देश के सबसे ज्यादा तूफ़ान और चक्रवात प्रभावित राज्यों में शुमार आंध्र प्रदेश की सरकार अब इन प्राकृतिक आपदाओं के प्रति लोगों को सचेत करने और आपदा प्रबंधन की तैयारियों को मजबूत कर रही है। इसके तहत लगभग 340 करोड़ रुपये की लागत से राज्य के तटवर्ती इलाकों के ग्राम पंचायत कार्यालयों में ऑटोमेटिक सायरन प्रणाली लगाई जाएगी। प्रत्येक सायरन यूनिट की लागत लगभग 2 लाख रुपये है। पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद जल्द ही इसे लागू किया जाने वाला है।
रिपोर्टर पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार के रियल टाइम गवर्नेंस (आरटीजीएस) सचिव कटमनेनी भास्कर ने बताया सरकार ने बिजली गिरने और बाढ़ से निवासियों की सुरक्षा के लिए ग्राम सचिवालयों में स्वचालित सायरन लगाना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि पायलट परियोजना ने काफ़ी उत्साहजनक परिणाम दिखाए हैं। ऐसे इलकों में भी सायरन प्रणाली ने अच्छी तरह काम किया है, जहां मोबाइल के सिग्नल नहीं पहुंचते। यहां इसरो उपग्रह कनेक्टिविटी के माध्यम से सायरनों सफलतापूर्वक संचालित किया गया। आरटीजीएस केंद्रों का निर्माण अक्टूबर के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा।
आरटीजीएस अवेयर 2.0 नाम से लॉन्च की जा रही इस सायरन प्रणाली के महंगी होने के कारण इसकी शुरुआत कुछ चुनिंदा गांवों में लगाकर की जा रही है। भास्कर ने बताया कि प्रत्येक सायरन यूनिट की लागत लगभग 2 लाख रुपये है। पूरे राज्य में इसे लगाने के लिए लगभग 340 करोड़ रुपये के बजट की आवश्यकता होगी। पहले चरण में आपदा की सबसे ज़्यादा संभावना वाले गांवों को प्राथमिकता दी जाएगी, जिसकी अनुमानित लागत 10-15 करोड़ रुपये होगी। ज़िला कलेक्टरों को इस अलर्ट सिस्टम पर कड़ी निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं।
आरटीजीएस अवेयर 2.0 चक्रवात, बाढ़, बिजली गिरने और आंधी, तूफ़ान जैसे तेज़ मौसमी बदलावों के बारे में सायरन के ज़रिये रियल-टाइम अलर्ट देगी। इसकी सटीकता मंडल यानी ब्लॉक के स्तर तक पूर्वानुमान प्रदान करने की होगी। सायरन सिस्टम के साथ ही एक आरटीजीएस अवेयर वेबसाइट भी शुरू की गई है, जिसका उपयोग निजी लॉजिस्टिक और परिवहन कंपनियां अपने कामकाज की योजना बनाने के लिए कर रही हैं। संबंधित ज़िलों के कलेक्टरों से स्थानीय प्रशासनिक कामकाज में भी इस प्लेटफ़ॉर्म का लाभ उठाने का आग्रह किया गया है।कटमनेनी भास्कर, सचिव, आरटीजीएस
भास्कर ने बताया कि अक्टूबर तक सभी ज़िला-स्तरीय आरटीजीएस केंद्र चालू हो जाएंगे। इसके लिए, छह पेटाबाइट (1 पेटाबाइट = 1,000 टेराबाइट) से ज़्यादा डेटा स्टोरेज क्षमता वाला एक केंद्रीकृत डेटा लेक (रॉ फ़ॉरमेट में डेटा इकट्ठा करने की प्रणाली) बनाया गया है, जिसे त्वरित जानकारी के लिए ज़िला स्तरीय डेटा लेंस डैशबोर्ड से जोड़ा गया है।
इससे ज़िला स्तर पर कोई नया डेटा सेंटर बनाने की आवश्यकता नहीं रहेगी और मौजूदा डेटासेट को केंद्रीय प्रणाली से जोड़ दिया जाएगा। इस तरह आरटीजीएस एक निगरानी तंत्र के अलावा, आपदा से निपटने की तैयारी के लिए भी काम करेगा।
