पर्यावरण

गायब हो रही है हरियाली  

भोपाल की सड़कों के बीच और किनारे में बनाए गए ग्रीन बेल्ट पर कब्जे हो गए हैं, जिससे यहां हरियाली खत्म होती जा रही है। जबकि करोड़ों रुपए खर्च कर सड़क के सेंट्रल व साइड वर्ज में पेड-पौधे लगाकर हरियाली विकसित की गई है। लेकिन रसूखदार और जिम्मेदार मिलकर इस ग्रीन बेल्ट को खत्म करते जा रहे है इसको लेकर राजधानी परियोजना प्रशासन (सीपीए) ने दो वर्ष पहले किए अतिक्रमणों को चिन्हित किया था, साथ ही इसको लेकर एनजीटी में याचिका भी दायर की गई है। इस मामले में पर्यावरणविद सुभाष सी पाडे ने एनजीटी में याचिका दायर की है।

Author : श्याम सिंह सिकरवार  

मध्यप्रदेश में हरियाली बढ़ाने के लिए हर साल पौधारोपण होता है और करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन उसके बाद भी हरियाली गायब हो रही है। खासकर प्रदेश के महानगरों में तो स्थिति विकट होती जा रही है। इंदौर में आसपास तो हरियाली है, लेकिन शहर के भीतर सूखे की स्थिति है। यह तब है, जब पांच साल में निगम ने पौधारोपण पर 10 करोड़ खर्च किए हैं। हालांकि 75 फीसदी रकम सजावटी पौधों पर खर्च को गई, जिसके कारण 2020 में इंदौर का जो ग्रीन कवर 66 वर्ग किमी था वह 2021 में 54 रह गया था। निगम अब 74 वर्ग किमी होने का दावा कर रहा है, लेकिन हकीकत में यह 60 से भी कम है। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. ओपी जोशी व एसडीओ वन कैलाश जोशी के साथ शहर के ग्रीन कवर की पड़ताल को गई तो पता चला निगम 1126 गार्डन व अन्य ग्रीन फील्ड का एरिया जोड़कर ग्रीन कवर 74.50 वर्ग किमी बता रहा है, जबकि ग्रीन कवर पेड़ों की कैनोपी (छअंह का दायरा) होती है। हरियाली में कमी की बड़ी वजह बड़े निर्माण कार्यों के लिए पेड़ों की कटाई और नए ग्रीन एरिया विकसित नहीं किया जाना है। शहर में हरियाली के लिए दो सिटी फॉरेस्ट, ट्रंचिंग ग्राउंड, पितृ पर्वत, बिजासन टेकरी और 1126 गार्डन ही बचे हैं। रिंग रोड के आसपास का ग्रीन बेल्ट ही बचा है।

सुपर कॉरिडोर के सेंट्रल डिवाइडर में मेट्रो आने के कारण यहां का पूरा ग्रीन बेल्ट खत्म हो गया। ऐसे ही नई-नई योजनाओं के कारण लगातार ग्रीन कवर घटता जा रहा है। दूसरी तरफ निगम का दावा है कि ग्रीन कवर 74.50 वर्ग किमी हो गया है। इस पर पड़ताल करने पर खुलासा हुआ यह कागजी हेराफेरी है। पयांवरणविद डॉ. ओपी जोशी, एसडीओ कैलाश जोशी का कहना है कि ग्रीन कवर नहीं बढ़ रहा है बल्कि निगम ग्रीन बेल्ट या गार्डन की जमीनों पर ही ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण कर पेड़ों का घनत्व बढ़ा रहा है। इसमें भी ज्यादातर सजावटी पौधे लगाए जा रहे हैं, जिनसे ज्यादा लाभ मिलना मुश्किल है।

