तटवर्ती दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु ने पर्यावरण संरक्षण और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए तमिलनाडु समुद्री संसाधन फाउंडेशन (टीएन-एमआरएफ) और मनाली एन्नोर पुनरुद्धार और कायाकल्प परिषद (एमईआरआरसी) की स्थापना की है। इन दोनों पहलों का उद्देश्य समुद्र और तटीय क्षेत्रों में बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन को सुधारना, स्थानीय समुदायों को संरक्षण के कार्यों से जोड़ना और सतत विकास को बढ़ावा देना है।
राज्य ने चेन्नई के कलैवनार आरंगम में आयोजित एक कार्यक्रम में वित्त मंत्री थंगम थेन्नारसु ने इन पहलों का उद्घाटन किया। इस मौके पर राज्य के वन एवं खादी मंत्री राजा कन्नप्पन ने 333 नवनियुक्त वन कर्मियों को नियुक्ति पत्र भी वितरित किए। राज्य में जंगलों के संरक्षण को मजबूत बनाने और वन क्षेत्र का विस्तार करने के लिए इससे पहले बीते 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर 1,413 वन कर्मियों को नियुक्ति पत्र दिए जा चुके हैं।
इस मौके पर सरकार ने अपने परिसर को सिंगल यूज़ प्लास्टिक फ्री बनाने वाले स्कूलों और कॉलेजों को मंजप्पई पुरस्कार भी प्रदान किए। यह पहल बताती है कि तमिलनाडु पर्यावरण संरक्षण को केवल समुद्र या वनों तक सीमित नहीं रख रहा, बल्कि इसे शिक्षा व्यवस्था से जोड़ कर राज्य के भावी नागरिकों की रोज़मर्रा की आदतों और में शुमार करना चाहती है।
तमिलनाडु सरकार ने मनाली एन्नोर रेस्टोरेशन एंड रिजुविनेशन काउंसिल (एमईआरआरसी) की स्थापना का कदम दिसंबर 2023 में एन्नोर में हुए तेल रिसाव की घटना के बाद वहां समुद्री ईको सिस्टम को हुए नुकसान को देखने के बाद उठाया है। पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील मनाली-एन्नोर क्षेत्र के जीर्णोद्धार लिए एक स्पेशल पर्पज़ व्हीकल (एसपीवी) के रूप में एमईआरआरसी की स्थापना की गई है। इसका कार्यालय टोंडियारपेट में स्थापित किया गया है।
इसी तरह तमिलनाडु मरीन रिसोर्स फाउंडेशन यानी टीएन-एमआरएफ समुद्री और तटीय पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण से जुड़े काम करेगा। इसकी स्थापना की घोषणा 2025-26 के बजट में करते हुए इसके लिए 50 करोड़ रुपये की राशि मंज़ूर की गई थी।
टीएन-एमआरएफ की प्राथमिकताओं में डुगोंग, मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियों (कोरल रीफ), दलदली मैदानों (मडफ्लैट) और समुद्र तटों का संरक्षण जैसे पर्यावरणीय काम शामिल होंगे। इसके साथ ही यह स्थायी मछली पालन को बढ़ावा देने, ईको-टूरिज्म को बेहतर बनाने और अनुसंधान निकायों यानी रिसर्च बॉडीज़ को मजबूती देने और पर्यावरण के बारे में लोगों को जागरूक कर उन्हें पर्यावरणीय कामों से जोड़ने के प्रयास भी करेगा।
तमिलनाडु सरकार ने 2025-26 के बजट में टीएन-एमआरएफ की घोषणा की थी इस फाउंडेशन का उद्देश्य समुद्र और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण से जुड़े ठोस कार्यक्रमों को गति देना है, जिसके लिए 50 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।
फाउंडेशन की प्राथमिकताओं में शामिल हैं:
डुगोंग का संरक्षण, जो विलुप्ति के कगार पर हैं। इन्हें समुद्री गाय के नाम से भी जाना जाता है और ये तमिलनाडु स्थित मन्नार की खाड़ी में पाए जाते हैं।
मैंग्रोव और कोरल रीफ़ की सुरक्षा और इन्हें फिर से स्थापित करना, क्योंकि यह दोनों ही चीज़ें समुद्री पारिस्थितिकी और जैव विविधता को बनाए रखने के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण हैं।
दलदली मैदान और समुद्र तटों का संरक्षण, जो पक्षियों की कई प्रजातियों और तटीय इलाके के ईको सिस्टम के लिए महत्वपूर्ण हैं।
