बादल फटने पर एक छोटे से इलाके में बहुत कम समय में प्रचंड बारिश होने से अकसर भयंकर सैलाब आ जाता है। स्रोत : फ्रीपिक
आपदा

सवाल-जवाब : क्‍या होता है बादल फटना और कैसे रहें सुरक्षित

जानिए भारतीय हिमालय क्षेत्र में बादल फटने के कारण, उसके विनाशकारी असर और इस तरह की चरम मौसमी घटनाओं में खुद को सुरक्षित रखने के ज़रूरी उपाय।

Author : अमिता भादुड़ी

करीब दो हफ़्ते पहले उत्‍तराखंड के उत्‍तरकाशी ज़िले में बादल फटने से मची तबाही के मंज़र ने लोगों का दिल दहला दिया। अचानक हुई इस घटना ने इतना विनाश किया कि हिमालय की विशालकाय चट्टानों से लेकर मकान और गाडि़यां तक देखते-देखते ही देखते सैलाब में बहकर ज़मींदोज़ हो गईं।

बादलों की तबाही का यह सिलसिला बीते हफ़्ते भी जारी रहा, जब जम्मू-कश्मीर के किश्‍तवाड़ और कठुआ में बादल फटने के खौफ़नाक वीडियो सामने आए। इन घटनाओं ने जहां बादल फटने को लेकर लोगों के दिलों में दहशत बढ़ाई है, वहीं लोगों के ज़हन में यह सवाल भी उभर कर आया है कि ‘बादल फटना’ आखिर होता क्‍या है और बादल क्‍यों फटते हैं? क्‍या समय रहते इसके लक्षणों को पहचान कर बादल फटने से होने वाली तबाही से बचा जा सकता है या इसके असर को कम किया जा सकता है? इस लेख में हम आपको इन्‍हीं चीज़ों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, ताकि आप बादल फटने की वजहों, इसके लक्षणों और प्रभावों को समझ कर इससे सतर्क रह सकें। 

बादल फटना क्या होता है?  भारत के हिमालयी क्षेत्रों के संदर्भ में इसे कैसे समझा जा सकता है?

बादल फटना मौसम की एक चरम घटना (एक्सट्रीम वैदर ईवेंट) है, जिसमें किसी छोटे इलाके में एक घंटे के भीतर 100 मिलीमीटर (4 इंच) से ज़्यादा बारिश होती है। यह बारिश अकसर काफी तेज़ी से और अचानक होती है। भारत के संदर्भ में देखा जाए तो, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) बादल फटने को लगभग 20-30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 100 मिलीमीटर प्रति घंटे के बराबर या उससे ज़्यादा बारिश की घटना को बादल फटने के रूप में परिभाषित करता है।

बादल फटने की घटना किसी अलग या खास तरह के बादलों के कारण नहीं होती, बल्कि यह घटना एक छोटे इलाके में बहुत ही कम समय में काफी ज़्यादा वर्षा होने का नतीजा होती है, जिसकी वजह अकसर बादलों का पर्वतीय उत्थान (ऑरोग्राफिक लिफ्टिंग) की घटना होती । ऐसा तब होता है, जब नम हवाएं हिमालय की ढलानों से टकरा कर तेज़ी से ऊपर की ओर उठती हैं और काफ़ी तेज़ी से ठंडी होकर संघनित होती हैं और बरस जाती हैं।

हिमालय के इलाकों में ये घटनाएं खासतौर पर विनाशकारी साबित होती हैं क्योंकि:

  • खड़ी ढलानें पानी के बहाव को तेज़ कर देती हैं, जिससे अचानक बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।

  • हिमालयी घाटियों के इलाकों में बस्तियां और अन्‍य इन्‍फ्रास्‍टक्‍चर अकसर नदी के किनारे बाढ़ के रास्ते में ही बने होते हैं।

  • इन क्षेत्रों की अस्थिर भू-संरचना भूस्खलन और मलबे के बहाव की संभावना को बढ़ा देती है।

बादल फटने की घटनाओं के क्‍या परिणाम होते हैं और इनसे सुरक्षित कैसे रहा जा सकता है?

