आपदा

भूकंप

Author : सुबोध महंती

लगभग प्रत्येक व्यक्ति को पृथ्वी के कांपने संबंधी विपदा का अक्षरशः अनुभव होगा। लेकिन प्रत्येक बार जब भूकंप आता है तो हमारे मस्तिष्क में अनेक सवाल उठते हैं। भूकंप क्यों आता है? क्या भूकंप की भविष्यवाणी की जा सकती है? क्यों भूकंप कुछ क्षेत्रों में ही आते हैं? भूकंपों की तीव्रता में परिवर्तन क्यों होता है? क्यों कुछ भूकंपों के दौरान हल्का कंपन होता है? और क्यों कुछ भूकंपों से भारी उथल-पुथल होती है? किस प्रकार भूकंप से होने वाली क्षति को न्यूनतम किया जा सकता है? क्या इमारतों को गिरने से रोका जा सकता है? पिछला भूकंप कब आया था? अगला भूकंप कब और कहां आएगा?

“अभी तक वैज्ञानिक इस बात को भली-भांति नहीं समझ सके हैं कि हमारे ग्रह की आरंभिक अवस्था को अनावृत करने के लिए भूविज्ञान की सभी शाखाओं को प्रमाण उपलब्ध कराने में योगदान देना चाहिए और इस विषय की सच्चाई को केवल इन सभी प्रमाणों को मिलाकर ही समझा जा सकता है। हम यहां सत्य का निर्धारण भूविज्ञान संबंधी शाखाओं को खंगाल कर ही कर सकते हैं। कहने का आशय यह है कि हमें ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करना है, जिसमें सभी ज्ञात तथ्य उचित रूप से व्यवस्थित हों और वह संभाव्यता की अधिकतम सीमा को अभिव्यक्त करते हों। इसके अलावा हमें इस संभावना के लिए भी हमेशा तैयार रहना चाहिए कि हर नई खोज, चाहे उसका परिणाम जो भी हो, हमारे पूर्व निष्कर्षों को भी बदल सकती है।”

‘दि ओरिजिन्स ऑफ कांटिनेंट्स एंड ओशंस’ में अल्फ्रेड लोथर वैगनर (शन् 1929)


पृथ्वी के भूपटल में उत्पन्न तनाव का, उसकी सतह पर अचानक मुक्त होने के कारण पृथ्वी की सतह का हिलना या कांपना, भूकंप कहलाता है। भूकंप प्राकृतिक आपदाओं में से सबसे विनाशकारी विपदा है जिससे मानवीय जीवन की हानि हो सकती है। आमतौर पर भूकंप का प्रभाव अत्यंत विस्तृत क्षेत्र में होता है। भूकंप, व्यक्तियों को घायल करने और उनकी मौत का कारण बनने के साथ ही व्यापक स्तर पर तबाही का कारण बनता है। इस तबाही के अचानक और तीव्र गति से होने के कारण जनमानस को इससे बचाव का समय नहीं मिल पाता है।

बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों के दौरान पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर 26 बड़े भूकंप आए, जिससे वैश्विक स्तर पर करीब डेढ़ लाख लोगों की असमय मौत हुई। यह दुर्भाग्य ही है कि भूकंप का परिणाम अत्यंत व्यापक होने के बावजूद अभी तक इसके बारे में सही-सही भविष्यवाणी करने में सफलता नहीं मिली है। इसी कारण से इस आपदा की संभावित प्रतिक्रिया के अनुसार ही कुछ कदम उठाए जाते हैं।

विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत भूकंप का अध्ययन किया जाता है, भूकंप विज्ञान (सिस्मोलॉजी) कहलाती है और भूकंप विज्ञान का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को भूकंपविज्ञानी कहते हैं। अंग्रेजी शब्द ‘सिस्मोलॉजी’ में ‘सिस्मो’ उपसर्ग ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ भूकंप है। भूकंपविज्ञानी भूकंप के परिमाण को आधार मानकर उसकी व्यापकता को मापते हैं। भूकंप के परिमाण को मापने की अनेक विधियां हैं।