स्थायी मछली पालन और ईको-टूरिज़्म को बढ़ावा देना, ताकि संरक्षण और आजीविका में संतुलन बना रहे।
रिसर्च और जनजागरूकता, ताकि वैज्ञानिक अध्ययन से समुद्री पारिस्थितिकी को बेहतर ढंग से समझा जा सके और सामुदायिक सहयोग से इसे मज़बूत बनाया जा सके।
मरीनी ईकोलॉजी और पर्यावरण के संरक्षण के लिए तमिलनाडु सरकार की ओर से यह कदम अचानक नहीं उठाया गया। इसकी जड़ में करीब दो साल पहले हुआ एक गंभीर हादसा है। दिसंबर 2023 में एन्नोर के पास हुई तेल रिसाव की एक बड़ी घटना ने वहां के समुद्री जीवन को गंभीर क्षति पहुंचाई थी। इसमें हजारों मछलियां और अन्य जलीय जीव मारे गए। तट पर जमा हुई इनकी लाशों ने लोगों की संवेदनाओं को झकझोर दिया था।
इसके अलावा, मैंग्रोव और दलदली मैदानों की पारिस्थितिकी गहरी चोटिल हुई और स्थानीय मछुआरा समुदाय की आजीविका पर संकट खड़ा हो गया। इन चीज़ों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर राज्य में एक नई बहस छेड़ दी थी। इसी घटना ने सरकार को इस बारे में गंभीरता से सोचने को मजबूर किया कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील मनाली-एन्नोर क्षेत्र के संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए एक स्थायी व्यवस्था खड़ी की जाए। इसी के मद्देनज़र एमईआरआरसी को एक स्पेशल पर्पज़ व्हीकल के रूप में गठित किया गया है। यह प्रदूषण नियंत्रण, तटीय पुनरुद्धार, सामुदायिक भागीदारी और पर्यावरणीय निगरानी की दिशा में दीर्घकालिक लक्ष्यों पर काम करेगी।
भारत का पूर्वी तट अपने विविधतापूर्ण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए जाना जाता है और तमिलनाडु इसके सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है। इसके महत्व को इन महत्वपूर्ण बातों के ज़रिये समझा जा सकता है
गल्फ़ ऑफ़ मन्नार बायोस्फ़ीयर रिज़र्व: यह एशिया का पहला समुद्री बायोस्फ़ीयर रिज़र्व है और यहां करीब 4,000 से अधिक समुद्री प्रजातियांपाई जाती हैं।
मैंग्रोव वनस्पति: यह तटीय कटाव को रोकती है और समुद्री जीवन के लिए नर्सरी का काम करती है।
प्रवाल भित्तियां: तमिलनाडु के आसपास का तटवर्ती समुद्री इलाका कोरल रीफ से जुड़ी जैव विविधता के लिए एक देश का एक हॉटस्पॉट माना जाता है, लेकिन प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के चलते यह गंभीर खतरे में हैं।
समुद्री घास के मैदान: यह समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए कार्बन सिंक की तरह काम करते हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं।
मछली उत्पादन: समुद्र में मछली पकड़ने का काम तटीय इलाकों में रहने वाले लाखों परिवारों की आजीविका है और यह राज्य की अर्थव्यवस्था से गहरा जुड़ा हुआ है।
तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र के सामने कई तरह के गंभीर खतरे मौजूद हैं। इसे लेकर तमिलनाडु सरकार ने हाल के वर्षों में कई कदम भी उठाए हैं, जिन्हें इस प्रकार देखा जा सता है :
तमिलनाडु के कई तटीय इलाकों, खासकर एन्नोर, कोयम्बटूर और चेन्नई के पास भारी उद्योगों और थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिकी के लिए बड़ा खतरा है। औद्योगिक अपशिष्ट और थर्मल डिस्चार्ज समुद्र के जल को प्रदूषित कर मछलियों और प्रवाल भित्तियों का जीवन संकट में डाल रहे हैं।
सरकारी कदम : एमईआरआरसी की स्थापना इसी चुनौती को हल करने का प्रयास है। यह तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधीन एक एसपीवी के रूप में कार्य करते हुए औद्योगिक अपशिष्ट, फ़्लाइ ऐश, अवैध अतिक्रमण और ठोस कचरे जैसी समस्याओं से निपटने के लिए तटीय वनों, मैंग्रोव और आद्रभूमियों का संरक्षण करेगा।
