सुंदरबन, दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा और मैंग्रोव जंगल, अक्सर हमें निराश करने वाली खबरों के साथ सुर्खियों में आते हैं। कभी सुंदरी वृक्ष और मैंग्रोव पर मंडराता संकट चिंता जगाता है, तो कभी उत्तरी नदी टेरापिन, इरावदी व गंगा डॉल्फिन या मछली पकड़ने वाली बिल्ली के अस्तित्व पर खतरे की घंटी बजती है। सुंदरबन के बाघों और मगरमच्छों का शिकार भी लंबे समय से समस्या बना रहा है।
इन तमाम मायूसी भरी बातों के बीच अब यहां से एक अच्छी खबर आई है। खबर है कि सुंदरबन में खारे पानी के मगरमच्छों की आबादी बढ़ रही है। यह न केवल जैव-विविधता के लिहाज़ से अच्छा है, बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र की सेहत के लिए एक सकारात्मक संकेत भी है।
क्या कहती है सर्वेक्षण रिपोर्ट
पश्चिम बंगाल वन विभाग की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय सुंदरबन में खारे पानी के मगरमच्छों की आबादी पिछले एक वर्ष में बढ़ी है। “सुंदरबन में खारे पानी के मगरमच्छों की जनसंख्या का आकलन और आवास का पारिस्थितिकी अध्ययन 2024-25” रिपोर्ट के अुनसार 2023–24 में सुंदरबन डेल्टा के भारतीय क्षेत्र में 204–234 खारे पानी के मगरमच्छ होने का अनुमान था, जो 2024–25 में बढ़कर 220–242 हो गया है।
यह सर्वे दिसंबर 2024 से फ़रवरी 2025 के बीच 23 टीमों द्वारा किया गया, जिन्होंने 1,168 किमी के इलाके में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अवलोकन से 213 मगरमच्छों की गिनती दर्ज़ की। इसी के आधार पर ताज़ा अनुमान जारी किया गया है। अच्छी बात यह है कि इस बार की गिनती में एन्काउंटर रेट यानी मगरमच्छों को प्रत्यक्ष रूप से देखे जाने में भी बढ़ोतरी हुई है।
इस बार के सर्वेक्षण में औसतन हर 5.5 किमी पर 1 मगरमच्छ देखा गया, जबकि पिछले वर्ष 7.6 किमी पर 1 मगरमच्छ देखा गया था। सर्वेक्षण के दौरान कुल 213 मगरमच्छ देखे गए, जो 2023-24 में देखे गए 168 से करीब 27% ज़्यादा हैं । देखे गए मगरमच्छों में 125 वयस्क और 88 किशोर मगरमच्छ थे। साथ ही हैचिंग यानी अंडों से मगरमच्छ निकलने की प्रक्रिया में भी एक उत्साहजनक बढ़त देखने को मिली। यह सुंदरबन डेल्टा में मगरमच्छ संरक्षण को लेकर एक उत्साहजनक संकेत है, जो स्वस्थ प्रजनन के जरिये इनकी आबादी में बढ़ोतरी का संकेत देता है।
आवास के मामले में मगरमच्छों ने 10–130 मीटर चौड़ी खाड़ियों, 10–23 पीपीटी (पार्ट्स पर थाउजेंड) लवणता और 20–30°C तापमान वाले इलाकों में प्रवास में प्राथमिकता दिखाई। रिपोर्ट ने यह बात भी उजागर की है कि मई–जून (घोंसले बनाने का मौसम) में सुंदरबन डेल्टा में मादा मगरमच्छों का “रेस्क्यू” बढ़ा है, मई–जून में ज़्यादा मादा मगरमच्छ मानव बस्तियों या असुरक्षित जगहों पर पहुंच गईं, जहां से उन्हें पकड़ कर सुरक्षित आवासों में बचाव (रेस्क्यू) कर ले जाना पड़ा। यह बात वन-द्वीपों में उपयुक्त नेस्टिंग-हैबिटैट के सिमटने का संकेत देती है।
क्या मायने रखती है यह बढ़ोतरी
सुंदरबन में मगरमच्छों की संंख्या में बढ़ोतरी पर्यावरण और ईको सिस्टम की दृष्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। साइंस जर्नल रिसर्चगेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक सुंदरबन जैसी कठिन और ज्वारीय खाड़ी प्रणाली में मगरमच्छ सबसे बड़े शिकारी यानी एपेक्स प्रिडेटर होते हैं। ऐसे शिकारी पूरे पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन बनाए रखते हैं। मगरमच्छ बीमार और कमजोर मछलियों को खाते हैं, जिससे उनकी बीमारी व्यापक स्तर पर फैलने नहीं पाती और ईको सिस्टम में स्वस्थ मछलियों की संख्या संतुलित बनी रहती है।