प्राकृतिक आपदाओं की पूर्वसूचना के लिए लगाई जा रही यह चेतावनी प्रणाली इसरो के सेटेलाइट और मौसम विभाग की पूर्वानुमान प्रणाली के साथ इंटिग्रेट होकर काम करेगी। दोनों सिस्टम से मिली जानकारियों का एआई के माध्यम से विश्लेषण करके अलर्ट जारी किया जाएगा। टीओआई की खबर और तेलंगाना टाइम्स की रिपोर्ट में दी गई जानकारी के मुताबिक इसकी कार्यपद्धति मोटे तौर पर कुछ इस प्रकार होगी -
डेटा स्रोत और चेतावनी: यह पूरी प्रणाली मौसम संबंधी डेटा पर आधारित होगी। मौसम विभाग (आईएमडी), उपग्रहों से मिलने वाली जानकारी, रडार सिस्टम और बारिश व नदियों के जलस्तर के आंकड़ों को एक साथ जोड़ा जाएगा। इन आंकड़ों के एआई एनालिसिस से जैसे ही बिजली गिरने की संभावना, अत्यधिक वर्षा या समुद्र से उठने वाले तूफान का संकेत मिलेगा है, यह जानकारी तुरंत कंट्रोल रूम तक पहुंचाई जाएगी।
उसके बाद, जोखिम वाले इलाकों में अलर्ट का सायरन अपने आप सक्रिय हो जाएगा और आसपास के लोगों को खतरे का संकेत देगा। इस सारयन की आवाज़ से गांवों में रहने वाले लोग आपदा आने से पहले ही सतर्क हो जाएंगे और अपने बचाव के उपाय कर सकेंगे। ज़रूरत पड़ने पर वे सुरक्षित जगह पर जा सकेंगे।
इस सिस्टम की सबसे खास बात यह है कि यह रियल-टाइम डेटा पर काम करेगा, यानी जैसे ही खतरे का अंदेशा होगा, तुरंत चेतावनी मिलेगी। वर्ना, आमतौर पर सरकार की ओर से जारी की जाने वाली चेतवानियां लोगों को देर से मिलती है, जिससे जनहानि बढ़ जाती है। इस ऑटोमेटिक सायरन प्रणाली के ज़रिए सूचना पहले और तेज़ी से पहुंचने से जान-माल के नुकसान में कमी आने की उम्मीद है।
निरीक्षण और नियंत्रण केंद्र: पूरी चेतावनी प्रणाली का दिल इनका नियंत्रण केंद्र होगा। इसे राज्य और ज़िला स्तर पर स्थापित किया जाएगा। यहां डेटा की एआई एनालिसिस होगी। साथ ही मौसम विभाग और आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारी लगातार सभी जोखिम संकेतों पर नज़र रखेंगे। जब भी डेटा में यह स्पष्ट हो जाएगा कि किसी इलाके में बाढ़, तूफान या बिजली गिरने की संभावना है, तो नियंत्रण केंद्र से संबंधित इलाकों के सायरन सिस्टम को तुरंत सक्रिय कर दिया जाएगा।
नियंत्रण केंद्र का काम केवल सायरन सिस्टम को सक्रिय करना ही नहीं, बल्कि यह भी देखना होगा कि सायरन सही ढंग से बजा या नहीं यानी लोगों तक सूचना पहुंची या नहीं। साथ ही केंद्र यह तय करेगा कि किन-किन इलाकों में सायरन बजाना है, ताकि अन्य क्षेत्रों में बेवजह दहशत न फैले। इस तरह यह सिस्टम ग्रामीणों की अपनी जान बचाने और स्थानीय प्रशासन को तेज़ी से आपदा प्रबंधन के निर्णय लेने में मदद करेगा।
