यमुना में जल प्रदूषण और भूजल स्रोतों के सूखने के कारण दिल्‍ली में जल संकट साल दर साल गहराता जा रहा है।  स्रोत : हिन्‍दुस्‍तान
पेयजल

पानी की एक-एक बूंद के लिए जद्दोजहद: क्या वर्षा जल संचयन दे सकेगा दिल्ली को राहत?

पानी की कमी से जूझ रहा है ढाई करोड़ आबादी वाली दिल्ली का एक बड़ा तबका। प्रतिदिन 3,324 मिलियन लीटर की मांग के मुकाबले मिल रहा केवल 2,034 एमएलडी पानी।

Author : डॉ. कुमारी रोहिणी

भारत की राजधानी दिल्ली देश की प्रशासनिक धुरी है। इसके बावजूद यह राज्य स्वच्छ हवा और साफ़ पानी जैसी मौलिक आवश्यकताओं के लिए जूझता नज़र आ रहा है। जहां एक तरफ़ यह शहर देश के सबसे प्रदूषित शहरों में दूसरे स्थान पर है, वहीं जनसंख्या के अत्यधिक दबाव, अनियोजित शहरीकरण और जल संसाधनों के असंतुलित उपयोग के कारण यहां पानी का संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है।

दिल्ली में जल संकट की वर्तमान स्थिति 

लगभग ढाई करोड़ की आबादी वाले महानगर दिल्ली को अपने निवासियों के लिए प्रतिदिन 3,324 मिलियन लीटर पानी (एमएलडी) की आवश्यकता होती है, जिसमें से मात्र 2,034 एमएलडी के करीब पानी की आपूर्ति ही हो पाती है। यानी मांग की तुलना में आपूर्ति बहुत कम है। ऐसे में, शहर का एक बड़ा तबका पानी की कमी से जूझता है। पानी की कमी की यूं तो पूरे साल बनी रहती है, लेकिन गर्मियों में तकलीफ़ और बढ़ जाती है। गर्मी के मौसम में दिल्ली के कई क्षेत्रों में दिन में एक या दो बार पानी की आपूर्ति की जाती है। लेकिन, ऐसे भी इलाक़े हैं जहां दिन में एक बार भी पानी नहीं आता।

दिल्ली अपनी पानी की ज़रूरतों के लिए यमुना, गंगा और भूमिगत जल स्रोतों पर निर्भर है, लेकिन यमुना के लगातार घट रहे जल-स्तर और प्रदूषण के कारण यह निर्भरता प्रभावित हो रही है। इसके अलावा, पिछले दशकों में दिल्ली के अधिकांश क्षेत्रों में भूमिगत जल स्तर में भी 20 से 30 मीटर तक की गिरावट आई है, जिसका असर पानी की आपूर्ति व्यवस्था पर हुआ है। इस गिरावट के मुख्य कारण अनियोजित निजी बोरवैल, अवैध निकासी और बारिश के पानी के उचित संचयन का अभाव हैं। 

इसके अलावा, पंजाब के भाखड़ा बांध से दिल्ली को प्रतिदिन 270 मिलियन गैलन पानी की आपूर्ति होती है। लेकिन पिछले दिनों पंजाब-हरियाणा राज्यों के आपसी विवाद के कारण दिल्ली की जल-आपूर्ति प्रभावित हुई है।

बीते जून में हरियाणा से कम पानी मिलने के कारण वज़ीराबाद और चन्द्रावल जल संयंत्रों के जलाशयों में पानी कम हुआ है। नतीजतन, पानी की आपूर्ति में 20-25 फीसद की गिरावट आई, जिससे उत्तर-मध्य और दक्षिण दिल्ली के कई इलाकों तक ज़रूरतभर पानी नहीं पहुंच रहा। ऐसे में, इन इलाकों में टैंकरों से पानी पहुंचाया जाता है। हालांकि, इससे फ़ौरी राहत तो मिल जाती है लेकिन भविष्य की जल सुरक्षा अनिश्चित बनी रहती है।

पानी की कमी एक बहुआयामी संकट

दिल्ली जैसे महानगर में पानी की कमी केवल संसाधन से जुड़ा मसला नहीं है। इसका असर स्वास्थ्य, सामाजिक संरचना, आर्थिक अस्थिरता और पर्यावरणीय संतुलन आदि पर स्पष्ट रूप से दिखने और महसूस होने लगा है।

