हरियाणा में भूजल संकट गहराता जा रहा है। राज्य में औसत भूजल दोहन दर 135.96% दर्ज की गई है। कुरुक्षेत्र जैसे जिलों में यह दर 228% तक पहुंच चुकी है, जबकि जल शक्ति मंत्रालय के मुताबिक देश भर के लिए भूजल दोहन की औसत दर 59% है।
अंधाधुंध दोहन से राज्य में 60% से ज्यादा इलाका भूजल दोहन की "अत्यधिक शोषित" (Highly Exploited) श्रेणी में आ चुका है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने स्वतः संज्ञान लेते हुए हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) और पर्यावरण मंत्रालय से विस्तृत रिपोर्ट तलब की थी। इस मामले में अभी CGWB की रिपोर्ट आई है। CGWB की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में हरियाणा भूजल के बारे में काफी चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं।
हरियाणा में भूजल दोहन की गंभीर स्थिति पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 23 जनवरी 2025 को स्वतः संज्ञान लिया। यह कार्रवाई ‘द ट्रिब्यून’ अखबार में 8 जनवरी 2025 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर की गई, जिसमें राज्य में तेजी से घटते भूजल स्तर की जानकारी दी गई थी।
"Haryana's 60.48% groundwater overexploited: Kurukshetra worst, Jhajjar best, says report" शीर्षक से प्रकाशित लेख में हरियाणा में भूजल के अत्यधिक दोहन की गंभीर स्थिति की जानकारी दी गई थी।
इस रिपोर्ट में बताया गया था कि हरियाणा की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। सिंचाई के लिए पानी की मांग सतह और भूमिगत जल की उपलब्धता से कहीं अधिक होने के कारण राज्य को भूजल की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
CGWB ने 3 मई 2025 को एनजीटी को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें हरियाणा में भूजल के दोहन और पुनर्भरण से जुड़े विस्तृत आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में वार्षिक भूजल पुनर्भरण 10.32 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है, और इसका मतलब है दोहन योग्य संसाधन 9.36 बीसीएम, जबकि वास्तविक दोहन 12.72 बीसीएम है। इससे गणित निकलता है कि हरियाणा की भूजल दोहन दर बढ़कर 135.96% हो गई है, जो पिछले वर्ष 135.74% थी।
रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा के कई जिलों में भूजल दोहन की स्थिति ज़्यादा गंभीर है। कुरुक्षेत्र में यह दर 228.42% है, जो राज्य में सर्वाधिक है। इसके अलावा पानीपत (222.11%), गुरुग्राम (212.77%), और कैथल (190.24%) जैसे जिले भी खतरनाक स्थिति में हैं। वहीं झज्जर (51.01%) और रोहतक (51.14%) अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं।
राज्य का 60.48% क्षेत्र अत्यधिक शोषित श्रेणी में आता है।
11.12% क्षेत्र गंभीर या अर्ध-गंभीर श्रेणी में है, जबकि केवल 28.4% क्षेत्र सुरक्षित है।
राज्य में कुल 143 मूल्यांकन इकाइयों में से 88 (61.54%) अत्यधिक शोषित, 11 (7.69%) गंभीर, और 8 (5.59%) अर्ध-गंभीर मानी गई हैं।
अर्ध-गंभीर मानी गई हैं।
1 - हरियाणा की ज़मीन के नीचे पानी का ख़जाना तेज़ी से कम हो रहा है और इसके पीछे सबसे बड़े गुनहगार हैं राज्य के 8.5 लाख सिंचाई ट्यूबवेल। कभी खेतों की हरियाली के लिए वरदान माने जाने वाले ये ट्यूबवेल अब भूजल के शिकारी बन चुके हैं। इनसे बिना रुके, बिना सोचे-समझे ज़मीन का सीना चीरकर पानी खींचा जा रहा है। हालात इतने भयावह हो गए हैं कि कई इलाकों में पंप चलाने पर भी पानी नहीं निकलता। स्पष्ट है कि धरती भीतर से खाली हो चुकी है।