भारत के हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने के कारण, उनके विनाशकारी प्रभाव और चरम मौसम की घटनाओं के दौरान खुद को सुरक्षित रखने के लिए ज़रूरी सुरक्षा उपायों को इस प्रकार समझा जा सकता है:

बादल फटने को सबसे खतरनाक मौसमी घटनाओं में से एक माना जाता है। अचानक भारी बारिश की वजह से मिनटों में ही भयंकर बाढ़ और खतरनाक भूस्खलन हो सकता है। हिमालय के नाज़ुक पहाड़ी वातावरण में, जहां खड़ी ढलानें, संकरी घाटियां और कमज़ोर मकानों वाली बस्तियां देखने को मिलती हैं, वहां बादल फटने की घटनाओं से अकसर बड़ा विनाश देखने को मिलता है। 

बीते 5 अगस्त 2025 को उत्‍तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के धराली गांव में बादल फटने से हुई तबाही इसका एक ताज़ा उदाहरण है। अचानक बादल फटने से ग्‍लेशियर झील के फूट पड़ने और ग्लेशियर के ढहने से देखते ही देखते एक बड़े इलाके में मची तबाही से पानी, कीचड़ और मलबे का ढेर लग गया। घर, दुकानें, होटल और एक प्राचीन मंदिर इस विनाशकारी हादसे में बह गए। चार से पांच लोगों की जान जाने की भी पुष्टि हुई, जबकि कई लोग लापता भी बताए गए, जिनमें पास ही के इलाके में तैनात सैनिक भी शामिल थे।

घटना के बाद भारतीय सेना, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, आईटीबीपी और स्थानीय अधिकारियों की मदद से तेज़ी से बचाव अभियान शुरू किया गया। चिनूक और एमआई-17 सहित सेना के कई हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल जीवित बचे लोगों को निकालने और सहायता पहुंचाने के लिए किया गया। इन अभियानों के दौरान कम विज़िबिलिटी, भारी बारिश और अस्थिर ढलानों जैसी समस्‍याओं का सामना करना पड़ा। गंभीर चिंता की बात यह थी की उसी समय एक और भारी बारिश का अलर्ट जारी किया गया था, जिससे दोबारा भूस्खलन और बाढ़ की आशंका बढ़ गई थी।

पर्वतों की खड़ी चढ़ाइयों से टकरा कर कुछ इस तरह से फट पड़ते हैं बादल।

भारतीय हिमालय क्षेत्र में बादल फटने की घटनाएं इतनी ज़्यादा और तीव्र क्यों होती हैं?

भूगोल और जलवायु से जुड़ी कई बातें हिमालय क्षेत्र में बादल फटने की घटनाओं की वजह बनती हैं:

पर्वतीय प्रभाव : पहाड़ों की खड़ी चढ़ाइयां नम मानसूनी हवाओं को तेज़ी से ऊपर उठने के लिए मजबूर करती हैं, जिससे हवा ठंडी और संघनित हो जाती हैं। इससे अकसर इन इलाकों में मूसलाधार बारिश होती है।

मानसून की गति : दक्षिण-पश्चिम मानसून बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से नम व गर्म हवा लेकर आता है, जो हिमालय की ठंडी हवाओं से टकराकर वायुमंडल में अस्थिरता पैदा करती हैं।

स्थानीय संवहन : गर्मियों में चट्टानों की सतह का गर्म तापमान इलाके में हवा के तेज़ झोंके पैदा करता है। संकरी घाटियों में ऐसा खासतौर पर देखने को मिलता है, क्‍योंकि यहां हवाएं फंसी हुई स्थिति में होती हैं।

टोपोग्राफिक फ़नल इफेक्‍ट : हिमालय की घाटियां कई बार एक फ़नल की तरह काम कर सकती हैं। ये नम हवाओं को एक छोटे इलाके में समेट कर काफ़ी तेज़ बारिश करा देती हैं।

जलवायु परिवर्तन : साक्ष्य बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन अत्यधिक वर्षा की घटनाओं को बढ़ा रहा है। क्लॉसियस-क्लैपेरॉन रिलेशन के कारण गर्म होता वातावरण अधिक नमी ग्रहण कर लेता है, जिससे भारी वर्षा की संभावना बढ़ जाती है।

पश्चिमी विक्षोभ : मानसून से पहले और मानसून के बाद की अवधि में पश्चिमी विक्षोभ और मानसूनी नमी के बीच आपसी क्रियाओं के चलते कई बार बादल फट जाते हैं। ऐसा खासतौर पर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में देखने को मिलता है।

बादल फटने (क्‍लाउड बर्स्‍ट) की घटना अन्य तरह की भारी बारिशों (एक्‍सट्रीम रेनफॉल) और अचानक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) से किस तरह अलग है?