इस तरह वे पानी में रहने वाले जीवों की प्रतिस्पर्धा और आपसी संतुलन को नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा मगरमच्छ पोषक तत्वों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में भी मदद करते हैं। अगर वे न हों तो बीच की कड़ियों वाले छोटे-छोटे जीव, जिन्हें वैज्ञानिक भाषा में मेसो-स्कैवेंजर कहा जाता है, अनियंत्रित ढंग से बढ़ सकते हैं और पूरा पारिस्थितिक संतुलन बिगाड़ सकते हैं।
ऐसी समस्या हाल के वर्षों में प्रशांत महासागर के एक बड़े इलाके में विब्रियो पेक्टेनिसिडा बैक्टीीरया के संक्रमण से फैले रोग सी स्टार वेस्टिंग डिजीज की चपेट में आकर करीब पांच अरब स्टार फिश की सामूहिक मौत होने पर देखने को मिली है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इन सी-स्टार मछलियों की मौत से समुद्र में सी-आर्चिन की संख्या बेतहाशा बढ़ गई, जो सागर तल में उगने वाली जलीय वनस्पतियों को पूरी तरह से चट कर गए। इससे इन शैवालों पर निर्भर कई जलीय जीवों के लिए भोजन और आवास की समस्या पैदा हो गई। साथ ही ऑक्सीजन का स्तर घट गया, क्योंकि यह जलीय पौधे पानी में मौज़ूद कार्बन को सोखकर ऑक्सीजन रिलीज करते थे। इस तरह स्टार फिश की मौत से पूरा मरीन इको सिस्टम डिस्टर्ब हो गया।
जलीय ईको सिस्टम में मगरमच्छों की भूमिका को बाघ के उदाहरण से भी समझा जा सकता है। जिस तरह जंगल में बाघ अपनी मौजूदगी से हर स्तर के जानवरों को संतुलित रखते हैं, वैसे ही सुंदरबन के जल-पर्यावरण में मगरमच्छ वही भूमिका निभाते हैं। हाल के शोध बताते हैं कि मगरमच्छों की मौजूदगी से न सिर्फ जैव विविधता सुरक्षित रहती है, बल्कि जल-पर्यावरण की सेहत भी सुधरती है।
क्या है सुंदरबन बायोस्फीयर रिज़र्व (एसबीआर)
सुंदरबन बंगाल की खाड़ी में गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के डेल्टा पर स्थित है। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुंदरवन रिजर्व फ़ॉरेस्ट (एसआरएफ), बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिम में पूर्व में बालेश्वर नदी और पश्चिम में हरिणबंगा नदी के बीच, बंगाल की खाड़ी से सटा हुआ, दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है।
इसके भौगोलिक विस्तार की बात करें, तो यह 21° 27′ 30″ से 22° 30′ 00″ उत्तर अक्षांश और 89° 02′ 00″ से 90° 00′ 00″ पूर्व देशांतर के बीच स्थित है। यह करीब 10,000 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला है, जिसका तकरीबन 60% भाग बांग्लादेश में और शेष 400% भारत में स्थित है। यह क्षेत्र अपने विविध जीव-जंतुओं के लिए जाना जाता है। इनमें बंगाल टाइगर और अन्य संकटग्रस्त प्रजातियां जैसे कि टेरापिन, इरावदी व गंगा डॉल्फिन या मछली पकड़ने वाली बिल्ली, खारे पानी के मगरमच्छ और जलीय अजगर सहित करीब 260 पशु-पक्षी प्रजातियां शामिल हैं।
सुंदरबन बायोस्फ़ीयर रिज़र्व 1989 में भारत सरकार द्वारा गठित किया गया था। इसे विश्व स्तर पर उस वक्त पहचान मिली, जब 2001 में यूनेस्को के मैन एंड द बायोस्फीयर (एमएबी) कार्यक्रम के तहत इसे मान्यता दी गई। हालांकि, इसके ज़मीनी इलाके पर बने सुंदरबन नेशनल पार्क व टाइगर रिज़र्व को 1987 में ही यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया जा चुका था।
