- रेनी सीजन से पूर्व मई–जून की तैयारियों में और जोर देना होगा। दिल्ली नगर निगम‚ दिल्ली जल बोर्ड और लोक निर्माण विभाग को आपस में तालमेल बिठाना चाहिए। समस्या होने पर एक–दूसरे पर आरोप–प्रत्यारोप से बचें। निपटने के इंतजाम ईमानदारी से हों। बारिश से पहले जल बोर्ड पंप सेट‚ सीवरेज ट्रॉली और सीवर जेटिंग मशीन से पूरी दिल्ली के नालों की माद निकाली जाए। संवेदनशील क्षेत्रों में पंप सेट पहले से तैनात किए जाएं। जलभराव वाले स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगें जिन्हें कंट्रोल रूप से जोड़ा जाए। संभावित जलभराव वाले प्वॉइंट चिन्हित हों‚ जल निकासी की उचित व्यवस्था की जाए। इन दो महीनों में कर्मचारियों छुट्टियां निरस्त हो‚ समस्या उत्पन्न होने पर सभी चौकन्ने रहें। अगर बजट कम हो तो उसकी डिमांड अधिकारियों को मानसून से पूर्व करनी चाहिए।
- सबसे मुख्य कारण यही है कि दिल्ली की ऊपरी सतह से प्राकृतिक और पारंपरिक मिट्टी पूरी तरह से गायब हो चुकी है। जैसे दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों में बारिश होने पर मिट्टी पानी सोख लेती है। लेकिन दिल्ली में ऐसा नहीं होताॽ क्योंकि पूरी दिल्ली कंक्रीट‚ सीमेंट‚ ईट–गारे आदि से पाटी जा चुकी है। निचले भू–स्तर में पानी का जाना तो दूर की बात‚ सांस तक नहीं पहुंचती। यही कारण है कि थोड़ी बारिश को भी राजधानी नहीं झेल पाती। यहां बढ़ती आबादी भी एक बड़ा कारण है। दिल्ली–एनसीआर का जलस्तर सैकड़ों फिट नीचे चले जाने का कारण भी यही है कि बारिश का पानी निचले भाग में नहीं पहुंचता। बारिश का पानी यूं ही सड़कों पर लबालब भरा रहता है। बिना देर किए इस समस्या से निपटना होगा‚ आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा‚ कच्ची जमीन को फिर से तैयार करना होगा। पर‚ मुझे लगता नहीं कि हुकूमतें और व्यवस्थाएं ऐसा कुछ करेंगीॽ बारिश के वक्त जलभराव को लेकर पक्ष–विपक्ष में सिर्फ राजनीति होती है। जबकि‚ समाधान और विकल्प मिलकर निकालने चाहिए‚ इस ओर कोई ध्यान नहीं देताॽ
- ऐसा नहीं है‚ जलभराव से निपटने के लिए प्रशासनिक स्तर पर कोई कोर–कसर नहीं छोड़ी जाती। चार मीटर गहरे नाले की जिम्मेदारी एमसीडी पर होती है जिसे नजफगढ़ ड्रे़न और एक अन्य ड्रे़न से की जाती है। एमसीडी का मेंटेनेंस विभाग पूरी तरह से कमर कसता है। इसके अलावा‚ विभाग द्वारा प्लानिंग होती हैं। मानसून से पहले लगातार बैठकें की जाती हैं‚ जिनमें सभी विभागों के जिम्मेदार और प्रमुख अधिकारी रहते हैं। सभी को अपने–अपने हिस्से की जिम्मेदारियां दी जाती हैं। ये दो महीनों इन विभागों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होते। लेकिन‚ बारिश होने पर स्थिति जब गड़बड़ाती है तो पता चलता है कि कमियां कहां–कहां हुईं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में देखें तो दिल्ली में जलभराव की समस्या तेजी से उभरी है‚ जिसका समाधान निकाला जाना चाहिए।
–इसमें कोई दो राय नहीं। दिल्ली की 92 फीसद पानी की निर्भरता हरियाणा‚ पंजाब और उत्तर प्रदेश पर रहती है। दिल्ली अपने हिस्से से मात्र 8 फीसद की भरपाई करती है। बारिश का पानी सहेजना अत्यंत जरूरी है। इसके लिए सभी को गंभीरता से सोचना होगा। यहां कुछ अलग–अलग इलाकों में हर साल भूजल स्तर करीब 3 से 4 मीटर नीचे खिसक रहा है। दिल्ली को रोजाना 1‚100 मिलियन लीटर पानी चाहिए होता है‚ जिसमें जल बोर्ड सिर्फ 900 मिलियन लीटर पानी की आपूर्ति कर पाता है। 200 मिलियन लीटर का अंतर दिल्ली के भूजल भंडार से पूरा होता है। पानी की यह भयावहता लगातार बढ़ रही है। पानी का दोहन और बारिश का बर्बाद होता जल आगामी दिनों के लिए गहरा संकट है।
- एमसीडी‚ दिल्ली जल बोर्ड‚ पीडब्ल्यूडी और एनडीएमसी जैसे प्रमुख विभागों पर होती है। चार फुट गहरे नालों की गाद निकालने का जिम्मा एमसीडी पर होता है। 60 फीट गहरे नालों की सफाई की जिम्मेदारी दिल्ली जल बोर्ड पर रहती है। बाकी की जिम्मेदारी प्रदेशस्तरीय सरकार का पीडब्ल्यूडी विभाग और नगरीय विभाग यानी एनडीएमसी पर होती है। भैरों सिंह मार्ग‚ प्रगति मैदान अंडरपास‚ मिंटो रोड़‚ दिल्ली गेट जैसे लो–लाइन एरिया की प्रमुख जगहों पर प्रत्येक मानसून में स्थिति डांवाडोल होती है। दिक्कत सबसे बड़ी दरअसल‚ यह है कि स्थिति सामान्य होने के बाद हमारे विभाग भी शांत हो जाते हैं‚ भूल जाते हैं कि अगले वर्ष भी ऐसा ही होगाॽ मुकम्मल और कारगर विधि अपनानी होगी वरना स्थिति प्रत्येक वर्ष यूं ही रहेगी। पहले ऐसा होता था कि जलभराव से कुछ ही परेशानियां होती थीं‚ जैसे यातायात बाधित होना‚ सड़कों से संपर्क टूट जाना। पर‚ अब जान–माल का नुकसान होने लगा है। एकाध व्यक्तियों के पानी में डूबने से मौत भी हुई हैं। ऐसी दुखद घटनाएं नहीं घटनी चाहिए।