प्रशांत महासागर में 5 अरब से ज़्यादा समुद्री तारा मछलियों (स्टार फिश) की मौत बीते एक दशक से दुनिया के लिए एक पहेली बनी हुई थी। साल 2013 से जारी इन मछलियों की मौतों की इस गुत्थी को अब समुद्र विज्ञानियों ने सुलझा लिया है। एक दशक से भी लंबी रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों को पता चला है कि इस सामूहिक मृत्यु (मास डेथ) की वजह घातक बैक्टीरिया है।
विब्रियो पेक्टेनिसिडा नामक समुद्री जीवाणु ने करोड़ों स्टार फिश को संक्रमित कर वेस्टिंग डिज़ीज़ नामक एक भयानक संक्रामक बीमारी को जन्म दिया, जिसके कारण मेक्सिको से लेकर अलास्का तक अमेरिका के प्रशांत तट पर 5 अरब से अधिक तारा मछलियों की आबादी खत्म हो गई। इस कारण वैज्ञानिकों ने इस बैक्टीरिया जनित बीमारी को ‘सी स्टार वेस्टिंग डिज़ीज़’ का नाम दिया। इसका विस्तृत विवरण यूबीसी, हकाई संस्थान और वाशिंगटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने साइंस जर्नल नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित रिपोर्ट में दिया है।
इस तरह फैलता है वेस्टिंग डिज़ीज़ का प्रकोप
शोधकर्ताओं के मुताबिक इस बामारी का संक्रमण तीन तरह से फैलता है। पहला, संक्रमण वाले दूषित पानी से। दूसरा, संक्रमित ऊतकों या कोइलोमिक द्रव से और तीसरा, तारा मछलियों के "रक्त" के माध्यम से संतानों तक।
वैज्ञानिकों ने अपनी जांच में पाया कि इन तीनों ही तरीकों से बीमारी फैली। टीम के मुताबिक यह बीमारी स्टार फिश में छोटे-छोटे घावों के रूप में शुरू होती है। यह घाव तेज़ी से बढ़ते जाते हैं, जिससे प्रभावित जीव विकृत हो जाते हैं और अपनी भुजाएं खो देते हैं। आखिर में यह बीमारी इन मछलियों के ऊतकों को "पिघला" कर उन्हें मार देती है।
यह प्रक्रिया विब्रियो पेक्टेनिसिडा बैक्टीरिया के संपर्क में आने के एक हफ़्ते में ही पूरी हो जाती है। बैक्टीरिया का संक्रमण इतनी तेज़ी से फैलता है कि 90%से ज़्यादा स्वस्थ तारा मछलियां लक्षण दिखने के एक हफ़्ते के अंदर ही मर जाती हैं। प्रभावित मछलियों में बीमारी की पहचान करना मुश्किल होता है, क्योंकि तारा मछलियों में तापमान में बदलाव या प्रदूषण जैसे अन्य कारणों से भी बीमार होने और भुजाएं खोने जैसे संकेत दिखाई दे सकते हैं।
इस तरह लगाया गया बीमारी का पता
वैज्ञानिकों को इस बीमारी के कारण का पता लगाने में एक दशक से भी ज़्यादा का समय इसलिए लग गया, क्योंकि इस बीमारी के कारण उनके शरीर विघटित हो गए। केवल जैविक पदार्थ ही बचा, जिसे कोइलोमिक द्रव कहा जाता है। इस कारण यह पता नहीं चल पा रहा था कि स्वस्थ स्टार फिश इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आखिर आ कैसे रही हैं।
इसके अलावा करीब दशक भर से चल रहे शोधों के दौरान कई गलत सुराग और मोड़ भी सामने आए, जिससे वैज्ञानिक दिग्भ्रमित हुए। द यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया (यूबीसी) की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों को इतनी बड़ी संख्या में स्टार फिश की मौत के पीछे डेंसो वायरस या उसके जैसे ही किसी वायरस का हाथ होने का शक था।