ज़मीनी और डेल्टाई क्षेत्र को मिलाकर पूरे सुंदरबन बायोस्फ़ीयर का क्षेत्रफल 9.63 लाख हेक्टेयर के आसपास है, जिसमें लगभग 2.58 लाख हेक्टेयर टाइगर रिज़र्व और 1.33 लाख हेक्टेयर कोर नेशनल पार्क शामिल हैं।
ज्वार-भाटा, लवणता-ढाल यानी समुद्र से नदी की ओर पानी में नमक (खारेपन) की मात्रा का धीरे-धीरे कम होना और जटिल खाड़ी-नदी तंत्र जैसी चीजों का एक साथ होना इसे दुनिया भर में अद्वितीय बनाता है। इसके अलावा, इसके दक्षिण में स्थित डेल्टा कई संकटग्रस्त प्रजातियों का कोर प्रजनन क्षेत्र होने के कारण भी बेहद खास माना जाता है।
सुंदरबन के इस पर्यावरणीय महत्व के चलते पश्चिम बंगाल सरकार ने इसकी देखरेख के लिए बाकायदा एक अलग विभाग बना रखा है, जिसे सुंदरबन मामलों का विभाग के नाम से जाना जाता है। यह विभाग इस इलाके की देखरेख व संरक्षण के साथ ही समय-समय पर यहां के पारिस्थितिक तंत्र से जुड़े अध्ययन करवा कर इसकी रिपोर्ट भी जारी करता है।
खारे पानी के मगरमच्छ की खासियतें
खारे पानी का मगरमच्छ (क्रोकोडाइलस पोरोसस) सभी मगरमच्छों में सबसे बड़ा होता है। इसको दुनिया का सबसे बड़ा सरीसृप माना जाता है। इसमें नर 6 मीटर तक लंबे होते हैं। कुछ मामलों में इनकी लंबाई 10 मीटर तक देखी गई है। मादा नर की तुलना में आकार में छोटी होती हैं, जिनकी सामान्यत: लंबाई 2.5 से 3 मीटर तक होती है।
वयस्क मगरमच्छ का वजन एक टन तक पहुंच जाता है, कुछ मगरमच्छों का वज़न 1,500 किलोग्राम यानी डेढ़ टन तक देखा गया है। अत्यधिक लवणता को सहन कर लेने की अपनी क्षमता के चलते यह समुद्र तटीय इलाकों में या नदियों के समुद्र में मिलने वाले स्थानों (डेल्टा व बेसिन) के दलदली इलाकों में पाए जाते हैं।
यह मुख्य रूप से भारत के पूर्वी तट से लेकर दक्षिण–पूर्व एशिया के तटीय इलाकों और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया तक पाए जाते हैं। भारत में इनके इलाकों की बात करें, तो ये सुंदरबन (सबसे बड़ा मैंग्रोव वन), भितरकनिका (भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन) और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह खारे पानी के मगरमच्छों के तीन प्रमुख गढ़ों में शामिल हैं।
खाद्य शृंखला में इन्हें सर्वोच्च शिकारी का दर्जा़ प्राप्त है। किशोर मगरमच्छ छोटे कीड़ों, मेढ़क, टोड जैसे उभयचर प्राणियों और मछलियों का शिकार करके खाते हैं, जबकि वयस्क केकड़ों, कछुओं, पक्षियों और स्तनधारियों का शिकार करते हैं। ये पानी में छिपकर शिकार पर अचानक तेज़ी से हमला करते हैं, अपने जबड़े में दबाकर झटक-झटक कर उसे मार देते हैं और फिर उसे पानी के नीचे खींचकर खा जाते हैं।
अपने जबड़े की ज़बर्दस्त पकड़ और ताक़त के कारण ये कई बार बहुत बड़े जानवरों का भी शिकार करने में कामयाब रहते हैं। पर्यावरणीय कारणों और अंधाधुंध शिकार के कारण लगातार घटती आबादी के चलते इन्हें भारत के वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में शेड्यूल-I के अंतर्गत पूर्ण संरक्षण वाले जीवों की श्रेणी में रखा गया है।
संरक्षण के प्रयास
खारे पानी के मगरमच्छों के संरक्षण के प्रयासों में सुंदरबन में चलाया जा रहा मगरमच्छ-संरक्षण कार्यक्रम और पश्चिम बंगाल के ही दक्षिणी 24 परगना में चल रहा भगबतपुर क्रोकोडाइल प्रोजेक्ट सबसे प्रमुख है। इनके तहत पश्चिम बंगाल में बीते साढ़े चार दशकों में हज़ारों किशोर मगरमच्छों को जंगल में छोड़ा गया है। आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार 1979 से 2021 तक 629 मगरमच्छ सुंदरबन में रिलीज़ किए गए।
