किसी भी शहर में भौतिक, संस्थागत, सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे को एकीकृत करके ही व्यापक विकास होता है। साफ शहर पर्यटकों की अच्छी संख्या को आकर्षित करते हैं, जो सकल घरेलू उत्पाद और रोजगार में योगदान कर सकते हैं। इसे ध्यान में रख कर सरकार ने भारत में स्मार्ट सिटी मिशन का शुभारंभ किया है। एक स्मार्ट व साफ शहर परिष्कृत कार्यालयों, सेवाओं, संस्थानों को आकर्षित करता है। शहरी स्थान कमाई क्षमताओं को बढ़ाता है जिस कारण इसकी जनसंख्या बढ़ती जाती है। हर साल शहरी जनसंख्या 10% तक बढ़ जाती है चाहे यह अर्ध-शहरी, शहरी, नगर पालिका या महानगर या कॉस्मोपॉलिटन है, लोग गांवों से बेहतर शिक्षा, चिकित्सा की जरूरतों के लिए या नौकरी और बेहतर जीवन की तलाश में यहाँ आते हैं। ग्रामीण इलाकों या छोटे शहरों से आया व्यक्ति उन शहरों में रहता है जो आय उत्पन्न करते हैं और उस विशेष स्थान, देश और वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं। इस कारण से शहर और बढ़ता जाता है और बढ़ती जनसंख्या के लिए और अधिक बुनियादी विकास की आवश्यकता होती है। बुनियादी ढांचे के निर्माण में ड्रेनेज प्रमुख भूमिका निभाता है। यदि ड्रेनेज को ठीक से नहीं रखा जाता है तो विभिन्न समस्याएं खड़ीं हो सकती हैं।
इस लेख के माध्यम से, स्मार्ट सिटी मिशन की समीक्षा करते हुए शहरी बाढ़, व जल-निकासी के कारणों का वर्णन किया गया है। इस समस्या के समाधान को स्मार्ट सिटी के लिए अति आवश्यक चुनौती के रूप में दर्शाया गया है तथा इसके समाधान के तरीकों पर ज़ोर दिया गया है। अंततः बेहतर बुनियादी ढांचे वाले आदर्श शहर बनाने के लिए सामुदायिक या व्यक्तिगत स्तर पर उठाए जाने वाले आवश्यक कदम का वर्णन किया गया है जिससे स्मार्ट सिटी मिशन उद्देश्य सबसे अधिक पसंद किया जा सके।
भारत की वर्तमान जनसंख्या की लगभग 31% आबादी शहरों में बसती है और इनका सकल घरेलू उत्पाद में 63% (जनगणना 2011) का योगदान है। ऐसी उम्मीद है कि वर्ष 2030 तक शहरी क्षेत्रों में भारत की आबादी का 40% भाग रहेगा और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 75% का होगा। इसके लिए भौतिक, संस्थागत, सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के व्यापक विकास की आवश्यकता है। ये सभी जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने एवं लोगों और निवेश को आकर्षित करने, विकास एवं प्रगति के एक गुणी चक्र की स्थापना करने में महत्वपूर्ण हैं। स्मार्ट सिटी का विकास इसी दिशा में एक कदम है।
स्मार्ट सिटी मिशन स्थानीय विकास को सक्षम करने और प्रौद्योगिकी की मदद से नागरिकों के लिए बेहतर परिणामों के माध्यम से जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने तथा आर्थिक विकास को गति देने हेतु भारत सरकार द्वारा एक नई पहल है।
जब हम स्मार्ट सिटी की बात करते हैं तो पहला सवाल यह आता है कि 'स्मार्ट सिटी' का क्या मतलब है। इसके उत्तर में हम कहेंगे कि स्मार्ट सिटी की सार्वभौमिक रूप से स्वीकार की गई कोई परिभाषा नहीं है। इसका अर्थ अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग बात है इसलिए, स्मार्ट सिटी की अवधारणा एक शहर से दूसरे शहर और एक देश से दूसरे देश में विकास के स्तर, परिवर्तन और सुधार करने की इच्छा, शहर के निवासियों के संसाधनों और आकांक्षाओं के आधार पर बदलती है।
