पेयजल

संदर्भ शहरी बाढ़: काश! दिल्ली बारिश को जी भर के जी पाए

जब तक हम पुराने बुनियादी ढांचे की बढ़ते शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उन्नत और आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर बल नहीं देंगे तब तक प्रत्येक वर्ष इन समस्याओं से जूझते रहेंगे। यह समस्या अचानक से नहीं आती‚ हमें इसके आने की सूचना होती है। पूर्व की गलतियों से सीखने के मौके होते हैं।

Author : डॉ. मनीष कुमार चौधरी

सिनेमा ने बरसात को बहुत ही रोमांटिक तौर पर चित्रित किया है। कई लोकप्रिय और मधुर गानों से फिल्मों में बरसात के मौसम को दिखलाया गया है। साहित्य ने भी बारिश को प्रेम और रोमांस से जोड़ा है। मानसून में बारिश का आना स्वाभाविक चक्र है‚ और इन तमाम प्रसंगों के बीच जब बारिश का मौसम आता है तो देश की राजधानी दिल्ली के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कोई समस्या जब बार–बार दोहराने लगे तो इसका मतलब है कि हम समस्या को लेकर गंभीर नहीं हैं। दिल्ली सिर्फ महानगर ही नहीं है‚ बल्कि देश की राजधानी भी है। इस शहर की अंतरराष्ट्रीय साख और प्रतिष्ठा है। देश की राजधानी दिल्ली में विभिन्न देशों के दूतावास हैं। बारिश होते ही दिल्ली की सांसें थम जाती हैं। यह किसी वर्ष विशेष की स्थिति नहीं है‚ बल्कि इस तरह की आपदा से हम हर वर्ष गुजरते हैं।

28 जून‚ शुक्रवार को दिल्ली में मानसून ने दस्तक दी। लगभग मौसम विभाग का पूर्वानुमान भी यही था। पहले दिन ही 228.8 मिमी. बारिश दर्ज हुई‚ जो आज तक के इतिहास में जून महीने में हुई बारिश को वर्ष 1936 के बाद सर्वाधिक माना गया। यह बारिश दरअसल‚ आपदाओं की बारिश थी। दिल्ली बेहाल हो गई और देखते–देखते 88 जीवन को इस बारिश ने लील दिया। अप्राकृतिक मृत्यु हमारी व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न चिह्न लगाती हैं। सिर्फ उन परिवारों की कल्पना कीजिए जहां बारिश भर से जिंदगियां उजड़ जाती हैं। इन हादसों से फर्क किसी को नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है तो सिर्फ पीड़ित परिवार पर। सरकार के लिए किसी की जिंदगी सिर्फ संख्या भर है। काश! दोषियों को सजा देने की जरूरत भी सरकार महसूस करती।

गर्मी और पानी का दंश झेल रही दिल्ली

भीषण गर्मी और पानी का दंश झेल रही दिल्ली पर बारिश के कहर ने सड़कें‚ अंडरपास‚ टनल को जलमग्न तो किया ही एयरपोर्ट से लेकर सड़कों तक पर लंबा ट्रैफिक जाम भी लगा दिया। सड़कों पर डूबतीं कारें‚ बसों और घरों में पानी के अवश्य भयभीत करने लगे। उस कठिन वक्त में शायद यह भूलना मुनासिब था कि हम देश की राजधानी दिल्ली में रह रहे हैं। नवनिर्मित प्रगति मैदान का टनल बारिश के पानी से भरने के कारण बंद करना पड़़ा। दिल्ली टैक्स देने के मामले में देश में दूसरे स्थान पर है। क्या यहां के लगभग 25 करोड़ नागरिक सरकार से बुनियादी सुविधा की अपेक्षा नहीं रख सकते। आम नागरिक उम्मीद करता है कि देश की राजधानी होने के नाते अन्य जगहों की तुलना में दिल्ली में सरकारी तंत्र और प्रशासन के स्तर पर ऐसी मुस्तैदी होगी कि बारिश या किसी अन्य वजह से उपजी अव्यवस्था से तुरंत निपटने के ठोस प्रबंधन होंगे। लेकिन दुर्भाग्य है कि इन परिस्थितियों से निपटने के लिए शायद ही समय रहते संबंधित विभाग जगा हो। आम लोगों के स्तर पर भी लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जा सकता। लोग अपने घरों का कचरा सड़क किनारे नालियों या नालों में डाल देते हैं। इसकी वजह से भी जाम होने वाली नालियां मुख्य सड़कों पर व्यापक जल–जमाव का कारण बनती हैं।