विशेषज्ञों का कहना है कि निगम जो 74.50 वर्ग किमी का ग्रीन कवर बता रहा है उसमें 30 प्रतिशत हरियाली 1980 के दशक में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के तहत लगाए गए पेड़ों से है। तब तेजी से बढ़ने वाले पेड़ जैसे सुबबुल, पेल्टोफोरम, गुलमोहर व अन्य को वन विभाग ने लगवाया था, ताकि जंगल का बोझ कम हो सके। पर इन पेड़ों की आयु भी सिर्फ 40 साल है, यही पेड़ आंधी-तूफान में गिर रहे हैं। निगम द्वारा ही 2020 में ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स में भेजी गई जानकारी निकाली गई तो खुलासा हुआ तब इंदौर का ग्रीन कवर 65 वर्ग किमी था। 2021 में उद्यान विभाग से तैयार की गई जानकारी के मुताबिक शहर का ग्रीन कवर 12 वर्ग किमी कम होकर 54 पर आ गया था। 2023 में निगम द्वारा तैयार की गई जानकारी में ग्रीन कवर 74,50 वर्ग किमी बताया गया है। इसकी पड़ताल की गई तो बड़ा खुलासा हुआ।

 विशेषज्ञों के मुताबिक जहां 100 की क्षमता है वहां निगम 125 पेड़ ठूस रहा है। इससे घनत्व भले अधिक आएगा, लेकिन हरियाली को फायदा नहीं मिलेगा, क्योंकि पौधे पनप नहीं पाएंगे। इससे ग्रीन कवर में कोई फायदा नहीं होगा। इसके अलावा मियावाकी पद्धति से पौधारोपण किया जा रहा है। ऐसा ही एक गार्डन एयरपोर्ट के पास तैयार किया गया है। मेट्रो के लिए सुपर कॉरिडोर का 11 किमी लंबा ग्रीन बेल्ट हटाया गया, यहां बड़ी मुश्किल से पेड़ तैयार हुए थे। अब जरूरत है राजस्व रिकॉर्ड में नया एरिया नोटिफाई करने की। पहले मिलों की जमीनों पर सिटी फॉरेस्ट तैयार करने की योजना बनी थी लेकिन इस पर भी अमल नहीं हुआ। शहर में लगभग 6 लाख पेड़ बचे हैं, जिनमें से 25 प्रतिशत पेड़ वे हैं, जिनकी आयु पूरी हो चुकी है। यही कारण है कि जरा सी तेज आंधी में शहर में सैकड़ों पेड़ या उनकी शाखाएं टूट रही हैं। पांच सालों में निगम ने 10 करोड़ रुपए पौधारोपण पर खर्च किए हैं। ज्यादातर खर्च डिवाइडरों पर सजावटी पेड़-पौधे लगाने में किया है। शहर सुंदर तो दिखने लगा है लेकिन आबोहवा को फायदा पहुंचाने वाले पेड़ों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। जनवरी में हुए प्रवासी भारतीय सम्मेलन (पीबीडी) में निगम ने 14500 सजावटी, और 46500 स्के फीट घास लगाई। इसमें से 70 प्रतिशत पौधे बर्बाद हो चुके हैं। नेहरू पार्क को ऑफिस पार्क बना दिया गया है। होलकर काल में नौलखा में 9 लाख से ज्यादा पेड़ थे। विश्श्राम बाग व फलबाग में हजारों पेड़ रिडेवलपमेंट के नाम पर कट गए। 

भोपाल में भी विकास या निर्माण के नाम पर पेड़ों को काटा जा रहा है। अरेरा कॉलोनी में जिस स्थान पर वीर दुर्गादास की प्रतिमा लगी थी। वहां चौराहे को संकरा किया जाना था। ऐसे में नगर निगम ने वीर दुर्गादास की प्रतिमा को विस्थापित किया जाना था। इसके लिए निगम के अधिकारियों ने प्रतिमा को सड़क किनारे स्थापित करने के लिए साइड वर्ज में खड़े पुराने पेड़ों को काट दिया वहीं प्रतिमा के लिए कांक्रीट का बेस बनाया और इसके बगल में लोगों के बैठने के लिए कुर्सियां लगाकर हरियाली को नष्ट किया। वर्ष 2021 में राजधानी परियोजना द्वारा सेंट्रल व साइड वर्ज पर 692 अतिक्रमणकारियों को चिन्हित किया गया था, जिनकी संख्या अब बढ़कर करीब 1500 से अधिक हो गई है। इनमें 1100 क्वार्टर, अरेरा कालोनी ई-1 से लेकर ई- 8 तक, शाहपुरा, चुनाभट्टी, गुलमोहर, 12 नंबर और लिंक रोड समेत अन्य स्थानों पर सड़क किनारे ग्रीन बेल्ट खत्म हो जा रह है 

स्रोत-  नवंबर (प्रथम) 2023 पाक्षिक अक्स 19

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