पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का महासागर पर असर 
पर्यावरण

पर्यावरण प्रदूषण और विकट समस्या जलवायु परिवर्तन से महासागर को सहेजना आवश्यक

पर्यावरण प्रदूषण और मौजूदा समय की विकट होती समस्या जलवायु परिवर्तन का महासागर पर क्या असर होता है? और इसके विपरीत महासागर पर्यावरण और मानव जीवन पर किस तरह से प्रतिक्रिया करता है, इन तमाम बातों को समझने के लिए भारतीय वैज्ञानिक लगातार अनुसंधान कर रहे हैं। What is the impact of environmental pollution and climate change on the ocean? And on the contrary, Indian scientists are continuously doing research to understand how the ocean reacts to the environment and human life.

Author : डॉ मनीष मोहन गोरे

हमारी पृथ्वी का करीब दो तिहाई हिस्सा पानी से ढंका हुआ है और यहाँ पर मौजूद कुल पानी का 96.5 प्रतिशत महासागरों में मौजूद है। इसलिए स्वाभाविक तौर पर ये समुद्र हमारे वर्तमान और भविष्य के लिए ऊर्जा के सबसे बड़े स्रोत हैं। महासागर, नदी, तालाब, झील, ग्लेशियर, हवा या मिट्टी की नमी पानी हर जगह मौजूद होता है। पौधों, जंतुओं और हम मनुष्यों के शरीर की मूलभूत जैविक इकाई लाखों कोशिकाओं के जीवद्रव्य में भी करीब 70 फीसदी पानी होता है। हम सभी इस तथ्य से परिचित हैं कि जीवन का पानी से गहरा सम्बन्ध है इसलिए महासागर में समृद्ध जैवविविधता पाई जाती है।

बेहद मनोहारी है समुद्र का जीवन, 

इनसे मिले हमें समृद्धि और ऊर्जा अपार, 

इन्हें सहेजकर आओ करें इनका उद्धार।

महासागर में जीवन

समुद्र की अलग-अलग गहराइयों में अलग-अलग प्रकार के जीव पाए जाते हैं और ये सभी मिलकर समुद्री जीवन और इसके इकोसिस्टम को सतरंगी स्वरूप देते हैं। वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार अभी तक पूरी दुनिया में करीब ढाई लाख समुद्री जीव प्रजातियों की पहचान की गई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि समुद्र के भीतर अभी 20 लाख जीव जातियाँ और मौजूद हैं जिनके बारे में पता लगाया जाना अभी बाकी है। इनके आकार में भी विविधता के प्रमाण मिलते हैं। दशमलव शून्य 2 माइक्रोमीटर छोटे समुद्री जीव से लेकर लगभग 110 फिट के ब्लू व्हेल जितने लम्बे प्राणी भी समुद्र में मिलते हैं।

समुद्र सतह से नीचे लगभग 200 मीटर तक सूर्य का प्रकाश पहुँचता है जिसे सनलाइट या एपिपेलाजिक जोन कहते हैं। सूर्य की रोशनी और ऊष्मा इस जोन को अनेक रंग-बिरंगे जीवन की सौगात देते हैं। समुद्र सतह के 200 मीटर के बाद और 1000 मीटर के बीच सूर्य की बेहद मद्धम रोशनी पहुँच पाती है इसलिए इसे ट्विलाइट या मिडवाटर जोन या मेजोपेलाजिक जोन कहते हैं। यहाँ अंधेरा होता है और इसे दूर करने के लिए यहाँ के जीव भूमि पर पाए जाने वाले प्राणी जुगनू के समान जैवसंदीप्ति का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। इस क्षेत्र में अनेक प्रजातियों की अनोखी मछलियाँ पाई जाती हैं। यह मंद रोशनी से जगमगाता हुआ अनोखा क्षेत्र होता है, जहाँ प्रकाश की कमी की वजह से बहुत से प्राणी दिखाई नहीं पड़ते और लगभग पारदर्शी जैसे हो जाते हैं।