मृत तारा मछलियों से लिए गए कई नमूनों में इस वायरस की मौजूदगी पाए जाने के कारण कई वर्षों से इसी आधार पर पड़ताल की जा रही थी, लेकिन बाद के कुछ शोधों में देखा गया कि यह वायरस स्वस्थ समुद्री तारों में भी मौजूद था। इसके बाद डेंसो वायरस के संक्रमण से इतनी मौतें होने की संभावना को खारिज करना पड़ा।
तमाम शोधों के बाद आखिरकार यूबीसी के वैज्ञानिकों को इस गुत्थी को सुलझाने में सफलता तब मिली, जब वैज्ञानिकों ने मृत तारा मछलियों के कोइलोमिक द्रव के बजाय जीवित मछलियों के आंतरिक द्रव का विश्लेषण शुरू किया। इससे, उन्हें विब्रियो पेक्टेनिसिडा बैक्टीरिया की उपस्थिति का पता चला, जो तारा मछलियों में क्षय रोग फैलाकर उनकी मौत का कारण बन रहा था।
शोधकर्ताओं ने बीमारतारा मछलियों के कोइलोमिक द्रव से एफएचसीएफ-3 कल्चर डेवलप कर उसमें विब्रियो पेक्टेनिसिडा बैक्टीरिया का प्रवेश कराया। जब बैक्टीरिया से इस संक्रमित एफएचसीएफ-3 कल्चर को स्वस्थ तारा मछलियों में इंजेक्ट किया गया, तो कुछ ही घंटों में उनमें क्षय रोग के लक्षण दिखने शुरू हो गए।
लक्षण दिखने के कुछ दिनों के भीतर उन सभी की मृत्यु हो गई, जिससे पुष्टि हुई कि यह बैक्टीरिया ही मछलियों के जानलेवा रोग का कारण था। यह बैक्टीरिया हैजा पैदा करने वाले विब्रियो कोलेरा बैक्टीरिया से संबंधित है, जो शेलफिश को भी प्रभावित करता है।
बिगड़ता जा रहा था समुद्री ईको सिस्टम
साल 2013 में शुरू हुए इस रहस्यमय क्षय रोग ने मेक्सिको से लेकर अलास्का तक बड़े पैमाने पर स्टार फिश को अपनी चपेट में लेकर 20 से ज़्यादा प्रजातियों को तबाह कर दिया है और कई प्रजातियों को विलुप्ति के कगार तक पहुंचा दिया।
इस महामारी से सबसे ज़्यादा नुकसान स्टार फिश की सनफ्लावर प्रजाति को हुआ, जिसने इस प्रकोप के शुरुआती पांच वर्षों में अपनी लगभग 90% आबादी को खो दिया। सनफ्लावर स्टार फिश समुद्र की तलहटी में बहुतायत में पनपने वाले सी-अर्चिन को खाने के लिए जानी जाती हैं, जो सागर तल में उगने वाले शैवालों और जलीय वनस्पतियों को खाते हैं।
यह जलीय वनस्पतियां समुद्र के भीतर वही काम करती हैं, जोकि जंगल धरती पर करते हैं। यानी ये पानी में मौजूद कार्बन को सोख कर ऑक्सीजन के स्तर को बनाए रखते हैं, जो जलीय जीवों को सांस लेने में सहायक होती है। इसीलिए समुद्री वनस्पतियों के इस समूहों को ‘केल्प वनों' का नाम भी दिया गया है।
केल्प वनों को अक्सर "महासागर के वर्षावन" कहा जाता है और ये मछलियों, समुद्री ऊदबिलाव, सील और कई अन्य समुद्री प्रजातियों के लिए भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं। पर, जब से तारा मछलियां लुप्त हुई हैं, तब से सी-अर्चिन की आबादी बेतहाशा बढ़ गई और इन्होंने केल्प वनों पर कब्ज़ा कर लिया।
दस वर्षों के भीतर सी-अर्चिन ने उत्तरी कैलिफ़ोर्निया से अलास्का तक के समुद्री इलाके में लगभग 95% केल्प वनों को खाकर सफाचट कर दिया। इस तरह तारा मछलियों में फैली महामारी केवल इन मछलियों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा बन गई थी।
इससे प्रशांत सागर के एक बड़े इलाके का मरीन ईको सिस्टम चरमरा गया था। वैज्ञानिकों को आशंका थी कि अगर कुछ और वर्ष तक यह बीमारी जारी रहती तो प्रशांस महासागर का यह पारिस्थितक संकट धरती की पूरी समुद्री प्रणाली (मरीन सिस्टम) को अपनी चपेट में ले लेता।
क्या कहते हैं रिसर्च टीम के सदस्य