महानगर अब पानी की ज़रूरत के लिए कई ऐसे जल-स्रोतों पर निर्भर होने लगा है जो आमतौर पर प्रदूषित, संक्रमित और अनुपचारित होते हैं। इससे, पानी से होने वाली बीमारियों का दायरा और प्रकोप भी बढ़ा है। इस तरह के गैर-संसाधित जल-स्रोतों को उपयोग में लाने वाले ज़्यादातर लोग मलिन बस्तियों और निम्न-आय वर्ग समुदायों से आते हैं। यह स्थिति समाज में मौलिक ज़रूरतों के असमान वितरण को भी दिखाती है। 

मलिन बस्तियों या अनाधिकृत कॉलोनियों में लोग गंदे नालों, सामुदायिक हैडपंपों या टैंकरों से आने वाले अनियंत्रित स्रोतों से पानी लेने को मजबूर हैं। प्रदूषित पानी पीने से यहां डायरिया और टायफाइड जैसी बीमारियों का प्रकोप बना रहता है।

टाटा सेंटर ऑफ़ डेवलपमेंट और यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो द्वारा साल 2008-2018 के बीच किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली में यमुना के किनारे रहने वाले लगभग 55.6 फीसद लोगों को डायरिया और गैस की समस्या से जूझते हैं। वहीं लगभग 50 फीसद लोग प्रदूषित पानी के कारण होने वाले त्वचा संबंधित रोगों चपेट में हैं। इसके अलावा, सर्वेक्षण वाली जगहों पर बार-बार गले में संक्रमण, सर्दी-जुकाम और बुखार की शिकायतें भी मिलीं।

हालांकि, दूषित हवा और पानी समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करता है, लेकिन प्रभाव की तीव्रता अलग-अलग वर्गों और जगहों के लिए अलग है। दिल्ली के उच्चवर्गीय इलाकों में पानी के भंडारण, बोतलबंद पानी या आरओ जैसी सुविधाएं हैं, जबकि निम्न आय वाली बस्तियों में एक सार्वजनिक नल पर सैकड़ों लोग कतार में खड़े होते हैं। इसका असर इस वर्ग की महिलाओं और बच्चों पर अधिक पड़ता है, क्योंकि घर में पानी की ज़रूरत पूरी करने की ज़िम्मेदारी अक्सर इन पर ही होती है। ऐसे में महिलाओं का शारीरिक श्रम भी बढ़ता है और बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है।

पानी की कमी का असर अनाधिकृत कॉलोनियों पर भी उसी अनुपात में पड़ता है। इन इलाक़ों में दिल्ली जल बोर्ड आपूर्ति नहीं करता है और कोई वैध पाइपलाइन भी नहीं बिछाई जाती है। लोग पानी के लिए महंगे निजी टैंकरों पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में, आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे इस वर्ग के लोगों को अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा पीने के पानी के लिए खर्च करना पड़ता है। यह स्थिति समाज में एक वर्गीय विभाजन को जन्म दे रही है, जहां साफ पानी की उपलब्धता लोगों की आय और सामाजिक स्थिति पर निर्भर होती है।

इसके अलावा, लगातार घट रहे भूजल के स्तर से पर्यावरणीय संकट भी पैदा हो रहा है। भूजल के अत्यधिक दोहन से भूजल-स्तर में तेज़ी से गिरावट आ रही है। नतीजतन, जगह-जगह ज़मीनें धंस रही हैं या धंसने के कगार पर हैं। एक शोध के अनुसार दिल्ली के हवाई अड्डे से महज़ आठ सौ मीटर की दूरी पर स्थित कापसहेड़ा इलाके के सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ज़मीन धंसने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में, दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में भूजल स्तर को बढ़ाने और इस संकट से उबरने के प्रयास को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है।

