भूजल

हिरोशिमा बन रहा है मलांजखंड

Author : मीडिया फॉर राईट्स

हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड की खदान से बहता जहर, सैंकड़ों किसानों के खेत तबाह, मुआवजे से मुंह फेरा भूजल स्रोतों में फैला प्रदूषण खतरे में कान्हा नेशनल पार्क

एचसीएल की खदान से सर्वाधिक प्रभावित 10 गांवों में यह बात सामने आई कि लोग 55 साल से ज्यादा नहीं जी पा रहे हैं। हैंडपंप का पानी पीकर बच्चों में खुजली, बाल झड़ने की शिकायत है, वहीं रहतम सिंह ने बताया कि इन गांवों में 70 फीसदी लोगों को डायिबटीज की शिकायत है। 50 की उम्र के बाद लकवे का अचानक दौरा पड़ता है और फिर कुछ समय बाद मौत हो जाती है। बोरखेड़ा गांव में सिर्फ चार बुजुर्ग ही बचे हैं। हैरत की बात यह है कि इन शिकायतों के बाद भी एचसीएल प्रबंधन ने पानी की गुणवत्ता और प्रदूषण के स्तर की आज तक जांच नहीं की। श्याम सिंह के शरीर पर घाव के निशान और चकत्तों को देखकर हिरोशिमा और नागासाकी की परमाणु त्रासदी याद आ जाती है। श्याम सिंह को ये निशान मलांजखंड में तांबे का खनन करने वाले सार्वजनकि क्षेत्र के हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) ने दिए हैं। तीन माह पहले वह खदान के पास बने तालाब में फंसे अपने बैल को निकालने गए थे। बैल तो निकल गए लेकिन श्याम के पूरे शरीर में छाले पड़ चुके थे। अगले दो माह तक उनसे मवाद आता रहा। पांच एकड़ बंजर जमीन के मालिक श्याम सिंह कोदवा-गोली पर हर हफ्ते 500 रुपए खर्च करना पड़ता है।

करीब 480 एकड़ में फैली एचसीएल की खुली खदान से रोजाना 70 टन रेत नकिलती है। इस रेत में मैंगनीज, नकिल, जिंक और मॉलिब्डेनम जैसे रसायन मिले होते हैं। खदान के चारों ओर इस रेत को डंप किया जाता है, जबकि बाकी का अवशिष्ट खदान के नजदीक बंजर नदी में बहाया जा रहा है। इसके लिए कंपनी ने विशाल टेलिंग डैम बना रखा है, जहां फ़िलहाल पांच करोड़ टन अवशिष्ट जमा है। खदान में इस्तेमाल किए जा रहे पानी में घुले रसायन 20 किमी के दायरे में तकरीबन सभी जल स्रोतों और भूमिगत जल को प्रदूषित कर चुके हैं। एचसीएल की खदान से फैल रहे प्रदूषण का असर बैगा और गोंड बहुल 134 गांवों पर पड़ा है, लेकिन इसके बिल्कुल नजदीक बसे छिंदीटोला, बोरखेड़ा, सूजी, झिंझोरी, करमसरा, नयाटोला और भिमजोरी जैसे कुल 10 गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। हैरत की बात यह है कि मध्यप्रदेश प्रदूषण निवारण मंडल की टीम को दिसंबर 2010 से फरवरी 2011 तक मलांजखंड का लगातार दौरा करने के बाद प्रदूषण फैलाने के एक भी सुबूत नजर नहीं आए।

एचसीएल के प्रदूषण के खिलाफ प्रभावित गांव के लोगों ने पिछले साल जनवरी में 10 किलोमीटर दूर कान्हा के मुक्की गेट पर लगातार 35 दिन तक धरना प्रदशर्न आयोजित किया था। अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के बैनर तले इस प्रदर्शन के दौरान छिंदी टोला और बोरखेड़ा ग्राम पंचायतों ने प्रस्ताव पारित कर पीने का साफ पानी मुहैया कराने और 10 गांवों के पीड़ित 410 किसानों को मुआवजा देने समेत 10 मांगें रखी थीं। उसके बाद ज़िला प्रशासन ने 110 किसानों के लिए 2006-2008 के बीच फसल नुकसानी का आठ लाख रुपए का मुआवजा स्वीकार किया था। 22 लाख रुपए से घटाकर आठ लाख किएगए इस मुआवजे से अभी भी 300 किसान वंचित हैं। एचसीएल कंपनी के सूत्रों ने बताया कि जबलपुर स्थित क्षेत्रीय विज्ञान प्रयोगशाला के शोधकर्ताओं की टीम ने इसी साल अप्रैल में खदान के आस-पास की जमीन के एसिड प्रभावित होने की पुष्टि करते हुए प्रभावितों को मुआवजा देने की सिफारिश की थी। लेकिन एचसीएल ने रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है।

बोरखेड़ा गांव का श्याम सिंह (45) ने 2007-2009 तक एचसीएल में सिक्योरिटी गार्ड रहा। उसने बताया कि सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि खदान के पास बने तालाब में पानी पीने वाले मवेशियों का पेट फूल जाता है। जीभ में छाले पड़ जाते हैं और कुछ दिनों के भीतर उनकी मौत हो जाती है। श्याम सिंह के पड़ोस में रहने वाले देवीलाल मरकाम (24) के सिर से बाल गायब हो चुके हैं। इसकी वजह है टेलिंग डैम के नीचे उसके खेत के पास बना तालाब, जहां उसने कई माह तक नहाने की गलती की। बोरखेड़ा गांव के लोगों ने बताया कि तेज हवा चलने पर खदान की रेत उड़कर धूल भरी आंधी का नजारा पेश करती है। आम रेत से पांच गुना महीन इसके कण शरीर से चिपककर खुजली पैदा करते हैं। यही रेत लोगों के खेत, खिलहान, भोजन से लेकर सांस के जिरए फेफड़े में भी घुस रही है।

खेत हुए जहरीले

खतरे में पयार्वरण

ब्लास्ट से मकानों में दरारें

खुजली, डायिबटीज, लकवे की बीमारी

दिखावे के लिए चलित अस्पताल

कान्हा को खतरा

वेस्ट रिसायकल प्लांट चालू नहीं!

ठेके पर चल रहा है काम

रॉयल्टी का मामला फंसा

एचसीएल के बारे में -

मप्र प्रदूषण निवारण मंडल ने गिनाई खामियां -

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