भारत में कुल ताज़े पानी के उपयोग का अपेक्षाकृत बहुत छोटा सा हिस्सा घरेलू जल के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। आमतौर पर सालाना ताज़े पानी का लगभग 5 से 7 प्रतिशत ही हिस्सा घरेलू स्तर पर उपयोग में आता है। इसके उलट, कुल जल खपत का लगभग 85 फीसद हिस्सा खेती और उससे जुड़े कामों में खर्च होता है। जल जीवन मिशन (जेजेएम) के तहत भारत के ग्रामीण घरों तक नल का पानी पहुंचने लगा है और इस लक्ष्य की पूर्ति में उल्लेखनीय प्रगति देखने को मिली है।
साल 2019 में शुरू की गई भारत सरकार की इस महत्वाकांक्षी पहल की बदौलत ग्रामीण इलाकों में पानी की उपलब्धता की स्थिति में सुधार आया है और आज 80 फीसद से अधिक घरों तक फ़ंक्शनल हाउसहोल्ड टैप कनेक्शन (एफ़एचटीसी) की सुविधा पहुंच चुकी है। लेकिन, अब सवाल यह है कि आज मिलने वाला पानी क्या कल भी इतनी ही आसानी से उपलब्ध हो सकेगा और क्या यह पीने के लिहाज़ से सुरक्षित होगा?
इस मिशन के लिए आधारभूत ढांचा तैयार होने के साथ ही इन प्रणालियों के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी शासन की सबसे निचली इकाई यानी ग्राम पंचायतों पर आनी शुरू हो गई है। इन नलों से लोगों को बिना किसी बाधा के पानी मिलता रहे, इसके लिए ग्राम पंचायतों को छोटे-छोटे माइक्रो-यूटिलिटी प्रदाता के रूप में काम करना होगा। उन्हें न केवल पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी, बल्कि इसकी गुणवत्ता, स्थायित्व और समानता को भी बनाए रखना होगा। इस लेख में परियोजना के संचालन से जुड़ी चुनौतियों और ग्राम पंचायतों को अधिक सक्षम और जवाबदेह बनाने की ज़रूरत को सामने लाने का प्रयास किया गया है।
छह साल पहले, 15 अगस्त 2019 से शुरू होने वाले इस विशाल स्तर के कार्यक्रम का लक्ष्य था साल 2024 तक 16.13 करोड़ (83 फीसद) ग्रामीण घरों को एफ़एचटीसी उपलब्ध कराना। क्योंकि उस समय एफ़एचटीसी की उपलब्धता केवल 17 फीसद तक ही सीमित थी।
योजना के लागू होने के बाद से अगले पांच साल में इस पर लगभग 3.6 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। प्रति घर यह आंकड़ा 22 हज़ार 319 रुपये का है। हालांकि लक्ष्य को हासिल करने की शुरुआती समय-सीमा वर्ष 2024 तय की गई थी लेकिन अब इसे बढ़ाकर साल 2028 तक कर दिया गया है।
जेजेएम डैशबोर्ड के अनुसार, आज (1 अक्तूबर 2025) तक एफ़एचटीसी की उपलब्धता लगभग 81 फीसद तक पहुंच चुकी है, जिसे एक सराहनीय उपलब्धि की श्रेणी में रखा जा सकता है।
जल जीवन मिशन के तहत केंद्र और राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों के बीच बजट साझा करने का पैटर्न इस प्रकार है: जिन केंद्र शासित राज्य क्षेत्रों में विधानसभा नहीं है, उनके लिए 100:0 (केवल केंद्र द्वारा) उत्तर-पूर्वी एवं हिमालयी राज्य और विधानसभा वाले केंद्र शासित राज्य क्षेत्रों के लिए 90:10 (केंद्र:राज्य) और बाकी के सभी राज्यों के लिए 50:50 (केंद्र:राज्य) का अनुपात तय किया गया है।
साल 2025-26 के लिए जेजेएम के लिए आवंटित बजट की राशि 67 हज़ार करोड़ रुपये है, जो जल शक्ति मंत्रालय के लिए आवंटित कुल बजट का 67 फीसद है। इस पैसे का ज़्यादातर हिस्सा अब तक बुनियादी ढांचे, जैसे कि मुख्य पाइप लाइन, ओवरहेड टैंक, वितरण नेटवर्क, जल उपचार संयंत्र, जल परीक्षण प्रयोगशालाएं, घरेलू नल आदि को खड़ा करने में खर्च हुआ है। इन प्रणालियों का संचालन और रखरखाव ग्राम पंचायत की ज़िम्मेदारी है। आने वाले दिनों में यहां चुनौतियां पैदा होने की पूरी संभावना दिखाई दे रही है।