स्मार्ट सिटी शहर की अहम जरूरतों एवं शहर के निवासियों के जीवन में सुधार करने के लिए बड़े अवसरों पर ध्यान केंद्रित करता है।
स्मार्ट सिटी मिशन का उद्देश्य ऐसे शहरों को बढ़ावा देने का है जो अपने नागरिकों को मूल बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराए और एक सभ्य गुणवत्तापूर्ण जीवन प्रदान करे, साथ ही एक स्वच्छ और टिकाऊ पर्यावरण एवं 'स्मार्ट समाधानों के प्रयोग का मौका दें। विशेष ध्यान टिकाऊ और समावेशी विकास पर है और एक रेप्लिकेबल मॉडल बनाने के लिए है। स्मार्ट सिटी मिशन ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए है जिसे स्मार्ट सिटी के भीतर और बाहर दोहराया जा सके, विभिन्न क्षेत्रों और देश के हिस्सों में भी इसी तरह के स्मार्ट सिटी के सृजन को उत्प्रेरित किया जा सके।
स्मार्ट सिटीज मिशन में क्षेत्र-आधारित विकास के रणनीतिक घटक शहर के सुधार (रिट्रोफिटिंग), शहर नवीकरण (पुनर्विकास) और शहर विस्तार (ग्रीनफील्ड डेवलपमेंट) तथा एक पैन-सिटी पहल है जिसमें स्मार्ट सॉल्यूशंस से शहर के बड़े हिस्से को कवर किया जाता है। नीचे क्षेत्र-आधारित स्मार्ट सिटी विकास के तीन मॉडलों को दिया गया हैः
एक मौजूदा बिल्ड अप क्षेत्र में योजना बनाना शुरू करेगी ताकि स्मार्ट सिटी के उद्देश्यों को हासिल किया जा सके, साथ ही मौजूदा क्षेत्र को और अधिक कुशल और जीवंत बनाया जा सके। रिट्रोफिटिंग में नागरिकों के साथ मिलकर शहर में 500 से अधिक एकड़ क्षेत्र की पहचान की जाएगी। फिर बुनियादी ढांचे के मौजूदा स्तर और निवासियों की दूर दृष्टि के आधार पर, शहर को स्मार्ट बनाने के लिए एक रणनीति तैयार होगी। यह रणनीति कम समय सीमा में भी पूरी हो सकती है, जिससे शहर के दूसरे हिस्से में इसकी प्रतिकृति हो सकती है।
मौजूदा निर्मित वातावरण के प्रतिस्थापन को प्रभावित करेगा और मिश्रित भूमि उपयोग और बढ़ते घनत्व का उपयोग करके उन्नत संरचना के साथ एक नए लेआउट के सह-निर्माण को सक्षम करेगा।
के विकास में पहले से खाली क्षेत्र (250 एकड़ से अधिक) में आकर्षक सॉल्यूशन का परिचय दिया जाएगा, जिसमें विशेष रूप से गरीबों के लिए किफायती आवास का प्रावधान किया जाएगा।
में मौजूदा शहर-स्तरीय बुनियादी ढांचे के लिए चुने गए स्मार्ट सॉल्यूशंस की परिकल्पना की गई है। स्मार्ट सॉल्यूशन के अनुप्रयोग से बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी, सूचना और डेटा का उपयोग शामिल होगा। उदाहरण के लिए, परिवहन क्षेत्र में स्मार्ट सॉल्यूशन लागू करना। एक और उदाहरण अपशिष्ट जल रीसाइक्लिंग और पेय जल आपूर्ति में स्मार्ट तकनीक का उपयोग हो सकता है जो शहर में बेहतर जल प्रबंधन के लिए बड़ा योगदान दे सकता है।
पर्याप्त पानी की आपूर्ति
निश्चित विद्युत आपूर्ति
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सहित स्वच्छता
कुशल शहरी गतिशीलता और सार्वजनिक परिवहन
किफायती आवास, विशेष रूप से गरीबों के लिए
सुदृढ़ आई टी कनेक्टिविटी और डिजिटलीकरण
सुशासन, विशेष रूप से ई-गवर्नेस और नागरिक भागीदारी
टिकाऊ पर्यावरण
नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा, विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा
इस मिशन में 100 शहरों को शामिल किया जाएगा। 100 स्मार्ट शहरों की कुल संख्या एक समान मापदंड के आधार पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच वितरित किया गया है। स्मार्ट सिटी में प्रमुख चुनौतियां
