, दोनों राज्य सरकारें और तकनीकी संस्थान शामिल हों और यह नदी के संपूर्ण जलग्रहण क्षेत्र में पानी के प्रवाह का प्रबंधन करे। ऐसी संस्थागत व्‍यवस्‍था इस विवाद को राजनीतिक खींचतान से बचा कर व्यावहारिक और तर्कसंगत ढंग से सुलझाने में मदद कर सकती है।

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