आपदा

सूख रहे झरनों का पुनरुत्थान

खासकर सर्दी के आते ही लोगों को पानी की किल्लत का सामना करने की आदत हो गई है। साल-दर-साल समस्या विकराल होती जा रही है।  विशेषज्ञ मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, खनन और खेती के स्लेश एंड बर्न सिस्टम (झूम खेती) को झरनों के सूखने के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। सख्त सरकारी निषेध के बावजूद, अनियंत्रित कटाई की समस्या एक चिंताजनक मुद्दा बनी हुई है।

Author : इप्सिता रॉय, पीपुल्स साइंस इंस्टिट्यूट

अरुणाचल प्रदेश अनुमानित 3.19 बिलियन क्यूबिक मीटर भूजल संसाधनों (सीजीडब्ल्यूबी, 2020) और भारत की एक तिहाई से अधिक जलविद्युत क्षमता के साथ प्रचुर जल संसाधनों से संपन्न है। कई प्रमुख नदियाँ जैसे कामँग, सियांग, सुबनसिरी, आदि और कई आर्द्रभूमि जैसे भागजंग, नगुला, आदि इसकी समृद्ध जैव विविधता का पोषण करती हैं। इतने विशाल जल संसाधनों के बावजूद, अरुणाचल प्रदेश पीने के पानी की कमी से जूझ रहा है।

राज्य में पीने योग्य पानी के प्रमुख स्रोत बारहमासी प्राकृतिक झरने और छोटी जल धाराएं हैं। हालांकि,वे काफी तेजी से सूख रहे हैं। केवल 2018 में, 200 से अधिक प्राकृतिक झरनों के सूख जाने की सूचना मिली थी। चांगलांग, लोंगडिंग जैसे कई जिलों में पानी की कमी जीवन का अभिन्न अंग बन गई है।

खासकर सर्दी के आते ही लोगों को पानी की किल्लत का सामना करने की आदत हो गई है। साल-दर-साल समस्या विकराल होती जा रही है।  विशेषज्ञ मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, खनन और खेती के स्लेश एंड बर्न सिस्टम (झूम खेती) को झरनों के सूखने के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। सख्त सरकारी निषेध के बावजूद, अनियंत्रित कटाई की समस्या एक चिंताजनक मुद्दा बनी हुई है।

इससे वनों का क्षरण तेजी से हो रहा है। जलवायु परिवर्तन समस्या विकराल बन रही है। बढ़ते तापमान, उच्च तीव्रता वाली छोटी अवधि की बारिश और सर्दियों की बारिश में उल्लेखनीय गिरावट ने राज्य के जल स्रोतों को कम कर दिया है। बढ़ती पेयजल की कमी का समाधान करने के लिए एसडब्ल्यूएसएम ने पेयजल स्रोत स्थिर हेतु स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर एक प्रायोगिक परियोजना शुरू की है। इस परियोजना में, पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट (पीएसआई) राज्य के लोक स्वास्थ्य और अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) के साथ मिलकर कार्य कर रहा है। राज्य भर  में स्प्रिंगशेड प्रबंधन को लागू करने के लिए इस परियोजना का मुख्य फोकस एक गांव में मॉडल स्प्रिंगरोड विकास योजना तैयार करने और इसके कार्यान्वयन के माध्यम से हितधारकों की क्षमता का निर्माण करना है।

पीएसआई की एक अनुभवी टीम ने सितंबर, 2020 में 14 दिवसीय वर्चुअल मार्गनिर्देशन कार्यशाला के साथ इस कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यशाला के दौरान 30 प्रतिभागियों को हाइड्रोजियोलॉजी, सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति, जल गुणवत्ता परीक्षण, शोधन उपायों और संस्थागत निर्माण में बुनियादी प्रशिक्षण दिया गया। हालांकि, महामारी और लगातार यात्रा प्रतिबंधों के कारण, क्षेत्र आधारित प्रशिक्षण आयोजित नहीं किया जा सका। वर्चुअल वर्कशॉप के बाद, प्रशिक्षित अधिकारियों ने ऐसे महत्वपूर्ण झरनों और जल धाराओं की पहचान की, जो पूरे राज्य के लगभग 650 गांवों में सूख रहे थे। इन पहचान किए गए गांवों में से चांगलांग जिले के मियाओ सिंघपो को एक मॉडल साइट के रूप में चुना गया था।