साथ ही, सजनखाली, भगबतपुर में संरक्षण-ब्रीडिंग और संवर्धन कार्य, निगरानी और बचाव (रेस्क्यू) तंत्र, तथा वैज्ञानिक सर्वेक्षण जैसे GPS-मैपिंग, आवास-वर्गीकरण और ट्रांसेक्ट-आधारित गणना से इनके संरक्षण के मज़बूत प्रयास लगातार किए जा रहे हैं। भगबतपुर क्रोकोडाइल प्रोजेक्ट की शुरुआत 1976 में हुई थी। इस प्रोजेक्ट में अण्डों से हैचलिंग बनने से लेकर किशोरावस्था तक नियंत्रित माहौल में मगरमच्छों की देखभाल की जाती है।
इसके लिए सबसे पहले ऐसा माहौल तैयार किया जाता है जहां मादा मगरमच्छ अपने अंडे प्राकृतिक घोंसलों में देती हैं। यह अकसर मार्च में देखने को मिलता है। कर्मचारियों की टीम 15 दिनों के भीतर उन अंडों को कृत्रिम घोंसलों में ले जाकर रखती है, जहां तापमान 29–32°C तक और नमी के स्तर को आवश्यकता के अनुरूप नियंत्रित रखा जाता है। यहां लगभग 80–85 दिनों में हैचलिंग (बच्चे मगरमच्छ) जन्म लेते हैं।
इको सिस्टम के लिए अच्छा है मगरमच्छों की संख्या बढ़ना
सुंदरबन डेल्टा में खारे पानी के मगरमच्छों की बढ़ती आबादी को कई कारणों से पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र के लिए सकारात्मक माना जा रहा है। इसकी पहली है वजह मगरमच्छों के कारण खाद्य-जाल यानी फूड चेन में स्थिरता आना, क्योंकि शीर्ष शिकारी के होने से मछलियों, केकड़ों, जलीय/अर्ध-जलीय कशेरुकी जीवों जैसी अन्य शिकारी प्रजातियों की संख्या नियंत्रित रहती है। इससे समान प्रजाति के जीवों के बीच भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा में कमी आती है औरआक्रामक प्रजातियों के अनुचित प्रसार पर लगाम लगती है।
इस तरह मगरमच्छों की मौजूदगी आहार-शृंखला प्रभाव (ट्रॉफ़िक कैस्केड) के माध्यम से प्राथमिक उत्पादक स्तर तक के लिए लाभदायक साबित होती है। मगरमच्छों के कारण मछलियों और अन्य बड़े जलीय जीवों की संख्या नियंत्रित रहती है। इसका असर शाकाहारी जीवों तक जाता है, और अंततः शैवाल व पौधों जैसे प्राथमिक उत्पादक भी स्वस्थ रहते हैं।
इस तरह मगरमच्छों की बढ़ती आबादी अप्रत्यक्ष रूप से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को सबसे निचले स्तर तक फायदा पहुंचाती है। इसके अलावा, इन्हें ‘नदियों के सफाई कर्मचारी’ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि ये नदी में मर जाने वाले जलीय जानवरों और नदियों में बहकर आने वाले शवों व अवशेषों को खाकर बहते पानी के पारिस्थितिकी तंत्र को स्वच्छ रखते है। एक बड़े स्कैवेंजर के रूप में मगरमच्छ शवों का सफाया करके उनसे फैलने वाली संक्रामक बीमारियों के प्रसार को सीमित करते हैं। इन लाभों के चलते मगरमच्छों को फूड चेन में ‘प्रीडेटर-एंड-स्कैवेंजर’ के रूप में सबसे ऊपरी पायदान पर रखा गया है।
पर्यटन को बढ़ावा और मछुआरों, नाविकों की आमदनी में सुधार
सुंदरबन के खारे पानी के मगरमच्छ स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक रूप से भी महत्व रखते हैं। इनकी संख्या बढ़ने से सुंदरबन डेल्टा में नेचर-टूरिज़्म को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। पर्यटक अब सुंदरबन में टाइगर सफारी के साथ ही मगरमच्छ देखने के लिए भी आकर्षित होंगे।
