आपदा

फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में उत्तराखण्ड

Author : प्रेम पंचोली

टिहरी जनपद की भिंलगनाघाटी हमेशा से ही प्राकृतिक आपदाओं की शिकार हुई है। साल 1803 व 1991 का भूकम्प हो या 2003, 2010, 2011 या 2013 की आपदा हो, इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण भिंलगनाघाटी के लोग आपदा के निवाला बने हैं।

ज्ञात हो कि 28 मई 2016 को भिलंगना के सिल्यारा, कोठियाड़ा गाँव चन्द मिनटों में मलबे में तब्दील हो गया। तहसील घनसाली में घनसाली बाजार, चमियाला बाजार, सीताकोट, गिरगाँव, कोटियाड़ा, सिल्यारा, अरधांगी एवं कोट में लगभग 100 परिवारों के प्रभावित होने के साथ ही 110 मकानों, 34 पशुओं तथा एक व्यक्ति के बहने की सूचना है। ग्राम सीता कोट में चार बैल व पाँच भवनों की क्षति, ग्राम-कोटियाड़ा में 100 भवनों व 30 पशुओं की क्षति, ग्राम-गिरगाँव में एक भवन, ग्राम-सिल्यारा में तीन भवनों एवं ग्राम श्रीकोट में एक भवन की क्षति की सूचना है।

ग्राम-सरूणा, तहसील-घनसाली से विपुल पुत्र सूरत राम के बहने की सूचना भी प्राप्त हुई है, जबकि चमियाला-घनसाली मोटर मार्ग कई स्थानों पर टूटने के कारण अवरुद्ध हो गया है। लोक निर्माण विभाग द्वारा पाँच जेसीबी मशीनों की सहायता से अवरुद्ध मार्ग को दोबारा शुरू करने की कार्रवाई की जा रही है।

इधर प्रभावित परिवारों के 300 व्यक्तियों को अस्थायी रूप से बीज गोदाम, 250 व्यक्तियों को वैलेश्वर सामुदायिक भवन एवं 150 व्यक्तियों को स्थानीय सिल्यारा आश्रम में ठहराया गया है। प्रभावित परिवारों के भोजन-पानी आदि की व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है। खोज एवं बचाव कार्य राजस्व विभाग, एसडीआरएफ एवं स्थानीय पुलिस द्वारा किया जा रहा है।

क्यों फटते हैं बादल

वरिष्ठ भू-वैज्ञानिक दिनेश कण्डवाल का कहना है कि

संघनित बादलों का नमी बढ़ने पर बूँदों की शक्ल में बरसना बारिश कहलाता है। पर अगर किसी क्षेत्र विशेष में भारी बारिश की सम्भावनाओं वाला बादल एकाएक बरस जाये, तो उसे बादल का फटना कहते हैं।

इसमें थोड़े समय में ही असामान्य बारिश होती है।

उत्तराखण्ड में बादल फटने की घटनाएँ तब होती हैं, जब बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से मानसूनी बादल हिमालय की ऊँचाइयों तक पहुँचते हैं और तेज तूफान से बने दबाव के कारण एक स्थान पर ही पानी गिरा देते हैं। बरसने से पहले बादल पानी से भरी एक ठोस वस्तु का आकार लिये होता है, जो आँधी की चपेट में आकर फट जाता है।

रोकथाम के उपाय

बादल को फटने से रोकने के कोई ठोस उपाय नहीं हैं। पर पानी की सही निकासी, मकानों की दुरुस्त बनावट, वन क्षेत्र की मौजूदगी और प्रकृति से सामंजस्य बनाकर चलने पर इससे होने वाला नुकसान कम हो सकता है।

उत्तराखण्ड में अब तक बादल फटने की बड़ी घटनाएँ

1979 - तवाघाट, पिथौरागढ़- 22 की मौत।

1983 - बागेश्वर, 37 की मौत।

1995 - रैतोली, पिथौरागढ़- 16 की मौत।

1998 - बूढ़ा केदारनाथ में बादल फटा, भयंकर तबाही, सैकड़ों लोग बहे

1999 - मदमहेश्वर घाटी-109 की मौत।

12 जुलाई, 2007 - चमोली के सुरीखर्क में 8 लोगों की मौत, भारी तबाही।

7 अगस्त, 2009 - पिथौरागढ़ के ला, चचना और बेड़ूमहर में मलबे के ढेर में 43 लोग जमींदोज हो गए।

18 अगस्त, 2011- बागेश्वर के शुमगढ़ में भूस्खलन, स्कूल की छत गिरने से 18 बच्चों की मौत।

23 अगस्त, 2011- सहस्त्रधारा के निकट कारलीगाढ़ गाँव पाँच मरे, खेती की जमीन नष्ट।

13 जून 2013 को केदारनाथ में आपदा के कारण भारी तबाही, हजारों लोगों की जानें गईं।

24 जुलाई, 2013 - चमोली जिले में नन्दप्रयाग के पास कई गाँवों में भारी तबाही, दो लोगों की मौत।

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