भूजल

जल का महत्व निबंध : समस्या और समाधान

आज लखनऊ में भी भूजल स्तर प्रति वर्ष तीन फीट नीचे जा रहा है। शहर की झीलें और तालाब सूखे पड़े हैं तथा अनाधिकृत कब्जे में है। शहर की अधिकांश भूमि पक्की होने के कारण वर्षा जल रिचार्ज होने के बजाय बह जाता है। भविष्य में भारी जल संकट आ सकता है। इससे बचाव के लिए आवश्यक है कि लखनऊ के सभी तालाब, झील, नदी अतिक्रमण से मुक्त कराकर उनमें पर्याप्त जल रहे, उनके आसपास अधिक से अधिक पीपल, बरगद, पाकड़ के पेड़ लगाये जाएं, बड़े-बड़े मकानों का नक्शा स्वीकृत करने के समय छत के पानी की रिचार्जिग व्यवस्था यानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य किया जाय।

Author : विजय बहादुर सिंह

हमारे जीवन में चौबीस घंटे जल की आवश्यकता होती है। प्रातःकाल उठने के बाद नित्य क्रिया हेतु जल आवश्यक है। कपड़ा साफ करना, घर की सफाई, बर्तनों की सफाई, घर का निर्माण करने के पूर्व पर्याप्त जल की व्यवस्था करना होता है। जल हमारी दिनचर्या का अंग है। खेती का कार्य, पौधों को लगाना तथा उन्हें पालकर बड़ा करना जल के बिना संभव नहीं है। जहां जल नहीं है वहां पेड़-पौधे नहीं है। यहां तक कि बिना जल के घास का एक तिनका भी नहीं उग सकता है। हमारा जीवन जल के बिना चलना संभव नहीं है।

हमें सांस लेने के लिए ऑक्सीजन अति आवश्यक है। बिना ऑक्सीजन के पांच मिनट भी जीवित रहना किसी भी प्राणी के लिए संभव नहीं है। ऑक्सीजन या तो जल से मिलता है या पेड़-पौधों से। पेड़-पौधे बिना जल के नहीं हो सकते हैं। इसका आशय स्पष्ट है कि जल के बिना जीवन - नहीं है, इसलिए कहा जाता है कि जल ही जीवन है। जल की आपूर्ति हम नदी, कुआं, झील, तालाब तथा धरती में निहित भूजल से करते हैं। - नदी, कुआं, झील, तालाब तथा धरती में जल - कहां से आता है! इसका उत्तर है, बरसात के माध्यम से नदी, कुआं, झील, तालाब और धरती में जल आता है और संचित होता है। यदि नदी, - कुआं, झील, तालाब में जल न रह जाय तो मानव जीवन में जल का संकट आ जायेगा।

जहां पर भी जल संकट आता है, वहां मारामारी - शुरू हो जाती है। अभी जून के महीने में पानी का संकट दिल्ली में देखा गया है। जीवन में जो अति आवश्यक होता है, ईश्वर के रूप में प्रकृति वह मुफ्त मे देती है। जल का एक ही स्रोत है जिसे हम समुद्र कहते हैं। समुद्र में जल कहां से आता है, यह मानव ज्ञान से बाहर है। बस इतना कहा जा सकता है कि नदियों का बचा हुआ जल समुद्र में गिरता है। जो बात मानव और विज्ञान के वश में नही है, उसी को हम ईश्वरीय व्यवस्था कहते है। सूर्य की गर्मी से समुद्र का जल मानसूनी हवा बनकर बादल के रूप में फैल कर पृथ्वी पर चारों तरफ जल वर्षा करता है और वही जल धरती में जाकर संचित होता है और उसी जल से नदी, कुआं, झील और तालाब भरते हैं तथा आवश्यकतानुसार स्वच्छ करके मनुष्य उस जल का उपयोग पीने तथा विभिन्न कार्यों के लिए करता है।