अब जब लगभग 80 फीसद से अधिक ग्रामीण घरों में जेजेएम के तहत नल लग चुके हैं तो सारा ध्यान ग्राम पंचायतों की ओर आ गया है। ग्राम पंचायतों की ज़िम्मेदारी प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 55 लीटर साफ़ पानी की आपूर्ति को सुनिश्चित करना है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ज़रूरी है कि ग्राम पंचायतें माइक्रो-यूटिलिटी (सूक्ष्म-उपयोगी) संस्थानों की भूमिका में काम करें और स्रोत की स्थिरता से लेकर लोगों तक पानी पहुंचाने से जुड़े सभी कामों के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लें।
खासकर स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों जैसे संस्थानों में नियमित और समान आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, दैनिक वितरण पर नज़र रखना ज़रूरी है। आम तौर पर खेती के साथ साझा किये जाने वाले पानी के स्रोतों के सतत प्रबंधन के लिए पानी का बजट और रीचार्ज योजना बनाई जानी चाहिए। इसमें कंपोज़िट लैंडस्केप असेसमेंट एंड रेस्टोरेशन टूल (CLART) जैसे उपकरण और मनरेगा जैसी योजनाएं सहायक हो सकती हैं।
आवश्यक किट और प्रशिक्षित कर्मचारियों के उपलब्ध होने के बाद भी अकसर पानी की गुणवत्ता की निगरानी संगठित रूप से नहीं हो पाती है। स्वास्थ्य मानकों (IS 10500) को सुनिश्चित करने के लिए हर तीन महीने पर प्रशिक्षण का आयोजन, लैब सत्यापन और परिणामों को सार्वजनिक किया जाना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
संचालन पर होने वाले खर्च, जैसे कि बिजली, मज़दूरी, रखरखाव आदि को पूरी तरह से पारदर्शी बनाए जाने की ज़रूरत है। वार्षिक स्थिर शुल्क की बजाय, ग्राम पंचायतों को समुदायों के साथ मिलकर ऐसे शुल्क तय करने चाहिए जो कम से कम आधी लागत वसूल सकें और पानी की बचत को प्रोत्साहित करें।
किसी भी योजना की दक्षता कुशल कर्मियों, स्पष्ट भूमिकाओं, शिकायत निवारण प्रणालियों और ऊर्जा की बचत पर निर्भर करती है। ग्रे-वाटर (शौचालय के अलावा अन्य नलसाज़ी प्रणालियों, जैसे हैंड बेसिन, वाशिंग मशीन, शावर और स्नानघर से निकलने वाला अपशिष्ट जल) प्रबंधन की अक्सर उपेक्षा की जाती है, जिससे स्वच्छता की समस्या आती है। जल निकासी प्रणालियों के डिज़ाइन और रखरखाव के लिए ग्राम पंचायतों को विशेषज्ञों के साथ साझेदारी करनी चाहिए।
इस पर पहले से काम कर रहे गांवों से सीखकर और स्थानीय नवाचार को बढ़ावा देकर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि हर नल कनेक्शन पानी आपूर्ति से कहीं ज़्यादा सुरक्षा, सम्मान और स्थिरता दे। चुनौतियां कई हैं, लेकिन उनसे निपटने के तरीके भी हैं।
स्थानीय भूजल स्रोतों पर निर्भर एकल ग्राम योजनाओं पर विशेष रूप से ध्यान देने की ज़रूरत है, क्योंकि एक ही जलभृत (ऐक्विफ़र) से सिंचाई के लिए भूजल का दोहन, एफ़एचटीसी की कार्यक्षमता को कम कर सकता है। भू-जलविज्ञान संबंधी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए भूजल क्षमता को समझना और विभिन्न उपयोगों के लिए वार्षिक दोहन का अनुमान लगाकर उसके बाद जल बजट तैयार करना बेहतर होगा। हालांकि, इस काम के लिए वैज्ञानिकों की सलाह ज़रूरी होगी, इसलिए ग्राम पंचायत पदाधिकारियों को ज़िला या राज्य स्तर से सहायता की ज़रूरत पड़ सकती है।