सामुदायिक स्‍तर पर छोटे-छोटे प्रयास करके वर्षा जल संचयन किया जा सकता है।

वर्षा जल संरक्षण: समाधान की दिशा में एक ठोस कदम

दिल्ली में प्रतिवर्ष औसतन 790 मिलीमीटर वर्षा होती है जो कि किसी भी शहर या राज्य की एक बड़ी आबादी के लिए पर्याप्त जल है। लेकिन, इसका अधिकांश हिस्सा नालों, सड़कों या गड्ढों में बहकर बर्बाद हो जाता है। अगर वर्षा से मिलने वाले इस जल के संरक्षण के समुचित उपाय किए जाएं तो दिल्ली में पानी के संकट को एक हद तक दूर किया जा सकता है। इतना ही नहीं, वर्षा-जल को बचाकर महानगर तथा आसपास के क्षेत्रों के भूजल में सुधार लाया जा सकता है, जिससे ज़मीन धंसने जैसी बड़ी समस्या भी दूर हो सकती है। 

वर्षा जल संचयन वह प्रक्रिया है, जिसमें वर्षा के जल को एकत्र कर उसे जमीन के भीतर जल पुनर्भरण (रीचार्ज) या भंडारण के लिए उपयोग में लाया जाता है। वर्षा जल संचयन प्रणाली में बारिश के पानी को छतों, सड़कों, खुले क्षेत्रों आदि से साफ़ गड्ढों और टैंकों में जमा किया जाता है और फिर उसे इस्तेमाल के लायक़ बनाया जाता है। इसे सीधे भूमिगत जलभृतों के रीचार्ज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। दिल्ली में वर्षा जल संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं और उसके सफल परिणाम भी देखने को मिले हैं। 

वर्षा जल संचयन के लिए सरकारी पहल

देश भर के विभिन्न राज्यों एवं शहरों में पानी की समस्या की गंभीरता को देखते हुए भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने वर्ष 2019 में देश के 256 जल संकटग्रस्त जिलों के 2,836 ब्लॉकों में से 1,592 ब्लॉकों में जल शक्ति अभियान (जेएसए) शुरू किया था। हालांकि, कोविड महामारी के कारण इस अभियान पर कुछ दिनों की रोक लग गई थी। लेकिन, उसके बाद साल 2021 में "कैच द रेन - व्हेयर इट फॉल्स व्हेन इट फॉल्स" थीम के साथ प्रधानमंत्री ने देश भर के सभी ज़िलों (ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों) के सभी ब्लॉकों के लिए अभियान को फिर शुरू किया।

दिल्ली जल बोर्ड ने 500 वर्ग मीटर से बड़े भूखंडों पर वर्षा जल संचयन प्रणाली को अनिवार्य किया है। दिल्ली जल बोर्ड के स्थायी अधिवक्ता सुमित पुष्करणा ने इस बात की पुष्टि कि है, “इस नियम को मनाने वालों को पानी के बिल में 15 फीसद की छूट दी जाएगी, वहीं इस नियम के उल्लंघन करने वाले को बिजली बिल का डेढ़ गुना अधिक भुगतान करना होगा।”

दिल्ली जल बोर्ड ने अब तक कुल 174 सरकारी इमारतों में वर्षा जल संचयन का प्रावधान लागू कर दिया है। इसके अलावा दिल्ली जल बोर्ड ने साल 2001 में ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को भवन निर्माण स्वीकृति से जोड़ दिया था। साल 2019 में दिल्ली जल बोर्ड ने इस नियम में सख़्ती करते हुए भूखंड की माप को कम करके सौ वर्ग मीटर में बनने वाली इमारत के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग की प्रणाली को अनिवार्य कर दिया।

इसी तरह के तमाम निजी एवं संस्थागत प्रयासों को देखकर यह कहा जा सकता है कि दिल्ली के जल की कमी और इसके भूजल के स्तर में गिरावट की समस्या को सुलझाने को लेकर न केवल सरकार बल्कि यहां के नागरिक भी सजग एवं सक्रिय हैं।

वर्षा जल संचयन के नीतिगत प्रयास: खामियां एवं वस्तुस्थिति

केंद्र एवं राज्य सरकार के स्तर पर दिल्ली के घटते भूजल स्तर और पानी की किल्लत को दूर करने के लिए कई तरह के नीतिगत प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन इन प्रयासों के क्रियान्वयन में समस्या देखने को मिल रही है। पहली बार दिल्ली जल बोर्ड ने 500 वर्ग मीटर से बड़े भूखंडों पर वर्षा जल संचयन प्रणाली को अनिवार्य किया था, जिसे बाद में कम करके 100 वर्ग मीटर कर दिया गया।

