मध्यप्रदेश में स्वच्छता के लिए चलाए गए अभियान को भ्रष्टाचार की बुरी नजर लग गई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि स्वच्छता के लिए स्वीकृत की गई राशि भ्रष्ट कर्मचारी हजम कर रहे हैं। निर्मल भारत अभियान से लेकर स्वच्छता अभियान तक के नाम पर बड़ी रकम केन्द्र और राज्य शासन की ओर से स्वीकृत की गई थी। परन्तु गॉव शहर के गली मुहल्लों से लेकर पाठशाला तक हर तरफ आज भी पर्याप्त साफ-सफाई नजर नहीं आ रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वच्छता अभियान 2 अक्टूबर के दिन देश भर में खूब चर्चित हुआ लेकिन अगले ही दिन से गंदगी व कचरा पहले ही तरह देखा जा रहा है। साफ-सफाई को लेकर जो सक्रियता उस दिन को देखी गई वह अगले ही दिन से गायब सी हो गई। राज्य के अनेक विद्यालयों में यह भी देखने में आया है कि साफ सफाई बनाए रखने एवं शौचालय निर्माण के लिए जो पैसा सरकार की ओर से स्वीकृत किया गया, उसे शिक्षक, इंजीनियर और अन्य जिम्मेदार कर्मचारी अधिकारी मिल बांटकर खा गए।
शौचालय का निर्माण या तो हुआ ही नहीं अथवा हुआ तो ऐसा जिसका उपयोग करना ही विद्यार्थियों के लिए असंभव हो रहा है। मध्य प्रदेश में स्वच्छता अभियान के लिए बड़ी रकम समग्र स्वच्छता अभियान के अंतर्गत स्वीकृत की गई। सभी विद्यालयों में बालक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय बनाने के लिए प्रत्येक शाला को बजट आवंटित कर दिया गया। इसके बाद भी राज्य के 23 प्रतिशत से ज्यादा स्कूलों में अभी शौचालय की समस्या बनी हुई है।
स्वच्छता के नाम पर स्वीकृत राशि में होेने वाली गड़बड़ी का खुलासा हाल ही में एक पाठशाला के प्रधानाध्यापक ने किया है। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के सामने खुलेआम यह स्वीकार किया कि विद्यालय में शौचालय बनाने के लिए 56 हजार रुपए की राशि स्वीकृत हुई थी। इसमें से विकासखंड शिक्षा अधिकारी को 15 हजार एवं इंजीनियर को 5 हजार रुपए दिए। लगभग 10 हजार रुपए लगाकर तीन-तीन फीट की दो दीवारें शौचालय के नाम बना दी गई। इसके बाद जो रकम बची उसे प्रधानाध्यापक ने खुद रख लेने की बात स्वीकार की है। स्वच्छता के नाम पर स्वीकृत राशि में होेने वाली गड़बड़ी का खुलासा हाल ही में एक पाठशाला के प्रधानाध्यापक ने किया है। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के सामने खुलेआम यह स्वीकार किया कि विद्यालय में शौचालय बनाने के लिए 56 हजार रुपए की राशि स्वीकृत हुई थी। इसमें से विकासखंड शिक्षा अधिकारी को 15 हजार एवं इंजीनियर को 5 हजार रुपए दिए। लगभग 10 हजार रुपए लगाकर तीन-तीन फीट की दो दीवारें शौचालय के नाम बना दी गई। इसके बाद जो रकम बची उसे प्रधानाध्यापक ने खुद रख लेने की बात स्वीकार की है।
स्वच्छता के नाम पर शौचालय निर्माण में होने वाले भ्रष्टाचार का यह उदाहरण मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के बैराड नामक कस्बे के निकट स्थित बरोद गांव के शासकीय प्राथमिक विद्यालय में देखने को मिला। गांव के विद्यालय का निरीक्षण करने पहुंचे सर्व शिक्षा अभियान के जिला परियोजना समन्वयक शिरोमणि दुबे ने जब शौचालय के नाम पर बनी तीन-तीन फीट की दो दीवारें देखी तो वे खुद आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने प्रधानाध्यापक विष्णु वर्मा से सवाल किया कि शौचालय के लिए स्वीकृत 56 हजार रुपयों की लागत से, शौचालय के नाम पर यह क्या बना दिया गया है? तो श्री वर्मा ने बताया कि स्वीकृत बजट में से लगभग 10 हजार से अधिक राशि शौचालय के लिए निर्माण पर खर्च की गई है।
इसका निरीक्षण करने के लिए आए विकासखंड शिक्षा अधिकारी ने 15 हजार रुपए मांगे जो उनको मैंने दे दिए। कुछ दिनों बाद कार्यपूर्णता प्रमाणपत्र देने से पहले मूल्याकंन के लिए आए ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के सब इंजीनियर ने 5 हजार रुपए मांगे। इसके बाद ही उन्होंने मूल्याकंन प्रमाणपत्र दिया। एक पुराने निर्माण की रिकवरी की रकम भी शौचालय निर्माण के लिए स्वीकृत राशि में से ही जमा कराई गई। यह सब करने के बाद जो 11 हजार बचे वो मैंने रख लिए। अब यदि शौचालय ठीक से नहीं बना तो इसमें मेेरा क्या दोष है?
सेनिटेशनप्रधानाध्यापक वर्मा द्वारा शौचालय निर्माण में हुए भ्रष्टाचार को उजागर करने के बाद यह समझना आसान है कि समग्र स्वच्छता अभियान के तहत साफ-सफाई के लिए स्वीकृत की जाने वाली राशि को कैसे मिल बांटकर खत्म किया जा रहा है। यह कहानी केवल किसी एक गांव या शहर अथवा विद्यालय की नहीं है। समग्र स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय निर्माण के लिए स्वीकृत रकम का घोटाला करने में अनेक गांवों के सरपंच और सचिव भी पीछे नहीं हैं।
स्वच्छता अभियान व शौचालय निर्माण के लिए स्वीकृत राशि में घपले व घोटाले इतने ज्यादा हैं कि इनकी चर्चा मध्य प्रदेश विधानसभा में भी खूब हो रही है। राज्य विधानसभा के पिछले सत्र में शौचालय निर्माण को लेकर भाजपा विधायक रामसिंह यादव,कांग्रेस विधायक गोविंद सिंह ,के.पी. सिंह, सहित 12 से अधिक विधायकों ने अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में शौचालय निर्माण में हुए भ्रष्टाचार को लेकर सवाल किए हैं। विधायकों द्वारा उठाए गए सवाल भी यह बताते हैं कि स्वच्छता का अभियान भ्रष्टाचार में उलझकर रह गया है।
प्रसंगवश यह बताना जरूरी होगा कि मध्य प्रदेश में शौचालयों का अभाव सामाजिक समस्या होने के साथ ही अपराध का भी प्रमुख कारण है। ग्रामीण क्षेत्रों में शौच के लिए जाने वाली महिलाएं कई बार दुष्कृत्य का शिकार हो जाती हैं। विद्यालयों में शौचालय नहीं होने से लड़कियों को ज्यादा परेशानी होती है। शौचालय का अभाव भी कई बार लड़कियों को पढाई छोड़ने पर मजबूर करता है।