एक बार जब भूजल की क्षमता समझ में आ जाती है, तो उसके बाद अगला कदम होता है सही जगहों की पहचान करके ज़रूरत के मुताबिक पुनर्भरण संरचनाओं का डिज़ाइन तैयार करना। कुछ तकनीकी उपकरण (जैसे, CLART) पुनर्भरण की योजना बनाने में मदद कर सकते हैं। इन उपकरणों का इस्तेमाल करना आसान होता है और ये मुफ़्त में उपलब्ध होते हैं। योजनाओं को अमल में लाने के लिए मनरेगा, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, अटल भूजल योजना और 15वें वित्त आयोग के अनुदानों का उपयोग किया जा सकता है।
पानी के उपयोग (विशेषकर खेती में) को कम करने और उपचार के बाद ग्रे-वाटर का दोबारा उपयोग करने की योजनाओं को शामिल करके सीमित जल संसाधनों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल ज़रूरी है। ऐसे प्रयासों से पेयजल स्रोतों को टिकाऊ बनाने में मदद मिल सकती है।
ग्राम पंचायत के पदाधिकारियों और ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति (VWSC) के सदस्यों को जल आपूर्ति प्रणाली के संचालन के लिए विशिष्ट ज़िम्मेदारियां निभाते हुए एक टीम के रूप में काम करना चाहिए। पंप ऑपरेटर या वॉटरमैन (जल कर्मी) के लिए ज़रूरी है कि वे ग्राम पंचायत के पदाधिकारियों के साथ मिलकर सूक्ष्म-उपयोगिता को सफलतापूर्वक चलाने में अपनी खास भूमिकाओं को समझें। उनके अलग-अलग कामों को दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, अर्धवार्षिक और वार्षिक कामों में बांटने से भी मदद मिलेगी। सही सेवा वितरण सुनिश्चित करने के लिए समय-सीमा के हिसाब से काम करना और सही रिकॉर्ड रखना बहुत ज़रूरी है।
सेवा प्रदाता (इस मामले में ग्राम पंचायत) को शिकायत निवारण के लिए एक प्रणाली बनानी चाहिए। प्रणाली ऐसी हो कि परिवार अपनी समस्याएं ग्राम पंचायत तक पहुंचा सकें और उनपर समय रहते ज़रूरी कार्रवाई हो। हालांकि, आम तौर पर ऐसे मामलों में ग्राम पंचायत सदस्य से समस्या के बारे में शिकायत की जाती है, लेकिन शिकायतों को स्वीकार करने, उनका समाधान करने और शिकायतकर्ता को तुरंत सूचित करने में तकनीकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।
भारत में घरेलू जल क्षेत्र में सबसे अधिक उपेक्षित चीज़ है पानी की गुणवत्ता। नागरिकों को अकसर गुणवत्ता मानकों और पानी में कौन-सी चीज़ कितनी मात्रा में होनी चाहिए, इसकी जानकारी नहीं होती। यह चिंता का विषय है, जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है। ज़्यादातर ग्राम पंचायतों को जल गुणवत्ता परीक्षण किट और उनके इस्तेमाल के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन, दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन प्रयासों के बावजूद, इन किटों का उपयोग बहुत सीमित है।
जब तक समुदाय उसे दिए जा रहे पानी की गुणवत्ता जानने की मांग नहीं करता, तब तक स्थिति में बहुत ज़्यादा बदलाव आने की उम्मीद बेमानी है।
सभी पेयजल स्रोतों और कुछ घरेलू नलों से हर तिमाही में पानी के नमूने एकत्र करना और फील्ड टेस्टिंग किट का उपयोग करके उनका परीक्षण करना ग्राम पंचायत पदाधिकारियों के काम का एक हिस्सा होना चाहिए। नमूनों को सटीक परीक्षण के लिए ज़िला प्रयोगशालाओं में भेजा जाना चाहिए। परिणामों को ऐसी जगहों पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए जहां से नागरिक आसानी से उन्हें देख सकें।