हालांकि, भूखंड के माप को लेकर इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हैरिटेज (INTACH) के प्राकृतिक विरासत प्रभाग के प्रधान निदेशक मनु भटनागर का नज़रिया अलग है। वे कहते हैं, “भूखंड जितना छोटा होगा इस प्रणाली का प्रभावी रूप से काम कर पाना उतना ही मुश्किल होगा। कारण यह है कि छोटे भूखंड में संरचना निर्माण के लिए पर्याप्त जगह नहीं होती है। और अगर प्रणाली स्थापित कर भी ली जाए तो उसका समुचित रखरखाव नहीं होता है। कुछ सालों बाद पूरी व्यवस्था और संरचना ही ठप्प पड़ जाती है। इसलिए इस प्रणाली के प्रभाव को बढ़ाने के लिए सरकारों को सामुदायिक और सार्वजनिक स्तरों पर स्थापना एवं निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए।”

एक खबर के अनुसार सामुदायिक स्तर पर इस पहल की सफलता की दर जहां संतोषप्रद कही जा सकती है वहीं सरकारी संस्थानों एवं भवनों में वर्षा जल संचयन प्रणाली के अनुपालन में कमी देखने को मिली है। दिल्ली के लगभग नौ हज़ार सरकारी भवनों में से साढ़े सात हज़ार भवनों में वर्षा जल संचयन प्रणाली स्थापित की गई है वहीं लगभग आठ सौ इमारतों में अभी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई।

हालांकि, कुछ सरकारी संस्थाएँ दिल्ली में वर्षा जल-संचयन के प्रति सजग दिखाई पड़ती हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली के एम्स सर्किल में स्थापित वर्षा जल संचयन प्रणाली सुचारू रूप से काम कर रही है। दिल्ली नगर निगम के अन्तर्गत आने वाले इस सिस्टम को प्रत्येक वर्ष मानसून से पहले साफ़ किया जाता है। इस प्रणाली के ऑपरेटर के अनुसार, “हम साल में एक बार मानसून से पहले इसकी साफ़-सफ़ाई करते हैं। फ्लाईओवर और सड़कों से पानी इकट्ठा करने वाले पाइप से सारा पानी यहीं आता है। चूँकि ये पाइप बहुत चौड़े और बड़े हैं इसलिए पानी के साथ इसमें प्लास्टिक की बोतल सहित अन्य कचरा भी आ जाता है। नाली को जाम होने से बचाने के लिए जाली लगाई गई है और हम इस जाली की नियमित सफ़ाई करते हैं।”

लेकिन एम्स के विपरीत पंजाबी बाग, सराय काले ख़ान और आश्रम जैसी जगहों पर बने फ़्लाइओवर से वर्षा का पानी संचित ना होकर सीधे सड़कों पर बह जाता है और दूषित होकर बर्बाद हो जाता है।

दिल्‍ली के एक वाटर ट्रीटमेंट प्‍लांट में जलापूर्ति के लिए पानी की जांच ।

जागरूक नागरिकों के प्रयास

निजी एवं पारिवारिक स्तर पर छत आधारित वर्षा जल संचयन का मॉडल, सार्वजनिक स्तर पर पर्कोलेशन टैंक और रिचार्ज वेल बनाना बहुत मुश्किल काम नहीं है। छत आधारित वर्षा जल संचयन मॉडल में घरों, स्कूलों और सरकारी इमारतों की छतों से पानी को पाइप के ज़रिये टैंक या सोख्ता कुएँ में भेजा जाता है। यह प्रणाली सरल और लागत-कुशल है। देश के विभिन्न राज्यों सहित दिल्ली में भी इस मॉडल के कई सफल उदाहरण देखने को मिले हैं।

दक्षिण दिल्ली के संतुष्टि अपार्टमेंट ने रेनवाटर हार्वेस्टिंग को लेकर एक नया कदम उठाया है। अपनी इस पहल से यह अपार्टमेंट भूजल के स्तर में प्रति वर्ष लगभग 40 लाख लीटर पानी का योगदान दे रहा है। इस पहल की विशेषता यह है कि इसमें न केवल वयस्क बल्कि सोसायटी के बच्चे भी शामिल रहे हैं।