कई संचार प्रणालियों का इस्तेमाल: इस प्रणाली की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह केवल मोबाइल नेटवर्क पर निर्भर नहीं होगी। क्योंकि, कई बार देखने केा मिलता है कि तूफान, भारी बारिश या बाढ़ जैसी स्थितियों में मोबाइल टावर काम करना बंद कर देते हैं, जिससे चेतावनी लोगों तक नहीं पहुंच पाती। इस समस्या को हल करने के लिए इस सिस्टम को उपग्रह संचार (सेटेलाइट लिंक) से भी जोड़ा गया है। यानी यदि गांव किसी दूर-दराज़ इलाके में है या मोबाइल नेटवर्क से पूरी तरह कट गया है, तब भी सायरन बजकर लोगों को खतरे की चेतावनी देगा।
इसके अलावा, यह सिस्टम रेडियो फ़्रीक्वेंसी, वॉकी-टॉकी जैसी अन्य स्थानीय संचार प्रणालियों से भी जुड़ा होगा। इसका मतलब है कि अलग-अलग तकनीकों का इस्तेमाल करके हर हालत में लोगों तक संदेश पहुंचाना सुनिश्चित किया जाएगा। यही वजह है कि इसे “मल्टी-कम्यूनिकेशन टेक्नॉलजी सिस्टम” कहा जा रहा है। यह खास तौर पर उन दुर्गम व सुदूरवर्ती इलाकों में बेहद कारगर होगा, जहां संचार साधन सीमित होने के कारण सूचनाएं समय से नहीं पहुंच पाती हैं।
ध्वनि संकेत और डेटा इंटीग्रेशन: सायरन की आवाज़ इतनी तेज़ होगी कि गांव के हर हिस्से में सुनाई दे, जिससे लोग तुरंत सचेत हो सकेंगे। सायरल बजाने के साथ-साथ चेतावनी संदेश मोबाइल ऐप, व्हाट्सएप मैसेज, रेडियो प्रसारण और सार्वजनिक सूचना प्रणाली के ज़रिए भी भेजे जाएंगे। यानी डेटा इंटीग्रेशन के ज़रिये सायरल और डिजिटल अलर्ट को आपस में जोड़ दिया गया है।
जैसे, अगर किसी क्षेत्र में अचानक बाढ़ का पानी बढ़ने लगे, तो न केवल सायरन बजेगा, बल्कि एसएमएस या वाट्सएप पर सब्सक्राइब करने वाले लोगों को मोबाइल पर मैसेज भी मिलेगा। इस तरह यह प्रणाली केवल चेतावनी नहीं देगी, बल्कि व्यावहारिक रूप से लोगों को लिए जीवन रक्षक साबित होगी।
रियल टाइम गवर्नेंस सिस्टम पर आधारित इस चेतावनी प्रणाली के फायदों को इस प्रकार समझा जा सकता है :
सही समय से सूचना देना: समय पर चेतावनी देना सबसे बड़ा लाभ है। इससे, प्रभावित लोगों को सुरक्षा के उपाय करने या सुरक्षित जगह पर जाने का मौका मिल जाएगा।
जानमाल के नुकसान को कम करना: समय रहते जानकारी मिलने पर लोग अपनी जान बचाने के साथ ही अपनी संपत्ति को नुकसान से बचाने के भी यथासंभव इंतज़ाम कर सकेंगे।
दूरदराज़ क्षेत्र में पहुंच: यह उपग्रह आधारित सायरन प्रणाली उन इलाकों के लोगों को भी सचेत करेगी, जहां लोग मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करने के कारण संचार की सुविधा से कटे रहते हैं।
डेटा-संचालन प्रणाली से समन्वय: डिजिटल प्लेटफार्मों से जुड़े होने के कारण अलग-अलग माध्यमों से लोगों को चेतावनी मिल सकेगी।
जागरूकता को बढ़ावा: इससे लोगों कम समय में प्राकृतिक आपदाओं से बचने की जागरूकता आएगी।
कर्नाटक, गोवा, पश्चिम बंगाल या गुजरात जैसे तटवर्ती राज्यों में इस प्रकार की पंचायत-स्तरीय स्वचालित सायरन प्रणाली नहीं है। पर इन राज्यों में मौसम विभाग से मिली जानकारियों के आधार पर ज़िला प्रशासन द्वारा तूफान, चक्रवात, भारी वर्षा आदि के अलर्ट जारी किए जाते हैं। यहां समुद्री तूफान की आशंका होने पर मौसम विभाग की ओर से मछुआरों को समुद्र में न जाने की चेतावनी भी जारी की जाती है।