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते बढ़ता समुद्री तापमान और जल का अम्लीकरण यहां मौजूद प्रवाल भित्तियों और शैवाल आधारित पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। इससे जैव विविधता संकट में पड़ गई है, जिससे तमिलनाडु के तटों पर समुद्री जीवों की कई संवेदनशील प्रजातियां अब विलुप्ति के कगार पर हैं। इनमें डुगोंग (सी-काऊ), हॉक्सबिल कछुआ और ऑलिव रिडली कछुए और इंडो-पैसिफिक हंपबैक डॉल्फ़िन व स्ट्रीप्ड डॉल्फ़िन जैसी स्थानीय डॉल्फ़िन प्रजातियां सबसे प्रमुख हैं।
सरकारी कदम : तमिलनाडु सरकार ने कोस्ट रेस्टोरेशन मिशन की शुरुआत की है, जिसमें कोरल रीफ़ और मैंग्रोव के पुनरुत्थान को प्राथमिकता दी गई है। साथ ही ‘तमिलनाडु स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज - 2.0’ के तहत समुद्र-स्तर वृद्धि और तटीय बाढ़ की निगरानी व अनुकूलन रणनीतियां लागू की जा रही हैं। तटीय संरक्षण कार्यक्रमों के लिए कुल मिलाकर 275 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित है।
चेन्नई और अन्य तटीय शहरों में शहरीकरण तेज़ी से फैल रहा है। तटीय भूमि पर अतिक्रमण से मैंग्रोव, दलदली मैदान और समुद्री घास के क्षेत्र सिमट रहे हैं। इन पारिस्थितिक तंत्रों के कमजोर होने से न सिर्फ समुद्री जीवन, बल्कि बाढ़ और चक्रवात जैसी आपदाओं से प्राकृतिक सुरक्षा भी घट रही है।
सरकारी कदम : राज्य ने इंटिग्रेटेड कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट प्रोजेक्ट चालू किया है, जिसके तहत संवेदनशील तटीय इलाकों की मैपिंग और तटीय क्षेत्रों से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जा रही है। चेन्नई के पास एनॉर क्रीक और पुलिकट झील के पुनरुद्धार के लिए विशेष योजनाएं बनाई गई हैं। इसके लिए 40 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया है।
राज्य का बड़ा हिस्सा समुद्री मछली उद्योग पर निर्भर है, लेकिन अत्यधिक मछली पकड़ने से संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है। मछली पकड़ने वाले जहाज़ों द्वारा अपनाई जा रही बॉटम ट्रॉलिंग जैसी अस्थायी पद्धतियों से समुद्र की निचली परतों का ईको सिस्टम बुरी तरह तहस-नहस हो रहा है। इससे छोटे मछुआरों की आजीविका संकट में पड़ रही है, क्योंकि बॉटम ट्रॉलिंग में जहाज से भारी-भरकम विशालकाय जालों को समुद्र की गहराई में डालकर घसीटा जाता है।
इससे, समुद्र की तलहटी पर मौजूद कोरल रीफ़ व समुद्री वनस्पतियों समेत मछलियों व जलीय जीवों के आवास तक तहस-नहस हो जाते हैं। इस तरह बॉटम ट्रॉलिंग मरीन इकोसिस्टम के लिए विनशकारी सबित होती है।
सरकारी कदम : समुद्री संसाधनों पर दबाव को कम करने के लिए भारत में ‘मॉनसून ट्रॉल बैन’ जैसी योजनाएं लागू की गई हैं। इसे तमिलनाडु में भी लागू किया गया है। इसमें खासतौर पर यहां के तटीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली मछलियों की प्रजनन अवधि में बॉटम ट्रॉलिंग पर बैन लगाकर उनकी पर्याप्त आबादी को बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है।
पिछले वर्षों में एन्नोर जैसे क्षेत्रों में तेल रिसाव की घटनाओं ने समुद्री जीवन और मछुआरा समुदायों को गहरी चोट पहुंचाई है। समुद्र में गिरे हानिकारक रसायन लंबे समय तक तलछट में बने रहते हैं और पूरी खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करते हैं। यह न केवल पारिस्थितिक तंत्र बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा है।
सरकारी कदम: इन चुनौतियों से निपटने के लिए टीएन-एमआरएफ और एमईआरआरसी जैसे संस्थानों का गठन भविष्य के लिए अहम निवेश है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इन पहलों को पारदर्शी ढंग से लागू किया गया, तो यह न केवल समुद्री जैव विविधता को संरक्षित करेंगी, बल्कि तटीय समुदायों की आजीविका को भी सुरक्षित बनाएंगी।