सोसायटी ने पांच साल पहले फ़ोर्स संस्था के सहयोग से शुरू किए गये इस अभियान में वर्षा जल संचयन तकनीक और रेन गार्डन जैसे उपाय अपनाए। साथ ही, सोसायटी के निवासियों ने सामाजिक जागरूकता के लिए भी प्रयास किए। सोसायटी की अध्यक्ष स्नेहलता राठी का कहना है, “हमारी थोड़ी सी जागरूकता से जल संकट को काफी हद तक कम किया जा सकता है। शुरुआत में यह काम थोड़ा मुश्किल था, लेकिन अब स्थानीय लोगों के सहयोग से यह अभियान सफलतापूर्वक चल रहा है। पानी की बर्बादी रोकने के लिए हर छोटा-बड़ा कदम हमारी जीवनशैली का हिस्सा बन गया है।”

इसी तरह का एक अन्य उदाहरण खड़कवासला के नेशनल वाटर अकादमी के भूतपूर्व निदेशक और दिल्ली के निवासी मनोहर खुशलानी के घर में मिलता है। मनोहर खुशलानी कहते हैं, “साल 2003 में जब साठ फीट गहरा ट्यूबवेल सूख गया तब मैंने इस प्रणाली को लगया। मैंने फैसला किया कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग के माध्यम से मैं अपनी छत पर जो पानी इकट्ठा करता हूँ उसे कुएँ तक पहुँचाना है।” वे आगे कहते हैं कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग न तो मुश्किल है और ना ही खर्चीला। हम निजी जगह पर या सोसायटी में सामूहिक रूप से इस प्रणाली को आसानी से लगा सकते हैं।

निजी स्तर पर इस प्रणाली को लगाने के लिए बहुत अधिक धनराशि की ज़रूरत नहीं होती। लगभग तीन सौ वर्ग मीटर के भूखंड में इसे लगाने में मुश्किल से दो हज़ार से तीस हज़ार रुपये की लागत आती है। वहीं अगर भूखंड का क्षेत्रफल बढ़ा दिया जाए और मॉडल को सामुदायिक स्तर पर स्थापित करने की योजना हो, तो प्रति कैपिटा लागत और भी कम हो जाती है। पंचशील पार्क कॉलोनी में मौजूद वर्षा जल संचयन प्रणाली इसका अच्छा उदाहरण हैं। यहाँ एक हज़ार निवासियों ने लगभग साढ़े चार लाख रुपये जमा करके वर्षा जल संचयन की प्रणाली स्थापित की और अब वे वार्षिक 174575 घन मीटर (m³) से भी अधिक वर्षा जल का संचयन कर रहे हैं।

ऐसी पहल का एक दूसरा उदाहरण दिल्ली के मालवीय नगर के शिवालिक ब्लॉक ए में देखने को मिलता है जहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग के निजी मॉडल को सार्वजनिक रूप देने का प्रयास किया गया। यहां आसपास के पार्क और खुली जगहों पर वर्षा जल के संचयन की व्यवस्था  की गई है। 

दक्षिण दिल्ली के ही आनंद लोक में रहने वाले सेवानिवृत इंजीनियर अशोक मंडल बताते हैं, “हमारी आनंद लोक कॉलोनी में सोख्ता कुओं और पाइप सिस्टम की मदद से भूजल स्तर में सुधार देखा गया। हमारे इलाके का भूजल स्तर 60 फीट से बढ़कर तीस से चालीस फीट तक आ गया है।” इसी प्रकार सैनिक फ़ार्म में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के तहत 140 सोख्ता कुएँ स्थापित किए गए थे जिसके बाद से इलाके का भूजल स्तर 350 फीट से सुधरकर  250 फीट हो गया है।मालवीय नगर के शिवालिक ब्लॉक ए के निवासी एल.एल. भंडारी बताते हैं कि अब लोगों को मानसून के दिनों में बाहर निकलने पर जल जमाव की समस्या से नहीं जूझना पड़ता है।

