विगत 50-60 वर्षों से विश्व के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर पश्चिमी और औद्योगिक देशों में, प्रजनन स्वास्थ्य में गिरावट की खबरें सामने आ रही हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जिनमें व्यावसायिक और वातावरणीय प्रदूषण की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। सामान्य लोग अपनी दैनिक दिनचर्या में वातावरण में मौजूद प्रदूषकों के संपर्क में आते हैं, और इसका प्रभाव प्रदूषकों की मात्रा पर निर्भर करता है। इसी तरह, व्यावसायिक परिवेश में काम करने वाले लोग हानिकारक प्रदूषकों से प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न दूषित पदार्थ कार्यस्थल के वातावरण में जमा होते हैं।
सामान्य भाषा में, व्यावसायिक वातावरणीय प्रदूषण में विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न रसायन, अत्यधिक गर्मी या ठंड, सामान्य से अधिक विकिरण, शोर, और वायु में रसायनों, घातक गैसों, धातुओं, विलायकों (सॉल्वेंट्स), उनके ऑक्साइड, एवं अन्य हानिकारक तत्वों की उपस्थिति शामिल होती है। इन प्रदूषकों की मात्रा व्यवसाय की प्रकृति, उपयोग होने वाले पदार्थों, और कार्यस्थल के वातावरण पर निर्भर करती है। ये प्रदूषक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कामगारों, सामान्य लोगों, और अन्य जीव-जंतुओं के प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं।
प्राकृतिक वातावरण भी मानवीय गतिविधियों, प्राकृतिक आपदाओं, और दैनिक क्रियाकलापों से प्रभावित होता है। इसमें रसायन, घातक गैसें, धातुएं, विलायक, अत्यधिक तापमान, विकिरण, और अन्य हानिकारक तत्व शामिल हो सकते हैं। विश्व के कई हिस्सों में भूजल प्रदूषित है, जो पीने योग्य नहीं रह गया है। ऐसा पानी विभिन्न बीमारियों, विशेषकर प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है।
आज विश्व का कोई भी हिस्सा पूरी तरह प्रदूषण-मुक्त नहीं है। इसके पीछे प्रमुख कारण हैं:
- प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन: तेजी से बढ़ती जनसंख्या और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग।
- भौतिकवादी जीवन शैली: आधुनिक युग में भौतिक वस्तुओं की मांग में वृद्धि।
- औद्योगिक और व्यावसायिक गतिविधियां: इनसे उत्पन्न होने वाले विषाक्त रसायन और प्रदूषक।
प्रदूषकों की विषाक्तता, उनकी मात्रा, और शरीर द्वारा उनका अवशोषण प्रजनन स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है। वातावरणीय घटक, जैसे जल, वायु, और मिट्टी, हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इनका प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए खतरा बन गया है।
जल जीवन के लिए अनिवार्य है, लेकिन जब इसमें प्रदूषित तत्व सुरक्षित सीमा से अधिक हो जाते हैं, तो यह मानव, जीव-जंतुओं, और वनस्पतियों के लिए हानिकारक हो जाता है। विश्व में केवल 2% जल ही पीने योग्य है। औद्योगिक कचरे, कूड़े, और मानवीय गतिविधियों से जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। यह दूषित जल नदियों, तालाबों, और समुद्र में मिलकर पर्यावरण को और नुकसान पहुंचाता है।
प्रयोगशाला अध्ययनों से पता चलता है कि दूषित जल प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, 2001 में किए गए एक अध्ययन में नर खरगोशों को आर्सेनिक, क्रोमियम, लेड, बेंजीन, क्लोरोफॉर्म, फिनॉल, और ट्राई क्लोरो एथिलीन जैसे रसायनों से युक्त दूषित जल दिया गया। गर्भावस्था के 20वें दिन से दूध छुड़ाने तक, और फिर 15 सप्ताह तक इस जल के सेवन से खरगोशों की प्रजनन क्षमता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा। 57-61 सप्ताह की आयु में इन खरगोशों में शुक्राणु गुणवत्ता, संभोग इच्छा, और लेडिग कोशिकाओं की कार्यक्षमता में कमी देखी गई।
बांग्लादेश और भारत के पूर्वी हिस्सों में आर्सेनिक से दूषित जल एक गंभीर समस्या है। 2005 में बांग्लादेश में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि आर्सेनिक युक्त जल का सेवन करने वाली महिलाओं में भ्रूण और नवजात मृत्यु का जोखिम बढ़ गया। 50 मिलीग्राम/लीटर आर्सेनिक से दूषित जल के सेवन से गर्भावस्था में भ्रूण नष्ट होने और नवजात मृत्यु की संभावना बढ़ी। आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसे प्रदूषक प्रजनन स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।