लगभग प्रत्येक व्यक्ति को पृथ्वी के कांपने संबंधी विपदा का अक्षरशः अनुभव होगा। लेकिन प्रत्येक बार जब भूकंप आता है तो हमारे मस्तिष्क में अनेक सवाल उठते हैं। भूकंप क्यों आता है? क्या भूकंप की भविष्यवाणी की जा सकती है? क्यों भूकंप कुछ क्षेत्रों में ही आते हैं? भूकंपों की तीव्रता में परिवर्तन क्यों होता है? क्यों कुछ भूकंपों के दौरान हल्का कंपन होता है? और क्यों कुछ भूकंपों से भारी उथल-पुथल होती है? किस प्रकार भूकंप से होने वाली क्षति को न्यूनतम किया जा सकता है? क्या इमारतों को गिरने से रोका जा सकता है? पिछला भूकंप कब आया था? अगला भूकंप कब और कहां आएगा? समाचार पत्रों में दिए गए किसी भूकंपों के केंद्र या अधिकेंद्र से हमारा क्या आशय है? यद्यपि वैज्ञानिकों ने भूकंप की पूरी प्रक्रिया को समझ लिया है और उन्होंने वैश्विक स्तर पर भूकंप की पुनरावृत्ति की व्याख्या करने की एक पद्धति विकसित की है। इस प्रकार अनेक गतिविधियों से वैज्ञानिक समुदाय भूकंप के कारण और उसके स्वरूप को जानने का प्रयास कर रहे हैं।

भूकंप के भयानक और विनाशकारी परिणामों के कारण यह परिघटना अनेक काल्पनिक कथाओं और मिथकों का विषय बनी हुई है। प्राचीन काल से ही विभिन्न सभ्यताओं ने धरती के हिलने या कांपने को समझने के लिए विभिन्न काल्पनिक कथाओं से कई मिथकों का सहारा लिया है।

भूकंपों से संबंधित पौराणिक कथाएं, किंवदंती और धारणाएं

भूकंप क्या है?

कितनी जल्दी आते हैं भूकंप?

भूकंप के प्रकार

प्राकृतिक कारणों से आने वाले भूकंप

मानव गतिविधियों से प्रेरित भूकंप

भूकंप कैसे पैदा होते हैं?

भूकंप की शक्ति का कैसे पता लगाएं?

परिमाण का मापन

रिक्टर पैमाना

रिक्टर पैमानें पर निर्धारित परिमाण के आधार पर भूकंपों का वर्गीकरण नीचे दिया गया है।

तीव्रता

प्रभाव

2.0 से कम

सामान्यतः महसूस नहीं किया जा सकता लेकिन पैमाने पर अंकित हो जाता है।

2.0 से 2.9

अनुभव किए जाने की संभावना रहती है।

3.0 से 3.9

कुछ लोग महसूस कर लेते हैं।

4.0 से 4.9

अधिकतर लोग महसूस कर लेते हैं।

5.0 से 5.9

नुकसानदेह आघात।

6.0 से 6.9

आवासीय इलाकों में विनाशकारी प्रभाव।

7.0 से 7.9

बड़े भूकंप, इनके कारण बहुत हानि होती है।

8.0 से अधिक

प्रबल भूकंप, अधिकेंद्र के निकट भारी तबाही होती है।



रिक्टर पैमाना आरंभ तो एक इकाई से होता है लेकिन इसका कोई अंतिम छोर तय नहीं किया गया है, वैसे अब तक ज्ञात सर्वाधिक प्रबल भूकंप की तीव्रता 8.8 से 8.9 के मध्य मापी गई है। चूंकि रिक्टर पैमाने का आधार लघु गणकीय होता है, इसलिए इसकी प्रत्येक इकाई उसके ठीक पहले वाली इकाई से दस गुनी अधिक होती है। रिक्टर पैमाना भूकंप के प्रभाव को तो नहीं मापता है, यह पैमाना तो भूकंप-लेखी द्वारा भूकंप के दौरान मुक्त हुई ऊर्जा के आधार पर भूकंप की शक्ति का निर्धारण करता है।

अभी तक भारत में आए सर्वाधिक प्रबलता के भूकंप का परिमाण रिक्टर पैमाने पर 8.7 मापा गया है, यह भूकंप 12 जून, 1897 को शिलांग प्लेट में आया था। रिक्टर परिमाण का प्रभाव भूकंप के अधिकेंद्र वाले समीपवर्ती क्षेत्रों में महसूस किया जाता है। भूकंप के सर्वाधिक ज्ञात प्रबल झटके का परिमाण 8.8 से 8.9 के परास (रेंज) तक देखा गया है।

