पेयजल

शुद्ध पेयजल के लिए महिलाओं और बच्चों का सशक्तिकरण

भूजल का भूगर्भीय संदूषण एक गंभीर चुनौती है क्योंकि असम के कुछ जिलों में आर्सेनिक और फ्लोराइड को अनुमेय सीमा से अधिक पाया गया था, जिससे पानी की गुणवत्ता का परीक्षण एक विकल्प ही नहीं बल्कि एक प्राथमिकता बन गया। इसका निराकरण करने के लिए, मिशन निदेशालय - जेजेएम ने यूनिसेफ के सहयोग से पानी की गुणवत्ता के संबंध में समुदाय को संवेदनशील बनाने के लिए महिलाओं को शामिल करने की रणनीति तैयार की।

Author : डॉ गौतम कुमार सर्मा, जेजेएम असम और तीथल परमार, यूनिसेफ असम

असम प्रचुर मात्रा में जल संसाधनों, बड़ी बारहमासी नदियों जैसे ब्रह्मपुत्र और इसकी कई सहायक नदियाँ और अन्य जल निकायों से समृद्ध है जिसके कारण राज्य के अधिकांश हिस्सों में पानी की उपलब्धता कोई समस्या नहीं है । तथापि, भूजल का भूगर्भीय संदूषण एक गंभीर चुनौती है क्योंकि असम के कुछ जिलों में आर्सेनिक और फ्लोराइड को अनुमेय सीमा से अधिक पाया गया था, जिससे पानी की गुणवत्ता का परीक्षण एक विकल्प ही नहीं बल्कि एक प्राथमिकता बन गया। इसका निराकरण करने के लिए, मिशन निदेशालय - जेजेएम ने यूनिसेफ के सहयोग से पानी की गुणवत्ता के संबंध में समुदाय को संवेदनशील बनाने के लिए महिलाओं को शामिल करने की रणनीति तैयार की।

जेजेएम के तहत महिलाएं न केवल प्राथमिक लाभार्थियों में से एक हैं, बल्कि सरकार उन्हें विशेष रूप से जल गुणवत्ता निगरानी कार्य के साथ सशक्त बनाकर इस परियोजना के संरक्षक के रूप में भी देखती है। मार्च 2022 तक असम में लगभग 37 हजार महिलाओं को डब्ल्यूक्यूएमएस गतिविधियों के लिए प्रशिक्षित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप 2.5 लाख नमूनों का परीक्षण किया गया। तथापि, इस उपलब्धि के बावजूद यह नोट किया गया कि वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किया जा सका क्योंकि महिलाएं कुछ इलाकों में एफटीके का उपयोग करके पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिए इच्छुक नहीं थीं।

असम में ज्यादातर लोगों के पास पारिवारिक स्तर पर पर्याप्त पानी होता है। इसलिए, लोगों को पानी की गुणवत्ता में अधिक निवेश करने के लिए सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) और अंतर- व्यक्तिगत संचार ( आईपीसी) गतिविधियों को तेज करना होगा ताकि लोगों को संदूषित पानी के दीर्घकालिक उपभोग के स्वास्थ्य पर प्रभाव के बारे में जागरूक किया जा सके। पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए परीक्षण किए गए कम नमूनों में योगदान देने वाला एक अन्य कारक यह है कि असम के लोग अभी भी अपने द्वारा उपभोग किए जाने वाले पानी की सुरक्षा के बारे में बहुत चिंतित नहीं हैं, इसी वजह से पीएचईडी प्रयोगशालाओं में सार्वजनिक नमूना परीक्षण अभी भी विभागीय नमूना परीक्षण की तुलना में बहुत कम है।

यूनिसेफ ने पानी के गुणवत्ता परीक्षण के साथ- साथ पीएचईडी के तहत प्रयोगशालाओं को बढ़ावा देने के संबंध में समुदाय को संवेदनशील बनाने के लिए एक रणनीति तैयार की। युवाओं की शक्ति का भरपूर उपयोग करने और पानी के गुणवत्ता परीक्षण के संबंध में समुदाय संवेदनशील बनाने के लिए, असम में शिक्षा विभाग के सहयोग से स्कूल के बच्चों को पानी के गुणवत्ता परीक्षण में शामिल करने के लिए एक अभिनव रणनीति शुरू की गई। सबसे पहले, स्कूलों की पहचान की जाएगी, और छात्रों का एक समूह, मुख्य रूप से कक्षा 9वीं और 10वीं के, एक विज्ञान शिक्षक के साथ अपने क्षेत्र के दौरे के भाग के रूप में अपनी निकटतम पीएचईडी प्रयोगशालाओं का दौरा करेंगे। प्रयोगशाला में जल गुणवत्ता परीक्षण के लिए एफटीके का उपयोग करने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। स्कूल के बच्चे विभिन्न जल स्रोतों का परीक्षण करेंगे और रिकॉर्ड रखेंगे। परियोजना की अवधि समाप्त होने के बाद, वे एक परियोजना रिपोर्ट के साथ सभी एफटीके डेटा प्रस्तुत करेंगे। प्रयोगशाला में डेटा का विश्लेषण किया जाएगा और किसी भी संदूषण के खिलाफ आवश्यक उपचारात्मक कार्रवाई की जाएगी और स्कूल को पुनः रिपोर्ट दी जाएगी ताकि बच्चे यह देख सकें कि उनके अध्ययन के परिणामस्वरूप परिवर्तन हुआ है। इसके लिए, एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) और रिपोर्टिंग प्रारूप तैयार किया गया है और शिक्षा विभाग के साथ साझा किया गया है। मुख्य लक्ष्य यह है कि बढ़ती जागरूकता के साथ गांवों में एफटीके परीक्षण समय के साथ एक आम बात हो जाएगी।

स्रोत :- जल जीवन संवाद अंक 24, जून 2022

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