स्टार फिश की इतनी बड़ी आबादी के इस रोग की चपेट में आने और काफ़ी तेज़ रफ़्तार से फैलने की इसकी भयावहता ने वैज्ञानिकों को भी हैरान कर दिया। ब्रिटिश कोलंबिया के हकाई इंस्टीट्यूट में समुद्री रोग विशेषज्ञ एलिसा गेहमान, जिन्होंने इस नए शोध पर काम किया है, कहती हैं, "यह वाकई बहुत ही भयावह रोग है। इसमें संक्रमण होने के साथ ही स्वस्थ तारा मछलियों की भुजाएं फूली जाती हैं और उनमें घाव हो जाते हैं। बहुत ही कम समय में उनकी भुजाएं कटकर गिर जाने से उनकी मौत हो जाती है।"
रिसर्च टीम के सदस्य गेहमान ने कहा, "तारा मछलियां समुद्र तल पर रहने वाली लगभग हर चीज़ को खा जाती हैं। वे बहुत ज़्यादा खाती हैं। इस तरह वे समुद्र तलों की सफाई करने में एक अहम भूमिका निभाती हैं। पर, इनके संकट में पड़ने से नियंत्रण और सफाई का यह महत्वपूर्ण क्रम टूट गया था। अब, उनकी मौत का कारण पता चलने के बाद वैज्ञानिकों को समुद्री तारों की संख्या वापस लाने और प्रशांत महासागर के केल्प वनों को पुनर्स्थापित करने में मदद मिलने की उम्मीद है।
रिसर्च पेपर की प्रमुख लेखिका और यूबीसी के पृथ्वी, महासागर और वायुमंडलीय विज्ञान विभाग (ईओएएस) और हकाई संस्थान की रिसर्च फैलो डॉ मेलानी प्रेंटिस ने कहा, "वेस्टिंग रोग को अब तक की सबसे बड़ी समुद्री महामारी माना जाता है, लेकिन इसका निश्चित कारण अब तक अज्ञात था। अब हमने रोग पैदा करने वाले एजेंट की पहचान कर ली है। अगले चरण में हम इस महामारी को नियंत्रित या खत्म करने और इसके प्रभावों को कम करने के तरीकों पर रिसर्च शुरू कर सकते हैं।"
जलवायु परिवर्तन,ग्लोबल वॉर्मिंग से हो सकता है बीमारी का संबंध
जो बैक्टीरिया करोड़ों स्टार फिश की मौत का कारण बना उसके पनपने के पीछे कहीं न कहीं समुद्रों में बढ़ते प्रदूषण, ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी व्यापक वज़हों को ज़िम्मेदार माना जा रहा है।
रिसर्च टीम की सदस्य डॉ. प्रेंटिस ने कहा, '’विब्रियो बैक्टीरिया की विभिन्न प्रजातियां प्रदूषित गर्म पानी में पनपती हैं। इसलिए वेस्टिंग डिजीज बीमारी गर्म पानी में काफ़ी तेज़ी से फैलती है। इसके अलावा इन्हें पनपने के लिए पानी में कम ऑक्सीजन वाले माहौल की आवश्यकता होती है, जोकि प्रदूषण के कारण उत्पन्न होता है। इसलिए इस बीमारी के जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्रों के बढ़ते तापमान और सागरों में तेजी से बढ़ते प्रदूषण के बीच संबंध को बारीकी से समझने की आवश्यकता है।"
साइंस जर्नल एनुअल रिव्यूव्ज़ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने बताया है कि जब समुद्र का तापमान बढ़ता है तो पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा घटने लगती है, जिससे ऑक्सीजन-तनाव (हाईपॉक्सिया) की स्थिति बनती है। यही माहौल विब्रियो पेक्टेनिसिडा जैसे रोगजनक बैक्टीरिया के पनपने के लिए आदर्श होता है।
साथ ही, औद्योगिक कचरे और खेतों से बहकर जाने वाली मिट्टी में मौजूद खाद के पोषक तत्वों के समुद्र मिलने से तटीय क्षेत्रों में यूट्रोफिकेशन की प्रक्रिया बढ़ जाती है। इसके कारण समुद्र में शैवालों और बैक्टीरिया की संख्या काफ़ी तेजी से बढ़ती है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण पैदा होने वाली समुद्री हीटवेव जैसी घटनाएं इन बैक्टीरिया को और भी बढ़ावा देती हैं।