बादल फटने की सभी घटनाओं में भारी बारिश होती है, लेकिन सभी भारी वर्षा की घटनाएं बादल फटने के कारण नहीं होतीं। बादल फटना वर्षा के स्पेक्ट्रम का सबसे तेज़ घटनाक्रम है, जो अकसर हिमालयी क्षेत्र में अचानक भयंकर बाढ़ आने का कारण बनता है।

भारत के हिमालयी क्षेत्र के किन इलाकों में सबसे ज़्यादा बादल फटते हैं?

ऐतिहासिक रिकॉर्ड और उपग्रह-आधारित अध्ययनों से संकेत मिलता है कि भारतीय हिमालय क्षेत्र में बादल फटने की घटनाओं वाली प्रमुख जगहों में ये जगहें शामिल हैं:

जम्मू और कश्मीर : अमरनाथ गुफा क्षेत्र में 2022 में बादल फटा था, इसके अलावा गांदरबल, पहलगाम, किश्तवाड़ में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं।

लद्दाख : लेह क्षेत्र में 2010 में बादल फटने से 200 से अधिक लोग मारे गए थे।

हिमाचल प्रदेश : कुल्लू, किन्नौर, चंबा, धर्मशाला, मनाली के आसपास के इलाकों से भी बादल फटने की खबरें आती रहती हैं।

उत्तराखंड : केदारनाथ में 2013 में मची भयंकर तबाही की वजह बादल का फटना ही था। इसके अलावा चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, पिथौरागढ़ से भी कई बार बादल फटने की खबरें आ चुकी हैं।

सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश : तवांग, ऊपरी सियांग और उत्तरी सिक्किम में बादल फटने की घटनाएं होती रहती हैं। हालांकि, कई बार इनकी खबरें सामने नहीं आ पातीं। 

बर्फ़ से भरी नदियों और ग्लेशियरों के पास स्थित क्षेत्रों में खतरे की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि ऐसे इलाकों में बादल फटने से बर्फ़ पिघलने से या नदी के पानी में तेज़ी से बढ़ोतरी होने से बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। खड़ी, संकरी घाटियां भी पानी के बहाव को तेज़ करती हैं, जिससे अचानक विनाशकारी बाढ़ की स्थिति बन जाती है। इसके अलावा 1,500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर नम मानसूनी हवाओं वाले क्षेत्र अस्थिर ढलानों  के कारण विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं, क्‍योंकि इनकी सीमित जल अवशोषण क्षमता के कारण यहां पानी का बहाव काफी तेज़ होता है।

पर्वतीय इलाकों में बादल फटने से आया सैलाब कुछ ही पलों में चट्टानों, मकानों और पेड़ों से लेकर अपने रास्‍ते में पड़ने वाली हर चीज़ को बहा ले जाता है।

हिमालयी इलाकों में बादल फटने की घटना का वहां के बुनियादी ढांचे और लोगों पर क्या असर पड़ता है?

बादल तब फटते हैं जब नमी से भरी हवा खड़ी ढलानों तेज़ी से ऊपर उठती है और ठंडी हो जाती है, जिससे अचानक तेज़ बारिश होती है।

इसके नतीजे अकसर विनाशकारी होते हैं। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:

मौतें : बादल फटने की घटनाओं में कई बार जान-माल का भारी नुकसान देखने को मिलता है। कुछ ऐसा ही नज़ारा उत्तराखंड के केदारनाथ में 2013 में आई आपदा में देखा गया था। मंदाकिनी घाटी में बादल फटने से अचानक आई बाढ़ में तीर्थयात्रियों और स्‍थानीय निवासियों सहित 5,000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे। इसी तरह अगस्त 2022 में जम्मू और कश्मीर में अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से अचानक बाढ़ आ गई, जिसमें कम से कम 16 लोगों की जान चली गई और कई अन्य घायल हो गए। लोगों को बचाकर निकालने के लिए बहुत कम समय मिला था।

