वर्तमान स्रोतों की रक्षा-
( गांव- पटूरदा, तालुका संग्रामपुर, जिला-बुलढ़ाना, महाराष्ट्र)
पूर्व स्थितियां:
जल के मुख्य स्रोत कुएं सूखे और उपेक्षित थे और उनमें से कुछ कूड़ेदान में तब्दील हो गए थे।
सारांश-
स्रोत कुएं कूड़ेदान बन गए थे। कुएं के आसपास गंदगी का ढ़ेर लगा हुआ था। गांववाले इन कुओं के पास गए और वहां की गंदगी देखकर चकित रह गए। गांववालों ने कुओं को साफ़ करने के लिए साथ-साथ काम किया। एक कुएं के सफ़ाई अभियान ने दो अन्य कुओं को साफ़ करने के लिए प्रेरित किया।
बदलाव की प्रकिया:
पटूरदा गांव आबादी और क्षेत्रफल दोनों के लिहाज से बड़ा गांव है। तीन कुएं पूरे गांव के लिए पीने के पानी के मुख्य स्रोत थे। गर्मियों में पानी की कमी, लीकेज और वितरण प्रणाली में गड़बड़ियां वहां की मुख्य समस्याएं थीं। गांव के स्तर पर गांव के वीडब्ल्यूएससी/एसएसी और डब्ल्यूडीसी सदस्यों के साथ बातचीत के दौरान पीआरएऔर बैठकों के माध्यम से जल वितरण प्रणाली और सफाई व्यवस्था से जुड़ी समस्याओं की पहचान पर बद दिया गया। पीआरए गतिविधि के दौरान गांव के विभिन्न हिस्सों की मुख्य समस्याओं को ठीक से समझने की कोशिश की गई। इस दौर की कई गतिविधियों में पीने के पानी के वर्तमान स्रोतों का निरीक्षण शामिल था। गांववालों को मुख्य कुएं के पास ले जाया गया। कुआं झाड़ियों और जंगली पौधों से भरा था। कुएं के आसपास काफी गंदगी थी। आसपास के रेस्त्रा और दुकाने कुएं में गंदगी फेंका करते थे। महिलाएं कुएं की बुरी हालत देख कर स्तब्ध थीं। महिलाओं को पहली बार उस कुएं को देखने का मौका मिल रहा था जिसका पानी वे और उनके परिजन पीते थे। पुरुष कुएं की हालत देखकर शर्म से डूब गए।
यह प्रक्रिया गांव वालों को इस समस्या का हल ढूंढने के बारे में बताने के साथ ख़त्म हुई। स्रोत क्षेत्र की सफ़ाई को पहली प्राथमिकता दी गई। पीआरए ख़त्म होने के बाद योजना के अनुरूप वीडब्ल्यूएससी/एसएसी और डब्ल्यूडीसीसदस्यों ने सफ़ाई का काम शुरू किया। एक हफ्ते में ही हालात पूरी तरह बदल गए थे। कुएं और आसपास के इलाके को पूरी तरह साफ करने के साथ ही बाड़बंदी कर दी गई। कुएं की सफ़ाई और बेहतर रखरखाव के लिए गांव के ही एक व्यक्ति की ख़ास तौर पर नियुक्ति कर दी गई। सभी सदस्यों की कोशिशों से ख़ास तौर पर महिला सदस्यों ने काफी खुशी जताई। स्थितियों में क्रांतिकारी बदलाव से उत्साहित सदस्यों ने अन्य दो स्रोतों की ओर भी निगाह दौड़ाई। बस स्टैंड से सटा हुआ कुंआ खुला था। गांव वाले और बस स्टैंड पर आने जाने वाले लोग इस कुएं का इस्तेमाल चप्पल, टिन, शराब की खाली बोतलें, कपड़े आदि फेंकने में करते थे। पानी का तीसरा स्रोत एक बोर कुआं था जो मांस बाज़ार और शराब की दुकान के बीच में था। यह कुआं भी गंदगी से भरा था। ग्राम पंचायत और वीडब्ल्यूएससी/एसएसी और डब्ल्यूडीसी सदस्यों की तत्काल एक बैठक बुलाई गई। बैठक में इस मसले पर गंभीरता से विचार करते हुए पानी के इन दोनों स्रोतों के तत्काल संरक्षण का फ़ैसला किया गया। ग्राम पंचायत ने कुओं के संरक्षण पर पैसा खर्च करने पर सहमति जताई। गांव के स्तर पर प्रशिक्षण और पीआरए ने गांववालों को समस्याओं की पहचान तथा उनके हल के लिए मदद मिली। इससे वर्तमान जल स्रोतों के महत्व समझने और सामूहिक सामाजिक तरीके से काम करने की परंपरा विकसित हुई।