पर्यावरण

भारत में समुद्री अर्थव्यवस्था के लिए संभावनाएं

डाॅ. दीपक कोहली

भारत आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। अब भारत अपनी तीव्र वृद्धि को जारी रखने के लिए नए रास्ते तलाश रहा है। भारत की तटरेखा विश्व की सबसे विस्तृत तटीय रेखाओं में से एक है और यह चारों ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। ऐसे कई उद्योग हैं जिन्हें भारत अपने महासागरों के माध्यम से विकसित कर सकता है, जैसे मछली पकड़ना, मुर्गी पालन, बंदरगाह और शिपिंग ये उद्योग मिलकर नीली अर्थव्यवस्था का निर्माण करते हैं, और यह नीली अर्थव्यवस्था ही है जो भारत के भविष्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण होगी। हिंद महासागर विशाल एवं विविधा समुद्री जीवन का घर है, लेकिन प्रदूषण, अत्यधिक मत्स्य ग्रहण और जलवायु परिवर्तन के कारण इस पर दबाव भी बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम वित्त पहल द्वारा जारी नए दिशा-निर्देश हिंद महासागर की रक्षा एवं पुनस्थापना के लिये आवश्यक वित्तपोषण का अवसर पाने में मदद कर सकता है। 'ब्लू बॉण्ड' में हिंद महासागर के सतत् विकास में उल्लेखनीय योगदान देने की क्षमता है। सेबी भारत में ब्लू बांड के लिये दिशा-निर्देश विकसित कर रहा है। नई नीतियों के क्रियान्वयन के बाद ब्लू बॉण्ड ऐसी कई परियोजनाओं को वित्त पोषित कर सकते हैं जो भारतीय समुद्री पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाएँगे।

खाद्य सुरक्षा और आजीविकाः यह उन लाखों लोगों के लिये खाद्य सुरक्षा, निर्धनता उन्मूलन और रोजगार सृजन में योगदान दे सकती है जो अपनी आजीविका के लिये समुद्री संसाधनों पर निर्भर हैं।ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय संवहनीयताः यह पवन, तरंग, ज्वार और समुद्री तापीय ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की क्षमता का दोहन कर ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकती है। भारत ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा था, जिसमें से 5 गीगावॉट अपतटीय पवन परियोजनाओं से प्राप्त होने की उम्मीद थी।

यह समुद्री संपर्क और अवसंरचना में सुधार कर अन्य देशों के साथ (विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में) भारत के व्यापार एवं निवेश के अवसरों को बढ़ा सकती है। भारत ने अपने समुद्री व्यापार और संपर्क/कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिये सागरमाला परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (International North-South Transport Corridor) और चाबहार बंदरगाह के विकास जैसी कई पहलें शुरू की है।

यह भारत को अपने समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को संरक्षित एवं पुनस्थापित करने के माध्यम से पारिस्थितिक प्रत्यास्थता का निर्माण करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनने में मदद कर सकती है। भारत अपने समुद्री पर्यावरण की संरक्षा के लिये जैविक विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity& CBD), सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea& UNCLOS) और पेरिस समझौता (Paris Agreement) जैसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय अभिसमयों एवं समझौतों का हस्ताक्षरकर्ता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितः

खनिज संसाधनः

संभावनाएँ:

भारत के नौ राज्य तट रेखा तक पहुँच रखते हैं और देश में 200 बंदरगाह हैं। इन बंदरगाहों में 12 प्रमुख बंदरगाह हैं जिन्होंने वित्त वर्ष 2021 में 541.76 मिलियन टन कार्गो का प्रबंधन किया और इनमें गोवा का मोर्मुगाओ बंदरगाह अग्रणी रहा। 'ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन' के अनुसार, हिंद महासागर दुनिया के महासागरीय प्रभागों में तीसरा सबसे बड़ा प्रभाग है। यह 70 मिलियन वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र में विस्तृत है और अपने प्रचुर तेल एवं खनिज संसाधनों के लिये जाना जाता है। 

प्रमुख चुनौतियाँ अवसंरचना की कमीः

भारत का तटीय जल औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज, कृषि अपवाह, प्लास्टिक कचरा और तेल रिसाव जैसे विभिन्न स्रोतों से प्रदूषित है। समुद्री प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता के स्वास्थ्य के साथ-साथ मछली और समुद्री खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, 60 प्रमुख भारतीय शहरों से उत्पन्न 15,000 मीट्रिक टन से अधिक अपशिष्ट (जिनमें एक बड़ा भाग प्लास्टिक का होता है) प्रति दिन दक्षिण एशियाई समुद्र में निपटान किया जाता है।

संसाधनों का अति-दोहनः

जलवायु परिवर्तनः

एक राष्ट्रीय लेखा ढाँचा विकसित करनाः

तटीय और समुद्री स्थानिक नियोजनः

ढाँचे को सुदृढ़ करनाः

यह साक्ष्य-आधारित निर्णयन में सहायता करेगा और विकास के नए अवसरों को बढ़ावा देगा। इससे अपतटीय ऊर्जा, गहन समुद्र खनन, जैव प्रौद्योगिकी और जलीय कृषि जैसे उभरते क्षेत्रों की क्षमता का पता लगाने में मदद मिलेगी।

हिंद महासागर क्षेत्र में समान हितों एवं चुनौतियों को साझा करने वाले अन्य देशों और क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना। इससे आपसी विश्वास को बढ़ाने, सर्वोत्तम अभ्यासों को साझा करने, तालमेल का लाभ उठाने और साझा खतरों से निपटने में मदद मिलेगी।

ब्लू  बॉन्ड:  

 ब्लू बॉन्ड  (Blue Bonds) एक प्रकार के  सतत् बॉन्ड (sustainable bonds) है जो विशेष रूप से उन परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये डिजाइन किये गए हैं जो महासागर और उसके संसाधनों की रक्षा राम पुनर्स्थापना करते हैं।  ब्लू बॉन्ड ग्रीन बॉण्ड (green bonds) और सोशल बॉन्ड (social bonds) जैसे अन्य सतत्बॉ न्ड जैसे ही हैं। हालाँकि, वे विशेष रूप से महासागर संरक्षण और सतत् विकास पर केंद्रित हैं। इन्हें सरकारों, विकास बैंकों या अन्य संगठनों द्वारा जारी किया जा सकता है और व्यक्तिगत निवेशकों, संस्थागत निवेशकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा इनकी खरीद की जा सकती है।

ब्लू बॉन्ड भारत के लिये सहायकः

समुद्री नवीकरणीय ऊर्जा के लिये समर्थनः

समुद्री संरक्षणः

प्रदूषण की रोकथाम और सफाईः

जागरूकता और शिक्षाः

संपर्कः संयुक्त सचिव, उत्तर प्रदेश सचिवालय, 5/104, विपुल खंड, गोमती नगर लखनऊ-226010 (उत्तर प्रदेश) ईमेल- deepakkohli64@yahoo.in

नवंबर 2023, देहरादून

स्रोत

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