ओएनजीसी के चेयरमैन पद पर काम कर चुके भंडारी बताते हैं, “इसके लिए मैं इस इलाके के निवासियों का शुक्रगुज़ार हूं, जिन्होंने लगभग सात लाख की लागत से क्षेत्र में वर्षा जल संचयन के लिए आवश्यक सुविधा को स्थापित किया है। पहले बारिश का सारा पानी गड्ढों और सड़कों पर बहाकर बर्बाद हो जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। यह संरचना बनने के बाद जब पहली बार बारिश हुई तो लोग अपने घरों से बाहर यह देखने निकले कि आखिर यह मॉडल काम कैसे करता है। हमने देखा कि सारा पानी सड़क पर जमा होने की बजाय नीचे एक्विफ़र को भरने में काम आ रहा था।”

वर्षा जल संचयन की चुनौतियां

नीतिगत प्रयासों एवं ख़ामियों के अलावा भी दिल्ली जैसे महानगरों में वर्षा जल संचयन के मार्ग में कई अन्य बाधाएँ हैं। इनमें से सबसे बड़ी बाधा है जल संचयन को लेकर आम लोगों में जागरूकता की भारी कमी। कई सारे लोगों को वर्षा जल संचयन के होने वाले फ़ायदों के बारे में पता नहीं होता है और वे इसे एक सरकारी अभियान या झंझट के रूप में देखते हैं।

इसके अलावा, तेज़ी से हो रहा अनियंत्रित शहरीकरण और निर्माण कार्य भी एक बड़ी समस्या है। भवन निर्माता, अवैध कॉलोनियां बसाने वाली बिल्डर लॉबी और अनियमित निर्माण गतिविधियों में लिप्त लोग अमूमन सरकारी निर्देशों का पालन नहीं करते। नतीजतन, इस तरह से निर्मित इमारतों में वर्षा जल संचयन प्रणाली के लिए ज़रा सी भी जगह नहीं बचती।

आम जन-जीवन में जागरूकता की कमी के साथ ही सरकारी स्तर पर भी कुछ कमियां देखी जा सकती हैं। दरअसल, कई बार तरह-तरह के अभियानों के लिए सख़्त क़ानून एवं नियम बनाकर उन्हें लागू भी कर दिया जाता है, लेकिन उनके निरीक्षण, निगरानी और ज़ुर्माने की प्रक्रिया कमज़ोर रहती है और उसमें ढिलाई बरती जाती है।

वर्षा जल संचयन प्रणाली को सफल बनाने के लिए संभावित समाधान 

वर्षा जल संचयन प्रणाली की सफलता के रास्ते में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए भारत सरकार की विकासपीडिया नामक वेबसाइट पर इसके कुछ उदाहरण दिये गए हैं। जैसे कि आम लोगों को इसके लिए जागरूक करने के लिए स्कूलों, कॉलोनियों और RWA स्तर पर कार्यशालाओं का नियमित आयोजन किया जा सकता है। इससे लोगों में पानी की फ़िज़ूल खर्ची और वर्षा के पानी के महत्त्व को समझने में आसानी मिलेगी।

दिल्ली जल बोर्ड एवं दिल्ली सरकार व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्तर पर वर्षा जल संचयन प्रणाली के निर्माण के लिए आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है। लेकिन, इस प्रोत्साहन राशि को बढ़ाने और साथ ही में कुछ अन्य प्रकार के प्रलोभन भी देने से भी लोगों की इसमें रुचि बढ़ेगी। इस प्रणाली को उन्नत, विकसित और आसान बनाने के लिए तकनीक का उपयोग भी एक अच्छा विकल्प है। सरकार इसके लिए स्मार्ट वाटर मीटर, सेंसर आधारित सिस्टम्स, ऐप ट्रैकिंग जैसी सुविधाओं के बारे में सोच सकती है।

सबसे अंतिम एवं महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस तरह के किसी भी अभियान या पहल की सफलता पूरी तरह से केवल सरकार पर निर्भर नहीं होती है। इसमें नागरिकों, एनजीओ, कॉरपोरेट सीएसआर और विभिन्न समुदायों की भागीदारी भी बराबर चाहिए होती है। अगर वर्षा जल संचयन को केवल एक तकनीकी उपाय न मानकर, इसे नागरिक आंदोलन और सामुदायिक उत्तरदायित्व के रूप में स्थापित किया जाए तो साझा सहयोग से इसे सफल और स्थायी बनाया जा सकता है।

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