पर्यावरण

पर्यावरण परिक्रमा

जानिए, पानी, पेड़,वन्य जीव और पर्यावरण संरक्षण हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण हो गया है

Author : पर्यावरण डाइजेस्ट

पिछले दिनों केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय में वर्ष 2022 की तेंदुए की रिपोर्ट जारी की। जिसमें मध्यप्रदेश वर्ष 2018 के बाद एक बार फिर प्रथम रहा। टाइगर स्टेट के बाद मध्यप्रदेश तेंदुआ स्टेट भी बनने में सफल रहा। प्रदेश में 3907 तेंदुए पाए गए हैं, दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां 1985 तेंदुए मिले हैं। वहीं देश भर में 13874 तेंदुए पाए गए हैं। तेंदुए की गिनती में हिमालय क्षेत्र को शामिल नहीं किया गया है। पिछले दिनों केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने यह आंकड़ा जारी किया है।

वर्ष 2018 में प्रदेश में तेंदुओं की कुल संख्या जहां 3421 थी  वहीं वर्ष 2022 में 3907 दर्ज की गई हैं। महाराष्ट्र में वर्ष 2022 में 1985 तेंदुए पाए गए है जबकि वर्ष 2018 में 1690 थी। कर्नाटक में भी तेंदुओं की जनसंख्या बड़ी है। जहां 2022 में 1879 और 2018 में 1783 तेंदुए  हैं। तमिलनाडु में भी 2022 में 1070 और 2018 में 868 तेंदुओं की जनसंख्या दर्ज की गई है।

तेंदुओं के संरक्षित क्षेत्रों के मामले में आंधप्रदेश का श्रीशैलम के जंगल हैं, यहां पर तेंदुओं की अधिकतम जनसंख्या है, जो कि देश के अन्य क्षेत्रों से अधिक है। वहीं प्रदेश के पन्ना और सतपुड़ा क्षेत्र भी तेंदुओं के लिए सबसे सुरक्षित और बेहतर स्थान पाया गया है।

पिछले दिनों प्राइवेट कंपनी के स्पेसक्राफ्ट ओडिसियस की लैंडिंग के साथ अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा चांद पर अपने पांव जमाने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गई है। इससे पहले 11 दिसंबर 1972 को चांद की टॉरस-लिट्रो घाटी में अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री जीन सरनन अपने चैलेंजर मॉड्यूल के साथ सतह पर उतरे थे। ओडिसियस की लैंडिंग कई कारणों से अहम है। पहली बार किसी प्राइवेट कंपनी का स्पेसक्राफ्ट चांद पर पहुंचा है। वह दक्षिणी हिस्से में ऐसी जगह पर उतरा है जहां क्रेटरों में बर्फ सुरक्षित है। बर्फ के इन भंडारों का इस्तेमाल भावी अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा पेयजल, ऑक्सीजन और रॉकेट फ्यूल के लिए किया जा सकता है।

इससे पहले नासा ने छह अपोलो यान- चंद्रमा पर भेजे थे। वहां सबसे अधिक समय तीन दिन तक जीन सरनन और उनके लुनार मॉड्यूल पायलट हैरीसन स्मिथ रुके थे। सबसे कम समय 21 घंटा नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन ने बिताया था। वे 1969 में अपोलो 11 मिशन के तहत पहली बार चांद पर उतरे थे। 21 वीं सदी का मून मिशन अलग है। नासा ने 2017 में आर्टेमिस प्रोग्राम शुरू करते हुए कहा था कि नए दौर में अंतरिक्ष की खोज का कार्यक्रम अधिक महत्वाकांक्षी है।

इसके तहत चंद्रमा की कक्षा में गेटवे नामक एक मिनी स्टेशन स्थापित किया जाएगा। यहां से अंतरिक्ष यात्री चांद पर आ जा सकेंगे। नासा की योजना चांद के दक्षिण ध्रुव पर अंतरिक्ष यात्रियों के लिए स्थायी घर बनाने की है। एस्ट्रोनॉट्स की टीम में महिलाओं के अलावा अश्वेत भी होंगे। अब तक सभी अंतरिक्ष यात्री पुरुष और श्वेत रहे हैं।
नए मून मिशन के सामने मुश्किल भी है। अपने स्वर्णिम दिनों में नासा का बजट अमेरिकी बजट का 4% था। अब यह केवल 0.4% है। इसलिए स्पेसक्राफ्ट की डिजाइन और निर्माण का काम प्राइवेट इंडस्ट्री को सौंपा गया है। ओडिसियस के पहले 8 जनवरी को एस्ट्रोबोटिक टेक्नोलॉजी कंपनी का पेरेग्राइन लैंडर मिशन विफल हो गया था। ह्यूस्टन स्थित ने इनट्यूटिव मशीन्स ने ओडिसियस बनाया है।

नासा ने 2026 तक चांद के लिए आठ अन्य मिशन की योजना बनाई है। इनट्यूटिव मशीन्स को दो और एस्ट्रोबोटिक कंपनी को एक मिशन सौंपा गया है। इसके बाद आर्टेमिस के तहत चांद पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को लगातार सप्लाई जारी रखने के लिए अभियान चलेंगे। आर्टेमिस प्रोग्राम में पहली मून लैंडिंग 2026 की शुरुआत में हो सकती है। अभी इस पर काम जारी है।

अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव तस्करों पर कार्रवाई के लिए भारत सहित पांच देश एक साथ आए हैं। आपराधिक खुफिया जानकारी साझा करके और उनके वित्तीय नेटवर्क को तोड़ने समेत कई मुद्दों पर इंटरपोल चैनलों के इस्तेमाल कर संयुक्त कार्रवाई की भारत, बांग्लादेश, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया की योजना बनाई है। विदेशी प्रजातियों की तस्करी को रोकने के लिए आयोजित सीबीआइ और इंटरपोल की दो दिवसीय बैठक के दौरान वन्य जीवों के तस्करों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तौर-तरीकों पर विचार विमर्श किया गया।


अधिकारियों ने कहा कि हमें पता चला है कि अफ्रीका से दक्षिण पूर्व एशिया और फिर भारत और चीन तक विदेशी वन्यजीवों की तस्करी के लिए हवाई कार्गो का तस्कर इस्तेमाल करते हैं। मलेशिया और इंडोनेशिया से थाईलैंड और म्यांमार के साथ भूमि सीमाओं के माध्यम से चीन तक, मलेशिया से सांप, कछुए और इगुआना जैसे सरीसृपों को थाईलैंड और फिर भारत ले जाया जाता है। उन्होंने कह कि म्यांमार के साथ भूमि सीमाओं का इस्तेमाल करके थाईलैंड से भारत तक ये खेल चलता है। वर्ष 2022 में कई एजेंसियों द्वारा भारत में हुलाक गिब्बन, विदेशी कछुए, छिपकली, ऊदबिलाव, मूर मैकक्वेस, बौना नेवला, पिग्मी मार्मोसेट और डस्की लीफ बंदर से संबंधित सामग्री जप्त की गई।

दुनियाभर में मोटापे की समस्या से जूझ रहे लोगों की आबादी एक अरब से ज्यादा हो गई है। इसमें वयस्क और बुजुर्गों के साथ बच्चे भी शामिल हैं। मोटापे के बढ़ते जोखिमों को लेकर किए गए शोध में यह खुलासा हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के बच्चों-किशोरों में 1990 के मुकाबले 2022 (यानी तीन दशक) में मोटापे की दर चार गुना बढ़ गई। वयस्क आबादी में महिलाओं में मोटापे की दर दोगुनी और पुरुषों में तीन गुना से ज्यादा हो गई। शोधकर्ताओं ने कहा कि दुनिया में जिस तरह लोगों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है, उससे भविष्य में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा है। ज्यादा वजन या मोटापा कई क्रोनिक बीमारियों का कारक माना जाता है। शोध के मुताबिक ज्यादा वजन वालों में डायबिटीज, हृदय रोग और हार्ट अटैक का खतरा ज्यादा हो सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में 15.9 करोड़ बच्चे-किशोर और 87.9 करोड़ वयस्क मोटापे के शिकार पाए गए। बच्चों के साथ बुजुर्गों में भी यह समस्या बढ़ी है। तीन दशक में कम वजन से प्रभावित बच्चों और किशोरों का अनुपात लड़कियों में करीब पांच फीसदी और लड़कों में एक तिहाई से कम हो गया। इस अवधि में कम वजन वाले वयस्कों का अनुपात भी 50% से ज्यादा कम हुआ है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास ने भारतीय मसालों को लेकर एक रोचक रिसर्च पेटेंट कराई है। इस रिसर्च में दावा किया गया है कि भारतीय मसालों से कैंसर को ठीक करने की दवा बन सकती है। रिसर्चर्स ने दावा किया है कि भारतीय मसाले लंग कैंसर सेल, ब्रेस्ट कैंसर सेल, कोलन कैंसर सेल, सरवाइकल कैंसर सेल, ओरल कैंसर सेल और थायरॉइड कैंसर सेल में एंटी कैंसर एक्टिविटी दिखाते हैं। ये मसाले नॉर्मल मेल में सेफ रहते हैं। रिसर्चर्स फिलहाल इसकी लागत और सेफ्टी की चुनौतियों पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जानवरों पर इसकी स्टडी हो चुकी है।

यह रिसर्च आईआईटी मद्रास के एलुमनाई और प्रतीक्षा ट्रस्ट के जरिए इन्फोसिस के को फाउंडर गोपालकृष्णन की फंडिंग के कारण आगे बढ़ रही है। आईआईटी मद्रास की चीफ साइंटिफिक ऑफिसर जॉयस निर्मला ने कहा- कई स्टडी में यह दावा किया गया है कि कॉमन तरह के कैंसर इससे ठीक हो सकते हैं। दुनिया में सबसे अधिक मौतों का कारण बनने वाली बीमारियों में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज पहले नंबर पर है। उसके बाद दूसरे नंबर पर कैंसर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में कैंसर ने करीब एक करोड़ लोगों की जान ले ली। यानी दुनिया में हर 6 मौतों में से एक मौत कैंसर से हुई। भारत में भी कैंसर से होने वाली मौतों का आंकड़ा, वैश्विक आंकड़ों से खास अलग नहीं।

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने बीते साल राज्यसभा में इससे संबंधित आंकड़े जारी किए थे। उन्होंने आईसीएमआर के हवाले से बताया था, साल 2020 में कैंसर से मरने वाले मरीजों की संख्या 7 लाख 70 हजार थी। जो साल 2021 में 7 लाख 79 हजार और साल 2022 में 8 लाख 8 हजार पहुंच गई। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी इस दिशा में महत्वपूर्ण काम कर रही है। इस सोसाइटी में कैंसर स्क्रीनिंग के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट रॉबर्ट स्मिथ बताते हैं, कैंसर स्क्रीनिंग के नतीजे तब सबसे अच्छे आते हैं, जब इसे सही गाइडलाइंस के अनुसार नियमित तौर पर किया जाए।

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