हर साल चांगलांग जिले को सर्दियों के महीने में पानी की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ता है। नवंबर, 2021 में, पीएसआई ने गांव की सामाजिक-आर्थिक और हाइड्रोजियोलॉजिकल परिस्थितियों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से पानी के संबंध में ग्रामीणों के दृष्टिकोण का अध्ययन करने के लिए मियाओ में 7 दिवसीय व्यावहारिक प्रशिक्षण आयोजित किया। सामुदायिक बैठकों के दौरान, पाइपलाइनों के माध्यम से पानी की आपूर्ति की कमी ग्रामीणों की एक प्रमुख चिंता के रूप में सामने आई। गांव की एक महिला ने कहा, "हमें जनवरी और फरवरी में टैंकरों को बुलाना पड़ता है या नोआ-दिहिंग से खुद पानी लाना पड़ता है।" नीरस ऋतु के दौरान अपनी पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए ग्रामीणों को नोआ - दिहिंग नदी (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी) पर निर्भर रहना पड़ता है। पीएचईडी द्वारा जल संवर्धित मैथोंग धारा में गांव की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त जल था। लेकिन हाल के वर्षों में, इसके जल की स्थिति में काफी गिरावट आई है जिससे पानी की कमी की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

सामुदायिक बैठकों के माध्यम से एकत्र की गई। जानकारी के आधार पर, गाँव में एक जलधारा और चार झरनों को महत्वपूर्ण माना जाता था, अर्थात, विशेष रूप से सर्दियों के दौरान पानी की माँगों को पूरा करने के लिए उन्हें रिचार्ज करने की आवश्यकता होती थी। पुनर्भरण क्षेत्र को चित्रित करने के लिए विस्तृत हाइड्रोजियोलॉजिकल सर्वेक्षण किए गए, इसके बाद शोधन उपायों की पहचान करने के लिए एक इंजीनियरिंग सर्वेक्षण किया गया। ये सर्वेक्षण पीएचईडी अधिकारियों के क्षेत्र प्रशिक्षण के साथ-साथ आयोजित किए गए थे। फिर क्षेत्र सर्वेक्षण के आधार पर पीएसआई द्वारा एक विस्तृत जल सुरक्षा योजना विकसित की गई। ऑन फील्ड प्रशिक्षण बहुत उपयोगी साबित हुआ, क्योंकि अधिकांश प्रशिक्षित अधिकारी अपने-अपने गांवों में जल- भूवैज्ञानिक और सामाजिक सर्वेक्षण करने में सक्षम थे। पीएसआई वर्तमान में मियाओ सिंघपो गांव में इस मॉडल स्प्रिंगरोड प्रबंधन योजना के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बना रहा है।

मियाओ में सामुदायिक संपर्क करने से सामुदायिक एकजुटता को एक बड़ी चुनौती के रूप में पहचानने में मदद मिली है। पूरी हो चुकी जेजेएम योजना को समुदाय के लिए समझना जटिल है क्योंकि वे नए कार्यक्रमों को लेकर भी संशय में हैं। स्प्रिंगशेड प्रबंधन का एक मुख्य उद्देश्य समुदाय को यह समझाना भी है कि उनका जल स्रोत एक सामान्य पूल संसाधन है। यह न केवल ग्रामीणों को स्वामित्व की भावना देता है बल्कि स्प्रिंगरोड प्रबंधन प्रणाली की स्थिरता को भी सुनिश्चित करता है। समुदाय को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करने की जरूरत है, जो जेजेएम की रीढ़ है। ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति का क्षमता निर्माण करना भी महत्वपूर्ण कार्य है।
मियाओ अब एक हर घर जल' गांव है, और स्प्रिंगशेड प्रबंधन से गांव में स्रोत स्थिरता सुनिश्चित रहेगी। वर्तमान में, जिस दर से राज्य में जल स्रोतों में गिरावट आ रही है, वह उनके पुनरुद्धार की तुलना में बहुत अधिक है। हालांकि सरकार पाइपलाइन बिछाने और पानी की आपूर्ति के नल स्थापित करने में सफल रही है फिर भी स्रोत की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए समान प्रयास किए जाने चाहिए क्योंकि पानी के बिना अन्य सभी प्रयास व्यर्थ हैं। इसलिए हम सिर्फ हर घर नल नहीं चाहते, लेकिन यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आज और लंबे समय में 'हर घर जल' है। झरनों का पुनरुद्धार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और हमारे झरनों और धाराओं को सूखने से बचा सकता है और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है।

स्रोत : - जल जीवन संवाद अंक 23 अगस्त 2022

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