वायु प्रदूषण में रसायन, सूक्ष्म कण, जैविक सामग्री, और अन्य हानिकारक तत्वों की उपस्थिति शामिल होती है। आधुनिक युग में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं:
- औद्योगिक उत्सर्जन: कारखानों और वाहनों से निकलने वाली गैसें।
- कृषि रसायन: कीटनाशक और उर्वरक।
- घरेलू प्रदूषण: खाना पकाने और हीटिंग से उत्पन्न धुआं।
कुछ रसायन, जैसे कि परसिस्टेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स (POPs), वातावरण में लंबे समय तक बने रहते हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच जाते हैं। 2002 में लिथुआनिया के कौनास शहर में किए गए एक अध्ययन में फॉर्मल्डिहाइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों का शिशुओं के कम वजन और समय से पहले जन्म से संबंध पाया गया। 2010 के एक अन्य अध्ययन में वायु प्रदूषण को गर्भावस्था में भ्रूण विकास में कमी, नवजात मृत्यु, और पुरुष प्रजनन क्षमता में कमी से जोड़ा गया।
भूमि प्रदूषण मुख्य रूप से औद्योगिक कचरे, अनुचित कृषि पद्धतियों, और कचरा निपटान से उत्पन्न होता है। प्रदूषित मिट्टी भूमिगत जल स्रोतों को दूषित करती है और खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करती है। कुछ रसायन, जैसे कि डाइऑक्सिन और भारी धातुएं, लंबे समय तक मिट्टी में बने रहते हैं और प्रजनन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
1987 में किए गए एक अध्ययन में सफेद मूषकों को डाइऑक्सिन और अन्य रसायनों से दूषित मिट्टी के संपर्क में लाया गया। परिणामस्वरूप, उनकी प्रजनन क्षमता में कमी और नवजात मूषकों की जीवित रहने की दर में कमी देखी गई। पोलैंड में लेड और कैडमियम से दूषित मिट्टी वाले क्षेत्रों में महिलाओं में गर्भधारण में कमी और समय से पहले जन्म की समस्याएं देखी गईं।
आज अधिकांश खाद्य और पेय पदार्थों में रासायनिक प्रदूषक मौजूद हैं। इसके कारण हैं:
- कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग: फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए।
- प्लास्टिक पैकेजिंग: थैलेट जैसे रसायन खाद्य पदार्थों में रिस सकते हैं।
- खाद्य संरक्षण रसायन: इनका उपयोग खाद्य पदार्थों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए।
1995 में किए गए एक अध्ययन में कृषि रसायनों और औद्योगिक कचरे से पक्षियों की प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पाया गया। मानवों में, लाइपोफिलिक खाद्य पदार्थों (जैसे मांस) का अधिक सेवन शुक्राणु गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है, जबकि फल और सब्जियां इसे बेहतर बनाए रख सकती हैं।
आधुनिक युग में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और परमाणु संयंत्रों से रेडियोधर्मी प्रदूषण का खतरा बढ़ गया है। विकिरण पुरुषों और महिलाओं दोनों के प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जैसे कि शुक्राणु उत्पादन में कमी और गर्भपात का जोखिम।
निष्कर्ष
औद्योगिक विकास के साथ-साथ वातावरणीय प्रदूषण में वृद्धि हुई है। जल, वायु, मिट्टी, और खाद्य पदार्थों में मौजूद प्रदूषक मानव और अन्य जीव-जंतुओं के प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। प्रजनन स्वास्थ्य में गिरावट के लक्षण, जैसे शुक्राणु गुणवत्ता में कमी, मासिक चक्र में अनियमितता, और कैंसर की बढ़ती घटनाएं, प्रदूषण से संबंधित हो सकते हैं।
इस समस्या से निपटने के लिए निम्नलिखित कदम आवश्यक हैं:
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: दोहन को कम करना और टिकाऊ उपयोग को बढ़ावा देना।
- जनसंख्या नियंत्रण: बढ़ती जनसंख्या की मांग को संतुलित करना।
- प्रदूषण नियंत्रण: कड़े नियम और वैकल्पिक तकनीकों का उपयोग।
- जागरूकता: लोगों को प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में शिक्षित करना।
प्रदूषण को नियंत्रित करके न केवल स्वास्थ्य समस्याओं को कम किया जा सकता है, बल्कि प्राकृतिक पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है। यह हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम एक स्वच्छ और सुरक्षित भविष्य के लिए मिलकर प्रयास करें।