इको-टूरिज़्म पैकेजों में नौका-विहार और "क्रोकोडाइल साइटिंग" को शामिल करना शुरू हो चुका है। इससे स्थानीय नाविकों और गाइडों की आमदनी में इज़ाफा हो रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि पर्यटन गतिविधियों को नियंत्रित और जिम्मेदाराना तरीके से ही बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि मगरमच्छों का प्राकृतिक व्यवहार प्रभावित न हो।
मगरमच्छों की आबादी मछुआरों के लिए भी अप्रत्यक्ष रूप से मददगार साबित होने वाली है, क्योंकि मगरमच्छ जब अस्वस्थ या कमजोर मछलियों का शिकार करते हैं, तो जलाशयों और खाड़ियों में स्वस्थ मछलियों की आबादी बढ़ती है। इसका फायदा मछुआरों को सेहतमंद मछलियां पकड़ने और मछली पकड़ने में स्थायित्व आने के रूप में मिलता है। लंबे समय में यह मछुआरों की आजीविका को सुरक्षित करता है।
आगे की राह और चुनौतियां
सुंदरबन में खारे पानी के मगरमच्छों की संख्या बढ़ना एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन कुछ गंभीर चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। सबसे बड़ी चुनौती मादा मगरमच्छों के अंडे देने के लिए घोंसले बनाने के लिए सुरक्षित स्थानों का सिकुड़ना है। जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है। साथ ही तटीय इलाकों में मिट्टी का कटाव बढ़ने से अपरदन भी तेज़ हो रहा है।
बंगाल की खाड़ी में बार-बार आने वाले चक्रवाती तूफान भी मगरमच्छों के नेस्टिंग-हैबिटैट को नुकसान पहुंचा रहे हैं। एक हालिया रिपोर्ट से भी यह संकेत मिला है कि मई–जून के महीने में जब अंडे देने का समय आता है, तो अधिकतर मादा मगरमच्छों को नेस्टिंग-हैबिटैट को हो रहे नुकसान के चलते पुनर्वास करना पड़ रहा है। यानी अंडे देने के लिए उन्हें अपनी परंपरागत जगहें छोड़कर नए और कम सुरक्षित इलाकों में जाना पड़ता है। कभी-कभी उन्हें मानव बस्तियों या मानवीय गतिविधियों वाले इलाकों के पास जाकर अंडे देने पड़ते हैं। प्राकृतिक स्थानों की कमी के कारण मादाओं के इंसानी आबादी वाले इलाकों की ओर चले जाने की आशंका बढ़ती जा रही है।
यह उनके और अंडों के लिए जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि इससे मानव और मगरमच्छ के बीच टकराव और शिकार जैसे खतरे पैदा हो सकते हैं। केंब्रिज यूनिवर्सिटी के अध्ययन से पता चलता है कि सुंदरबन में मछुआरों के मछली पकड़ने, खासकर झींगों को पकड़ने (प्रॉन-सीड कलेक्शन) के दौरान मगरमच्छ के हमलों की संख्या काफ़ी बढ़ जाती है। अब, जब मगरमच्छों की आबादी धीरे-धीरे बढ़ रही है, तो यह टकराव और भी गहरा सकता है।
इसलिए मगरमच्छों के सुरक्षित प्रवास के लिए ठोस कदम उठाना बेहद ज़रूरी है। उनके घोंसला बनाने वाले स्थानों (नेस्टिंग-हैबिटैट) की सुरक्षा के इंतज़ाम करना ज़रूरी है। इसके लिए ऊंचे और कम कटाव वाले तटबंधों तथा रेतीले इलाकों की पहचान कर उन्हें सीज़नल नो-गो ज़ोन यानी मौसमी शांति-क्षेत्र घोषित किया जा सकता है।
साथ ही, स्थानीय समुदायों को निगरानी के काम में शामिल करने से उन्हें रोज़गार मिलने के साथ अंडों और नवजात मगरमच्छों की जीवित रहने की संभावना और बढ़ सकती है। निगरानी के लिए इन क्षेत्रों की मॉनिटरिंग की व्यवस्था को बेहतर बनाने की भी ज़रूरत है। इसके लिए जीपीएस मैपिंग, और ड्रोन सर्विलांस जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
मगरमच्छों के सुरक्षित प्रजनन के लिए कैप्टिव-ब्रीडिंग और जंगल में छोड़े जाने वाले मगरमच्छों की शुरुआती देखभाल के लिए एडैप्टिव मैनेजमेंट को अपनाना अहम है। साथ ही, खतरे में पड़े मगरमच्छों को बचाने के लिए त्वरित बचाव दल यानी रैपिड रेस्क्यू टीमों का गठन भी किया जाना चाहिए।