बुनियादी ढांचे को नुकसान : जुलाई 2010 में लद्दाख के लेह में बादल फटने से शहर के बुनियादी ढांचे का बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया, सड़कें बह गईं, इमारतें ढह गईं और संचार और बिजली की लाइनें भी क्षतिग्रस्त हो गईं। इसी तरह, जुलाई 2023 में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में बादल फटने से आई बाढ़ ने कई पुलों को बहा दिया और मनाली जैसे पर्यटन केंद्रों के सड़क संपर्क को बाधित कर दिया, जिससे राहत कार्यों में भी काफ़ी देरी हुई।

पर्यावरणीय नुकसान : साल 2010 के लेह हादसे ने न केवल मानव बस्तियों को तबाह किया, बल्कि इससे बड़े पैमाने पर भूस्खलन भी हुआ, जिससे कई इलाके मलबे के नीचे दब गए। इससे सिंधु नदी का मार्ग हमेशा के लिए बदल गया। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में 2019 में, बादल फटने से हुए भूस्खलन ने नदी के चैनलों को पत्थरों और तलछट से भर दिया, जिससे नीचे के इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया और जलीय ईकोसिस्‍टम को भी नुकसान पहुंचा।

आर्थिक नुकसान : फरवरी 2021 में चमोली में आई आपदा मुख्य रूप से चट्टानी बर्फ़ के हिमस्खलन के कारण हुई थी, लेकिन इसमें भारी बारिश की भी भूमिका थी। इसके चलते, सैकड़ों करोड़ रुपये की दो जलविद्युत परियोजनाओं को भारी नुकसान पहुंचा। केदारनाथ में 2013 में हुई घटना में  बुनियादी ढांचे को हुए भारी नुकसान के कारण कई वर्षों तक यहां का पर्यटन प्रभावित रहा। इससे स्‍थानीय लोगों की कमाई और सरकार को पर्यटन से होने वाली आय में भारी गिरावट आई। इसका सीधा असर केदारनाथ की वार्षिक यात्रा पर निर्भर हज़ारों लोगों की रोज़ी-रोटी पर पड़ा।

बादल फटने का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है?

बादल फटने का पूर्वानुमान लगाना बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि यह घटना अकसर काफी छोटे पैमाने पर और काफ़ी तेज़ी से होती है।

पूर्व चेतावनी प्रणालियां और तैयारी के कौन से उपाय मौजूद हैं?

भारत ने इस दिशा में काफ़ी प्रगति की है, हालांकि कमियां अब भी बनी हुई हैं:

मौसम विभाग की चेतावनियां : मौसम विभाग भारी वर्षा और अत्यधिक भारी वर्षा की चेतावनियां जारी करता है, जो कभी-कभी बादल फटने की संभावित स्थिति को दिखाती हैं। राज्य, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए), राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के सहयोग से निकासी और राहत कार्यों को अंजाम देते हैं।

सामुदायिक जागरूकता : लोगों को सतर्क करने के लिए एसएमएस-आधारित और ऐप-आधारित अलर्ट जारी करने की सुविधाओं का उपयोग किया जा रहा है।

उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में पायलट प्रोजेक्ट : चुनिंदा घाटियों (जैसे, मंदाकिनी) में अचानक बाढ़ की चेतावनी के लिए स्थानीय वायरलेस नेटवर्क और सायरन का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि, कई बार बादल फटने की घटनाएँ दूरस्थ घाटियों में होती हैं, जहां निगरानी केंद्र नहीं होते। ऐसे में, चरवाहों, ट्रैकर्स और तीर्थ यात्रियों तक समय पर अलर्ट पहुंच नहीं पाता।

हिमालय में बादल फटने के खतरों से निपटने के लिए किन नीतिगत और संस्थागत उपायों की ज़रूरत है?