तमिलनाडु सरकार की हाल की पर्यावरण और समुद्री पारिस्थितिकी पहलें
पर्यावरण संरक्षण और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के पुनरुद्धार के लिए टीएन-एमआरएफ और एमईआरआरसी जैसे संस्थानों का गठन से पहले भी तमिलनाडु सरकार इस दिशा में कई नीतिगत कदम उठा चुकी है। ये इस प्रकार हैं:
तमिलनाडु कोस्टल रिस्टोरेशन मिशन (2024): विश्व बैंक की सहायता से शुरू किया गया यह मिशन समुद्री पारिस्थितिकी, जैसे मैंग्रोव, समुद्री घास, लवण दलदल, प्रवाल भित्तियों के संरक्षण, तटीय परिसंवाहन, समुद्री पर्यटन और प्रदूषण नियंत्रित करने के उपायों पर केंद्रित है। इसके तहत “ब्लू कार्बन एजेंसी” नामक एसवीपी बनाकर परियोजनाओं का प्रबंधन किया जाएगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक इसके लिए राज्य सरकार और विश्व बैंक मिलकर 1,675 रुपये करोड़ की फंडिंग कर रहे हैं, जिसमें 502.5 करोड़ राज्य सरकार देगी और बाकी के 1,172.5 करोड़ रुपये विश्व बैंक की ओर से दिए जाएंगे।
करीयाचल्ली द्वीप संरक्षण पहल (2025): मन्नार की खाड़ी स्थित संवेदनशील क्षेत्र करीयाचल्ली द्वीप के तटों का कटाव को रोकने के लिए 8,500 कृत्रिम प्रवाल (आर्टिफिशियल रीफ) लगाने का काम किया जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मिशन को 300 स्थानीय ग्रामीणों को प्रशिक्षित करके संचालित किया जा रहा है। यह क्षेत्र डुगोंग (समुद्री गाय) और प्रवाल भित्तियों के लिए काफ़ी अहम है। इसे 50 करोड़ के बजट से चलाया जा रहा है।
जैव विविधता की सुरक्षा के लिए एलीट मरीन फ़ोर्स (2025): चेन्नई के तट पर समुद्री जैव विविधता की रक्षा के लिए एक विशेष बल एलीट मरीन फ़ोर्स की स्थापना की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक यह फ़ोर्स कछुओं के घोंसलों को बचाने और उनकी तस्करी रोकने, अवैध मछली पकड़ने और तेल व रासायनिक प्रदूषण से निपटने के लिए तटवर्ती इलाकों में गश्त करेगी और आपात कालीन स्थितियों में त्वरित कार्रवाई करेगी। इसके लिए 96 लाख रुपये का बजट पास किया गया है।
बकिंघम कनाल मैंग्रोव प्लांटेशन (2025): एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीन तमिलनाडु मिशन के तहत चेन्नई के बकिंघम कनाल में मास्टरप्लान के अंतर्गत 12,500 मैंग्रोव पौधे रोपे गए हैं, जिससे पारिस्थितिक सुधार के साथ बाढ़ नियंत्रण और कार्बन कैप्चर को बढ़ावा मिला है, और इसी तर्ज पर कुड्डालोर और एन्नोर में भी व्यापक विस्तार की योजना है।
तमिलनाडु वेटलैंड्स मिशन (2021–2026): परियोजना के पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक इस पांच-वर्षीय योजना के अंतर्गत राज्य भर से 100 वेटलैंड की पहचान, मैपिंग, संरक्षण, जागरूकता, समुदाय आधारित संरक्षण और आर्थिक के उपाय और इन वेटलैंड्स के पर्यावरण अनुकूल उपयोग की व्यवस्था की जानी है। राज्य सरकारी की ओर से इसके लिए 115.15 करोड़ का बजट रखा गया है।
जल-गुणवत्ता और प्रदूषण निगरानी परियोजना (2024): एक रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु की झीलों, तालाबों और अन्य जलाशयों के लिए एआई-आधारित रीयल टाइम निगरानी प्रणाली की शुरुआत 5 करोड़ रुपये के बजट से की गई है। पहले चरण में पूंडी, चेम्बरमबक्कम, उधगमंडलम, और कोडाइकनाल के चुनिंदा जलस्रोतों के लिए मॉनिटरिंग सिस्टम की स्थापना की गई है। इसके अलावा, समुद्र में बहाए जा रहे कचरे व प्रदूषण के नियंत्रण के लिए विश्व बैंक के सहयोग से 100 करोड़ रुपये की लागत से प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम भी चल रहा है।