मिडवाटर जोन से नीचे समुद्र की अतल गहराई आती है, यानी कि 1000 से लेकर 4000 मीटर तक की गहराई। इसे मध्यरात्रि (मिडनाइट) या बैथीपेलाजिक जोन कहते हैं। यहाँ के जीव जैवसंदीप्ति के द्वारा प्रकाशित होते हैं। यहाँ पानी का दबाव अत्यधिक रहता है। लेकिन आश्चर्य कि ऐसी प्रतिकूलताओं के बावजूद यहाँ पर असंख्य जीव मौजूद रहते हैं। यहाँ के समुद्री जीव रोशनी के अभाव में अधिकतर काले या लाल रंग के होते हैं। यहाँ पर औसत तापमान 4 डिग्री सेल्सियस के नीचे रहता है।

समुद्र में 4000 से लेकर 6000 मीटर की गहराई वाले हिस्से को एबिसल जोन या समुद्र गर्भ कहते हैं। यहाँ नितांत अँधेरा और तापमान बहुत कम (लगभग हिमांक के बराबर) होता है। इस गहराई में गिने चुने जीव ही पाए जाते हैं जिनमें ज्यादातर स्क्विड जैसे अकशेरुकी जीव मिलते हैं।

एबिसल जोन के नीचे समुद्र की तली होती है। जापान के मारिआना ट्रेंच में दुनिया के सबसे गहरे समुद्र का बिंदु पाया गया है जो कि समुद्र सतह से लगभग 11 हज़ार मीटर गहरा है। यहाँ मौजूद पानी का तापमान हर समय हिमांक से अधिक रहता है और दबाव कल्पना से परे। लेकिन प्रकृति का करिश्मा देखिये, इस अत्यंत विकट और विपरीत परिस्थितियों में भी यहाँ टेलीस्कोप आक्टोपस, स्नेलफिश और एम्फिपाड जैसे अकशेरुकी प्राणी अपना गुजर बसर करते हैं।

एक तरफ समुद्र की अनोखी और सतरंगी दुनिया प्रकृति में मौजूद कार्बन, नाइट्रोजन तथा फास्फोरस चक्रों के पारिस्थितिक संतुलन को बनाये रखने में अहम भूमिका निभाती है, वहीं दूसरी ओर आज मानवीय गतिविधियों के कारण महासागर, इसमें पाए जाने वाले जीव और प्राकृतिक संसाधन खतरे में हैं। भूमि का प्रदूषण तेल, कीटनाशक, प्लास्टिक, औद्योगिक कचरे के रूप में समुद्रों में डंप किया जाता है जिसके कारण समुद्र का इकोसिस्टम बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। इसमें रहने वाले लाखों जीवों का अस्तित्व संकट में है। प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन से कोरल रीफ का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है। समुद्री प्रदूषण के अलावा जलवायु परिवर्तन कोरल रीफ के उजड़ने की दूसरी मुख्य वजह है। वैज्ञानिक अध्ययन से यह प्रमाणित हुआ है कि जब बाह्य पदार्थ समुद्र में समावेश करते हैं तो ये समुद्री पारितंत्र और पर्यावरण को गंभीर हानि पहुंचाते हैं।

महासागर को समझने और इसके संरक्षण हेतु भारत के नवीन वैज्ञानिक अनुसंधान

भारत की प्रयोगशालाओं में महासागरीय जीवों, खनिजों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को लेकर अनुसंधान चल रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा महासागर पर पर्यावरणीय प्रदूषण, मानवजनित हस्तक्षेप और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में अनेक नवीन अनुसंधान कार्य जारी हैं। यहाँ पर इसकी कुछ एक झलकियाँ प्रस्तुत हैं।

आर वी सिन्धु साधना हिन्द महासागर पर केंद्रित वैज्ञानिक अनुसंधान

पर्यावरण प्रदूषण और मौजूदा समय की विकट होती समस्या जलवायु परिवर्तन का महासागर पर क्या असर होता है और इसके विपरीत महासागर पर्यावरण और मानव जीवन पर किस तरह से प्रतिक्रिया करता है, इन तमाम बातों को समझने के लिए भारतीय वैज्ञानिक लगातार अनुसंधान कर रहे हैं।