बार–बार इन आपदाओं से गुजरने के बाद सरकार द्वारा दिए जा रहे भरोसे पर आखिर‚ कौन करेगा भरोसा। निःसंदेह यह जिम्मेदारी सरकार की है। पानी से जुड़ी समस्याओं पर दिल्ली सरकार की गैर–जिम्मेदारी तकलीफदेह है। जल प्रबंधन से लेकर ड्रेनेज और सीवर सिस्टम की जिम्मेदारी मुख्यतः दिल्ली नगर निगम और नगर पालिकाओं के पास है। समस्याओं का तटस्थ विश्लेषण करें तो इन समस्याओं के लिए अपर्याप्त शहरी योजना‚ प्रभावी ड्रेनेज समाधानों को शामिल करने में विफलता‚ प्राकृतिक जल निकासी के माध्यमों पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण मुख्यतः जिम्मेदार हैं। जल प्रबंधन और नाला सफाई प्रक्रिया में कथित भ्रष्टाचार को हम अनदेखा नहीं कर सकते। ईमानदार कोशिश‚ जन उपयोगी कार्ययोजना‚ दूरदर्शी और उन्नत तकनीकी के बगैर इन समस्याओं पर नियंत्रण पाना संभव नहीं है। पुराने ड्रेनेज इंन्फ्रास्ट्रक्चर की अनियमित सफाई और रखरखाव में उपेक्षा की वजह भी इस समस्या का कारण है। बारिश के तीन महीनों से निपटने के लिए हमारे पास 9 महीने और होते हैं। उन 9 महीनों में सिर्फ और सिर्फ खानापूर्ति और आरोप–प्रत्यारोप चलता रहता है। दिल्ली केंद्र और राज्य की एजेंसियों के बीच कार्य निष्पादित करती है। नगर पालिकाओं और राज्यों–केंद्र की एजेंसियों के बीच खराब समन्वय के साथ–साथ नीतिगत अपर्याप्ता भी इन समस्याओं को नियंत्रित नहीं कर पाती। इन समस्याओं के बेहतर निदान के लिए हमें वैश्विक स्तर पर जल निकासी प्रणाली का अनुकरण करना होगा। 

सिंगापुर की कारगर जल प्रबंधन नीति

दुनिया में नीदरलैंड़ और सिंगापुर अपनी असाधारण जल प्रबंधन नीति और कार्ययोजना के लिए प्रतिष्ठित हैं। अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ जल निकासी मॉडल की विश्वसनीयता और शहरी जल प्रबंधन की सफलता इन्हें अन्य देशों के लिए अनुकरणीय मॉडल बनाते हैं। सिंगापुर नवीन तकनीकों से उन्नत सीवेज उपचार संयंत्रों द्वारा गंदे पानी को पर्यावरण में छोड़े जाने से पहले गुणवत्तापूर्ण बनाकर प्रदूषण को काम करने में महkवपूर्ण भूमिका निभाता है। सिंगापुर की शहरी जल निकासी प्रणाली ने भारी वर्षा का कुशल प्रबंधन किया है। भारी वर्षा के दौरान वर्षा जल को सक्षम तरीके से मोड़ने और संग्रहित करने के लिए नहरों‚ नालों‚ और जलाशयों का एक व्यापक नेटवर्क बनाया है।

स्मार्ट जल प्रौद्योगिकी द्वारा भारी वर्षा और तूफानों के दुष्प्रभाव को कम करने की दिशा में बढ़ा जा सकता है। जापान इस दिशा में अग्रणी देश है। भूमिगत जल निकासी प्रणालियों द्वारा भी समस्या को कमतर किया जा सकता है। जापान ने टोक्यो के महानगरीय क्षेत्र को बाहरी भूमिगत जल निस्तारण योजना के अंतर्गत दुनिया की सबसे बड़ी भूमिगत वर्षा और बाढ़ के पानी को मोड़ने वाली सुविधा के रूप में विकसित किया गया है। जर्मनी की उत्कृष्ट प्रौद्योगिकी और संधारणीय जल प्रबंधन के प्रति प्रतिबद्धता उसे जल निकासी प्रणालियों में वैश्विक मान्यता देती है। देश की विशिष्ट प्रौद्योगिकी‚ नवीन तकनीकों और हरित अवसंरचना का समावेश एक आदर्श जल प्रबंधन को दिखलाता है। उदाहरण अनेक हैं‚ लेकिन जब तक हम पुराने बुनियादी ढांचे की बढ़ते शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उन्नत और आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर बल नहीं देंगे तब तक हम प्रत्येक वर्ष इन समस्याओं से जूझते रहेंगे। यह समस्या अचानक से नहीं आती‚ हमें इसके आने की सूचना होती है। पूर्व की गलतियों से सीखने के अवसर होते हैं। बुनियादी संरचना निÌमत करने का पर्याप्त समय होता है। नहीं होती है तो सिर्फ दृढ़ इच्छाशक्ति की। सरकार और उसकी एजेंसियों की नीयत की। आम जन उस दिन का इंतजार कर रहा है‚ जब बारिश बदहाली का नहीं‚ बल्कि खुशहाली का संदेश लेकर आए। दिल्ली बारिश के कहर में डूबे नहीं‚ बल्कि उस बारिश को जी भर के जिए।

लेखक डॉ. मनीष कुमार चौधरी दौलत राम कॉलेज‚ दिल्ली विश्वविद्यालय असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। 


 

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