अधिक से अधिक लोग शहरों में पलायन कर रहे हैं इसलिए भूमि की उपलब्धता दुर्लभ हो रही है। यहां तक कि शहरी इलाकों में जमीन के एक छोटे से टुकड़े का भी उच्च आर्थिक मूल्य है। इस कारण शहरी जल निकायों की जमीन को अवैध तरीके से घेर लिया जाता है। इन शहरी जल निकायों का पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण योगदान अभी समझा नहीं जा रहा है इसलिए इनको भी पाटने का या अतिक्रमण का ही प्रयास हो रहा है। महाराष्ट्र में चारकोप झील, पुडुचेरी में ओस्टरटी झील, गुवाहाटी के पास दीपर बील वेटलैंड ईकोसिस्टम अतिक्रमण का
ज्वलन्त उदाहरण हैं।
शहरी आबादी में विस्फोटक वृद्धि हुई है परन्तु बुनियादी नागरिक सुविधाओं में उस तेजी से विस्तार नहीं किया गया। जैसे अभी भी हमारे महानगरों में कचरा निपटान के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है। स्थानीय समुदायों द्वारा सांस्कृतिक या धार्मिक त्योहारों के लिए जल निकायों का दुरुपयोग होता है।
- जलग्रहण स्थानों पर और झील के तल पर रेत और क्वार्टजाइट जैसे भवन निर्माण सामग्री के लिए अवैध खनन का जल श्रोतों पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, जोधपुर में जैसमंद झील, जो एक समय शहर के लिए पीने के पानी का एकमात्र स्रोतों थी, अवैध खनन से पीड़ित है।
पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए जल निकायों का उपयोग भारत में कई शहरी झीलों के लिए एक खतरा बन गया है। केरल के कोल्लम शहर में अष्टमुडी झील, जो कि मोटर बोटों से तेल के छलकाव के कारण प्रदूषित हो गई है, जो हमें भविष्य में पर्यावरण से संबंधित खतरों से आगाह करती है।
देश में शहरी जल निकायों की कुल संख्या पर अधिकतर सरकारों के पास पर्याप्त आंकड़े नहीं हैं। न्यायालय के फैसलों के कारण कुछ शहरों में जल निकाय आंकड़ें दर्ज किए गए हैं। राज्य सरकारों ने न तो आर्द्रभूमि चिन्हित की है और ना ही नदियों के पानी के प्रदूषण या अतिक्रमण के कारण इन आर्द्रभूमियों को होने वाले खतरे की पहचान की है।
स्मार्ट सिटी मिशन में मौजूदा बड़े शहरों को ही स्मार्ट सिटी बनाने के लिए चुना गया है। भारत के बड़े शहरों व महानगरों में जल संबंधी अनेकों अनेक सामस्याएं हैं। बार-बार आने वाली शहरी बाढ़ ने केवल एक तथ्य पर हमारा ध्यान केंद्रित किया है कि हमारे शहरी इलाकों ने उन प्राकृतिक जल निकायों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है जो उन में मौजूद हैं। चेन्नई सहित कई शहरों में जल-दुर्लभता और बाढ़ की संभावना दोनों प्रकार की चरम स्थितियां देखने को मिलती हैं। दो दशक से, शहरी जल निकाय भारत में अनियोजित शहरीकरण का शिकार रही हैं, जिसके कारण उन्हें कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
भारत के 50-60 प्रतिशत शहर अर्बन फ्लडिंग की चपेट में हैं। आनेवाले दिनों में ऐसे शहरों की संख्या बढ़ने वाली है। सिर्फ भारत ही नहीं, वैश्विक स्तर पर जापान का टोक्यो, चीन, अमेरिका, कनाडा, सेंट्रल यूरोप, मेक्सिको, वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलिपींस के शहर भी इसकी चपेट में हैं। पूरे विश्वभर में इस समस्या को लेकर शोध जारी है और सरकारें चिंतित हैं।