-

भारत के सबसे बड़े वैज्ञानिक अनुसंधान संगठन वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) की गोवा स्थित प्रयोगशाला 'राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान' (एनआईओ) 1966 से समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान कर रही है। महासागर और उसमें रहने वाले जीवों सहित उसके भीतर मौजूद खनिज के बारे में एनआईओ निरंतर शोधरत है। पिछले वर्ष इस प्रयोगशाला की एक महत्वपूर्ण परियोजना ने हिन्द महासागर में अनुसंधान कार्य को सम्पन्न किया जिसका नाम है 'आर वी सिन्धु साधना'। एनआईओ के 23 वैज्ञानिक इस सिन्धु साधना अभियान दल के सदस्य रहे। आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम समुद्र तट से आरम्भ हुई इस सागरीय अनुसंधान की अवधि लगभग 90 दिनों की थी। सीएसआईआर-एनआईओ के इस समुद्री अनुसंधान पोत का परिमाप 80 मीटर लम्बा और 56 मीटर चौड़ा है। इस महत्वपूर्ण यात्रा के दौरान वैज्ञानिकों के दल ने महासागरीय जीवन और उसमें मौजूद प्राकृतिक संसाधनों को गहराई से समझा।

आर वी सिन्धु साधना अभियान के वैज्ञानिक उद्देश्य 

90 दिनों के इस वैज्ञानिक अभियान 'आर वी सिन्धु साधना' की मदद से हिन्द महासागर के अध्ययन व अनुसंधान को लेकर हमारी समझ में व्यापक परिवर्तन आया। हिन्द महासागर के रहस्यों को जानने के लिए निकला सीएसआईआर का यह वैज्ञानिक अभियान भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए अनोखा था। इस समुद्री अभियान के दो मुख्य उद्देश्य रहे जिनके बारे में यहाँ चर्चा की जा रही है। 

समुद्री सूक्ष्मजीवों की जीन मैपिंग

आर वी सिन्धु साधना समुद्री अनुसंधान पोत पर तैनात 23 वैज्ञानिकों के दल का पहला मुख्य उद्देश्य था हिन्द महासागर की जीनोमिक एवं प्रोटियोमिक विविधता का मानचित्रण करना।

इस अभियान दल ने समुद्री सूक्ष्मजीवों के कोशिकीय स्तर पर होने वाली प्रक्रियाओं को समझने के लिए महासागरीय जीवों में प्रोटीन और जीन का वैज्ञानिक विश्लेषण किया। महासागर की विभिन्न परिस्थितियों में अपना अस्तित्व कायम रखने वाले जीवों में जो जैव रासायनिक क्रियाएँ होती हैं, उनमें प्रोटीन, मार्कर और उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं। जीवविज्ञान की इस अध्ययन शाखा को प्रोटियोमिक्स कहते हैं और इस अध्ययन शाखा में जीवों के शरीर में होने वाले इन तमाम कोशिकीय जैवरासायनिक परिवर्तनों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, बढ़ते प्रदूषण और ट्रेस धातुओं एवं पोषक तत्वों के तनाव को लेकर उनकी प्रतिक्रियाओं का भी अध्ययन किया जाता है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और ट्रेस धातुओं एवं पोषक तत्वों के तनाव महासागर के जीवों पर क्या असर डालते हैं, साथ ही जीवों की कोशिकीय जैवरासायनिकी इन बाह्य हस्तक्षेपों के प्रति कैसा व्यवहार करती है, उसे समझना भी इस अध्ययन के द्वारा संभव हुआ है। आर वी सिन्धु साधना अभियान के अंतर्गत हिन्द महासागर से अनेक प्रकार के सैम्पल एकत्र किए गए जो जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के समुद्री जीवों की कोशिकीय प्रक्रियाओं पर प्रभाव को समझने के नए द्वार खोलेंगे।