2 - मई की तपती दोपहरी में, जब ज़मीन खुद प्यास से फटने लगती है, तब भी ट्यूबवेलों से खेतों की सिंचाई जारी रहती है। सोचिए, जब हर तरफ पानी का संकट गहराया हुआ हो, तब हम धरती की आखिरी बूंदें भी निचोड़ लेना चाहते हैं। प्रदेश के 1.121 मिलियन हेक्टेयर खेत ट्यूबवेलों पर निर्भर हैं, यानी सीधे भूजल पर।
3 - हर साल भूजल का स्तर गिरता जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद जल-सघन फसलों जैसे धान और गन्ने की खेती लगातार बढ़ती जा रही है, मानो हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हों। नदियां सूख रही हैं, कुएं रीते जा रहे हैं, फिर भी खेतों में वही फसलें उगाई जा रही हैं। ये फसलें इलाके की पारिस्थितिकी के लिए ज़हर साबित हो रही हैं।
फरीदाबाद और गुड़गांव जैसे शहरी जिलों में अत्यधिक भूजल दोहन से ज़मीन धंसने की घटनाएं सामने आ रही हैं। इससे इमारतों और बुनियादी ढांचे खतरे की जद में आ गए हैं।
हरियाणा में अत्यधिक दोहन और अत्यधिक सिंचाई के कारण कई क्षेत्रों में जलभराव और सेम की समस्या गंभीर होती जा रही है। सेम की समस्या का मतलब है - जमीन का खारा और बेकार हो जाना। यह तब होता है जब ज़रूरत से ज़्यादा पानी खेतों में दिया जाता है, जिससे पानी मिट्टी के नीचे जमा हो जाता है। धीरे-धीरे ये पानी ऊपर आने लगता है और उसमें घुले तत्व भी सतह पर आ जाता है।
हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा जून 2020 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में लगभग 9.83 लाख एकड़ भूमि जलभराव और लवणता की समस्या से प्रभावित है। इसमें से 1.74 लाख एकड़ क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित है, जहां जल स्तर 0 से 1.5 मीटर के बीच है ।
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि हरियाणा में भूजल संकट केवल एक चिंतित करने वाला आंकड़ा भर नहीं, बल्कि एक जीवंत और ज्वलंत समस्या है, जिसका समाधान तत्काल और प्रभावी हस्तक्षेप की मांग करता है।
हरियाणा अटल भूजल योजना में टेक्निकल एक्सपर्ट के तौर पर काम कर चुके, पीएसआई के वैज्ञानिक अनिल गौतम बताते हैं कि वाटर-इंटेंसिव क्रॉप सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन इससे बड़ी समस्या है कि तालाबों को भरने के लिए भी भूजल का इस्तेमाल किया जा रहा है। हां, एक काम अच्छा हो रहा है कि मोटे अनाज की खेती पर हरियाणा सरकार इंसेंटिव दे रही है। यह भूजल के हिसाब से अच्छी खबर है।
गाजियाबाद के चर्चित लीगल एक्टिविस्ट सुशील राघव बताते हैं कि एनजीटी में उन्होंने वाद दायर करके मांग की थी कि पूरे देश में भूजल दोहन करने वाली एनओसी के बिना जो इंडस्ट्रीज चल रही हैं, उनको बंद किया जाए। मगर हुआ क्या? केस के दौरान ही ओवर एक्सप्लोइटेड और नोटिफाई एरिया में भी भूजल दोहन के लिए इंडस्ट्रीज को एनओसी दे दी गई।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि राज्य को वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने, फ्लड इरिगेशन की जगह स्प्रिंकलर, टपक सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन) आदि कम पानी वाली सिंचाई पद्धतियों को अपनाने और फसल विविधीकरण की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। धान की जगह मक्का, सूरजमुखी और कपास जैसी कम पानी वाली फसलों की ओर रुख करना एक दीर्घकालिक समाधान हो सकता है।
उम्मीद है कि न्यायाधिकरण हरियाणा सरकार और संबंधित एजेंसियों को भूजल दोहन को रोकने और संरक्षण के उपायों को सख्ती से लागू करने का निर्देश देगा और उन्हें लागू भी किया जाएगा।