पेयजल

सरकार और अध्ययन संस्थान के आपसी सहयोग का अनूठा उदाहरण

पीएचईडी, प्रोफ़ेसर प्रदीप कल्बर, आईआईटी बॉम्बे एवं अनिमेष भट्टाचार्य, मुख्य अभियंता, प.बंगाल

दक्षिण 24 परगना के बिशनपुर-II ब्लॉक के 14 गांवों के लगभग 50,000 लोगों को हुगली नदी का शोधित जल पाइप से उपलब्ध कराने की योजना 2003 में शुरू की गई थी। यह 30 लाख लोगों को नदी जल पाइप द्वारा पहुंचाने की विशाल योजना का हिस्सा थी। लेकिन आबादी में तीव्र वृद्धि और पाइपलाइन से अंधाधुंध कनेक्शन लिए जाने के कारण 10 वर्षों में ही पाइपलाइन के अंतिम छोर के घरों में पानी पहुंचना बंद हो गया था उसका प्रेशर अत्यंत धीमा हो गया। ऐसे में एकमात्र समाधान यही था कि पूरी जल आपूर्ति व्यवस्था को करोड़ों रुपये की लागत से दुरुस्त किया जाए।

आईआईटी बॉम्बे के साथ सहयोग से एक छोटी सी लागत वाले समाधान ने इस जल आपूर्ति प्रणाली में सुधार ला दिया और प्रभावित क्षेत्र के लगभग 65% लोगों की 8 साल से भी ज्यादा समय से बेकार पड़ी पाइपलाइनों में फिर से शुद्ध पेयजल बहने लगा।

विशाल क्षेत्रफल वाले इस इलाके में अनगिनत कनेक्शन थे और आम उपभोक्ता मोटर या हैंडपंप का इस्तेमाल करते थे। हालांकि ईएसआर/ ओएचआर की ऊंचाई 20 मीटर है, लेकिन कुछ ही सौ मीटर के बाद पानी के प्रेशर में काफी कमी आ जाती थी। हालत यह थी कि ओएचआर परिसर में ही लगभग 10 मीटर का प्रेशर लॉस हो जाता था। इसके कारण अंतिम छोर वाले नलकों में पानी नहीं पहुंचता था और पूरे इलाके में ही असमान प्रेशर की समस्या थी।

ईएसआर/ओएचआर के बाद एक मेनिफ़ोल्ड स्थापित कर हाइड्रोलिक आइसोलेशन हासिल किया गया जिसके फलस्वरूप वितरण प्रणाली में प्रेशर में वृद्धि हो गई तथा अंतिम छोर वाले उपभोक्ताओं के यहाँ भी पानी आने लगा। इस व्यवस्था को अपनाए जाने के बाद समग्र जोनल प्रेशर में 6.5 मीटर की वृद्धि हो गई, जबकि वितरण प्रणाली लगभग 100 किलोमीटर की है और जोनल रेडियस भी लगभग 5 किलोमीटर है।

  1. उचित हाइड्रोलिक समाधानों से युक्त रेट्रोफिटिंग से जल आपूर्ति प्रणाली की समस्याएँ सुलझाई जा सकती हैं, बजाय इसके कि सॉफ्टवेयर पर आधारित नए बुनियादी ढांचे को खड़ा किया जाए जो कि रुक-रुक कर काम करने वाली जल आपूर्ति प्रणालियों के लिए उपयुक्त नहीं होते।
  2. किसी महंगे और अनुपयुक्त समाधान, जैसे कि ओटोमेशन या नए ओएचआर का निर्माण या नई पाइपलाइन बिछाना, को अपनाने की बजाय हम मेनिफ़ोल्ड और शाफ्ट्स जैसे वैकल्पिक समाधानों को अपना कर प्रणालियों में व्यापक सुधार ला सकते हैं;
  3. गंभीरता से की गई प्लानिंग ने इस समस्या को पैदा होने से पहले ही सुलझा लिया होता! यानि इतने बड़े जोन को न बनाया होता या ओएचआर में अनेक निकास बिन्दु न बनाए जाते।

स्रोत: -जल-जीवन संवाद, अंक 22 , जुलाई  2022   

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