ये सूचनाएं मुख्यत: एसएमएस और समाचारों के माध्यम से लोगों तक पहुंचती है। दूसरी ओर ओडिशा, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों ने अपने तटीय इलाकों के लिए चेतावनी प्रणालियां स्थापित कर रखी हैं। जिनकी संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है :
ओडिशा: इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक जून 2017 में ओडिशा ने देश में सबसे पहले तटवर्ती इलाकों में आपदा सूचना प्रणाली को लागू किया। इस प्रणाली का नाम अर्ली वॉर्निंग डिसेमिनेश सिस्टम (ईडब्लूडीएस) है। तटीय क्षेत्रों में तूफान और सुनामी जैसी आपदाओं के समय यह स्वाचालित रूप से काम करती है।
इस प्रणाली के तहत 122 स्थानों पर सायरन टावर लगाए गए हैं, जो तट से लगभग 1.5 किमी के अंदर बसे गांवों, मछली पकड़ने के केंद्रों और पर्यटन स्थलों को आवाज़ और मास मैसेजिंग द्वारा चेतावनी देते हैं। नियंत्रण कक्ष से एक बटन दबाते ही ये सभी सायरन बजते हैं और अलर्ट जारी होता है। इस सिस्टम की शुरुआत के बाद पानी बढ़ने, तूफान की चेतावनी आदि मामलों में समय रहते चेतावनी मिलने की वजह से जनहानि में कमी आई है।
तमिलनाडु: तमिलनाडु ने साल 2015 में भारी बारिश से चेन्नई में आई भयंकर बाढ़ के बाद, बाढ़ और तूफ़ान के अलर्ट के विकल्प तलाशने शुरू कर दिए थे। जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक इसके लिए साल 2019 में चेन्नई में एक इंटेलिजेंट फ़्लड वॉर्निंग सिस्टम तैयार किया गया। दि न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2022 में तमिलनाडु सरकार ने सुपर कंप्यूटर की मदद से आपदा से पहले, समय रहते चेतावनी जारी करने की प्रणाली स्थापित करने का निर्णय लिया।
इसमें, मौसम गुब्बारों की प्रणाली जो हवा की रफ़्तार, नमी आदि की जानकारी देती है, मौसम विभाग के दो मौसम रडार, 100 स्वचालित मौसम स्टेशन, 400 स्वचालित वर्षा गेज और 11 स्वचालित जल स्तर मापने वाले उपकरण शामिल हैं। इसके लिए बजट में 10 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया। राज्य में इसे चालू करने के बाद, पिछले साल तमिलनाडु सरकार ने इसके लिए एक मोबाइल ऐप भी लॉन्च कर दिया है। टीएन अलर्ट नाम से लॉन्च किया गया यह ऐप मानसून की बारिश और बाढ़ से निपटने निपटने में मददगार साबित हो रहा है।
केरल : डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक केरल राज्य ने जनवरी 2025 में “कवचम” यानी केरल वार्निंग्स क्राइसिस एंड हेज़ार्ड्स मैनेजमेंट सिस्टम नाम की एक उन्नत प्रणाली शुरू की है। इसमें सायरन और स्ट्रोब लाइटें कई टॉवरों और ऊंची सरकारी इमारतों और स्कूलों पर लगाई गई हैं।
इस तरह यह अलर्ट सिस्टम आवाज़ और रोशनी दोनों तरीके से चेतावनी देता है। यह अलर्ट आपदा मौसम विभाग से मिलने वाली आपदा की सूचनाओं केआधार पर जारी किया जाता है। प्रणाली में विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक खतरों जैसे भारी बारिश, आंधी, समुद्री तूफान आदि के लिए अलग तरह के चेतावनी संकेत देने की व्यवस्था है।