ग्राम पंचायतों से उम्मीद की जाती है कि वे संचालन एवं रख-रखाव की लागत वसूलने के मार्गदर्शक सिद्धांतों के हिसाब से पानी का शुल्क तय करें। बुनियादी ढांचा केंद्र और राज्यों से मिले करदाताओं के पैसे से बनाया जाता है। ग्राम पंचायतों को बिजली का बिल, पंप ऑपरेटर का वेतन, टैंक की सफाई की लागत, क्लोरीनीकरण की लागत, वितरण लाइनों की मरम्मत या उन्हें बदलने में होने वाले खर्च को ध्यान में रखते हुए हर घर में पानी की आपूर्ति की परिचालन लागत का पता लगाना चाहिए।
परंपरागत रूप से, ज़्यादातर ग्राम पंचायतें पानी की आपूर्ति के लिए हर साल प्रति परिवार 360 से 600 रुपये की दर से शुल्क लेती हैं। यह शुल्क आपूर्ति की लागत को समझे बिना ही वसूला जाता है। आमतौर पर, यह शुल्क साल में एक बार संपत्ति कर के साथ वसूला जाता है। ज़्यादातर आम नागरिक इस बात से अनजान हैं कि उनके द्वारा ग्राम पंचायत को चुकाए जाने वाले पानी का शुल्क कितना है।
अगर ग्राम पंचायत अपने उपयोगकर्ताओं से संचालन और रखरखाव की पूरी लागत वसूलना चाहती है, तो उसे ग्राम सभा स्तर पर बैठक करके इस पर बातचीत करनी होगी, ताकि लोगों को बताया जा सके कि किस मद पर क्या खर्च आ रहा है। साथ ही, संचालन और रखरखाव लागत के प्रबंधन पर उनके विचार भी सुने जाने चाहिए।
बड़ा मुद्दा जल आपूर्ति के लिए शुल्क वसूलने की राजनीतिक इच्छाशक्ति का है, क्योंकि कई राज्य सरकारों ने मतदाताओं को खुश करने के लिए मुफ्त वितरण की घोषणाएं की हुई हैं।
यह ज़रूरी है कि जल आपूर्ति प्रणाली को संचालित करने वाले कर्मचारी अपनी भूमिकाओं को अच्छे से समझें और अपने काम को प्रभावी ढंग से करने के लिए उन्हें ज़रूरी प्रशिक्षण मिले। इसके लिए, कौशल की कमी का विश्लेषण करने और तय समय पर कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने की ज़रूरत होगी।
समुदाय के सदस्य ही किसी भी योजना के प्राथमिक हितधारक होते हैं। अगर कोई प्रणाली सही काम करती है, तो इन्हें ही लाभ होता है और आपूर्ति बाधित होने पर नुकसान भी इन्हें ही उठाना पड़ता है। प्रणाली से जुड़ी योजनाएं बनाने और उसकी निगरानी में उनका भाग लेना ज़रूरी है। साथ ही, मौजूदा सुलभ जल संसाधनों, जल गुणवत्ता संबंधी मुद्दों, आपूर्ति की लागत और इस दुर्लभ संसाधन के विवेकपूर्ण उपयोग में अपनी भूमिका को समझना भी उनके लिए महत्त्वपूर्ण है।
ग्राम जल संरक्षण समिति (VWSC) के सदस्यों को जनता में ज़रूरी जागरूकता पैदा करने का बीड़ा उठाना चाहिए, ताकि जल आपूर्ति प्रणाली के प्रबंधन का काम केवल ग्राम पंचायत पदाधिकारियों पर ही न छोड़ा जाए, बल्कि नागरिक भी इसके सुचारु संचालन में सक्रिय रूप से शामिल हों।
किसान समुदाय को भी अपनी फसल उत्पादन के लिए कुशल जल प्रबंधन पद्धतियां अपनाकर, जल उत्पादकता में सुधार लाने का प्रयास करना चाहिए। कचरे का सुरक्षित प्रबंधन करके सामुदायिक स्वच्छता बनाए रखने में भी ग्रामीणों की भूमिका बड़ी और महत्वपूर्ण होती है।
सामुदायिक स्तर पर जागरूकता और भागीदारी, सफलता के मुख्य कारक होते हैं। एक सामान्य उद्देश्य के लिए अलग-अलग ग्रामीण समुदायों को एक साथ लाने में एक सशक्त नेतृत्व की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जैसे कि इस मामले में वह सामान्य उद्देश्य है, हर घर को नियमित रूप से सुरक्षित पानी उपलब्ध कराना।
इंडिया वाटर पोर्टल पर मूल रूप से अंग्रेज़ी में छपे इस लेख का अनुवाद डॉ. कुमारी रोहिणी ने किया है।