बाढ़, सुखाड़, भूकंप, शीतलहर, आगलगी और वज्रपात ये ऐसी घटनाएं हैं, जिन पर हमारा सीधा-सीधा नियंत्रण नहीं है। ऐसी घटनाएं आपदा बन जाती हैं। बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है। इस नुकसान की भरपाई आसान नहीं होता। विशेषज्ञ कहते हैं कि विकास की दौड़ में हम ऐसी छोटी-छोटी बातों की अनदेखी करते हैं, जो आगे चल कर बड़ी कीमत वसूलती हैं। हम हर आपदा की पूर्व सूचना प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में बचाव और आपदा की स्थिति में राहत के क्या कुछ उपाय हो सकते हैं, इसकी चिंता सरकार से समाज तक और व्यक्ति से पंचायत की बड़ा फर्ज है। पहले प्राकृतिक आपदाओं को लेकर हमारा लोक ज्ञान विस्तृत था। उसमें अनुभव का सार था। खान-पान, रहन-सहन, मकान की बनावट और गांवों की बसावट में एक जबरदस्त प्रबंधन छिपा था। हम उसे तेजी से भूल रहे हैं। तात्कालिक सुविधा और सुरक्षा हमारा पहला ध्येय बन जाता है। यह आत्मघाती सोच और व्यवहार है। ऐसे में यह जानने-समझने की जरूरत है कि प्राकृतिक आपदाओं को लेकर सरकार, जिला प्रशासन और पंचायतों में व्यवस्था का हाल क्या है? बिहार में प्राकृतिक आपदाओं की आशंकाएं कितनी गंभीर हैं? अब तक इन घटनाओं की त्रासदी का तसवीर क्या थी? इन विषयों पर केंद्रित आरके नीरद की रिपोर्ट।
बिहार का प्राकृतिक आपदा से बड़ा करीब का रिश्ता है। 1934 के भूकंप और 2008 की बाढ़ का जिक्र अक्सर होती है। बिहार में गंगा और उसकी 15 प्रमुख सहायक नदियां बहती हैं। ये हर साल बाढ़ लाती हैं। बाढ़ की विभीषिका ने कई नदियों के नाम को बदल कर अभिशाप के पर्याय से उसे जोड़ दिया। राज्य के 28 जिले बाढ़ प्रवण हैं। इनमें 15 अति बाढ़ प्रवण जिले हैं।
बाढ़ प्रवण जिले
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अररिया, बेगूसराय, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर, दरभंगा, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, लखीसराय, मधेपुरा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, नालंदा, पटना, पूर्णिया, सहरसा, समस्तीपुर, सारण, शेखपुरा, शिवहर, सीतामढ़ी, सीवान, सुपौल, वैशाली, पश्चिमी चंपारण। |
पूरा राज्य भूकंप जोन
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एक जिले को छोड़ कर पूरा राज्य संवेदनशीलता की दृष्टि से भूकंप जोन में आता है। 15 जनवरी 1934 को बिहार में हुए भूकंप की रिएक्टर पैमाने पर तीव्रता 8.3 थी। करीब पांच मिनट तक यह स्थिति रही थी और करीब 10500 लोग मारे गए थे। ऐसी तीव्रता वाला भूकंप केवल असम में 15 अगस्त 1950 को हुआ था, जिसमें 15 हजार लोगों की मौत हुई थी। |
बिहार के भूकंप जोन वाले जिले
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साइस्मिक जोन 5 : सर्वाधिक क्षति जोखिम क्षेत्र- सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, सहरसा, अररिया, मधेपुरा, किशनगंज एवं दरभंगा। |
साइस्मिक जोन 4 : अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र- पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सिवान, सारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, पटना, समस्तीपुर, नालंदा, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, मुंगेर, भागलपुर, लखीसराय, जमुई, बांका एवं खगड़िया। |
साइस्मिक जोन 3 : मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र- बक्सर, भोजपुर, रोहतास, कैमूर, औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा, अरवल एवं गया। |
राज्य में दो दशक में बाढ़ से हुई बड़ी तबाही
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वर्ष | प्रभावित जिले | कुल मौत | मरे मवेशी |
2008 | 18 | 434 | 845 |
2007 | 22 | 960 | 1006 |
2004 | 20 | 885 | 3272 |
2003 | 25 | 251 | 108 |
2002 | 25 | 489 | 1450 |
2001 | 22 | 231 | 565 |
2000 | 33 | 336 | 2568 |
1999 | 24 | 234 | 136 |
1998 | 28 | 381 | 187 |
1996 | 29 | 222 | 171 |
1995 | 26 | 291 | 3742 |
1987 | 30 | 1399 | 5302 |
पूस की रात : जिलों को आपदा की चिंता नही
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राज्य भर में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। आपदा प्रबंधन के तहत प्रशासन को अलाव की व्यवस्था करनी है, लेकिन सरकार की रिपोर्ट कहती है कि राज्य के आधे से अधिक जिला प्रशासन को इसकी कोई चिंता नहीं हैं। 27 दिसंबर तक स्थिति यह थी कि केवल आठ जिलों में 83 स्थानों पर अलाव की व्यवस्था की गई थी। केवल शेखपुरा जिले में आपदा प्रबंधन के तहत 50 क्विंटल लड़की का आवंटन किया गया। 21 जिलों ने तो विभाग को कोई रिपोर्ट ही नहीं भेजी है। जाहिर है आपदा प्रबंधन की स्थिति खराब है, जिलों को यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री सचिवालय व मुख्य सचिव को भी भेजनी होती है। |