जल और हवा ही मात्र ऐसे तत्व हैं, जिनका महत्व बताने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बचपन से ही इंसान इन दोनों तत्वों की उपयोगिता को भलिभांति समझ जाता है। इसके बावजूद भी जब वो बड़ा होता है, तो दोनों ही तत्वों की उपयोगिता का गहराई से पता होने के बाद भी इनके संरक्षण का उद्देश्य कहीं खो जाता है। परिणामतः विकराल होता जल संकट और जल प्रदूषण हमारे सामने हैं। नीति आयोग की ‘कम्पोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स’ रिपोर्ट के मुताबिक देश के 75 प्रतिशत परिवारों के घरों में पानी की सुविधा नहीं है। 2011 की जनगणना के अनुसार महोबा में 7 प्रतिशत, बांदा में 13.3 प्रतिशत, जालौन में 26.6 प्रतिशत, चित्रकूट में 11.4 प्रतिशत, हमीरपुर में 13.2 प्रतिशत, झांसी में 20.1 प्रतिशत और ललितपुर में 10.3 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के घरों में ही पानी की सुविधा है। ऐसा ही कुछ हाल देश के अन्य इलाकों का भी है, लेकिन इसके बावजूद भी भारत के अधिकांश लोग पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए भूजल पर निर्भर हैं।
भारत में सतही जल तेजी से सूखता जा रहा है। जो जल बचा है, वो प्रदूषित हो रहा है। इसमें गंगा और यमुना जैसी देश की तमाम बड़ी और छोटी नदियां शामिल हैं। अतिदोहन के कारण भूजल स्तर इतना चीने चला गया है कि सूखे कुएं और तालाब इंसानों को गर्मिंयों में मुंह चिढ़ा रहे हैं। गांवों में पहले लगाए गए बोरवेल का लेवल पाताल में जाता जा रहा है, जिस कारण सिंचाई के लिए कभी अतिदोहन करने वाले बोरवेल आज वेंटिलेटर पर हैं। कई इलाकों में पानी न मिलने के कारण खेत बंजर होते जा रहे हैं। किसान खेती छोड़ रहे हैं। जल प्रदूषण और जल संकट लोगों की जान ले रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी हम इंसानों ने भूजल दोहन कम नहीं किया और न ही जल संग्रहण की ओर ज्यादा ध्यान दिया।
दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक धरती में पानी की उपलब्धता का सीधा सा सिद्धांत है कि जितना वर्षा का जल संचय किया जाएगा उतना ही हमारे लिए उपलब्ध रहेगा। इसी सिद्धांत का पालन न होने के कारण प्रतिवर्ष भू-गर्भ जल का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। भू-गर्भ जल के नीचे जाने की गति 67 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष हो गई है। इसी का परिणाम है कि जिले के तीन विकास खंड डार्क जोन में चले गए हैं।
जनपद में सिंचाई की 80 फीसद निर्भरता भू-गर्भ जल ही है। इसके अलावा पेयजल, औद्योगिक उपयोग आदि कार्यों के लिए भू-गर्भ जल का ही प्रयोग किया जाता है। भू-गर्भ जल विभाग के अनुसार जल की उपलब्धता के लिए वर्षा के जल का विशेष महत्व है लेकिन उसमें लगातार गिरावट हो रहा है। जल की उपयोगिता और दुरुपयोग बढ़ता जा रहा है। इससे भू-जल स्तर प्रभावित हो रहा है। इसी का परिणाम है कि जिले का विकास खंड आराजीलाइन, हरहुआं और पिंडरा डार्क जोन में हैं। इसी प्रकार चिरईगांव, बड़ागांव, चोलापुर की स्थिति भी ठीक नहीं है। शहरी क्षेत्र की हालत तो और भी खराब है।
भू-गर्भ स्तर के लगातार गिरने का मुख्य कारण अत्यधिक बोरिंग कर जल निकालना है। पिछले वर्षों में वर्षा की कमी और जो वर्षा हुई उसके संचय की व्यवस्था नहीं होना है। इसका कारण रहा कि नदी, नाले, तालाब और जल स्रोत पाट दिए गए। साथ ही आधुनिकीकरण में पानी के अति दुरुपयोग ने हालात को खराब कर दिया। जिले में भू-जल स्तर को रिचार्ज करने में वरुणा और नाद नदी का विशेष महत्व रहा है। ये जिले के सात विकास खंड के एक लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल और शहरी क्षेत्र के 20 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को रिचार्ज करने में सक्षम हैं। इसके बावजूद ये अतिक्रमण के कारण अपने अस्तित्व को खो रही हैं। पूरे वर्ष सूखी रहती हैं। इस कारण भू-जल संरक्षण को लेकर इनकी स्थिति बहुत खराब है।
प्रदेश सरकार ने इस जल संचय के लिए ''वर्षा जल है जीवन धारा, इसका संचयन संकल्प हमारा, का नारा दिया है। इस वर्ष शासन -प्रशासन का प्रयास रहेगा कि अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी कर उन्हें वर्षा जल के संचयन के लिए जोड़ा जाए। कोरोना संक्रमण में यह कार्य और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है।