धरती की विभिन्न सतहें पानी स्वच्छ करने का सबसे उत्तम साधन है। इस व्यवस्था के बावजूद जल संकट क्यों आ जाता है, यह समझना बहुत जरूरी है। धरती का बहुत-सा भाग समतल तथा सामान्य मिट्टी का है तथा समतल भी इसके अतिरिक्त कुछ भाग पथरीला तथा ढालू है, वहां वर्षा जल धरती में बहुत कम जाता है बल्कि बहकर दूर चला जाता है। ऐसे स्थानों पर वर्षा जल धरती में रिचार्ज नहीं होता है वहां पर कुएं बोरिंग आदि सफल नहीं हो पाते है क्योकि धरती में पानी है ही नहीं तो मिलेगा कहां से।

बड़े-बड़े शहरों में आजकल अधिकांश जगह पक्की हो गयी है, इस कारण वर्षा जल वहां भी मिट्टी पक्की होने के कारण रिचार्ज होने के बजाय बहकर दूर चला जाता है। इस कारण ऐसे स्थानों पर जल संकट आ जाता है, क्योंकि आजकल बोरिग के माध्यम से धरती से जल निकाला जाता है। जब धरती में जल नहीं होता है तो बोरिंग फेल हो जाते हैं तथा जल संकट उत्पन्न हो जाता है.। इस समस्या का समाधान कैसे हो, इसको समझना बहुत जरूरी है। राजस्थान में एक स्थान है लापोड़िया जहा के जमीदार थे राजा लक्ष्मण सिह। जब वह पचीस वर्ष के थे तब उन्होंने इस समस्या के निराकरण हेतु जन सहयोग से करने का संकल्प लिया। उन्होंने स्वयं फावड़ा उठाया और उनके साथ तमाम ग्रामीण लग गये तथा सप्ताह में एक दिन सैकड़ों लोग मिलकर धरती में जगह-जगह दो-दो फीट ऊंची मेड़ें इस प्रकार बना दिया कि वर्षाजल बहकर जाने के बजाय वही धरती मे रिचार्ज हो जाय तथा वर्षाजल वहां के स्थानीय झील-तालाबों में रास्ता बनाकर भेजा गया। यह कार्य लगभग तीस वर्षों से लगभग साठ-सत्तर गावों में स्थानीय श्रमदान से हो रहा है। आज राजस्थान जैसे पठारी क्षेत्र के उन सत्तर गांवों में छह-सात फीट पर पानी है, धरती हरी-भरी है, कुएं-तालाब और झील पानी से भरे हैं। इस पुनीत कार्य के लिए राजा लक्ष्मण सिंह को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

आज लखनऊ में भी भूजल स्तर प्रति वर्ष तीन फीट नीचे जा रहा है। शहर की झीलें और तालाब सूखे पड़े हैं तथा अनाधिकृत कब्जे में है। शहर की अधिकांश भूमि पक्की होने के कारण वर्षा जल रिचार्ज होने के बजाय बह जाता है। भविष्य में भारी जल संकट आ सकता है। इससे बचाव के लिए आवश्यक है कि लखनऊ के सभी तालाब, झील, नदी अतिक्रमण से मुक्त कराकर उनमें पर्याप्त जल रहे, उनके आसपास अधिक से अधिक पीपल, बरगद, पाकड़ के पेड़ लगाये जाएं, बड़े-बड़े मकानों का नक्शा स्वीकृत करने के समय छत के पानी की रिचार्जिंग व्यवस्था यानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य किया जाय। गोमती नदी की सभी सहायक नदियों की खुदाई करके जल प्रवाह को बढ़ाया जाय। नदी के किनारे घाट बनाये जाएं और वृक्षारोपण कराया जाय तथा लोगों को, विशेषकर विद्यार्थियों को इस विषय की व्यापक जानकारी दी जाय ताकि लोग इसे बोझ न समझ कर स्वेच्छा से स्वीकार करें।

उत्तर प्रदेश शासन द्वारा कुकरैल नदी की भूमि पर अनाधिकृत रूप से अवस्थित अकबरपुर से लगभग एक हजार मकान गिराकर उन्हें अलग बसाने की व्यवस्था की। ऐसे कदमों का विरोध करने के बजाय सहयोग और स्वागत करना चाहिए। अन्यथा भविष्य में लखनऊ में भी भारी जलसंकट उत्पन्न हो सकता है।

-लेखक लोक भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी हैं।
स्रोत - लोक सम्मान, जून-जुलाई, 2024


 

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