भूकंप की तीव्रता

संशोधित मर्कली पैमाना

एमएसके (MSK) पैमाना

भूकंप के दौरान धरती के कांपने का मापन करने वाला उपकरण भूकंप-लेखी कहलाता है। भूकंप-लेखी, भू-स्पंदन को अंकित करने वाला उपकरण है। भूकंप को मापने की इस आरंभिक युक्ति की खोज चीनी दार्शनिक चांग हेंग द्वारा 132 ईसा में की गई थी। यह उपकरण वस्तुतः एक बड़ा घड़ा था। इस उपकरण में बाहर की ओर ड्रैगन के आठ सिर बने हुए थे, जो कुतुबनुमा की आठों मुख्य दिशाओं, उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, उत्तरपूर्व, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम की ओर उन्मुख थे। यह एक आधार से जुड़ा रहता था।

भूकंप प्रभावित क्षेत्र

क्षेत्र I

क्षेत्र II

क्षेत्र III

भूकंप को किस प्रकार मापें

विश्व भूकंप आवृत्ति

प्रकार

परिणाम

आवृत्ति औसत

विशाल

8 से अधिक

1

मुख्य

7-7.9

18

शक्तिशाली

6.9

120

मध्यम

5-5.9

180

हल्का

4-4.9

6200 (अनुमानित)

गोण

3-3.9

49000 (अनुमानित)



सन् 1954 में गुटनबर्ड और चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर ने ‘दि सिस्मिसिटी ऑफ दि अर्थ’ मोनोग्राफ को प्रकाशित किया। यह पहला सूचीपत्र था, जिसमें विश्वव्यापी भूकंपी क्षेत्रों का विस्तृत विवरण था। गुटनबर्ड और रिक्टर की सूची में भारतीय क्षेत्र का पहला उपकरणीय सूचक भूकंप सन् 1904 में 4 अप्रैल को कांगड़ा क्षेत्र में आया भूकंप था।

गुटनबर्ड-रिक्टर सिद्धांत किसी क्षेत्र और किसी समय में आए कुल भूकंप एवं उसके परिमाण के बीच संबंधों को व्यक्त करता है।

भूकंपी नक्शा

भारत का भूकंपी क्षेत्र

भूकंपी तरंगें

भूकंप क्षति

भूकंप का प्रभाव

1. कंपन की शक्ति :

भूकंप के कंपन की शक्ति दूरी के साथ घटती जाती है। किसी भूकंप के दौरान भ्रंश खंड के साथ तीव्र कंपन की प्रबलता इसके विसर्पण या फिसलन के दौरान 13 किलोमीटर दूरी में आधी, 27 किलोमीटर में एक चौथाई, 48 किलोमीटर दूरी में आठवां भाग और 80 किलोमीटर में सोलवां भाग रह जाती है।

2. कंपन की लंबाई :

कंपन की लंबाई भूकंप के दौरान भ्रंश की टूटन पर निर्भर करती है। इमारतों के लंबे समय तक हिलने से अधिक और स्थायी नुकसान होता है।

3. मिट्टी का प्रकार :

भुरभुरी, बारीक़ और गीली मिट्टी में कंपन अधिक होता है।

4. भवन का प्रकार :

कुछ इमारतें भूकंप के दौरान कंपन से पर्याप्त सुरक्षित नहीं होते हैं।

किसी भूकंप के दौरान मानव निर्मित संचनाओं के गिरने और वस्तुओं एवं कांच के हवा में उछलने से जान-माल की हानि अधिक होती है। शिथिल या ढीली मिट्टी में बनने वाली दृढ़ संरचनाओं की अपेक्षा आधारशैल पर बनने वाली लचीली संरचनाओं में भूकंप से क्षति कम होती है। कुछ क्षेत्रों में भूकंप से पहाड़ी ढाल से मृदा की परतों के फिसलने से अनेक लोग दब सकते हैं। बड़े भूकंपों के कारण धरती की सतह पर प्रचंड हलचल होती है। कभी-कभी इनके कारण समुद्र में विशाल लहरें उत्पन्न होती हैं जो किनारों पर स्थित वस्तुओं को बहा ले जाती हैं। ये लहरें भूकंप के कारण सामान्य तौर पर होने वाले विनाश को और बढ़ा देती हैं। अक्सर प्रशांत महासागर में इस प्रकार की लहरें उत्पन्न होती है। इन विनाशकारी लहरों को सुनामी कहा जाता है।