आर वी सिन्धु साधना के समुद्री जहाज पर बैठकर ट्रेस धातुओं, जीनोम और प्रोटीन का अध्ययन करने के लिए हिन्द महासागर में 6000 मीटर तक गहरे पानी तथा अवसाद (सेडिमेंट) के सैम्पल इकट्ठा किए गए। वैज्ञानिक दल ने इन सैम्पल के द्वारा हिन्द महासागर के पारिस्थितिकीतंत्र के डायनामिक्स को समझने के लिए आधुनिक आणविक जैवचिकित्सीय तकनीकों, जेनेटिक सिक्वेंसिंग के साथ ही बायोइंफॉर्मेटिक्स का उपयोग किया। यह जीनोमिक लाइब्रेरी भावी जैविक अनुसंधान के लिए एक विशाल रिपोजिटरी के रूप में काम आएगी।

महासागर भविष्य के ईंधन और प्राकृतिक संसाधनों का एक विशाल स्रोत हैं। पृथ्वी पर जीवन कायम रहे, इसके लिए धरती के अलावा महासागर की जीव प्रजातियों का अस्तित्व अनिवार्य है। जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण धरती ही नहीं समुद्री पारिस्थितिकीतंत्र तथा समुद्री जीवों के अस्तित्व के लिए खतरा बने हुए हैं। इन समस्याओं की प्रतिक्रिया में समुद्री जीवों के शरीर में क्या जैवरासायनिक परिवर्तन आते हैं, जीन के स्तर पर उन परिवर्तनों के अध्ययन के लिए सिन्धु साधना अभियान में जीवविज्ञान, भूविज्ञान, रसायन विज्ञान, जैवरसायन विज्ञान और भूरसायन विज्ञान के वैज्ञानिकों ने विस्तृत अनुसंधान किया। जलवायु परिवर्तन व प्रदूषण के लिए समुद्री जीवों के जीन में अगर कोई अनुकूलन का व्यवहार है तो उसे भी इन वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया ताकि समुद्री जीव प्रजातियों के संरक्षण प्रयासों में मदद मिल सके।

ट्रेस धातुओं का अध्ययन

ट्रेस धातुएँ (मैंगनीज, कोबाल्ट, आयरन, निकिल, कॉपर, जिंक) महासागरों में पाई जाती हैं जो जीवों की वृद्धि में सहायक होती हैं। जीवधारियों के ऊतकों में ये ट्रेस धातु थोड़ी मात्रा में मौजूद होती हैं और ये मुख्यतः एंजाइम प्रणाली तथा उर्जा उपापचय की क्रियाओं में उत्प्रेरक की भूमिका निभाती हैं। महासागरों में महाद्वीपीय जल बहाव, वायुमंडलीय और जलतापीय गतिविधियों के जरिये ट्रेस धातुएँ महासागरों में अपना ठिकाना बनाती हैं। महासागरों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के चक्रण और उत्पादकता को समग्रता के साथ समझने के लिए समुद्री जीवों और इन ट्रेस धातुओं के आपसी रिश्ते को जानना बेहद जरूरी है। आर वी सिन्धु साधना अभियान का दूसरा मुख्य उद्देश्य था हिन्द महासागर के अल्पज्ञात क्षेत्रों में मौजूद ट्रेस धातुओं से

महासागर की जीनोमिक विविधता और ट्रेस धातुओं के अध्ययन के लिए आर वी सिन्धु साधना का यह 90 दिनों का समुद्री अनुसंधान अभियान संयुक्त राष्ट्र महासागर विज्ञान दशक (2021-2030) के साथ-साथ सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा। इस अभियान का एक अहम उद्देश्य ये भी रहा है कि महत्वपूर्ण समुद्री जैवसंसाधनों और उनके मेटाबोलाइट की खोज में पारिस्थितिकी सिद्धांतों का उपयोग किया जाए। इस उद्देश्य के सहारे महासागर के पारिस्थितिकीतंत्र के स्वास्थ्य को बचाए रखते हुए आर्थिक विकास, उन्नत जीवनयापन और रोज़गार अवसर को सुनिश्चित किया जा सकता है।