जोखिम का आकलन और ज़ोनिंग: बादल फटने के खतरे का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने के लिए हमें सबसे पहले यह जानना होगा कि ऐसी घटनाएं सबसे ज़्यादा कहां होने की संभावना रहती है। ऐतिहासिक डेटा और उपग्रह चित्रों का उपयोग करके बादल फटने की आशंका वाले क्षेत्रों के मानचित्र इस्तेमाल करके ऐसा किया जा सकता है। इन मानचित्रों को ज़िला स्तरीय भूमि-उपयोग (लैंड यूज़) योजनाओं में शामिल किया जाना चाहिए। इससे, ज्‍़यादा जोखिम वाले क्षेत्रों में नए निर्माण और डेवलपमेंट को नियंत्रित करके जान-माल के नुकसान से बचा जा सकता है।

इन्‍फ़्रास्ट्रक्‍चर का लचीलापन : ऐसे बुनियादी ढांचे का निर्माण आवश्यक है जो मौसमी बदलावों का सामना कर सकें। इसमें जलवायु-रोधी (क्‍लाइमेट प्रूफ़) सड़कें, पुल और जलविद्युत परियोजनाएं शामिल हैं। ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में चेकडैम और ढलानों को स्थिर करने के उपाय भी ज़रूरी हैं। ये उपाय पानी के तेज़ बहाव को धीमा करने और भूस्खलन को रोकने में मदद करते हैं, जिससे निचले इलाकों में रहने वाले लोगों की सुरक्षा होती है।

चेतावनी प्रणाली : समय पर चेतावनी जान-माल के नुकसान को बचाने के लिए महत्वपूर्ण है। हमें हिमालय में मौसम रडार और गेज नेटवर्क का विस्तार करने और अधिक सटीक पूर्वानुमानों के लिए एआई-आधारित वर्षा पूर्वानुमान को इंट्रीग्रेट करने की ज़रूरत है। एफएम रेडियो, लाउडस्पीकर और व्हाट्सएप ग्रुप जैसे स्थानीय माध्यमों से लोगों तक चेतावनियों को तेज़ी से पहुंचाया जा सकता है।

जंगल, मैदानों और तालाबों को बढ़ावा देना : प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा एक दीर्घकालिक रणनीति है। वनों और घास के मैदानों को बढ़ावा देने से मिट्टी ज़्यादा पानी सोख सकती है, जिससे पानी का तेज़ बहाव धीमा पड़ता है। इसके अलावा तालाब, पोखर जैसी जल संचयन की पारंपरिक संरचनाओं को बढ़ावा देकर भी अचानक आने वाली बाढ़ को रोका जा सकता है। ये प्राकृतिक विधियां स्पंज की तरह काम करती हैं, जिससे अचानक आने वाली बाढ़ का प्रभाव कम होता है।

नीतिगत स्‍तर पर समन्वय : बादल फटने की घटनाओं से निपटने के लिए सरकार के सभी स्तरों से समन्वित प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। आईएमडी और एनडीएमए जैसी राष्ट्रीय एजेंसियों, राज्य निकायों और स्थानीय पंचायतों के बीच संचार को मज़बूत करना महत्वपूर्ण है। इससे, सूचना और संसाधनों का सुचारू ढंग से इस्‍तेमाल कर पाना संभव होता है। बादल फटने के जोखिम को राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (एनएमएचएस) जैसी आधिकारिक जलवायु योजनाओं में भी प्रमुखता से शामिल किया जाना चाहिए। इसके अलावा, क्षेत्रीय नीतियों में भी इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

निष्कर्ष

भारतीय हिमालयी क्षेत्र में बादल फटना एक ऐसी प्राकृतिक घटना है जिसे रोका नहीं जा सकता। लेकिन, वैज्ञानिक उपायों, बुनियादी ढांचे में सुधार, सामुदायिक जागरूकता और प्रशासनिक स्‍तर पर समन्‍वय के ज़रिये इसके प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के कारण, आने वाले वर्षों में ऐसी घटनाएं और भी बढ़ने की आशंका है। इसे देखते हुए पर्याप्‍त तैयारियों की ज़रूरत है, ताकि पहाड़ी इलाकों में जन-जीवन, लोगों की आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा की जा सके।

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