प्रोजेक्ट डॉल्फ़िन (2023): रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के तटवर्ती इलाकों में समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत करने के लिए 8.13 करोड़ की लागत से दो साल पहले प्रोजेक्ट डॉल्फ़िन की शुरुआत की गई। इसके ज़रिये तटीय क्षेत्रों में डॉल्फ़िनों का संरक्षण और उनके आवासीय क्षेत्रों की निगरानी का काम किया जा रहा है।
इस परियोजना के तहत मन्नार की खाड़ी के बायोस्फ़ीयर रिज़र्व में पाई जाने वाली डॉल्फ़िन की चार से ज़्यादा प्रजातियों का संरक्षण किया जाएगा। इसके तहत डॉल्फ़िनों की संख्या आकलन, सुरक्षा निगरानी और उनके संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने सहित कई गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं।
ई-ऑटोरिक्शा-चालित “क्लाइमेट वॉरियर्स” अभियान (2024): एक रिपोर्ट के अनुसार इस अभियान के तहत राज्य के तटवर्ती इलाकों में करीब स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं को लोगों के बीच पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सरकार ने परियोजना के पहले चरण में 3.87 करोड़ रुपये की लागत से 100 इलेक्ट्रिक ऑटो रिक्शा दिए गए हैं, जिनके ज़रिये ग्रीन मोबिलिटी को बढ़ावा देने के साथ ही पर्यावरण जागरूकता के लिए प्रचार किया जाएगा।
ये महिलाएं एक प्रभावशाली संदेशवाहक के रूप में को लोगों के बीच पर्यावरण जागरूकता पैदा करने में सहयोग करेंगी। आने वाले महीनों में स्वयं सहायता समूहों को 500 ई-ऑटो प्रदान करने के लिए कुल 20 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया है। यह परियोजना पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देने के साथ ही महिलाओं को स्थायी आजीविका के अवसर देकर उन्हें सशक्त बनाने के दोहरे उद्देश्य से शुरू की गई है।
ग्रीन स्कूल प्रोग्राम (2024–2025): पर्यावरण के प्रति लोगों में संवेदनशीलता और जागरूकता बढ़ाने के लिए इसे शिक्षा से जोड़ने की रणनीति के तहत तमिलनाडु सरकार ने बीते वर्ष ग्रीन स्कूल प्रोग्राम की शुरुआत की है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पहले वर्ष 46 से ज़्यादा स्कूलों को जोड़ा गया, जिनमें 4 करोड़ रुपये खर्च कर कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
आगे चलकर 100 और स्कूलों को जोड़ने का लक्ष्य है। परियोजना के लिए कुल ₹9.20 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है। इस प्रोग्राम में पर्यावरणीय जागरूकता के लिए विभिन्न प्रकार की गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन करने और स्कूलों में सौर ऊर्जा के ज़रिये ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने, रेन वाटर हार्वेस्टिंग से वर्षा जल संचयन की व्यवस्था, जैविक बगीचे लगाना और स्कूल परिसरों केा प्लास्टिक मुक्त बनाने जैसी पहलें शामिल हैं।
सतत जलवायु कार्य योजना (2025): एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य ने अपनी सतत जलवायु कार्य योजना (एसएपीसीसी) को फरवरी 2025 में अंतिम रूप देकर इसे मंज़ूरी के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को सौंप दिया है। इसके ज़रिये तमिलनाडु में जलवायु अनुकूलन व सस्टेनेबिलिटी को बढ़ाने के लिए नीतिगत ढांचा तैयार किया जा रहा है।
इस तरह, तमिलनाडु एक समर्पित जलवायु परिवर्तन मिशन की कवायद शुरू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। इसके अलावा, राज्य में उद्योगों की ग्रीन रेटिंग, ऑनलाइन वेस्ट एक्सचेंज ब्यूरो की शुरुआत और राजपलायम में कार्बन-मुक्ति के लिए एक कार्य योजना जारी करने के कदम तमिलनाडु सरकार की ओर से उठाए जा चुके हैं।