इस परियोजना में संचालित किए गए अनेक प्रयोगों में महिला वैज्ञानिकों ने अग्रणी भूमिका निभाई। जैसे कि बहुत न्यून प्रचूरता में ट्रेस धातुओं व उनके समस्थानिकों का मापन करने और जैविक नमूनों में डीएनए व आरएनए का सुनिश्चय करने वाले प्रयोग।

सिन्धु साधना की समुद्री प्रयोगशाला का विकास

सीएसआईआर-एनआईओ ने भारत के प्रथम बहुअध्ययन शाखाओं वाले समुद्र विज्ञान अनुसंधान पोत 'आर वी गवेषणी' को साल 1976 में प्राप्त किया था। विज्ञान की कई अध्ययन शाखाओं के अंतर्गत समुद्र विज्ञान सम्बन्धी अनुसंधान के क्षेत्र में इस पोत ने भारत को समर्थ बनाया। 18 वर्षों की सराहनीय सेवा के बाद 1994 में इस अनुसंधान पोत को सेवामुक्त कर दिया गया। इसके बाद 'सागर सूक्ति' नामक एक दूसरे समुद्री अनुसंधान पोत का अभिग्रहण किया गया। 2012 में एनआईओ ने एक नए स्वदेशनिर्मित समुद्री अनुसंधान पोत 'आर वी सिन्धु साधना' का अभिग्रहण किया जो न सिर्फ भारत के समीपवर्ती समुद्र बल्कि हिन्द महासागर के किसी भी हिस्से में समुद्री अनुसंधान के लिए भारतीय समुद्र वैज्ञानिकों को सक्षम बनाता है। इस पोत में कई अत्याधुनिक प्रौद्योगिकीयुक्त यंत्र लगे हुए हैं जिनकी मदद से वैज्ञानिक समुद्री यात्रा के दौरान अनुसंधान जारी रख सकते हैं। इस पोत के पंजीकरण की आधिकारिक संख्या 3635 और इसके झंडे का चिह्न AVCO है।

समुद्र में तैरते इस अनुसंधान पोत के भीतर अनेक छोटी प्रयोगशालाएँ हैं और यहाँ महासागर प्रौद्योगिकी तथा अनुसंधान के लिए इको साउंडर, एकाउस्टिक डाप्लर, प्रोफाइलर, आटोनामस वेदर स्टेशन, एयर क्वालिटी मानिटर जैसे वर्ल्ड क्लास यंत्र लगाए गए हैं। सिन्धु साधना अनुसंधान परियोजना ने भारत को महासागर प्रौद्योगिकी के विश्व मानचित्र पर ला खड़ा किया है।

डीप ओशन मिशन

गहन महासागर के लगभग 95 प्रतिशत हिस्से को मनुष्य अभी जान नहीं पाया है। भारत की करीब 30 फीसदी मानव आबादी समुद्र तटीय इलाकों में रहती है. इसलिए समुद्र इस आबादी के लिए जीविका का एक मुख्य स्रोत है। समुद्र के महत्व को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 2021-2030 के दशक को सतत विकास हेतु समुद्र विज्ञान के दशक के रूप में घोषित किया है। समुद्र के मामले में भारत की स्थिति विश्व में अद्वितीय है। भारत का 7517 किलोमीटर लम्बी समुद्रतट रेखा पर 9 समुद्र तटीय राज्य और 1382 द्वीप बसते हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक नए भारत के विकास के स्वप्न के मद्देनजर नीली अर्थव्यवस्था की रूपरेखा तय की है। इसी संदर्भ में, आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के 'डीप ओशन मिशन' को मंजूरी दी है। महासागर में मौजूद संसाधनों के सतत उपयोग और गहरे समुद्र से संबंधित टेक्नोलॉजी का विकास करने के उद्देश्यों से रु. 4077 करोड़ के अनुमानित बजट का प्रावधान अगले पाँच वर्षों की अवधि के लिए रखा गया है। डीप ओशन मिशन के मुख्य तौर पर छह अवयव हैं:

1. गहन समुद्र के अन्वेषण और समानव पनडुब्बी के लिए टेक्नोलॉजी का विकास।

2. समुद्र जलवायु परिवर्तन परामर्शदात्री सेवाओं का विकास।

3. गहन समुद्री जैवविविधता की खोज और संरक्षण के लिए प्रौद्योगिकीय नवाचार।

4. गहन समुद्री सर्वेक्षण और खोज।

5. समुद्र से ऊर्जा और स्वच्छ पानी की प्राप्ति।

6. समुद्र जीवविज्ञान के लिए अत्याधुनिक समुद्री केंद्र।

समुद्रयानः गहरे समुद्र के अध्ययन के लिए भारत की पहली समानव पनडुब्बी 

गहरे समुद्र के रहस्यों से पर्दा हटाने के लिए, गहरे समुद्री जीवों, खनिजों और दूसरे प्राकृतिक संसाधनों की टोह लेने के उद्देश्य से भारत ने 'समुद्रयान' नामक समुद्री अभियान को आरम्भ किया है। इस अनोखी टोही समुद्री पनडुब्बी 'समुद्रयान' को अक्टूबर 2021 में लोकार्पित किया गया था। समुद्रयान के विकास के बाद, भारत अब गहरे समुद्र के भीतर वैज्ञानिक खोज के लिए विशिष्ट प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने वाले दुनिया के खास समूह का सदस्य बन गया है। इस समूह के अन्य प्रमुख देशों में सम्मिलित हैं अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस और चीन।

समुद्रयान अभियान में एक स्वचालित समानव पनडुब्बी होती है जो तीन व्यक्तियों को अपने भीतर बिठाकर समुद्र के भीतर 6000 मीटर की गहराई तक जा सकती है। यह पनडुब्बी अनेक वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित होती है जिनके उपयोग से गहन समुद्र का अन्वेषण किया जाता है। समुद्रयान के गहन समुद्र के सक्रिय अन्वेषण की समय अवधि 12 घंटे होती है लेकिन आपात स्थिति में यह 96 घंटे तक सक्रिय बना रह सकता है। इसके अंदर बैठकर वैज्ञानिक दल गहन समुद्र के अनजाने क्षेत्रों का अध्ययन प्रत्यक्ष रूप से कर सकता है।

वर्तमान सदी में पृथ्वी और इसका पर्यावरण संकटग्रस्त है। वायु और भूमि सहित महासागर भी इससे अछूता नहीं है। जिस गति से हम मनुष्य पृथ्वी पर मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं, यह बहुत अधिक समय तक जीने लायक नहीं रहेगा। उस समय हमारे सामने केवल समुद्र के रूप में एक ही विकल्प बचेगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भविष्य में महासागर हम मनुष्यों के अस्तित्व के प्रमुख रखवाले होंगे। जीवविज्ञानी पृथ्वी भूभाग की अपेक्षा समुद्र के भीतर झाँकने, वहाँ मौजूद असंख्य जीवों और प्राकृतिक संसाधनों को जानने के लिए हमेशा अनुसंधान करते रहे हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए तर्कसंगत यही है कि हम अपनी धरती के साथ-साथ समुद्र को भी सहेजें।

जब मानवीय गतिविधियों से भौतिक और रासायनिक हस्तक्षेप के कारण समुद्र में आक्सीजन की कमी होती है तो उससे मानव निर्मित डेड जोन बनते हैं। समुद्री जीव मरने लगते हैं। इस तरह समुद्र जलीय जीवों के प्राकृतिक आवास के स्थान पर जैवीय मरुस्थल बन जाता है। समुद्र तटीय इलाकों में बढ़ती मानव आबादी, पर्यटन, औद्योगिक रसायनों के स्राव, प्रदूषण जैसी गतिविधियाँ डेड जोन बनाने में मदद कर रही है। समुद्र और उसके इकोसिस्टम को बचाने के लिए इन मानवीय गतिविधियों को बंद करना बेहद जरूरी है। हमें समुद्र और इसके इकोसिस्टम को बचाने के लिए हर संभव कोशिश करनी होगी।

लेखक सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिक एवं 'विज्ञान प्रगति' के संपादक हैं। ईमेल: mmg @niscpr.res.in

 

SCROLL FOR NEXT