उत्तराखंड में देहरादून व हरिद्वार, बिहार में पटना व भागलपुर जैसे शहर हों या देश की राजधानी दिल्ली, व्यापारिक राजधानी मुंबई, मेट्रो सिटी कोलकाता व चेन्नई जैसे महानगरों में अर्बन फ्लडिंग का खतरा बढ़ रहा है। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आनेवाले दिनों में बाढ़ से शहरों में भयंकर तबाही होगी। नदियों के किनारे बसे शहरों पर अर्बन फ्लडिंग का अधिक खतरा है। पिछले कुछ वर्षों में देश के अनेकों शहरों में जल भराव व बाढ़ का भीषण प्रकोप देखा गया इस का सार तालिका-1 में दर्शाया गया है।
घटनाक्रम
घटना और आर्थिक नुकसान के परिणाम
गुजरात (सूरत, गांधीनगर, अहमदाबाद, सुरेंद्रनगर, छोटा उदयपुर, 2017 राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम के कई शहरों में बाढ़ 2017
753 गांवों की बिजली आपूर्ति कट गई। सड़क और रेल परिवहन प्रभावित हुए। छह राष्ट्रीय राजमार्गों, और 153 राज्य महामार्गों और 674 पंचायत सड़कों में बाढ़ के कारण यातायात बंद हो गया।
गुजरात में बाढ़ में कम से कम 224 लोग मारे गए।
राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए 10 करोड़ रुपये और राज्य राजमार्गों के लिए 26 करोड़ रुपये के नुकसान का आंकलन किया गया है।
चेन्नई शहरी बाढ़ का नवम्बर-दिसंबर, 2015
यह नुकसान 50,000 करोड़ रुपए से 100,000 करोड़ तक बढ़ रहा है।
अकेले ऑटोमोबाइल क्षेत्र के नुकसान का अनुमान 8000 करोड़ के बीच था।
कुड्डालोर इलाके में अधिकतम लोगों की मृत्यु हो गई। साइडपेट क्षेत्र में, 2,000 झोपड़ियां जलमग्न थी। घटना के दौरान लगभग 1000 लोगों की मौत हुई। लगभग 18 लाख लोग विस्थापित हुए थे।
कई उपनगरीय ट्रेन सेवाएं पंगु हो गई थी। रनवे में बाढ़ के कारण कई उड़ानों को रद्द कर दिया गया था।
श्रीनगर घटना सितंबर 2014
श्रीनगर में एक हफ्ते में 550 मिमी. से ज्यादा बारिश हुई। 215 लोगों ने अपना जीवन गंवा दिया 2,600 गांव प्रभावित हुए जिनमें से 390 गांव जलमग्न थे।
बुनियादी ढांचे को नुकसान रु 6,000 करोड़ की परिपक्व फसलों और बागों के रूप में।
हैदराबाद में शहरी बाढ़ अगस्त 2008
राज्य की राजधानी में और उसके आसपास के लगभग 52 आवासीय क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित हुए।
बीस टैंकों और कई प्रमुख स्टॉर्म वाटर जल निकासियों में उफान आया।
कोलकाता बाढ़-2007
बंगाल की खाड़ी में उष्णकटिबंधीय अवसाद से भारी बारिश में 51 लोगों की मौत हुई, और इसने 32 लाख लोगों को प्रभावित किया।
प्रभावित शहरों की संख्या 35 थी। कोलकाता सबसे बुरी तरह प्रभावित हुआ।
बुनियादी ढांचे, आवास, फसलों और पशुधन को नुकसान सहित लगभग रू. 4000 करोड़ का नुकसान।
सूरत 2006
रोजाना, भारी बारिश और उच्च होने के कारण हीरा कारोबार में ठहराव आ गया।
लगभग 90 प्रतिशत परिवार प्रभावित हुए; शहर के सात वार्डों में से छह जलमग्न रहे।
विशाखापत्तनम 2006
विशाखापत्तनम हवाई अड्डा 10 दिनों से अधिक के लिए पानी में डूबा पड़ा था।
भोपाल 2006
शहर के निम्न इलाकों में से अधिकांश पानी में डूबे।
मुंबई 26 जुलाई 2005
परिवहन और संचार प्रणाली का पतन। कम से कम 419 लोगों ने अपना जीवन खो दिया।
भरोच की बाढ अगस्त, 2004
भारी जल प्रवेश और बाढ़ के कारण पूरी तरह से यातायात अवरुद्ध हो गया। लगभग रु. 10 करोड़ का नुकसान।
पेय जल उपलब्धता - बढ़ती जनसंख्या के कारण अधिकांश शहरों में पेय जल की उपलब्धता में लगातार कमी आ रही है। नागरिकों को स्वच्छ एवं पर्याप्त पेय जल उपलब्ध कराना एक चुनौती बनती जा रही है।