इस सबके चलते स्टार फिश की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है और वे बड़ी संख्या में इस बीमारी का शिकार हो जाती हैं। इस तरह स्टार फिश महामारी केवल एक जैविक घटना नहीं है, बल्कि यह समुद्र के बदलते भौतिक-रासायनिक वातावरण और मानवजनित प्रदूषण का सम्मिलित परिणाम है।
कई अनोखी खूबियां होती हैं स्टार फिश में
तारा मछलियों को स्टार फिश के नाम से भी जाना जाता है, पर यह मछली नहीं होतीं। वास्तव में ये इकाइनोडर्म समूह से संबंधित समुद्री जल में रहने वाले जलीय जीव होते हैं, जिनकी कई प्रजातियां हैं। आमतौर पर इनकी 5 भुजाएं होती हैं, लेकिन कुछ प्रजातियों में इससे कम या ज़्यादा भुजाएं भी हो सकती हैं।
इनका आवास गहरे समुद्री तल में विश्व के सभी महासागरों में पाया जाता है, पर ये खासतौर पर उष्णकटिबंधीय प्रवाल भित्तियों वाले ठंडे समुद्री जल में और अंतर्ज्वारीय और उपज्वारीय क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा तादाद में पाए जाते हैं। ये मांसाहारी होते हैं और शिकार करके सी-क्लैम, मसल्स, घोंघे और अन्य अकशेरुकी जीवों को खाते हैं।
सी-स्टार की भोजन ग्रहण करने की विधि अनोखी होती है। ये शिकार को खाने के बाद उसे पचाने के लिए वे अपना पेट शरीर से बाहर निकाल लेते हैं और पाचन के बाद उसे पुन: शरीर के भीतर ले जाते हैं। अपनी आबादी बढ़ाने के लिए स्टार फिश लैंगिक (बाह्य निषेचन) और अलैंगिक (पुनर्जनन) दोनों तरीकों से प्रजनन करते हैं।
पुनर्जनन की प्रक्रिया में इनकी भुजा शरीर से अलग होकर पूरा नया शरीर यानी नई स्टार फिश बना लेती है। इससे इनकी आबादी तेज़ी से बढ़ने की क्षमता रखती है। पर, हाल के वर्षों में स्टार फिश की एक बड़ी आबादी वेस्टिंग डिज़ीज जैसे जानलेवा रोग के खतरे से जूझ रही है।
खासतौर पर सनफ्लावर स्टार फिश की 90% आबादी के खत्म होने के बाद संयुक्त राष्ट्र ने इन्हें गंभीर रूप से लुप्तप्राय जलीय जीवों की सूची में डाल दिया है। रोग के अलावा इन्हें ग्लोबल वॉर्मिंग व जलवायु परिवर्तन के कारण महासागर का गर्म होने, अम्लीकरण, प्रदूषण और प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने जैसी समस्याओं से भी खतरा है।
तारा मछलियों की कुछ अन्य विशेषताओं की बात करें, तो इनमें आमतौर पर बहुकोशिकीय जीवों में पाए जाने वाले मस्तिष्क और हृदय जैसे अंग नहीं होते। इनके शरीर में रक्त भी नहीं होता। मस्तिष्क की जगह उनके शरीर में केंद्रीय डिस्क के चारों ओर एक तंत्रिका वलय होता है, जिससे रेडियल तंत्रिका के धागे निकल कर प्रत्येक भुजा में जाते हैं। इनके जरिये ही यह गति और संवेदी प्रतिक्रियाओं का संचालन करती हैं। हृदय और रक्त न होने के कारण इनके शरीर में पोषक तत्वों, गैसों और प्रतिरक्षा कोशिकाओं का संचार कोइलोमिक द्रव के माध्यम से होता है।
स्टार फिश में मल-मूत्र और अन्य गंदगी को बाहर निकालने के लिए कोई उत्सर्जक अंग भी नहीं होता। यह जीव शरीर की सतह पर बने सूक्ष्म छिद्रों के माध्यम से अपशिष्ट को विसरण की प्रक्रिया के ज़रिये शरीर से बाहर निकालते हैं। इनके अपशिष्ट में काफी मात्रा में नाइट्रेट मौज़ूद होता है, जो जलीय वनस्पतियों के लिए पोषक तत्व का काम करता है।