खारे और मीठे पानी के मगरमच्छ में अंतर
मगरमच्छ की दोनों प्रजातियों में आवास, भोजन और शरीरिक बनावट से लेकर इनके स्वभाव और भौगोलिक वितरण तक में कई अंतर होते हैं। इन्हें इस प्रकार समझा जा सकता है :
आवास : खारे पानी का मगरमच्छ समुद्र तटीय इलाकों, नदियों के मुहानों, मैंग्रोव वनों और क्षारीय दलदली इलाकों में पाया जाता है। इसके विपरीत मीठे पानी का मगरमच्छ झीलों, तालाबों, नदियों और बांधों जैसे मीठे पानी के जलस्रोतों में मिलता है।
आकार : खारे पानी के मगरमच्छ को दुनिया का सबसे बड़ा सरीसृप माना जाता है, जिसकी लंबाई 6–7 मीटर तक और वज़न 1000 किलोग्राम से अधिक हो सकता है। हालांकि, एनाकोंडा सांप की लंबाई इससे अधिक होती है, पर उसका वज़न मगरमच्छ की तुलना में काफ़ी कम होता है। वहीं, मीठे पानी के मगरमच्छ का आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है। यह आम तौर पर 3 से 4.5 मीटर तक लंबा होता है।
स्वभाव : खारे पानी का मगरमच्छ बहुत आक्रामक माना जाता है। इनके मानव-हमलों की घटनाएं कई बार सुनने में आती हैं। मीठे पानी का मगरमच्छ अपेक्षाकृत कम आक्रामक होता है। कई बार यह मानव बस्तियों के पास भी देखा जाता है, पर इसके मनुष्यों पर हमला करने के मामले कम ही होते हैं।
भौगोलिक वितरण : खारे पानी के मगरमच्छ का निवास भारत में मुख्य रूप से सुंदरबन, अंडमान-निकोबार में है। विदेशों में यह मुख्यत: ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और प्रशांत द्वीपों तक फैला है। मीठे पानी का मगरमच्छ मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप के भारत, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान में मिलता है।
शारीरिक बनावट : खारे पानी के मगरमच्छ का थूथन लंबा और अपेक्षाकृत संकरा होता है। मीठे पानी का मगरमच्छ चौड़े और अपेक्षाकृत छोटे थूथन वाला होता है।
मगरमच्छ और घड़ियाल में मुख्य अंतर
मगरमच्छ और घड़ियाल को लोग अकसर एक ही प्राणी समझ लेते हैं, पर दोनों में कई अंतर होते हैं। दोनों प्रजातियों के फ़र्क को इस प्रकार समझा जा सकता है :
थूथन : मगरमच्छ का थूथन चौड़ा और मज़बूत होता है, जो बड़े जानवरों के शिकार में मददगार होता है। घड़ियाल का थूथन बहुत लंबा और पतला होता है, जो मछली पकड़ने के लिए अनुकूल है।
भोजन : मगरमच्छ एक सर्वाहारी शिकारी है। यह मछलियों, पक्षियों, स्तनधारी जीवों तक को खाता है। दूसरी ओर, घड़ियाल लगभग पूरी तरह मछली-भक्षी होता है।
मानव पर हमला : मगरमच्छ अपने बेहद आक्रामक स्वभाव के कारण मानव पर भी हमला कर सकता है। ऐसी कई घटनाएं देखने को मिलती हैं। घड़ियाल इंसानों के लिए हानिरहित माना जाता है, क्योंकि उसका पतला थूथन बड़े जानवरों को पकड़ने में सक्षम नहीं है।
भौगोलिक स्थिति : मगरमच्छ भारत समेत एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तक फैले हैं। घड़ियाल केवल भारतीय उपमहाद्वीप में भारत और नेपाल की कुछ नदियों में पाए जाते है।
संरक्षण स्थिति : मगरमच्छों की कई प्रजातियों को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की सूची में फिलहाल सुरक्षित स्थिति में हैं (Least Concern), जिनमें खारे पानी का मगरमच्छ और न्यू गिनी मगरमच्छ शामिल हैं। जबकि, कुछ प्रजातियां लुप्त होने के खतरे (Vulnerable) में पहुंच चुकी हैं, जिनमें मीठे पानी का मगरमच्छ, बौन मगरमच्छ और अमेरिकी मगरमच्छ शामिल हैं। दूसरी ओर, घड़ियाल अत्यंत संकटग्रस्त प्रजाति है।