न्यूनतम नुकसान

भूकंप पूर्वानुमान

भारत में भूकंप

भारत में आए मुख्य भूकंप

दिनांक

उत्केंद्र

परिमाण

16 जून, 1819

कच्छ, गुजरात

8.0

10 जनवरी, 1869

कचार के पास असम

7.5

30 मई, 1885

सोपोर, जम्मू एवं कश्मीर

7.0

12 जून, 1897

शिलांग

8.7

08 फरवरी, 1900

कोयम्बटूर

6.0

04 अप्रैल, 1905

कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश

8.0

08 जुलाई, 1918

श्रीमंगल, असम

7.6

02 जुलाई, 1930

दुब्री, असम

7.1

15 जनवरी, 1934

बिहार-नेपाल सीमा

8.3

26 जून, 1941

अंडमान द्वीप

8.1

23 अक्टूबर, 1943

असम

7.2

15 अगस्त, 1950

असम

8.5

21 जुलाई, 1956

अंजार, गुजरात

7.0

10 दिसंबर, 1957

कोयना, महाराष्ट्र

6.5

19 जनवरी, 1975

किन्नौर, हिमाचल प्रदेश

6.2

06 अगस्त, 1988

मणिपुर, म्यांमार सीमा

6.6

21 अगस्त, 1988

बिहार-नेपाल सीमा

6.4

20 अक्टूबर, 1991

उत्तरकाशी

6.6

30 सितंबर, 1993

लातूर, महाराष्ट्र

6.3

22 मई, 1997

जबलपुर, मध्यप्रदेश

6.0

29 मार्च, 1999

चमोली, उत्तराखंड

6.8

26 जनवरी, 2001

भुज, गुजरात

7.8



प्रतिवर्ष भारतीय प्लेट का पांच सेंटीमीटर की दर से नीचे की ओर गहराई में खपने का अनुमान लगाया जा रहा है। हिमालय संघटन क्षेत्र में अनेक बड़े भूकंप आए हैं। यह क्षेत्र भूकंपी गतिविधियों के क्षेत्र के रूप में चिन्हित है। इस क्षेत्र में पिछले 53 वर्षों के छोटे से इतिहास में चार बड़े भूकंप आए, जो निम्नांकित है :-

1. 1897 में असम भूकंप,
2. 1905 में कांगड़ा भूकंप,
3. 1934 में बिहार-नेपाल भूकंप, और
4. 1950 में असम भूकंप

भविष्य में इन क्षेत्रों में और बड़े भूकंप आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

भारत में भूकंप के कारण आई आपदा का निरीक्षण करने का उत्तरदायित्व मुख्यतया दो सरकारी संस्थाओं भारतीय मौसम विभाग (आई.एम.डी.) और भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जी.एस.आई) विभाग पर है। आई.एम.डी. भूकंपों का पता लगाने, उनकी संभावना वाले क्षेत्रों को चिन्हित करने और देश के विभिन्न स्थानों में भूकंप की संभाव्यता का अनुमान लगाने वाली राष्ट्रीय एजेंसी है।

भारत की पहली भूकंप वेधशाला सन् 1898 में अलीपुर (कोलकाता) में स्थापित की गई थी। सन् 1899 में दो और भूकंप वेधशालाएं मुंबई और चेन्नई में स्थापित की गई थीं। चेन्नई की वेधशाला को बाद में कोडाईकनाल में प्रतिस्थापित किया गया। भूकंप वेधशालाओं के राष्ट्रीय तंत्र को बाद में भारतीय मौसम विभाग द्वारा विस्तारित और अद्यतन किया गया। वर्तमान में पूरे देश में भूकंप प्रेक्षणशालाएं स्थित हैं।

भूकंप के दौरान और उसके बाद क्या किया जाए

भूकंप के दौरान आपको निम्न बिंदुओं को याद रखना चाहिए।

भूकंप के दौरान यदि आप घर के अंदर हैं तबः

यदि आप खुले स्थल में हैं तबः

यदि आप वाहन चला रहे हैं तबः

भूकंप के बाद

भूकंप की तैयारी

सुरक्षा किट का संयोजन

स्वयंसेवकों के लिए सुझाव

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